

अमर बिन अब्दूद मारा गया
सब से आगे अमर बिन अब्दूद था।
मगर एक हजार सवारों के बराबर बहादुर माना जाता था। जंगे बदर में जख्मी होकर भाग निकला था। और उसने कसम खा रखी थी कि जब तक मुसलमानों से बदला न ले लूँगा बालों में तेल न डालूँगा। ये आगे बढ़ा और चिल्ला चिल्लाकर मुकाबला की दश्वत देने लगा। तीन मर्तबा उसने कहा कि कौन है जो मेरे मुकाबले को आता है? तीनों मर्तबा हज़रते अली शेरे खुदा ने उठकर जवाब दिया कि ‘मैं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने रोका कि ऐ अली ये अमर बिन अब्दूद हजरते शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया कि जी हाँ। मैं जानता हूँ कि ये अमर बिन अब्दूद है। लेकिन मैं उस से लडूंगा। ये सुनकर ताजदारे नुबूब्बत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी खास तलवार जुल फिकार अपने दस्ते मुबारक से हैदरे कर्रार के मुक़द्दस हाथ में दे दी। और अपने मुबारक हाथों से उनके सरे अनवर पर अमामा बाँधा। और ये दुआ फरमाई कि या अल्लाह! तू अली की मदद फ़रमा। हज़रते असदुल्लाहु गालिब अली दिन अबी तालिब रदियल्लाहु अन्हु मुजाहिदाना शान से
उसके सामने खड़े हो गए। और दोनों में इस तरह मकालमा शुरू हुआ। हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ऐ अमर बिन अब्दूद! तू मुसलमान
हो जा! अमर बिन अब्दूद
ये मुझ से कभी हरगिज़ हरगिज़
नहीं हो सकता! हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु लड़ाई से वापस चला जा! अमर बिन अब्दूद
ये मुझे मंजूर नहीं। हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु तो फिर मुझ से जंग कर। अमर बिन अब्दूद
हंस कर कहा कि मैं कभी ये सोच भी नहीं सकता था कि दुनिया में कोई मुझको जंग की
दअवत देगा। हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु लेकिन मैं तुझ से लड़ना चाहता
अमर बिन अब्दूद
आख़िर तुम्हारा नाम क्या है? हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु अली बिन अबी तालिब अमर बिन अब्दूद
ऐ भतीजे! तुम अभी बहुत ही कम उम्र हो। मैं तुम्हारा खून
बहाना पसन्द नहीं करता। हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु लेकिन मैं तुम्हारा खून बहाने
को बे हद पसन्द करता हूँ। अमर बिन अब्दूद खून खौला देने वाले गरम गरम जुम्ले सुन कर मारे गुस्से के आपे से बाहर हो गया। हज़रते शेरे खुदा पैदल थे और ये सवार था। उस पर जो गैरत सवार हुई तो घोड़े से उतर पड़ा। और अपनी तलवार का भरपूर वार किया। हज़रते शेरे
खुदा ने तलवार के इस वार को अपनी ढाल पर रोका। ये वार इतना सख्त था कि तलवार ढाल और अमामे को काटती हुई पेशानी पर लगी। गो बहुत गहरा जख्म लगा। मगर फिर भी जिन्दगी भर ये
तुगरा आपकी पेशानी पर यादगार बनकर रह गया। हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने तड़पकर ललकारा कि ऐ अमर! संभल जा। अब मेरी बारी है। ये कहकर असदुल्लाहुल गालिब ने जुल फिकार का ऐसा जंचा तुला हाथ मारा कि तलवार दुश्मन के शाने को काटती हुई कमर से पार हो गई। और वो तिल मिला कर ज़मीन पर गिरा । और दम ज़दन में मर कर फ़िन्नार हो गया। और मैदाने कारज़ार ज़बाने हाल से पुकार उठा कि
शाहे मरदाँ, शेरे यज़दाँ, कूव्वते परवरदिगार ला फ़ता इल्ला अली ला सैफा इल्ला जुल फिकार
हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने उसको कत्ल किया। और मुँह फेरकर चल दिए। हज़रते उमेर रदियल्लाहु अन्हु ने कहा कि ऐ अली! आप ने अमर बिन अब्दूद की ज़िरह क्यों नही उतार ली? सारे अरब में उससे अच्छी कोई ज़िरा नहीं है। आपने फरमाया कि ऐ उमर! जुल फ़िकार की मार से वो इस तरह बे करार होकर जमीन पर गिरा कि उसकी शर्ममाह खुल गई। इस लिए हया की वजह से मैंने मुँह फेर लिया।
सीरतुल मुस्तफा तहि वसल्लम
सल्लल्लाहु तआला
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हज़रते जुबैर को ख़िताब मिला हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जंगे खन्दक के मौक पर जब कुफ्फार,मदीना का मुहासरा किए हुए थे। और किसी के लिए शहर से बाहर निकलना दुश्वार था तीन मर्तबा इर्शाद फरमाया कि कौन हैं जो कौमे कुफ्फार की ख़बर लाए? तीनों मर्तबा हजरते जुबैर बिनुल अव्याम रंदियल्लाहु अन्हु ने जो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की फूफी हजरते सफीय्या रदियल्लाहु अन्हा के फ़रज़न्द हैं। ये कहा कि “मैं या रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ख़बर लाऊँगा हज़रते जुबैर रदियल्लाहु अन्हु की उस जाँ निसारी से खुश होकर ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि लिकुल्लि नयीय्यिन हवारियु’ व इन्ना 6tralia हुवारियुज़ जुबैरुं (बुख़ारी जि.२ स. ५९०) (हर नबी के लिए हवारी (मददगार ख़ास) होते हैं और मेरा हवारी “जुबैर” है।)
हज़रते सद बिन सद बिन मुआज शहीद
इस जंग में मुसलमानों का जानी नुकसान बहुत ही कम हुआ। यानी कुल छे मुसलमान शहादत से सरफराज़ हुए मगर अन्सार का सब से बड़ा बाजू टूट गया। यानी हज़रते सअद बिन मुआज रदियल्लाहु अन्हु जो कबीलए अवस के सरदारे अअज़म थे। इस जंग में एक तीर से जख्मी हो गए। और फिर शफायाब न हो सके।
आपकी शहादत का वाकिआ ये है कि आप एक छोटी से जिरह पहने हुए जोश में भरे हुए नेज़ा लेकर लड़ने के लिए जा रहे थे कि इनुल अरका नामी काफिर ने ऐसा निशाना बाँधकर तीर मारा कि जिस से आपकी एक रग जिसका नाम अकहल है। वो कट गई। जंग ख़त्म होने के बाद उनके लिए हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मस्जिदे नबवी में एक खेमा गाड़ा। और उनका इलाज शुरू किया। खुद अपने दस्ते मुबारक से उनके जख्म को दो मर्तबा दागा। उसी हालत में आप एक मर्तबा बनी कुरैजा तशरीफ़ ले गए। और वहाँ यहूदियों के बारे में अपना वो फैसला सुनाया जिसका ज़िक्र “गज़वाए कुरैज़ा के उनवान के तहत आएगा। इसके बाद वो अपने खेमे में वापस तशरीफ लाए। और अब उनका जख्म भरने लग गया था। लेकिन उन्होंने शौके शहादत में खुदावंद तआला से ये दुआ माँगी कि –
“या अल्लाह! तू जानता है कि किसी कौम से जंग करने की मुझे इतनी ज्यादा तमन्ना नहीं है। जितनी कुरैश से लड़ने की तमन्ना है। जिन्होंने तेरे रसूल को झुटलाया। और उनको वतन से निकाला। ऐ अल्लाह! मेरा तो यही ख़याल है कि अब तू ने हमारे और कुफ्फारे कुरैश के दर्मियान जंग का खात्मा कर दिया है। लेकिन अगर अभी कुफ्फारे कुरैश से कोई जंग बाकी रह गई हो। जब तू मुझे ज़िन्दा रख ताकि मैं तेरी राह में उन काफिरों से जिहाद करूँ। और अगर अब उन लोगों से कोई जंग बाकी न रह गई हो तो मेरे इस ज़ख्म को फाड़ दे। और इसी ज़ख़्म से तू मुझे मौत अता फरमा दे!”
आपकी ये दुआ ख़त्म होते ही बिल्कुल अचानक आपका जख्म फट गया। और खून बहकर मस्जिदे नबवी के अन्दर बनी गिफार के खेमे में पहुँच गया। उन लोगों ने चौंक कर कहा कि ऐ खेमे वालो! ये कैसा खून है जो तुम्हारे खेमे से बहकर हमारी तरफ आ रहा है? जब लोगों ने देखा तो हज़रते सद बिन मुआज रदियल्लाहु अन्हु के ज़ख्म से खून बह रहा था। उसी ज़ख्म में
उनकी वफात हो गई। (बुखारी जि.२ स. ५६१ बाबा मरजिन्नबीय मिनुल अहजाब)
हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि सद बिन मुआज़ की मौत से अर्श इलाही हिल गया। और इनके जनाजे में सत्तर हज़ार मलाइका हाज़िर हुए। और जब उनकी कब्र खोदी गई तो उसमें से मुश्क की खुश्बू आने लगी।
(जरकानी जि.२ स. १४३) जैन वफात के वक्त हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि, वसल्लम उनके सिरहाने तशरीफ़ फ़रमा थे। उन्होंने आँखें खोलकर आख़िरी बार जमाले नुबूव्वत का नज़ारा किया और कहा कि अस्सलामु अलैका या रसूलल्लाह फिर ब-आवाज़े बुलन्द ये कहा कि मैं गवाही देता हूँ कि आप अल्लाह के रसूल हैं और आपने तब्लीगे रिसालत का हक अदा कर दिया।
(मदारिजुन्नुबूवत जि.२ स. १८१)
हज़रते सफ़ीय्या की बहादुरी
जंगे ख़न्दक में एक ऐसा मौका भी आया कि जब यहूदियों ने ये देखा कि सारी मुसलमान फौज ख़न्दक की तरफ़ मसरूफे जंग है तो जिस किलो में मुसलमानों की औरतें और बच्चे पनाह गजी थे। यहूदियों ने अचानक उस पर हमला कर दिया। और एक यहूदी दरवाजे तक पहुँच गया। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की फूफी हज़रते सफ़ीय्या रदियल्लाहु अन्हा ने उसको देख लिया। और हजरते हस्सान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु से कहा कि तुम इस यहूदी की कल्ल कर दो। वरना ये जाकर दुश्मनों को यहाँ का हाल व माहौल बता देगा। हज़रते हस्सान रदियल्लाहु अन्हु की उस वक्त हिम्मत नहीं पड़ी कि उस यहूदी पर हमला करें। ये देखकर खुद हज़रते सफीय्या रदियल्लाहु अन्हा ने खेमे की एक चोब (लकडी का टुकड़ा) उठाकर उस यहूदी के सर
पर इस जोर से मारा कि उसका सर फट गया। फिर खुद ही उसका सर काटकर किलआ के बाहर फेंक दिया। ये देखकर हमला आवर यहूदियों को यकीन हो गया कि किलओ के अन्दर भी कुछ फौज मौजूद है। इस डर से उन्होंने फिर उस तरफ हमला करने की जुर्रत ही नहीं की। (जरकानी जि.२ स. १११)
कुफ्फार कैसे भागे?
हजरते नुम बिन मसऊद अशजई रदियल्लाहु अन्हु कबीलए गतफान के बहुत ही मुअज्ज़ज़ सरदार थे और कुरैश व यहूद दोनों को उनकी जात पर पूरा पूरा एअतमाद था। ये मुसलमान हो चुके थे लेकिन कुफ्फार को उनके इस्लाम का इल्म न था। उन्होंने बारगाहे रिसालत में ये दरख्वास्त की कि या रसूलल्लाह! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अगर आप मुझे इजाज़त दें। तो मैं यहूद और कुरैश दोनों से ऐसी गुफ्तगू करूँ कि दोनों में फूट पड़ जाए। आपने इसकी इजाज़त दे दी। चुनान्चे उन्होंने यहूद और करैश से अलग अलग कुछ इस किस्म की बातें की जिससे वाकेई दोनों में फूट पड़ गई।
अबू सुफ़यान शदीद सर्दी के मौसम, तवील मुहासरा, फौज का राशन खत्म हो जाने से हैरान व परेशान था जब उसको पता चला कि यहूदियों ने हमारा साथ छोड़ दिया है तो उसका हौसला पस्त हो गया और वो बिल्कुल ही बद-दिल होगया। फिर नागहाँ कुफ्फार के लश्कर. पर कहरे कहार व गज़बे जब्बार की ऐसी मार पड़ी कि अचानक मशरिक(पूरब) की जानिब से ऐसी तूफान खेज़ आँधी आई कि देगें चूल्हों पर से उलट पलट हो गई। खेमे उखड़ उखड़ कर उड़ गए। और काफिरों पर ऐसी वहशत और दहशत सवार हो गई कि उन्हें राहे फरार इख्तियार करने के सिवा कोई चाराएकार ही नहीं रहा। वही वो आँधी है जिसका ज़िक्र खुदावंदे कुडूस ने कुरआन में इस तरह बयान फरमाया कि –
(तर्जमा :- ऐ ईमान वालो! खुदा की उस नेअमत को याद करो जब तुम पर फौजें आ पड़ी तो हम ने उन पर आँधी भेज दी। और ऐसी फौजें भेजी जो तुम्हें नज़र नहीं आती थीं और अल्लाह तुम्हारे कामों को देखने वाला है।)
अबू सुफयान ने अपनी फौज में एअलान करा दिया कि राशन खत्म हो चुका है। मौसम इन्तिहाई ख़राब है। यहूदियों ने हमारा साथ छोड़ दिया है। लिहाजा अब मुहासरा बेकार है। ये कहकर कुच(वापसी) का नक्कारा बजा देने का हुक्म दे दिया और भाग निकला कबीलए. गतफान का, लश्कर भी चल दिया। बनू कुरैज़ा भी मुहासरा छोड़कर अपने किलओं में चले आए और उन लोगों के भाग जाने से मदीना का मतलअ कुफ्फार के गर्दनो गुबार से साफ हो गया।
(मृदारिज जि. २ स. १७२ व ज़रकानी जि. २ स. ११६ ता ११८)
गजवए बनी कुरैज़ा
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जंगे ख़न्दक से फारिग होकर अपने मकान में तशरीफ़ लाए। और हथियार उतारकर गुस्ल फ़रमाया। अभी इत्मिनान के साथ बैठे भी न थे कि नागहाँ हजरते जिबरईल अलैहिस्सलाम तशरीफ लाए और कहा कि या रसूलल्लाह! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम आपने हथियार उतार दिया लेकिन हम फिरिश्तों की जमाअत ने अभी तक हथियार नहीं उतारा है अल्लाह तआला का ये हुक्म है कि
आप बनी कुरैज़ा की तरफ चलें। क्योंकि उन लोगों ने मुआहदा तोड़ कर अलानिया जंगे खन्दक में कुफ्फार के साथ मिलकर मदीना पर हमला किया है।
(मुस्लिम बाब जवाजे कत्ताल मिन नकजुल अहद जि. २ स ९५) चुनान्चे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एलान कर दिया कि लोग अभी हथियार न उतारें। और बनी कुरैज़ा की. तरफ रवाना हो जाएँ। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुद भी हथियार जेब तन फरमाया अपने घोड़े पर जिसका नाम “लुहैफ़” था सवार होकर लश्कर के साथ चल पड़े। और बनी कुरैज़ा के एक कुएँ के पास पहुँचकर नुजूल फरमाया।
(जरकानी जि. २ स. १२८) बनी कुरैज़ा भी जंग के लिए बिल्कुल तय्यार थे। चुनान्चे जब हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु उनके किलओं के पास पहुँचें। तो उन ज़ालिम और अहद शिकन यहूदियों ने हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को (मआज़ल्लाह) गालियाँ दीं। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनके किलओं का मुहासरा फ़रमा लिया और तकरीबन एक महीना तक ये मुहासरा जारी रहा। यहूदियों ने तंग आकर ये दरख़स्त पेश की कि
“हज़रते सअद बिन मुआज रदियल्लाहु अन्हु बमारे बारे में जो फैसला कर दें वो हमें मंजूर है।”
हज़रते सझूद बिन मुआज़ रदियल्लाहु अन्हु जंगे ख़न्दक में एक तीर खाकर शदीद तौर पर जख्मी थे। मगर इसी हालत में एक गधे पर सवार हो कर बनी कुरैज़ा गए। और उन्होंने यहूदियों के बारे में ये फैसला फरमाया कि
“लड़ने वाली फौजों को कत्ल कर दिया जाए। औरतें और बच्चे कैदी बना लिए जाएँ। और यहूदियो का माल- असबाब माले गनीमत बना कर मुजाहिदों में तक़सीम कर दिया जाए।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनकी जबान से ये फैसला सुनकर इर्शाद फ़रमाया कि यकीनन बिला शुबह तुम
ने इन यहूदियों के बारे में वही फैसला सुनाया है जो अल्लाह का फैसला है।
(मुस्लिम जि, २ स. ९५) इस फैसले के मुताबिक बनी कुरैज़ा की लड़ाका फौजें कत्ल की गईं। और औरतों बच्चों को कैदी बना लिया गया और उनके माल-ो सामान को मुजाहिदीने इस्लाम ने माले गनीमत बना लिया। और इस शरीर व बद अहद कबीहला के शर व फसाद से हमेशा के लिए अमन पर अमन महफूज़ हो गए।
यहूदियों का सरदार हुय्यि बिन अख़्तब जब कत्ल के लिए मकतल में लाया गया तो उसने कत्ल होने से पहले ये
अल्फाज
कहा कि
ऐ मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) खुदा की कसम मुझे इसका ज़रा भी अफ़सोस नहीं है कि मैंने क्यों
तुम
से अदावत की लेकिन हकीकत ये है कि जो खुदा को छोड़ देता है। खुदा भी उसको छोड़ देता है। लोगो!
खुदा के हुक्म
की तअमील में कोई मुज़ाअका नहीं। बनी कुरैज़ा का कत्ल होना ये एक हुक्मे इलाही था। ये (तोरात)मे लखा हुआ था ।ये एक सज़ा थी जो खुदा ने बनी इसराईल पर लखी थी।
(सीरते इन्ने हश्शाम गज़वए कुरैजा जि. ३ स. २४१) ये हफय्यि बिन अख्तब वही बद नसीब है कि जब वो मदीना से जिला वतन होकर खैबर जा रहा था तो उसने ये मुआहदा किया था कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त पर मैं किसी को मदद न दूंगा। और इस अहद पर उसने खुदा को जामिन बनाया था लेकिन जंगे ख़न्दक़ के मौका पर उसने इस मुआहदे को किस तरह तोड़ डाला। ये आप गुज़श्ता अवराक में पढ़ चुके कि इस ज़ालिम ने तमाम कुफ्फारे अरब के पास दौरा करके सब को मदीना पर हमला करने के लिए उभारा। फिर बनू कुरैज़ा को भी मुआहदा तोड्ने पर उकसाया। फिर खुद जंगे खन्दक में कुफ्फार के साथ मिलकर लड़ाई में शामिल हुआ।
सन्न ५ हिजरी के मुतफ़रिक वाकिआत
इस साल हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते बीबी जैनब बिन्ते जहश रदियल्लाहु अन्हा से निकाह फरमाया।
इसी साल मुसलमान औरतों पर पर्दा फर्ज कर दिया गया! ३ इसी सल हद्दे कज़फ (किसी पर जिना की तोहमत लगाने
की सज़ा) और लआन व जिहा के एहकाम नाज़िल हुए।
इसी साल तयम्मुम की आयत नाज़िल हुई। ५ इसी साल नमाज़े ख़ौफ का हुक्म नाज़िल हुआ।