BOOK ON
Ghadir-declaration
तारीख 18 जिल्हिज्जा नबी करीम सल्ल0 अपने आखरी और पहले (हज)हज्जतुल विदा से वापिस मदीना आ रहें है की खुम नामक गाँव के करीब पहुचते है आयात नाजिल हो जाती है = بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَيْكَ مِنْ رَبِّكَ ۖ وَإِنْ لَمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُ ۚ وَاللَّهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاسِ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ
ऐ पैग़म्बर आप इस हुक्म को पहुंचा दें जो आपके परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल किया गया है और अगर आपने ये न किया तो गोया उसके पैग़ाम को नहीं पहुंचाया और ख़ु़दा आपको लोगांे के शर से महफ़ूज़ रखेगा कि बेशक अल्लाह काफ़िरों की हिदायत नहीं करता है
Surah 5 Ayat No 67आयत के नुजूल के बाद आप सल्ल0 ठहर जाते है आगे निकल गए अशहाब को बुलाते है पीछे वालो का इन्तेजार करते है जब तमाम अशहाब इकट्ठे हो जाते है तब आप सल्ल0 उनके ऊँठो पर लदे सामान के पिलान उतरवाते है और एक मिम्बर बनाते है आप ने उस उस शख्स का पिलान उतरवाया जिसे आप जानते थे ये ऐलान सुनना नही चाहता और अपने सामान के जरिये रुका रहे
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. Note (1)
.आखिर कौन सा ऐसा काम होना है जिसके लिए अल्लाह कह रहा है अगर आज ये ना पहुचाया तो
कार ए रिसालात (रिसालात का काम)अंजाम ही ना दिया
आइये आगे बढ़ते है.
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फिर आप रसूलुल्लाह सल्ल0 मिम्बर पे चढ़े खुदा ए तआला की हम्द ओ सना की आपने एक ताबिल खुतबा दिया फरमाया ए लोगो मैं अल्लाह का बन्दा हूं अल्लाह ने मुझे अपना रसूल बना कर भेजा
Qull’o Nafs’an Jaykat’Al Mout हर जानदार शै मौत का मज़ा चखेगा
करीब है अल्लाह का क़ासिद (मौत का फरिश्ता)आये और मैं उसकी दावत को लब्बैक कहदूँNote (2)
आप सल्ल0 के इस आखरी खुतबा से वहाबिया का एतराज़ भी खत्म होता है जो बो लोग इल्म ए ग़ैब का इनकार करते है वो देखे बुखारी मुस्लिम से रसूलल्लाह सल्ल0 को अपनी मौत का इल्म थाइससे पहले मैं तुम्हारे दरमियान दो भारी चीजे छोड़े जा रहा हूँ जिसको मजबूती से थामे रहे क़यामत तक गुमराह ना होंगे Qitab’Allahi Wa Ahl-Al Bait’i itrat’i
पहली क़ुरान है अल्लाह की किताब इसमे हिदायत है नूर है ये आसमान से जमीं तक लटकी हुई रस्सी है इसको मजबूती से थामे रहो
दूसरी मेरे अहले बैत है मैं अपने अहले बैत के बारे में अल्लाह का ख़ौफ़ दिलाता हूं और यहीं अल्फ़ाज़ आप सल्ल0 ने तीन मर्तबा कहे (सही मुस्लिम 6225फिर आप सल्ल0 ने कहा
एना एना अली इब्न अबी तालिब अबू तालिब के बेटे अली कहाँ हो अमीर की आवाज़ आयी फिदाका अबी उम्मी लब्बैक या रसूलल्लाह
हाजिर हूं या रसूल अल्लाह रसूलुल्लाह सल्ल0 ने मिम्बर पे बुलाया और कहाँ ए लोगो मै तुम्हारी जानो का वली हूं
तमाम असहाब ने कहाँ Wraa Kaan’O Ya Rasool’Allah बेशक आप हमारी जान ओ माल के वली है
फिर आप सल्ल0 ने गवाही लेने के बाद फरमाया
मन कुंतो मौला फ़ा हाज़ा अलिय्यून मौला मैं जिस जिस का मौला अली भी उसका मौला नबी करीम सल्ल0 तमाम जिन्न ओ बशर अल्लाह की हर मख़लूख के मौला है तो अली अलैहिस्सलान भी सबके मौला हुए
इस बात पर इज्मा ए उम्मत है कि हमारे नबी करीम सल्ल0 सैय्यदुल अम्बिया है इमामुल अम्बिया तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम के मौला है तो अमीर ए क़ायनात अली इब्न अबी तालिब भी तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम के मौला हुए
जब आप सल्ल0 इन ताबिल खुतबात से फारिग हुए नमाज़ ए अस्र अदा की और मदीने की जानिब चल दिए
फिर आयते करीमा का नुजूल हो गया
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِۚ الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا ۚ فَمَنِ اضْطُرَّ فِي مَخْمَصَةٍ غَيْرَ مُتَجَانِفٍ لِإِثْمٍ ۙ فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ
आज मैंने तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया है और तुम पर अपनी नेअमतों को तमाम कर दिया और तुम्हारे लिए दीने इस्लाम को पसन्द कर लिया है
Surah Maiyda 5 /3(Comment)
तो मोमनीन पता चला वो अली की विलायत थी जिसके लिए अल्लाह अपने हबीब को बोल रहा था ए हबीब पहुँचा दे जो तुझ पर हमारी जानिब से नाजिल हुआ है गोया ऐसा ना किया तो कार ए रिसालात मनसब ए रिसालात को अंजाम ही ना दिया देखे मोमनीन कितनी अहम है विलायते अमीर उल मोमिनीन जिसके ऐलान के बाद अल्लाह ने नेअमत तमाम कर दी और दीन मुकम्मल का आग़ाह भी कर दिया क़ुरान की आयात तफासिर से साबित होता है विलायते अमीर उल मोमिनीन अली इब्न अबी तालिब के बगैर दीन मुकम्मल ही नही जबकि रोज़ा नमाज़ हज जकात औरतो पर पर्दा सारे मामलात 8 हिजरी तक मुकम्मल हो चुके थे
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.#पड़ोएमुसलमानो_अलिय्यूनवलीउल्लाह
#बेशकयहीबुनियादएलाइलाहाहै.#नामुआफ़कियाअल्लाहनेआदमसफीउल्लाहकेमुन्किर_को
#कैसेमुआफ़करेगामुन्किरए_अलिय्यूनवलीउल्लाहकोयहां पर ग़दीर ए खुम मुकम्मल हो जाती है मुझ तालिब ए इल्म की नजर में वर्ना ये मुख्तसर है
ग़दीर का खुतबा बहुत लंबा है …..विलायते अमीरुल मोमिनीन के मुताल्लिक क़ुरानी आयात और अहले सुन्नत कुतुब की चंद अहादीस और मुहद्दिसीन के अक़वाल
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( मैं जिस जिस का वली अली भी उसका वली)
“रसूलुल्लाह सल्ल0हज़रत अम्मार इब्ने यासिर रदिअल्लाहु अन्ह अरजा से रिवायत है आं हज़रत सल्ल0 ने फरमाया
जहां तौहीद ओ रिसालात की तस्दीक करो वहां वहां मेरे भाई अली की विलायत तस्दीक करो (सही मुस्लिम जिल्द 3 सफा 96….108हजरत ए अबु दरदा रदिअल्लाहु अन्ह अरजा से रिवायत है रसूलल्लाह सल्ल0 ने फरमाया
ए लोगो अली की विलायत सफीना ए नजात है
कहीं तुम भी मुकर ना जाना जैसे मूसा के बाद हारून का इन्कार किया था कौम ने और बो हमेशा बर्बाद रहें
(खसाएसे अली जिल्द 2 सफा 156
इमाम नसाईसाबित बिन क़ैस रदिअल्लाहु अन्ह अरजा से रिवायत है रसूलल्लाह सल्ल0 ने फरमाया
मैं इस फानी दुनिया को अनक़रीब अलविदा कहूंगा साबित बिन क़ैस ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्ल0 हम आपके बाद किसके सहारे रहेंगे तब आप सल्ल0 ने फरमाया मैं तुम्हारे दरमियान अली को हुज्जत छोड़े जा रहा हूँ
उसकी इत्तेबाअ करना विलायत की पैरवी करना अनक़रीब फिर तुम्हारा विलायते अली इब्ने अबी तालिब पर इम्तेहान होगा
तारिख ए दमिश्क जिल्द 1 सफा 119इमाम शमशुद्दीन अज ज़हबी
अपनी तस्नीफ
(अज़ पैग़ाम शरीयत ए मुहम्मदी)
के जिल्द 2 सफा 266 पर तहरीर फरमाते है अली अलै0 की विलायत उम्मत ए मुहम्मदिया पर ऐसे ही वाजिब है जैसे तौहीद ओ रिसालात हैइमाम अलाउद्दीन अली मिश्री अल मुतवफ्फा 850 हिजरी
अपनी तस्नीफ
हयात उल कुलूब में तहरीर फरमाते है इमाम जाद बिन अली से नकल करते है कि अफजल उल ताबेईन हजरत उबैश करनी रदिअल्लाहु अन्ह अरजा कहते है
हम रसूलल्लाह की वसीयत वा मुजीब विलायते अली इब्न अबी तालिब पर कायम ओ दायम रहें हम हक़ सुब्हानहु से इसका अज्र रोज़ ए महशर लेंगे
हयात उल कुलुब जिल्द 2 सफा 298और अल्लाह भी क़ुरान में भी तीन विलायत का जिक्र कर रहा है
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِإِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ
ईमान वालों बस तुम्हारा वली अल्लाह है और उसका रसूल (स0) और वह साहेबाने ईमान जो नमाज़ क़ायम करते हैं और हालते रूकुअ में ज़कात देते हैं
(Surah 5 Ayat No 55)साबित हुआ जहां जहां तौहीद और रिसालात की गवाही दी जाएगी वहां वहां वा हुक्म ए इलाही और अहादीस ए रसूल के तहत अमीरुल मोमिनीन अली इब्न अबी तालिब की गवाही दी जाएगी
वाजेह करता चलू जब हम जहां भी
अशहदु अल ला इलाहा इल्लल्लाहो वहदहु ला शरीक लह वा अशहदो’अन ना मुहम्मदुर्रसुलल्लाह पड़ेंगे वहां वहां हम को अलिय्यूनवलीउल्लाह पड़ना पड़ेगा तब हम वाक़ई दर हकीकत मोमिन बनेगे और सही इस्लाम पर साबित कदम उतरेंगे: वमा अलैना इल्लल बलाग
SUNNI Reference:
hadith ref:Ibn ‘Abbas (in his Tafsir, on the margin of ad-Durru ‘l-manthur, vol. 5, p. 355);
al-Kalbi (as quoted in at-Tafsiru ‘l-kabir of ar-Razi, vol. 29. p.227;
al-Alusi, Ruhu ‘l-ma’ani, vol. 27, p. 178); al-Farra’, (ar-Razi, ibid.; al-Alusi, ibid.);
Abu ‘Ubaydah Mu’ammar ibn Muthanna alBasri (ar-Razi, ibid.; and ash-Sharif al-Jurjani, Sharhu ‘l-mawaqif, vol. 3, p. 271);
al- Akhfash al-Awsat (in Nihayatu ‘l-‘uqul);
al-Bukhari (in as-Sahih, vol.7, p. 240);
Ibn Qutaybah (in al Qurtayn, vol.2, p.164);
Abu’l-‘Abbas Tha’lab (in Sharhu ‘s-sab’ah al-mu’allaqah of az-Zuzani);
at-Tabari (in his Tafsir, vol.9, p. 117);
al-Wahidi (in al-Wasit); ath-Tha’labi (in al-Kashf wa ‘l-bayan);
az-Zamakhshari (in al-Kashshaf, vol. 2, p. 435); al-Baydawi (in his Tafsir, vol.2, p. 497);
an-Nasafi (in his Tafsir, vol. 4, p. 229); al-Khazin al-Baghdadi (in his Tafsir vol. 4, p. 229);
and Muhibbu’d-Din Afandi (in his Tanzilu ‘l-ayat)
हदीसे ग़दीर के रावी सहाबा में से।
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सहाबा की कसीर तादाद ने हदीसे ग़दीर को नक़्ल किया है, अब हम यहाँ पर अल्फ़ा बेड के लिहाज़ से उन असहाब के असमा की फ़ेहरिस्त बयान करते हैं, लेकिन सबसे पहले तबर्रुकन असहाबे किसा के असमा को नक़्ल करते हैं :
1. हज़रत अमीर अल मोमीनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम
2. सिद्दीक़ ए ताहिरा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा
3. हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम
4. हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम
अलिफ़
5. अबू बक्र बिन अबी क़ुहाफ़ ए तमीमी
6. अबू ज़वीब ख़ुवैलद
7. अबी राफ़ए क़ुतबी
8. अबू ज़ैनब बिन औफ़े अंसारी
9. अबू अम्रा बिन अम्र बिन महसने अंसारी
10. अबू फ़ज़ालए अंसारी, जो जंगे बद्र में भी शरीक थे और जंगे सिफ़्फ़ीन में भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम की रकाब में शहीद हुये हैं।
11. अबू क़ुदामा अंसारी
12. अबी लैला अंसारी, बाज़ नक़्लों के मुताबिक़ ये जंगे सिफ़्फ़ीन में शहीद हुये।
13. अबू हुरैर ए दूसी
14. अबुल हैसम बिन तैहान, जो जंगे सिफ़्फ़ीन में शहादत के दर्जे पर फ़ाएज़ हुये।
15. ओबई बिन कअबे अंसारी ख़ज़रजी, बुज़ुर्ग क़ुर्रा
16. उसामा बिन ज़ैद बिन हारिसे कल्बी
17. असअद बिन ज़ोरार ए अंसारी
18. असमा बिन्ते उमैस ख़सअमिया
19. उम्मे सलमा, ज़ौज ए रसूले अकरम (स)
20. उम्मे हानी, बिन्ते अबूतालिब अलैहिस्सलाम
21. अनस बिन मालिके अंसारी ख़ज़रजी, ख़ादिमे पैग़म्बर (स)
22. बराअ बिन आज़िबे अंसारी औसी
23. बरीदा बिन आज़िबे औसी अंसारी से
24. साबित बिन वदीअ ए अंसारी, अबू सईद ख़ज़रजी मदनी
जीम
25. जाबिर बिन समुरा बिन जुनादा, अबू सुलैमाने सुवाई
26. जाबिर बिन अब्दुल्लाहे अंसारी
27. जबला बिन अम्रे अंसारी
28. जबीर बिन मुतअम बिन अदी क़रशी नौफ़ली
29. जरीर बिन अब्दुल्लाहे बिजिल्ली
30. जुन्दब बिन जुनाद ए ग़फ़्फ़ारी अबूज़र
31. जुन्दब बिन अम्र बिन माज़ने अंसारी, अबू जुनैदा
हे
32. हुब्बा बिन जवीन, अबू क़ुदाम ए उरफ़ी बजली
33. हुब्शी बिन जुनादा सलूली
34. हबीब बिन बुदैल बिन वरक़ा ए ख़ुज़ाई
35. हुज़ैफा बिन उसैद, अबू सरीयहे ग़फ़्फ़ारी, मौसूफ़ का शुमार असहाबे शजरा में होता है।
36. हुज़ैफ़ा बिन यमान यमनी
37. हस्सान बिन साबित
खे़
38. ख़ालिद बिन ज़ैद, अबू अय्यूब अंसारी, मौसूफ़ रूम के साथ होने वाली जंग में शहीद हुए।
39. ख़ालिद बिन वलीद बिन मुग़िर ए मख़्ज़ूमी, अबू सुलेमान
40. खज़ीमा बिन साबिते अंसारी ज़ुश शहादतैन, जो जंगे सिफ़्फ़ीन में शहीद हुए।
41. ख़ुवैलद बिन अम्रे ख़ुज़ाई, अबू शरीह
रे, ज़े
42. रुफ़ाआ बिन अब्दुल मुन्ज़िरे अंसारी
43. ज़ुबैर बिन अवाम क़रशी
44. ज़ैद बिन अरक़मे अंसारी खज़री
45. ज़ैद बिन साबित अबू सईद
46. ज़ैद या यज़ीद बिन शराहिले अंसारी
47. ज़ैद बिन अब्दुल्लाहे अंसारी
सीन
48. साद बिन अबी बक़ास, अबू इस्हाक़
49. साद बिन जुनाद ए औफ़ी, पिदरे अतिया औफ़ी
50. साद बिन उबाद ए अंसारी, ख़ज़रजी
51. साद बिन मालिके अंसारी, अबू सईदे खिदरी
52. सईद बिन जै़द क़रशी अदबी, यह अशर ए मुबश्शेरा में से हैं।
53. सईदे बिन साद बिन उबाद ए अंसारी
54. सलमाने फ़ारसी, अबू अब्दुल्लाह
55. सलमा बिन अम्र बिन अल अकू असलम, अबू मुस्लिम
56. समुरा बिन जुन्दब फ़ज़ाज़ी, अबू सुलेमान
57. सहल बिन हुनैफ़ अंसारी, ओसी
58. सहल बिन साद अंसारी, खज़रजी, सायेदी, अबुल अब्बास
साद ज़ाद
59. सुदैय बिन अजलाने बाहुली, अबू अमामा
60. ज़ुमैर ए असदी
तो
61. तलहा बिन अब्दुल्लाहे तैमी
अऐन
62. आमिर बिन उमैरे नमीरी
63. आमिर बिन लैला बिन हमज़ा
64. आमिर बिन लैला ग़फ़्फ़ारी
65. आमिर बिन वासेल ए लैसी
66. आयशा बिन्ते अबी बक्र
67. अब्बास बिन अब्दुल मलिक बिन हाशिम, पैगम़्बर (स) के चचा
68. अब्दुर्रहमान बिन अब्दुर रब अंसारी
69. अब्दुर्रहमान बिन औफ़ करशी, ज़ोहरी, अबू मुहम्मद
70. अब्दुर्रहमान बिन यामुर दैली
71. अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद मख़्ज़ूमी
72. अब्दुल्लाह बिन बुदैल बिन वरक़ा
73. अब्दुल्लाह बिन बशीर माज़नी
74. अब्दुल्लाह बिन साबिते अंसारी
75. अब्दुल्लाह बिन जाफ़र बिन अबी तालिब हाशिमी
76. अब्दुल्लाह बिन हंतब करशी, मख़्ज़ूमी
77. अब्दुल्लाह बिन रबीआ
78. अब्दुल्लाह बिन अब्बास
79. अब्दुल्लाह बिन अबी औफ़ा बिन अलक़मा असलमी
80. अब्दुल्लाह बिन उमर बिन ख़त्ताब अदबी, अबू अब्दुर्रहमान
81. अब्दुल्लाह बिन मसऊदे हुज़ली
82. अब्दुल्लाह बिन यामील
83. उस्मान बिन अफ़्फ़ान
84. उबैद बिन आज़िब अंसारी
85. अदी बिन हातिम अबू तरीफ़
86. अतिया बिन बसर माज़नी
87. उक़बा बिन आमिर जोहनी
88. अम्मार बिन यासिर अनसी, अबुल यक़ज़ान
89. अमारये ख़ज़री अंसारी
90. उमर बिन अबी सलमा बिन अब्दिल असद मख़्ज़ूमी
91. उमर बिन ख़त्ताब
मख़्फ़ी न रहे कि हज़रत उमर की हदीस को हाफ़िज़ बिन मग़ाज़ेली ने किताबुल मनाक़िब में दो तरीक़े से और मुहिब्बुद दीन तबरी ने अर रियाज़ुन नज़रा और ज़ख़ायरुल उक़बा में मुसनदे अहमद से नक़्ल किया है, नीज़ इब्ने कसीर दमिश्क़ी व शमसुद्दीन जज़री ने हज़रत उमर को हदीसे ग़दीर के रावियों में शुमार किया है।
() मनाक़िबे अली बिन अबी (अ) पेज 22 हदीस 31
() अर रियाज़ुर नज़रा जिल्द 3 पेज 113
() ज़ख़ायरुल उक़बा पेज 67
() अल बिदायह वन निहायह जिल्द 7 पेज 386, असनल मतालिब पेज 48
92. इमरान बिन हसीन ख़ज़ाई, अबू नहीद
93. अम्र बिन हुम्क़े खज़ाई, कूफ़ी
94. अम्र बिन शराजील
95. अम्र बिन आस
96. अम्र बिन मर्रा जोहनी, अबू तलहा
फ़े
97. फ़ातेमा बिन्ते हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब
क़ाफ़ व काफ़
98. क़ैस बिन साबित शम्मास अंसारी
99. क़ैस बिन साद बिन उबाद ए अंसारी
100. कअब बिन अजर ए अंसारी
मीम
101. मालिक बिन हवीरस लैसी, अबू सुलैमान
102. मिक़दाद बिन अम्र कंदी
नून
103. नाजिया बिन अम्र बिन ख़ुज़ाई
104. नुज़ला बिन उबैया असलमी, अबू बरज़ा
105. नोमान बिन अजलान अंसारी
हे व या
106. हाशिम बिन मिरक़ाल बिन अतबा बिन अबी वक़ास ज़ोहरी, मदनी
107. वहन्शी बिन हर्ब हबशी, हिमसी, अबू वसमा
108. वहब बिन हमज़ा
109. वहब बिन अब्दुल्लाह सवाई, अबू जुहैफ़ा
110. याली बिन मर्रा बिन वहब सक़फ़ी, अबू मुराज़िम
कारेईने केराम, यह थे एक सौ दस बुज़ुर्ग सहाबी ए रसूल, जिनके असमा ए गेरामी हम ने बयान किये हैं, यक़ीनी तौर पर उससे ज़्यादा अफ़राद ने इस हदीसे ग़दीर को नक़्ल किया है, क्यो कि तारिख़ के मुताबिक़ सर ज़मीने ख़ुम में एक लाख से भी ज़्यादा सहाबी और हाजी हाज़िर थे, लिहाज़ा हालात के पेशे नज़र इस हदीस के रावी इससे कहीं ज़्यादा हैं, लेकिन अहले सुन्नत की किताबों की छान बीन करने से यह तादाद मिलती है।
हाफ़िज़ सजिसतानी (मुतवफ़्फ़ा 477) ने किताब अद दिराया फ़ी हदीसिल विलाया को 17 जिल्दों में तालिफ़ की है, जिसमें हदीसे ग़दीरे के तरीक़ों को ज़िक्र किया है, चुनाँचे मौसूफ़ ने इस हदीस को एक सौ बीस सहाबा से नक़्ल किया है। (अल मनाक़िब इब्ने शहर आशूब जिल्द 3 पेज 34)
❤Eid e Ghadeer Elaan e wilayat e Maula Ali Ul Murtuza Alehissalaaam❤
Kaun hain hamare Ali?
Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Aadam Alaihissalam ki takhleeq se 14 hazaar saal pehle Mai aur Ali Allah ki Bargah me Ek Noor they.”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Ali ko Meri Mitti se banaya gaya.”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Mai aur Ali Ek He Nasab se Hain!”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Mai aur Ali Ek He Darakht se Paida Hue Hain! (yaani Ek He Shajra, Ek He Nasab)”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Ali ka Gosh Mera Gosh hai aur Ali ka Khoon Mera Khoon hai.”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Ali Mujhse hai aur Mai Ali se Hun.”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Ali Mere liye aise hai jaise Harun Alaihissalam Musa Alaihissalam keliye.”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Mai Ilm ka Shehar hun Ali Uska Darwaza hai, jisko is Shehar me aana ho wo darwaze se aaye.”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Jiska Mai Maula Hun uska Ali Maula Hai.”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Tum dono jahan me Mere Bhai ho.”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Ali Mere Jaisa Hai (ka Nafsi)”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Ali Mere liye aise hai Jaise Mera Sar Mere Jism keliye!”Ali wo Jiske liye RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya:
“Ay Allah! Jo Ali se Muhabbat karey Tu usse Muhabbat kar aur jo Is se bugz rakhe Tu us se bugz rakh.”Ab bhi aankh khuli ya aur batayen “Kaun Hain hamare Maula Ali?”
Alaihim Afdalus Salawatu was Salaam
1. Imam Ahmad ibn Hanbal, al-Fada’il al-sahaba, vol.2, pg.663 H#1130 from Abdur-Razzak, from Mu’amar, from al-Zuhri, from Khalid ibn Mu’dan, from Zadan, from Salman al-Farsi. (RadiAllahu Anhum)
Imam-al Tabari, al Riyad al Nadirah, vol.2, pg.163- 164 and vol.3 pg.154
Mustadrak al-Hakim, vol.2 pg.609
Imam-al Jawzi in Tadhkirat Al-ashy khawass, pg.46
Musnad al-Firdaus, H#4176 (its mentions 4000 years instead of 14000 years)
Tarikh Damishq ibn Asakir, Vol.3, Pg.154
Imam Dhahabi Mizan al-itidal, vol.1 pg.235
Imam al-Razi in Zayn al Fata fi tafsir Surat Hal ata
Imam Ahmad ibn Hanbal in Zawaid manaqib Amir al Muminin, manuscript.
This tradition has also been narrated by also Ibn Mardawayh, Ibn Abd al Barr, al Khatib al Baghdadi, Ibn al Maghazili, al-Asimi, Shiruyah al Daylami and others from Imam Ali Alaihissalam, Hazrat Salman , Abu Dharr , Anas ibn Malik, Jabir ibn Abd Allah and other companions (RadiAllahu Anhum Ajmaeen) Musnad Ahmad bin Hanbal, vol.4 pg.662. Tabrani, Mujam al Awsat, 6/162,163 #6085
Haysami, Majma uz Zawaid, 9/1683. Imam Alusi in Tafsir Ruh al-Ma’ani, Vol.6 pg.186
Imam Tabarani in Mujam al awsat, vol.34. Tirmidhi, vol.13 pg.178
Mujam al awsat Tabarani, vol.3
Manaqib al-Maghazili, pg.122
Asad Al-Ghaba ibn Atheer, vol.4 pg.26
Riyadh Al-Nadhira Tabari, vol.2 pg.216
Manaqib Khawarizmi, ch.14, pg.875. Tabrani Mujam al Kabir, 12/18, #12341
Haysami, Majma uz Zawaid, 9/1116. Sahih Bukhari (Baab)
Tirmizi, Jaame al Sahih, 5/632, #3712
Ibne Hibban, Sahih, 15/373, #6929
Hakim, Mustadrak, 3/119, #4579
Nasayi, Sunan al Kubra, 5/132, #8484
Ibne Abi Shaibah, Musannaf, 6/372,373, #32121
Abu Ya’ala, Musnad, 1/293, #355
Tabrani, Mujam al Kabir, 18/128, #2657. Sahih Bukhari, 4/1602, #4154
Sahih Muslim, 4/1870, 1871, #24048. Tirmzi, Jaame as Sahih
Hakim, Mustadrak9. Ye Hadees-e-Pak 150 se zyada alag alag sanado se riwayat hui hai hamari Ahle Sunnat ki kitabo me. Batao kitne refence chahiye.
10. Tirmizi, Jaame as Sahih, 5/636, #3720
Hakim, Mustadrak, 3/15, #428811. Sunan al-kubra Nasai, vol.7 #8403
Fazail e sahaba Ahmad, vol.2 #966
Khasais e Ali Nasai, pg.63 #71
Musnad ibn abi Shaybah, vol.6 #3207712. Mustadrak Hakim, vol.3 pg.141
Al-Jami Suyuti, vol.1 pg.583
Sawaiq al-muharriqa Haythami, pg.125
Tarikh Baghdad Al-Baghdadi, vol.1 pg.51
Hilyat ul-Awliya Asfahani, vol.1 pg.182
Al-Riyadh Al-Nadihra Tabari, vol.2 pg.219
Manaqib, Khawarizmi, ch.14, pg.9113. Tabrani, Mujam al Kabir, 2/357, #6505
Haysami, Majma uz Zawaid, 9/106
Hisamuddin Hindi, Kanzul Ummal, 13/138,139, #36437
Ibne Asakir, Tarikh e Damishq al Kabir, 45/179Allahumma Salle Ala Sayyedina wa Maulana Muhammad wa Ala Sayyedina Aliyyuw wa Sayyedatina Fatimah wa Sayyedatina Zainab wa Sayyedina Hasan wa Sayyedina Hussain wa Ala Aalihi wa Sahbihi wa Baarik wa Sallim.
ईद ए ग़दीर, साहिब ए ईमान मुस्लमान की सबसे बड़ी ईद।
वैसे तो ग़दीर को लोग इस वजह से पहचानते है क्योंकि इस दिन रसूल ए खुदा स अ ने मौला अली की विलायत का एलान किया था, ग़दीर का वाक़या सबको पता है।
ईद ए ग़दीर के दिन मौला अली को विलायत के एलान के साथ साथ दीन ए हक़, दीन ए खुदा भी मुकम्मल हुआ, क्योंकि जबतक विलायत ए अली का एलान न हो जाए इस्लाम मुकम्मल नही होता, अल्लाह ने क़ुरान में रसूल अल्लाह से बहुत से आमाल अंजाम देने का हुक्म दिया है और रसूल अल्लाह ने हुक्म ए खुदा के मुताबिक हर वो अम्ल अंजाम दिया है जिसका हुक्म उन्हें मिला, लेकिन रसूल अल्लाह के आखरी हज में अल्लाह ने रसूल अल्लाह को जो हुक्म दिया, उस हुक्म देने का अंदाज़ से ही पता चलता है की मौला अली की विलायत किनती ज़रूरी है। अगर रसूल अल्लाह एलान ए विलायत ना करे तो उनकी रिसालत खतरे में आ जाती है, अगर रसूल ए खुदा एलान ए विलायत न करे तो दीन ए खुदा मुकम्मल नही होता, बेशक हमारे लिए ईद ए ग़दीर से बड़ी ख़ुशी कुछ नही है।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ये जानता है की मैंने जो रसूल से कह दिया बेशक रसूल मेरे हुक्म को जामा ए अम्ल देंगे, हमेशा रसूल अल्लाह ने हर हुक्म ए खुदा को माना है, लेकिन उसके बाद भी अल्लाह का ये लहजा, ये अल्फ़ाज़ की अए रसूल अगर तुमने ये काम नही किआ तो गोया रिसालत का कोई भी काम अंजाम नही दिया, ये लहजा और अलफ़ाज़ अल्लाह ने रसूल अल्लाह से कहकर हमे ये बताया है को इब्लीस की तरह सारी उम्र अगर सजदे में पड़े रहो, और रसूल अल्लाह का जानशीन, खलीफा, और इमाम बिना किसी फासले के अगर मौला अली को नही माना तो हश्र भी तुम्हारा इब्लीस के साथ होगा। आज इस दुनिया में मुसलमानो को ये तक नही पता की ग़दीर है क्या, क्योंकि लोगो ने अपना दीन मोलवीओ से सुनकर लिआ है, और बुग़ज़ ए अली में किसी भी मुल्ला ने मंज़िलते अली बया नही किआ, और इसी वजह से ग़दीर उन्हें पता ही नही। आज इस दुनिया में लोग गुमराही की तरफ इस लिए बढ़ रहे है क्योंकि उन्होंने मौला अली को छोड़ क्र ऐरो गैरो को अपना रहबर मान लिया, जबकि रसूल अल्लाह की साफ़ हदीस है की अगर सारी दुनिया एक तरफ जा रही है और अली दूसरी तरफ जा रहे है तो तुम अली के साथ जाओ, क्योंकि हक़ सिर्फ और सिर्फ अली के साथ है। अब पता ये चलता है की जिसने भी मौला अली को छोड़कर किसी को भी अपना इमाम
माना तो वो मुनकिर ए रसूल व मुनकिर ए खुदा यानि मुनाफ़िक़ हुआ, उसका ईमान अधूरा
तमाम पर ईमान रखने वालो के किदमत में ईद ए ग़दीर की पुरखुलूस मोबारकबाद।
ईद ए ग़दीर तीन बड़ी वजहों की वजह से सबसे बड़ी ईद है।
दीन ए खुदा मुकम्मल होने का दिन,
रसूल अल्लाह की रिसालत बचने का दिन,
मौला अली की विलायत के एलान का दिन।
Hijrat, Ghadeer, Science
Har saal 2 din day & night exact length ke hote hain, un dono dino ko Equinox kehte hain, ye photo Equinox ki hai.
Youm-e-Ghadeer wo Din hai jab Tajdar-e-Kainat SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne hazaron Sahaba-e-Ikram ke Majme me Makka aur Madina ke bich ek Muqaam hai Ghadeer-e-Khum naam ka, waha Aaqa SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne Hazrat Ali Alaihissalam ko Puri Ummat ka Maula banaya. Is Hadees ke ek do nahi balke 153 Sanad hain, jo bhi is Hadees ko manne se inkar kare wo usi lamhe kafir hojata hai, itni puckhta Sanad ki Hadees hai.
To ye Azeem Waqiya 18 Zilhajj 10 Hijri ko hua jo English calendar ke hisab se 21 banta hai. 21 march ki din ke kareeb he eqinox hota hai. Equinox yaani basically wo din jisme purey earth pe din aur raat equal hon yaani perfectly balanced day aur night. Equinox saal me 2 baar hota hai, 20,21 March ke around aur 22, 23 ya 24 September ke around hota hai. Ye dates orbital mechanics ki wajah se is tarah aage piche hoti rehi hain. Is saal ka pehla equinox 21 March ko hua tha.
Saal ke ye 2 “perfectly balanced” din Islam me bahot he zyada important din hain. 24 September wo din tha jab RasoolAllah SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam Makka se Hijrat farmakar Madina tashreef laaye, jiske natija aap sabko pata hai ke global revolution ki shuruaat hogayi! Aaqa SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ki Hijrat ne duniya ke progress ke raaste pe daal diya.
Aur dusra azeem event 21 March ko hua jab Aaqa SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne Apne Azeem Revolution ki continuation keliye is revolutionary system ke nigahbaani keliye Sayyeduna Maula Ali Alaihissalam ko ummat ka Maula banaya! Ab Maula Ali Alaihissalam Islam ki Roohani system ke nigehbaan hain. Ye waqiya jis din hua, wo bhi equinox tha 21 march! Aur ittefaq bhi dekhiye jab Aaqa SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne Hazrat Ali Alaihissalam ko sabka Maula banaya to sabse pehle Hazat Abu Bakr Siddiq aur Hazrat Umar-e-Farooq RadiAllahu Anhuma Maula Ali Alaihissalam ke paas aaye, Unhe Mubarkbaad pesh ki aur Hazrat Umar ne farmaya: “Ay Ali! Mubarak ho aajse Aap HAR DIN AUR RAAT keliye sabke Maula banadiye gaye!”
Us din, din aur raat exactly equal lenght ke they aur usi din Hazrat Farooq-e-Aazam RadiAllahu Anhu ka ye farmana! ye coincidence nahi balke Allah Ta’ala ne Unki Zubaan par ye alfaz jaari kiye!
Ye earth ka real photo hai is saal ke pehle equinox ka jisko GOES-16 satellite ne 36000 km dur se liya. Dekho kaise day aur night sides divide hue hain.
ईदे ग़दीर मुबारक हो।
हज़ पर मक्का से मदीना जब वापसी का सफर था तो खुमे ग़दीर यांनी एक तालाब मीठे पानी का और दरख्तों के साये मै तमाम सहाबा आराम के लिए इस जगह रुकते थे।
अल्लाह के रसूल ने सब सहाबा को एक जगह जमा करके आप ने फ़रमाया कि मै जिसका मौला हु अली भी उसके मौला है, यांनी जो हुज़ूर को अपना मौला मानता है तो उसकी पहचान ये है कि वो हज़रत अली अलैहिस्लाम को भी अपना मौला मानता है।
सूफियो मै ये अक़ीदा है जो हकीकत और सच्च है कि इस दिन रसूलल्लाह ने हज़रत अली को अपना रूहानी जानशीन ऐलान फ़रमाया।
लिहाज़ा ये 18 जिलहिज़ ईद यानि ख़ुशी का दिन है।
क्योकि सहाबा किराम ने हज़रत अली को इस ऐलान को सुनने के बाद मुबारकबाद पेश कि।
हज़रत अबूबकर सद्दीक रज़ि और हज़रत उमर रज़ि ने हज़रत अली को मुबारकबाद दी और कहा कि आज आपने ऐसी सुबह कि के आप तमाम मोमिनो के मौला हो हमारे भी मौला हो।
उम्मत के लिए ये बहुत ख़ुशी और मुबारकबाद देने का दिन है।
ईदे ग़दीर शिया खूब मनाते है इसलिए सुन्नियो ने इसको छोड़ दिया जबकि असल मै ये सुन्नियो के लिये बहुत बड़ी खुशी का दिन है।
दरगाही और खानकाही लोग इस ईदे ग़दीर के दिन मुबारकबाद देते है और ख़ुशी मनाते है।
सब भाइयो को बहुत बहुत मुबारक
Jin logo ne Ghadeer-e-Khum ka Azeem Waqiya logo se chupaya wo duniya me andhe hokar ya bars ki haalat me mar gaye!
Abdur Rehman bin Abi Laila se riwayat hai ke Hazrat Sayyeduna Maula Ali al Murtaza KarramAllahu Wajhahul Kareem ne logon se khitab kiya aur farmaya:
Mai us aadmi ko Allah aur Islam ki Qasam deta hun, jisne Rasool-e-Akram SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ko Gadeer-e-Khum ke din Mera Haath Pakde hue ye farmate suna ho:
“Ay Musalmano! Kya Mai tumhari jaano se kareebtar nahi hun?” Sabne jawab diya: Kyon nahi, Ya RasoolAllah! Aap SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya: “Jiska Mai Maula Hun uska Ali Maula Hai, Ay Allah! Jo Isey Dost rakhe Tu usey Dost rakh, jo Is (Ali) se adawat rakhe Tu us se adawat rakh, jo Iski madat kare Tu uski madat farma, jo Iski ruswaayi chahe Tu usey ruswa kar?”
Is par 13 se jaaed Afrad ne khade hokar gawahi di aur JIN LOGO NE YE BAATE CHUPAAYI WO DUNIYA ME ANDHE YA BARS KI HAALAT ME MAR GAYE.
📚Hisamuddin Hindi, Kanzul Ummal, 13/131, Hadees 36417
Ibne Asakir, Tarikh e Damishq al Kabeer, 45/158
Kanzul Mattalib fee Manaqib Ali ibne Abi Talib Alaihi-Mussalam, Hadees 57
💐Allahumma Salli wa Sallim Ala Sayyedina wa Maulana Muhammadiw wa Ala Ahlul Bayt.
“Hazrat Shuaba Bin Kuhayl Se Riwayat Karte Hain Ki Mein Ne Aboo Tufayl Se Suna Ki Aboo Sareehah….. Ya Zayd Bin Arqam RadiyAllahu Ta’ala Anhuma…. Se Marwi Hai (Hazrat Shuaba Ko Raawi Ke Muta’lliq Shak Hai) Ki Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Ne Farmaya :
Jis Ka Mein Mawla Hoo’n, Us Ka Ali Mawla Hai.”
Is Hadith Ko Imam Tirmidhi Ne Riwayat Kiya Hai Aur Kaha Ki Yeh Hadith Hasan Sahih Hai.
Shuaba Ne Is Hadith Ko Maymoon Aboo Abd-ul-Allah Se, Unhone Zayd Bin Arqam Se Aur Unhone Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Se Riwayat Kiya Hai.
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[Tirmidhi Fi As-Sunan, 05/633, Raqam-3713,
Tabarani Fi Al-Mu’jam-ul-Kabir, 05/195, 204, Raqam-5071, 5096,
وقد روي هذا الحديث عن حبسي بن جنادة في الكتب الآتية :
Hakim Fi Al-Mustadrak, 03/134, Raqam-4652,
Tabarani Fi Al-Mu’jam-ul-Kabir, 12/78, Raqam-12593,
Ibn Abi Asim Fi As-Sunnah, : 602, Raqam-1359,
Hisam-ud-Deen Hindi Fi Kanz-ul-Ummal, 11/608, Raqam-32946,
Ibn Asakir Fi Tarikh Dimishq Al-Kabir, 45/77, 144,
Khatib Al-Baghdadi Fi Tarikh Baghdad, 12/343,
Ibn Kathir Fi Al-Bidayah Wan-Nihayah, 05/451,
Haythami Fi Majma’-uz-Zawa’id, 09/108,
وقد روي هذا الحديث أيضا عن جابر بن عبدلله في الكتب ألآتية.
Ibn Abi Asim Fi As-Sunnah, : 602, Raqam-1355,
Ibn Abi Shaybah Fi Al-Musannaf, 06/366, Raqam-32072,
وقد روي هذا الحديث عن ايوب الأنصاري في الكتب ألآتية :
Ibn Abi Asim Fi As-Sunnah, : 602, Raqam-1354,
Tabarani Fi Al-Mu’jam-ul-Kabir, 04/173, Raqam-4052,
Tabarani Fi Al-Mu’jam-ul-Awsat, 01/229, Raqam-348,
وقد روي هذا الحديث عن بريدة في الكتب ألاتيية :
Abd-ur-Razzaque Fi Al-Musannaf, 11/225, Raqam-20388,
Tabarani Fi Al-Mu’jam-us-Saghir, 01 : 71,
Ibn Asakir Fi Tarikh Dimishq Al-Kabir, 45/143,
Ibn Abi Asim Fi As-Sunnah, : 601, Raqam-1353,
Ibn Kathir Fi Al-Bidayah Wan-Nihayah, 05/457,
Hisam-ud-Deen Hindi Fi Kanz-ul-Ummal, 11/602, Raqam-32904,
وقد روي هذا الحديث عن مالك بن حويرث في الكتب ألاتيية :
Tabarani Fi Al-Mu’jam-ul-Kabir, 19/252, Raqam-646,
Ibn Asakir Fi Tarikh Dimishq Al-Kabir, 45 : 177,
Haythami Fi Majma’-uz-Zawa’id, 09/106,
Ghayat-ul-Ijabah Fi Manaqib-il-Qarabah,/139, 140, Raqam-157.]