हैदर अली पार्ट 2

हैदर अली की मुखालफत. नन्दराज के बाद रियासत को एक नए वजीर की जरूरत थी। रानी दिवाजी मनी का इक्तिदार और इख्तियार बढ़ गया था और वह हैदर अली
सैक्रेट्री खण्डेराव पर बहुत एतिमाद करने लगी थी। रानी ने राजा से सिफारिश की के खण्डेराव को रियासत का नया प्रधानमंत्री बना दिया जाए। राजा ने हैदर अली से मश्वरा किया। उसने खण्डेराव को वज़ीर बनाने की ताईद की। रानी उसकी ताईद से संतुष्ट हो गई। क्योंकि उसे डर था कि हैदर अली खण्डेराव को वजीर बनाने की मुखालफत करेगा। दरअसल जो कुछ रानी खण्डेराव के बारे में जानती थी और उसे अपने मकासिद के लिए इस्तेमाल करने की जिस तरह मनसूबा बंदी कर रही थी, उसका हैदर अली को पता न था। और
हैदर अली बहुत बहादुर, ताकतवर और अवाम में मकबूल था। इसलिए राजा, रानी और उनके सलाहकार हैदर अली को रास्ते से हय देना चाहते थे। कुछ ऐसे लोग भी थे जो हैदर अली से बहुत जलते थे। वे किसी मुसलमान को राजा के रूप में देखना नहीं चाहते थे। साजिश करने वालों का मनसूबा

हैदर अली चूंकि फ़ौज का सिपहसालार और अवाम में बेहद मकबूल था। इसलिए उसे रास्ते से हटाना आसान न था, उसके पास फ़ौज की ताकत भी थी। चुनांचे उसके मुखालिफ़ साज़िशी किसी मुनासिब मौके की तलाश में थे और यह मौका उन्हें 1759 ई० में उस वक्त मिला जब फ्रांसीसियों ने अंग्रेजों के खिलाफ़ हैदर अली से ” मदद की दरख्वास्त की।
अंग्रेजों की तरह फ्रांसीसियों ने भी हिंदुस्तान में तिजारती कम्पनियों कायम कर रखी थीं। मगर अंग्रेजों को फ्रांसीसियों से दुश्मनी थी, क्योंकि अंग्रेज़ हिन्दुस्तान पर कब्जा करने का मनसूबा रखते थे और फ्रांसीसियों को अपने मनसूबे में रुकावट समझते थे। हैदर अली अंग्रेजों के मुकाबले में फ्रांसीसियों को अच्छा समझता था क्योंकि उसके ख़याल में फ्रांसीसी अंग्रेजों की तरह फौजी अज़ाइम (मकासिद) नहीं रखते थे।
फ्रांसीसी हैदर अली को अपना हलीफ़ (सहयोगी) समझते थे और हैदर अली से उनकी दोस्ती थी।
1759 ई० में अंग्रेजों की हिमायत से वाला जाह मुहम्मद अली ने पॉन्डीचैरी पर हमला कर दिया। फ्रांसीसियों ने हैदर अली से मदद मांगी। चुनांचे हैदर अली ने उनकी मदद के लिए अपनी फौज पॉन्डीचैरी भेज दी, मगर खुद श्रीरंगापटनम में रहा। साजिशियों को इसी मौका का इन्तिज़ार था। हैदर अली के ख़िलाफ़ मनसूबा बनाने वालों में राजा और रानी के अलावा खण्डेराव भी शामिल था। खण्डेराव नमक हराम था। वह हैदर अली की जगह संभाल कर राजा और रानी को तख्त से मेहरूम और रियासत पर राज करने के ख्वाब देख रहा था, लेकिन उसमें इतनी हिम्मत व ताकत न थी कि तनहा हैदर अली से निमट सकता, चुनांचे इस मकसद के लिए उस ने पुणे के मरहटा सरदार को खुफ़िया तौरपर एक ख़त भेजा और उससे मदद मांगी।
मरहटा सरदार माधवराव उस वक्त पुणे का हाकिम था। उसने अपने एक सेनापति ऐसाजी पण्डित को मैसूर पर हमले के लिए रवाना कर दिया। मरहटों और खण्डेराव का यह मनसूबा था कि दारूल-हुकुमत (राजधानी) श्रीरंगापटनम का मुहासिरा करके हैदर अली को गिरफ्तार कर लिया जाए। हैदर अली दुश्मनों के इस ख़ौफ़नाक मनसूबे से बे ख़बर था। उसे खण्डेराव की नमक हरामी की वक्त पर ख़बर न हुई, लेकिन जिस वक़्त उसे इस ख़तरनाक साज़िश का पता चला उस वक्त मरहया फौज श्रीरंगापटनम के करीब पहुंच चुकी थी।

मनसूबा की नाकामी मरहटा फौज ने श्रीरंगापटनम का मुहासिरा कर लिया। हैदर अली पेरशानी की हालत में सोच रहा था कि इसे क्या करना चाहिए। उसकी फौज पॉन्डीचैरी में थी और दुश्मन सर पर था। उसके बीवी
बच्चे श्रीरंगापटनम में थे और दुश्मन उनके साथ कुछ भी कर सकता था। शहर से बाहर जाने का कोई रास्ता न था। श्रीरंगापटनम जाने वाले रास्ते बन्द कर दिए गए थे और चारों तरफ़ दुश्मन थे।

हैदर अली ने वहां से निकल जाने का फैसला किया और जब रात ज़्यादा हो गई तो अपने चन्द वफ़ादार साथियों के साथ महल से खुफ़िया तौरपर निकला और आम रास्तों से हट कर चलने लगा ताकि कोई देख न ले और दुश्मन को उसके इरादों की ख़बर न हो जाए। वह थोड़ा-सा फासला तय करके दरिया-ए-कावेरी के किनारे पहुंच गया। उस वक्त दरिया में तुगयानी थी और बड़ी-बड़ी लेहरें उठ रही थीं, लेकिन हैदर अली ने परवाह न की और अल्लाह के भरोसे पर दरिया में छलांग लगा दी।

बंगलौर में जंग

हैदर अली की फ़ौज उस वक़्त बंगलौर में थी और फ़ौज के बगैर मरहटों का मुकाबला करना मुम्किन न था। इसलिए हैदर अली का बंगलौर पहुंचना ज़रूरी था। वह अपने बीवी-बच्चों को अल्लाह के भरोसे पर श्रीरंगापटनम में छोड़ कर दरिया-ए-कावेरी में सफर कर रहा था। दरिया की तूफ़ानी मौजें उसके अज़्म के सामने कोई हैसियत नहीं रखती थीं। वह अपनी जान बचाने के लिए श्रीरंगापटनम से नहीं जा रहा था बल्कि उसका मकसद श्रीरंगापटनम की हिफाजत था जिसे मरहटा फौज ने मुहासिरा में ले रखा था। वह साज़िश करने वालों के मनसूबे को नाकाम बनाना चाहता था जिन्होंने महज़ उसकी दुश्मनी में मरहटों को श्रीरंगापटनम आने की दावत देकर पूरी रियासत और वहां के अवाम की जिन्दगियों को दाव पर लगा दिया था। वह जानता था कि अगर उसे गिरफ्तार कर लिया गया तो मरहटों को श्रीरंगापटनम पर कब्जा करने से कोई न रोक सकेगा। मरहटों को मैसूर के राजा-रानी
और खण्डेराव की कोई परवाह न थी, वह सिर्फ हैदर अली को ही अपने रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट समझते थे।
राजा, रानी, खण्डेराव और मरहटा सरदार ऐसाजी पण्डित को जब हैदर अली के बच कर निकल जाने का पता चला तो वे अफ़सोस से हाथ मलने लगे। उनका ख़याल था कि वे अचानक ही हैदर अली को गिरफ्तार कर लेंगे। लेकिन हैदर अली के बचकर निकल जाने से उनका सारा मनसूबा ख़ाक में मिल गया। उन्होंने फ़ौरन ही हैदर अली का पीछा करने और बंगलौर जाने का फैसला किया ताकि वहां उससे मुकाबला किया जाए। हैदर अली बंगलौर पहुंच चुका था। मरहटा फौजें भी तेजी से बंगलौर पहुंची। लेकिन इससे पहले कि दुश्मन बंगलौर का मुहासिरा करता हैदर अली अपनी फ़ौज के साथ उनके मुकाबले के लिए मैदान में निकल आया।

हैदर अली ने मरहटा फ़ौज पर ऐसा भरपूर हमला किया कि उसके पांव उखड़ गए। इस जंग में पहली बार हैदर अली ने अपनी हिफाजत के लिए तलवार उठाई और इस जंग में कामयाबी पर ही हैदर अली और उसके बीवी-बच्चों की ज़िन्दगी का दारोमदार था। अगर वह जंग हार जाता तो मरहटे उसे गिरफ्तार कर लेते। फिर मरहटे और खण्डेराव न सिर्फ उसे दर्दनाक सज़ाएं देकर मार डालते, बल्कि उसके बीवी-बच्चों और ख़ानदान को भी कत्ल कर देते। चुनांचे हैदर अली ने बड़े तूफ़ानी अंदाज़ में दुश्मन फौजों पर ताबड़-तोड़ हमले किए। इससे पहले हैदर अली और मरहटा फ़ौज में ऐसी घमासान की जंग कभी न हुई थी। आख़िर दुश्मन को इबरतनाक शिकस्त हुई। हैदर अली कामियाब हुआ और मरहटे हज़ारों लाशें और जख्मी छोड़कर फरार हो गए।

हैदर अली की वापसी

दुश्मन के फरार हो जाने के बाद हैदर अली ने पॉण्डीचैरी में मौजूद अपनी फ़ौज को वापसी का हुक्म भेजा जो उसके बाद बंगलौर में
पहुंच गई। हैदर अली के दिल में दुश्मनों और साज़िशियों के खिलाफ़ तूफ़ान बरपा था। श्रीरंगापटनम उसे पुकार रहा था जहां उसके बीवी बच्चे साज़िशियों के रहम व करम पर थे। हैदर अली अपनी सारी फौज के साथ श्रीरंगापटनम की तरफ रवाना हुए। उसकी तमामतर वफादारियों और एहसानात का राजा, रानी और नमक हराम वज़ीर खण्डेराव ने जो बदला दिया था, वह हैदर अली के सीने में इन्तिकाम की आग भड़का रहा था और उसने इन एहसान फरामोशों को सजा देने का फैसला कर लिया था। उस वक्त इन साजिशियों को ज़रा सी भी ढील या मोहलत देने से न सिर्फ हैदर अली के बीवी-बच्चों की जिन्दगियां ख़तरे में पड़ जातीं बल्कि उसका अपना मुस्तकबिल (भविष्य) भी ख़तरे में पड़ जाता।
हैदर अली ने इन सब ख़तरात से बचने के लिए श्रीरंगापटनम पर हमला करने का फैसला किया और श्रीरंगापटनम पहुंचते ही शहर का मुहासिरा कर लिया। उसने फ़ौज को शाही महल पर गोलाबारी का हुक्म दिया और राजा को पैगाम भेजा कि अगर वह अपनी और रानी की खैरियत चाहता है तो नमकहराम वज़ीर खण्डेराव को उसके हवाले कर दे। हैदर अली जानता था कि इन तीनों में असल साज़िशी और उसका दुश्मन खण्डेराव ही है जिसने उसे हटाने के लिए मनसूबे के तहत खुफ़िया तौरपर मरहटों से मदद तलब की थी। वह खुद इक्तिदार हासिल करके मैसूर का हुकुमरान बनना चाहता था, मगर उसका मनसूबा हैदर अली ने नाकाम बना दिया था। नायक खण्डेराव का अंजाम हैदर अली की फौज शाही महल पर गोलाबारी कर रही थी और खण्डेराव की जान पर बनी हुई थी। उसे अपना इबरतनाक अन्जाम और रानी के सामने गिड़गिड़ा रहा
साफ़ नज़र आ रहा था। वह राजा
था कि किसी तरह उसकी जान बचाई जाए। राजा और रानी भी उसकी ज़िन्दगी चाहते थे। रानी ने उसकी जान बचाने के लिए हर तरह से कोशिश की, लेकिन हैदर अली खण्डेराव को छोड़ने पर राजी न था। जब महल पर गोलाबारी के जरिए राजा और रानी पर दबाव बढ़ा तो रानी हैदर अली की मांग इस शर्त पर मानने के लिए राजी हो गई कि हैदर अली खण्डेराव को हलाक नहीं करेगा। हैदर अली भी नहीं चाहता था कि जंग से रियासत को नुकसान पहुंचे। चुनांचे उसने रानी से वादा कर लिया कि वह खण्डेराव को कत्ल नहीं करेगा। इसके बाद खण्डेराव को हैदर अली के हवाले कर दिया गया।
हैदर अली ने रानी से वादा किया था कि वह खण्डेराव को
हलाक नहीं करेगा और वह अपने वादे पर कायम रहा। लेकिन नमक हराम खण्डेराव को सजा मिलनी चाहिए थी ताकि दूसरे इसके अन्जाम से इबरत हासिल करते और आइन्दा कोई हैदर अली के खिलाफ साजिश करने की हिम्मत न करता। चुनांचे हैदर अली ने अपने दुश्मन खण्डेराव को एक दिलचस्प मगर जिल्लतआमेज़ सजा देने का फैसला किया। उसने लोहे का बहुत बड़ा पिंजरा बनवाया जैसा चिड़ियाघर में जानवरों के लिए होता है। इस पिंजरे में खण्डेराव को कैद कर दिया गया। पिंजरे को एक बैल गाड़ी पर रखा गया और गद्दार खण्डेराव को पूरे शहर का चक्कर लगवाया गया। बच्चे खण्डेराव को देखते तो तालियां बजाते और बैल गाड़ी के पीछे चलने लगते और अक्लमंद खण्डेराव के अंजाम से इबरत पकड़ते। हैदर अली कहा करता था कि एक तोता हमने भी पाल रखा है और वह तोता है खण्डेरावा खण्डेराव को खुराक भी तोते वाली दी जाती थी। उसे हमेशा दूध चावल खिलाए जाते। खण्डेराव अपनी बेइज्जती पर कुढ़ता और गुस्से से अपनी बोटियां नोचने लगता था। इस अजीब व गरीब सज़ा ने उसे आधा पागल कर दिया। .

हैदर अली की तख्तनशीनी

हैदर अली श्रीरंगापटनम का मुहासिरा ख़त्म करके फौज के साथ शहर में दाखिल हुआ तो लोगों ने उसका खुशदिली से स्वागत किया। हैदर अली जानता था कि राजा अब हुकुमरानी करने के काबिल नहीं रहा। सारे इख़्तियारात रानी के पास थे और वह दोबारा हैदर अली के ख़िलाफ़ मरहटों की मदद से रियासत और उसके अवाम की ज़िन्दगी दाव पर लगा सकती थी। इसलिए हैदर अली ने खुद हुकूमत की बाग-डोर संभालने का फैसला कर लिया। वह चाहता तो आसानी से महल पर कब्जा करके हुकुमरान बन सकता था, लेकिन उसने ताकत , इस्तेमाल करने की बजाए मुहज़्ज़बाना (सभ्य) तरीका इख़्तियार किया। उसने कुछ मुअज्ज़ज़ सरदारों और शहरियों के हाथ राजा की ख़िदमत में कीमती तोहफे रवाना किए। महल के दरवाजों पर अपने वफ़ादार सिपाहियों का पहरा लगाया और राजा से मुतालबा किया कि वह हुकूमत की बाग-डोर और सलतनत का इन्तेज़ाम उसके हवाले कर दे और खुद अलग हो जाए। –
राजा बेबस था। उसने हैदर अली का मुतालबा मानने में ही बेहतरी समझी। इस तरह हैदर अली ने किसी खून-खराबे के बगैर महल पर कब्जा किया और रियासत की बाग-डोर अपने हाथ में ले कर 1761 ई. में मैसूर के तख्त पर बैठा। उसने मैसूर का नाम “सलतनते खुदादाद मैसूर” रखा। उस वक्त हैदर अली की उम्र तकरीबन 39 साल थी।
अंग्रेज़ और मरहटे हिन्दुओं और मरहटों के अलावा अंग्रेज़ भी मुसलमानों के दुश्मन थे। अंग्रेज़ हिन्दुस्तान पर कब्जा करना चाहते थे और मरहटे मैसूर को अपनी रियासत बनाने की फ़िक्र में थे। जब मैसूर का हुकुमरान एक
मुसलमान सिपहसालार हैदर अली बना तो अंग्रेजों और मरहटों को बहुत फ़िक्र हुई। वे जानते थे कि हैदर अली की मौजूदगी में मैसूर को हड़प नहीं किया जा सकता और हैदर अली ज़्यादा समय तक हुकुमरान रहा तो न सिर्फ अंग्रेजों से वे इलाके छीन लेगा जिनपर उन्होंने जबरदस्ती कब्जा कर रखा है, बल्कि मरहटों को भी बेपनाह नुकसान पहुंचाएगा। हिन्दुओं और अंग्रेजों को इस बात पर भी गुस्सा था कि हैदर अली ने मैसूर के नाम के साथ सलतनते खुदादाद के शब्द बढ़ा दिए थे जिसका यही मतलब था कि मैसूर एक इस्लामी रियासत है जिसका हुकुमरान मुसलमान है।

अंग्रेजों और मरहटों के अलावा हैदर अली को एक तीसरी ताकत से भी ख़तरा था। वह थी हैदराबाद दक्कन की हुकूमत। हैदराबाद दक्कन के हुकुमरानों को निज़ाम कहा जाता था। हैदर अली निज़ाम से अच्छे सम्बंध कायम करना चाहता था ताकि गैर मुल्की दुश्मनों के ख़िलाफ़ मुश्तरका (संयुक्त) कार्यवाइयां करके उन्हें हिन्दुस्तान की सरज़मीन से निकाल दे। अंग्रेज़ उस वक़्त तक मद्रास पर कब्जा कर चुके थे और वे नहीं चाहते थे कि निज़ाम हैदराबाद और हैदर अली में इत्तिहाद हो। चुनांचे वह हैदर अली को अपने रास्ते से हटाने और उसकी ताकत को पारा-पारा करने के लिए साज़िशों में मसरूफ़ हो गए। इसके लिए उन्होंने यह तरीका इस्तेमाल करने का फैसला किया कि

निज़ाम हैदराबाद और मरहटों को हैदर अली के ख़िलाफ़ जंग करने पर उभारा जाए और फिर उनकी मदद की आड़ में खुद भी हैदर अली की रियासत पर हमला करके उसपर कब्जा कर लिया जाए।

अंग्रेज़ों ने मरहटों और निज़ाम हैदराबाद को अपने साथ मिला कर हैदर अली के खिलाफ जंगी कार्यवाइयों की शुरूआत कर दी।

Advertisement

Hazrat Ali AlaihisSalam Personality – in the light of the sayings of Scholars

Hazrat Ali AlaihisSalam
Comprehensive Virtues of Character and Greatness of
Personality – in the light of the sayings of Scholars

Hazrat Umar Radiallahu anhoo says that Allah has given Hazrat Ali AlaihisSalam three special and unique virtues. Had one of them been given to me, I could have been happier than the one having a red camel (i.e. qualitatively better than other camels). When he was asked about those three unique qualities, he said,

“(i) Hazrat Ali AlaihisSalam marriage with Fatima-bint-e-Rasulallahit, (ii) the peace of mind which he has in the mosque which I do not have and (iii) his receiving the flag in Khyber.”



1. Hazrat Umar Radiallahu anhoo says, “Hazrat Ali AlaihisSalam marriage with Hazrat Fatima AlahisSalam has a great significance and importance. Had I got this opportunity, I would have considered it to be dearer than any of the worldly wealth.”

In fact, this was a great and precious wealth because; Hazrat Fatima AlahisSalam was the best among all the ladies. It was because of the significance and importance of this relation that Hazrat Ali AlaihisSalam was in the centre of all the progeny of Huzur ﷺ and the genealogy of Huzur ﷺ, which is the personification of all the blessings and grace came into existence from Hazrat Ali AlaihisSalam. The branches of this holy tree were the Hussnain-eKarimain . Ahl-e-bait (descendents of holy Prophet ﷺ), including Hazrat Ghous-ul- Aazam, Hazrat Khwaja Ajmeri and lacs and crores of other spiritual leaders.

2. Hazrat Umar adds, “Hazrat Ali AlaihisSalam has been bestowed with one more privilege that he can pass through the mosque even during his physical impurity. I am not given that right. Had I got that fortunate privilege, I would have considered it to be more valuable than any worldly wealth.” Hazrat Ali AlaihisSalam privilege has been described in Hadiths also. Hence, Huzur ﷺ says, “O, Ali AlaihisSalam pass through this mosque in the conditions of physical impurity (Halat-e-Janabat) is not proper for anyone else except you.”( Sunan-i-Tirmizi Vol-2)



3. Hazrat Umar Radiallahu anhoo also narrates one more favour Hazrat Ali AlaihisSalam had been fortunate enough to get, and that was, he got the flag of victory of Khyber. He says, “Had I got that fortunate privilege, I would have considered it to be more valuable than any worldly wealth”.

It has been stated above that Huzur ﷺ said, “Tomorrow I will give the flag (Parcham) to one who is the most beloved of Allah and his Rasul ﷺ .” All the companions were eager to get this fortunate opportunity, including Hazrat Umar but this honour was given to Hazrat Ali AlaihisSalam. Then all the people present there came to realise that Hazrat Ali AlaihisSalam had got this privilege because he was the best-loved by Allah, the Almighty and his Rasul

जूएं और मेढक

जूएं और मेढक

हज़रत मूसा अलैहिस्ललाम की बददुआ से फ़िरऔनियों पर टिड्डी दल का अज़ाब आ गया । वह फ़िरऔनियों की सब खेती, दरख्त, फल और घरों के दरवाजे और छतें तक खा गयीं। फिरऔनियों ने आजिज आकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से यह अज़ाब टल जाने की इल्तिजा की और हज़रत मूसा पर ईमान लाने का वादा किया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दुआ की और आपकी दुआ से यह अज़ाब टल गया। मगर फ़िरऔनी अपने अहद पर कायम न रह सके और ईमान न लाये । इस पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फिर बददुआ फ़रमाई और फ़िरऔनियों पर जूंओं का अज़ाब नाज़िल हो गया। यह जूंए फ़िरऔनियों के कपड़ों में घुस कर उनके जिस्मों को काटतीं। उनके खाने में भर जाती थीं। घुन की शक्ल में उनके गेहूं की बोरियों में फैल फैलकर उनके गेहूं को तबाह करने लगीं। अगर कोई दस बोरी गेहूं को चक्की पर ले जाता तो तीन सेर वापस लाता। फिरऔनियों के जिस्मों पर इस कसरत से चलने लगी कि उनके बाल, भवें, पलकें चाटकर जिस्म पर चेचक की तरह दाग़ कर दिये। उन्हें सोना दुश्वार कर दिया। यह मुसीबत देखकर उन्होंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से यह बला टल जाने की इल्तेजा की और ईमान लाने का वादा किया। हज़रत अलैहिस्सलाम ने दुआ की और यह बला भी टल गई। मगर वह काफ़िर अपने अहद पर कायम न रह सके और कुफ्र से बाज़ न आये । हज़री मूसा अलैहिस्सलाम मे फिर उनके लिए बददुआ की तो अल्लाह तआला ने उन पर मेढकों का अज़ाब नाज़िल किया। हाल यह हुआ कि आदमी बैठता था तो उसकी गोद में मेढक भर जाते थे। बात करने के लिए मुंह खोलता तो मेढक कूदकर मुंह में पहुंचता था। हांडियों में मेढक, खानों में मेढक और चुल्हों में मेढक भर जाते थे। आग बुझ जाती थी। लेटते तो मेढक ऊपर सवार होते थे। इस मुसीबत से फ़िरऔनी रो पड़े। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि अबकी बार हम अपने अहद पर कायम रहेंगे और पक्की तौबा करते हैं | हम पर से यह मुसीबत टल जाये। हज़रत मूसा अलैहिस्लाम ने फिर दुआ फ़रमाई और यह अज़ाब भी रफ़ा हो गया। मगर तमाशा देखिये वह काफ़िर फिर भी अपने अहद पर कायम न रहे और अपने कुफ्र पर बदस्तूर डटे रहे। (कुरआन करीम पारा ६, रुकू ६, खज़ाइनुल इरफ़ान सफा २४०, रूहुल ब्यान जिल्द १, सफा ७६०)