चन्द ना काबिले मुआफ़ी मुजरिमीन


जब मक्का फ़तह हो गया तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आम मुआफ़ी का एअलान फ़रमा दिया। मगर चन्द ऐसे मुजरिमीन थे जिनके बारे में ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये फरमान जारी फरमा दिया कि ये लोग अगर इस्लाम न कबूल करें तो ये लोग जहाँ भी मिलें कत्ल कर दिये जाएँ। ख्वाह वो गिलाफे कबा ही में क्यों न छुपे हों। उन मुजरिमों में से बअज़ ने तो इस्लाम कबूल कर लिया। और बअज कत्ल हो गए। उनके से चन्द का मुख्तसर तकिरा तहरीर किया जाता है :(१) “अब्दुल उज़्ज़ा बिन ख़तल ये मुसलमान हो गया था। उस को हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ज़कात के जानवर वसूल करने के लिए भेजा। और साथ में एक दूसरे मुसलमान को भी भेज दिया। किसी बात पर दोनों में तकरार हो गई। तो उसने उस मुसलमान को कत्ल कर दिया। और कसास के डर से तमाम जानवरों के लेकर मक्का भाग निकला। और मुरतद हो गया। फ़तहे मक्का के दिन ये भी एक नेज़ा लेकर मुसलमानों से लड़ने के लिए घर से निकला था। लेकिन मुस्लिम अफ़वाज का जाह- जलाल देखकर काँप उठा और नेजा फेंक कर भागा और कबा के पर्यों में छुप गया। हज़रते सईद बिन हुरैस मख्जामी और अबू बरज़ा अस्लमी रदियल्लाहु अन्हुमा ने मिलकर उसको कत्ल कर दिया। (जरकानी जि.२ स. ३२२) (२) “हुवैरस बिन ‘नकीद” ये शांओर था। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हजो लिखा करता था। और खूनी मुजरिम भी था। हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने उसको कत्ल किया। (३) “मिकयस बिन सुबाबा’ उसको नुमैला बिन अब्दुल्लाह ने कत्ल किया। ये भी खूनी था।
(४) “हारिस बिन तुलातिला” ये भी बड़ा ही मूजी था। हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु ने उसको कत्ल किया। (५) “कुरैबा” ये इब्ने अखतल की लौंडी थी। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हजो गाया करती थी ये भी कत्ल की
गई।
मक्का से फरार हो जाने वाले
चार अश्खास मक्का से भाग निकले थे उन लोगों का मुख़्तसर तज़्किरा ये है :(१) “इकरमा बिन अबी जहल ये अबू जहल के बेटे हैं। इस लिए उनकी इस्लाम दुश्मनी का क्या कहना, ये भाग कर यमन चले गए। लेकिन उनकी बीवी “उम्मे हकीम” जो अबू जहल की भतीजी थीं। उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया। और अपने शौहर इकरमा के लिए बारगाहे रिसालत में मुआफ़ी की दरख्वासत पेश की। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुआफ़ फ़रमा दिया। उम्मे हकीम खुद यमन गईं। और मुआफ़ी का हाल बयान किया। इकरमा हैरान रह गए। और इन्तिहाई तअज्जुब के साथ कहा कि क्या मुझको मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने मुआफ कर दिया? बहर हाल अपनी बीवी के साथ बारगाहे रिसालत में मुसलमान हो कर हाज़िर हुए। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब उनको देखा तो बेहद खुश हुए और इस तेजी के साथ उनकी तरफ बढ़े कि जिस्मे अतहर से चादर गिर पड़ी। फिर हजरते इकरमा ने खुशी खुशी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दस्ते हक परस्त पर बैअते इस्लाम की। (मूता इमाम मालिक किताबुन्निकाह वगैरा) (२) “सफ़वान बिन उमैया ये उमैया बिन ख़लफ के फज़नद हैं। अपने बाप उमैया की तरह ये भी इस्लाम के फ़तहे मक्का के दिन भाग कर जिद्दा चले गए। हज़रते उमैर बिन
बहुत बड़े
बड़े दुश्मन
वहब रदियल्लाहु अन्हु ने दरबारे रिसालत में उनकी सिफारिश पेश की। और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) कुरैश का एक रईस सफ़वान मक्का से जिला वतन हुआ चाहता है। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनको भी मुआफ़ी अता फरमा दी। और अमान के निशान के तौर पर हज़रते उमैर को अपना इमामा इनायत फरमाया। चुनान्चे वो मुकद्दस इमामा लेकर “जिद्दा” गए। और सफ़वान. को मक्का लेकर आए। सफ़वान जंग हुनैन तक मुसलमान नहीं हुए लेकिन इसके बाद इस्लाम कबूल कर लिया। (तबरी जि. ३ स. ६४५९) (३) “कब बिन जुहैर” ये सन्न ९ हिजरी में अपने भाई के साथ मदीना आकर मुशर्रफ़ ब-इस्लाम हुए और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मदह में अपना मशहूर कसीदा बान्त सआद” पढ़ा। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुश होकर उनको अपनी चादरे मुबारक इनायत फ़रमाई हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ये चादर मुबारम हज़रते कब बिन जुहैर रदियल्लाहु अन्हु के पास थी
वहशी’ यही वो वहशी हैं जिन्होंने जंगे उहुद में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चचा हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया था। ये भी फतहे मक्का के दिन भागकर ताएफ चले गए थे। मगर फिर ताएफ के एक वफ्द के हमराह
बारगाहे रिसालत में हाजिर होकर मुसलमान हो गए। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनकी ज़बान से अपने चचा के कत्ल की खूनी दास्तान सुनी। और रंज- गम में डूब गए। मगर उनको भी आपने मुआफ फरमा दिया लेकिन ये फरमाया कि वहशी! तुम मेरे सामने न आया करो। हम वहशी को इसका बे हद मलाल रहता था। फिर जब हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की ख़िलाफ़त के ज़माने में मुसीलमतुल कज्जाब ने नुबूव्वत का दवा किया और लश्करे इस्लाम ने उस मलऊन से जिहाद किया। तो वहशी भी अपना नेज़ा लेकर जिहाद में शामिल हुए। और मुसीलमतुल कज्जाब को कत्ल कर दिया। हमारत वहशी अपनी ज़िन्दगी में कहा करते थे कि
گلی حیرانگای لی، جميع ولك في السن في الإعلام
“क-तल्तु खैरन्नासि फिल जाहिलिय्यति व क-तल्तु शर्रन्नासि फिल इस्लाम” यानी मैं ने दौरे जाहिलीयत में बेहतरीन इन्सान (हज़रते हम्जा) को कत्ल किया। और अपने दौरे इस्लाम में बद तरीन आदमी (मुसीलमतुल कज्जाब) को कत्ल किया उन्होंने दरबारे अकदस में अपने जराएम का एअतराफ़ करके अर्ज किया कि क्या ख़ुदा मुझ जैसे मुजरिम को भी बख्श देगा? तो ये आयत नाज़िल हुई कि
ان قبادی گئی اور کن اليجزونوه من محمد ولد باہد کوب کیا
“कुल या-इ-बादियल्लज़ीना अस-रफू अला अन्फुसिहिम ला तक-नतू मिर-रह-मतिल्लाहि। इन्नल्लाहा यफ़िरुज़्जुनूबा जमीआ। इन्नहू हुवल गफूरुर्रहीम। (सुरए ज़मर)
(यानी ऐ हबीब! आप फ़रमा दीजिए कि ऐ मेरे बन्दो! जिनहोंने अपनी जानों पर हद से गुनाह कर लिया है। अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद मत हो जाओ। अल्लाह तमाम गुनाहों को बख्शने वाला और बहुत मेहरबान है।) (मदारिजुन्नबव्वत जि.२ स. ३०२)
मक्का का इन्तिज़ाम
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मक्का का नज्म- नस्क और इन्तिजाम चलाने के लिए हज़रते अत्ताब बिन उसैद रदियल्लाहु अन्हु को मक्का का हाकिम मुकर्रर फ़रमा दिया। और हज़रते मुआज़ बिन जबल रदियल्लाहु अन्हु को इस ख़िदमत पर मामूर फ़रमा दिया कि वो नव मुस्लिमों को मसइल व अहकामे इस्लाम की तअलीम देते रहें। (मदारिजुन्नूबूव्वत जि.२ स. ३२४)
इस में इख़्तिलाफ है कि फतहे मक्का के बाद कितने दिनों तक हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मक्का में कियाम फ़रमाया। अबू दाऊद की रिवायत है कि सतरह दिन. तक आप मक्का में मुकीम रहे और तिर्मिज़ी की रिवायत से पता चलता है कि अठारह दिन आपका कियाम रहा। लेकिन इमाम बुख़ारी ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत की है कि उन्नीस दिन आप मक्का में ठहरे।
(बुखारी जि.२ स. ६१५) इन तीनों रिवायतों में इस तरह ततबीक दी जा सकती है कि अबू दाऊद की रिवायत में मक्के में दाखिल होने, और मक्का से रवांगी के दोनों दिनों को शुमार नहीं किया है। इस लिए सतरह दिनों मुद्दते इकामत बताई। और तिर्मिज़ी की रिवायत में मक्के में आने के दिन को तो शुमार कर लिया। क्योंकि आप सुबह को मक्के में दाखिल हुए थे। और मक्का से रवांगी के दिन को शुमार नहीं किया। क्योंकि आप सुबह सवेरे ही मक्का से हुनैन के लिए रवाना हो गए थे और इमाम बुख़ारी की रिवायत में आने और जाने के दोनों दिनों को भी शुमार कर लिया गया है। इस लिए उन्नीस दिन आप मक्का में मुकीम रहे। (वल्लाहु तआला अलम)
इसी तरह इस में भी बड़ा इख़्तिलाफ है कि मक्का कौन सी तारीख़ में फतह हुआ? और आप किस तारीख को मक्का में फातिहाना दाखिल हुए? इमाम बैहकी ने १३ रमज़ान, इमाम
मुस्लिम ने १६ रमज़ान, इमाम अहमद ने १८ रमजान बताया। और बअज़ रिवायात में १७ रमज़ान और १८ रमज़ान भी मर्वी है। मगर मुहम्मद बिन इसहाक ने अपने मशाएख की एक जमाअत से रिवायत करते हुए फरमाया कि २० रमज़ान सन्न ८ हिजरी को मक्का फतह हुआ। वल्लाहु तआला अअलम। (जरकानी जि. २ स. ६९९)
जंगे हुनैन
“हुनैन” मक्का और ताएफ के दर्मियान एक मकाम का नाम है। तारीखे इस्लाम में इस जंग का दूसरा नाम “गज़वए हवाज़िन’ भी है। इस लिए कि इस लड़ाई में बनी हवाज़िन’ से मुकाबला था!
फतहे मक्का के बाद आम तौर से तमाम अरब के लोग इस्लाम के हलका बगोश हो गए। क्योंकि उन में अकसर वो लोग थे जो इस्लाम की हक्कानियत का पूरा पूरा यकीन रखने के बावुजूद कुरैश के डर से मुसलमान होने में तवक्कुफ़ कर रहे थे। और फ़तहे मक्का का इन्तिज़ार कर रहे थे। फिर चूँकि अरब के दिलों में कबा का बेहद एहतराम था और उनका एअतिकाद था कि कबा पर किसी बातिल परस्त का कब्ज़ा नहीं हो सकता। इस लिए हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब मक्का फतह कर लिया। तो अरब के बच्चे बच्चे को इस्लाम की हक्कानियत का पूरा पूरा यकीन हो गया। और वो सब के सब जोक दर जोक बल्कि फौज दर फ़ौज इस्लाम में दाखिल होने लगे। बल्कि फौज दर फौज इस्लाम में दाखिल होने लगे। बाकी मान्दा अरब की भी हिम्मत न रही कि अब इस्लाम के मुकाबले में हथियार उठा सकें।
लेकिन मकामे हुनैन में ‘हवाज़िन’ और ‘सकीफ नाम के दो कबीले आबाद थे जो बहुत ही जंगजू और फुनूने जंग से वाकिफ थे। उन लोगों पर फतहे मक्का का उलटा असर पड़ा। उन लोगों पर गैरत सवार हो गई। और उन लोगों ने ये ख़याल काएम कर
लिया कि फतहे मक्का के बाद हमारी बारी है। इस लिए उन लोगों ने ये तय कर लिया कि मुसलमानों पर जो इस वक्त मक्का में जमअ हैं एक जबरदस्त हमला कर दिया जाए चुनान्चे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते अब्दुल्ला बिन अबी हदरू रदियल्लाहु अन्हु को तहकीकात के लिए भेजा। जब उन्होंने वहाँ से वापस लौटकर उन कबाएल की जंगी तय्यारियों का हाल बयान किया और बताया कि कबीलए हवाज़िन और सकीफ ने अपने तमाम कबाएल को जमा कर लिया है। और कबीलए हवाज़िन का रईसे अअजम मालिक बिन औफ उर तमाम अफवाज का सिपह सालार है। और सौ बरस से जाएद उम्र का बूढ़ा ‘दुरैद बिन सिम्मा जो अरब का मशहूर शाओर और माना हआ बहादुर था। बतौरे मुशीर के मैदान में लाया गया है। और ये लोग अपनी औरतों, बच्चों बलिक जानवरों तक को मैदान में लाए हैं ताकि सिपाही मैदान से भागने का ख़याल भी न कर सके।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने भी शव्वाल सन्न हिजरी में बारह हज़ार का लश्कर जमझ फरमाया। दस हज़ार तो मुहाजिरीन व अन्सार वगैरा का वो लश्कर था तो मदीना से आपके साथ आया था और दो हज़ार नौ मुस्लिम थे. जो फ़तहे मक्का में मुसलमान हुए थे। आपने इस लश्कर को साथ लेकर इस शान-ने शौकत के साथ हुनैन का रुख किया कि इस्लामी अफवाज की कसरत और इस के जाह- जलाल को देखकर बे इख्तियार बअज सहाबा की ज़बान से ये लफ़्ज़ निकल गए कि
“आज भला हम पर कौन गालिब आ सकता है।
लेकिन खुदावंदे आलम को सहाबए किराम का अपनी फौजों की कसरत पर नाज करना पसन्द नहीं आया। चुनान्चे इस फख- नाज़िश का ये अंजाम हुआ कि पहले ही हमले में कबीलए हवाज़िन व सकीफ के तीरन्दाज़ों ने जो तीरों की बारिश की और हज़ारों की तअदाद में तलवारें लेकर मुसलमानों पर टूट पड़े। तो वो दो हजार नौ मुस्लिम और कुफ्फारे मक्का जो लश्करे इस्लाम
में शामिल होकर मक्का से आए थे एक दम सर पर पैर रखकर भाग निकले। उन लोगों की भगदड़ देखकर अन्सार व मुहाजिरीन के भी पाँव उखड़ गए। हुजूर ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जो नज़र उठाकर देखी तो गिन्ती के चन्द जाँ निसारों के सिवा सब फरार हो चुके थे। तीरों की बारिश हो रही थी। बारह हज़ार का लश्कर फरार हो चुका था। मगर खुदा के
रसूल के पाए इस्तिकामत में बाल बराबर भी लगजिश नहीं हुई। बल्कि आप अकेले एक लश्कर बल्कि एक आलमे काएनात का मजमूआ बने हुए न सिर्फ पहाड़ की तरह डटे रहे। बल्कि अपने सफेद खच्चर पर सवार बराबर आगे ही बढ़ते रहे और आपकी ज़बाने मुबारक पर ये अल्फाज़ जारी थे कि –
1 अनन-नबीय्यु ला कज़िब मैं नबी हूँ झूट नहीं है। अनबनु अब्दिल मुत्तलिब मैं अब्दुल मुत्तलिब का बेटा हूँ।
इसी हालत में आपने दाहिनी तरफ़ देखकरबुलन्द आवाज़ से पुकारा कि — “,” “या मअशरल अन्सार’ फौरन आवाज़ आई कि “हम हाज़िर हैं या रसूलल्लाह! फिर बाएँ जानिब रुख़ करके फरमाया कि ” या लल-मुहाजिरीन फौरन आवाज़ आई कि “हम हाज़िर हैं या रसूलल्लाह! हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु .चूँकि बहुत ही बुलन्द आवाज़ थे। आपने उनको हुक्म दिया कि अन्सार व मुहाजिरीन को पुकारो। उन्होंने जो ‘या मअशर अन्सार’ और “या लल-मुहाजिरीन का नअा मारा तो एक दम तमाम फौजें पलट पड़ी। और लोग इस कदर तेज़ी के साथ दौड़ पड़े कि जिन लोगों के घोड़े अज़दहाम की वजह से न मुड़ सके उन्होंने हल्का होने के लिए अपनी जिरहें फेंक दी और घोड़ों से कूद कूद कर दौड़े और कुफ्फार के लश्कर पर झपट पड़े और इस तरह जाँ बाजी के साथ लड़ने लगे कि दम ज़दन में जंग का पासा पलट
गया। कुफ्फार भाग निकले, कुछ कत्ल हो गए। जो रह गए गिरफ्तार हो गए। कबीलए सकीफ की फौजें बड़ी बहादुरी के साथ जम कर मुसलमानों से लड़ती रहीं। यहाँ तक कि उनके सत्तर बहादुर कट गए। लेकिन जब उनका अलम बरदार उस्मान बिन अब्दुल्लाह कत्ल हो गया तो उनके पाँव भी उखड़ गए और फतहे मुबीन ने हुजूर रहमतुल लिल आलमीन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कदमों का बोसा लिया और कसीर त दाद व मिकदार में माले गनीमत हाथ आया ।
(बुख़ारी जि.२ स. ६२१ गजवतुत ताएफ) यही वो मज़मून है जिसको कुरआने हकीम ने निहायत मुअस्सर अन्दाज़ में बयान फ़रमा है कि व यौमा हुनैनिन इज़ अअ-जबत्कुम
k कस-रतुकुम फ़लम तुग्-नि अन्कुम शैव वदाकत अलैकुमुल अर्दु बिमा रहुबत सुम्मा वल्लैतुम मुदबिरीन। सुम्मा अन्जलल्लाहु सकी-न-तहू अ ला रसूलिही व अलल
मुअ-मिनीना व अन्जला जुनूदल लम तरौहा। व अज़्ज़बल्लजीना क-फ़रू।
व जालिका जज़ाउल काफ़िरीन।.
(सूरए तौबा) (तर्जमा :- और हुनेन का दिन याद करो। जब तुम अपनी कसरत पर नाजाँ थे तो वो तुम्हारे कुछ काम न आई और ज़मीन इतनी वसीअ होने के बा वुजूद तुम पर तंग हो गई। फिर तुम पीठ फेरकर
भाग निकले। फिर अल्लाह ने अपनी तस्कीन उतारी अपने रसूल और मुसलमानों पर। और ऐसे लश्करों को उतार दिया जो तुम्हें नजर नहीं आए और काफिरों को अजाब दिया और काफिरों की यही सज़ा है।) हुनैन में शिकस्त खा कर कुफ्फार की फौजें भागकर कुछ
तो “औतास” में जमा हो गईं। और कुछ ‘ताएफ’ के किलओ में जा कर पनाह गज़ी हो गईं।। इस लिए कुफ्फार की उन फर्मोजों को. मुकम्मल
तौर पर शिकस्त देने के लिए औतास’ और ‘ताएफ पर भी हमला करना ज़रूरी हो गया।
जंगे औतास
चुनान्चे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू आमिर अशअरी रदियल्लाहु अन्हु की मा-तहती में थोड़ी सी फौज औतास’ की तरफ भेज दी। वुरैद बिनुल सिम्मा कई हज़ार की फौज लेकर निकला। दुरैद बिनुल सिम्मा के बेटे ने हज़रते अब आमिर अशअरी रदियल्लाहु अन्हु के जानू पर एक तीर मारा हुज़रते अबू आमिर अशअरी हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु के चचा थे। अपने चचा को ज़ली देखकर हज़रते अबू मूसा रदियल्लाहु अन्हु दौड़कर अपने चचा के पास आए। और पूछा
कि चचा जान! आपको किस ने तीर मारा है? तो हज़रते अबू आमिर रदियल्लाहु अन्हु ने इशारे से बताया कि वो शख्स मेरा कातिल है। हज़रते अबू मूसा रदियल्लाहु जोश में भरे हुए उस काफिर को कत्ल करने के लिए दौड़े तो वो भाग निकला। मगर हज़रते अबू मूसा रदियल्लाहु अन्हु ने उसका पीछा किया और ये कहकर कि अबू ओ भागने वाले! क्या तुझ को शर्म और गैरत नहीं आती? जब उस काफिर ने ये गरम गरम तअना सुना। तो ठहर गया। फिर दोनों में तलवार के दो दो हाथ हुए और हज़रते अबू मूसा रदियल्लाहु अन्हु ने आख़िर उसको कत्ल करके दम लिया। फिर
अपने चचा के पास आए और खुशखबरी सुनाई। कि चचा जान! खुदा ने आपके कातिल का काम तमाम कर दिया। फिर हज़रते अबू मूसा रदियल्लाहु अन्हु ने अपने चचा के जानू से तीर खींच कर निकाला। तो चूँकि जहर में बुझाया हुआ था। इस लिए जख्म से बजाए खून के पानी बहने लगे। हज़रते अबू आमिर रदियल्लाहु अन्हु अपनी जगह हज़रते अबू मूसा रदियल्लाहु अन्हु को फौज का सिपह सालार बनाया और ये वसीय्यत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में मेरा सलाम अर्ज कर देना । और मेरे लिए दुआ की दरख्वास्त करना। ये वसीय्यत की और उनकी रूह परवाज़ कर गई। हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु का बयान है कि जब इस जंग से फारिग होकर मैं बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुआ। और अपने चचा का सलाम और पैगाम पहुँचाया। तो उस वक़्त ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक बान की चारपाई पर तशरीफ़ फ़रमा थे। और आपकी पुश्त मुबारक और पहलुए अकदस में बान के निशान पड़े हुए थे। आपने पानी मंगा कर वुजू फ़रमाया। फिर अपने दोनों हाथों को इतना ऊँचा उठाया कि मैं ने आपकी दोनों बगलों की सफेदी देख ली। और इस तरह आपने दुआ माँगी कि ‘या अल्लाह! तू अबू आमिर को कियामत के दिन बहुत से इन्सानों से ज़्यादा बुलन्द मर्तबा बना दे। ये करम देखकर हज़रते अबू मूसा रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! (सल्लल्लाहुँ तआला अलैहि वसल्लम) मेरे लिए भी दुआ फरमा दीजिए। तो ये दुआ फरमाई कि “या अल्लाह! तू अब्दुल्लाह बिन कैस के गुनाहों को बख्श दे और उसको कियामत के दिन इज्जत वाली जगह में दाखिल फरमा। अब्दुल्लाह बिन कैस हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु का नाम है। (बुखारी जि.२ स. ६१६ राजवए औतास)
बहर कैफ हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु ने वुरैद बिनुल सिम्मा के बेटे को कत्ल कर दिया। और इस्लामी अलम को अपने हाथ में ले लिया वुरैद बिनुल सिम्मा बुढ़ापे की वजह से एक
हौदज पर सवार था। उसको हज़रते रबीआ बिन रुफीअ रदियल्लाहु
उसी की तलवार से क़त्ल कर दिया। इस के बाद कुफ्फार की फौजों ने हथियार डाल दिया। और सब गिरफ्तार होगए। उन कैदियों में जिनकी त दाद हज़ारों से ज्यादा थी। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की रिजाइ बहन हज़रते ‘शीमा” रदियल्लाहु अन्हा भी थीं। ये हज़रते बीबी हलीमा सअदिया रदियल्लाहु अन्हा की साहिबज़ादी थीं। जब लोगों ने उनको गिरफ्तार किया तो उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे नबी की बहन हूँ। मुसलमान उनकी शनाख्त के लिए बारगाहे नूबुव्वत में लाए तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनको पहचान लिया। और जोशे महब्बत में आपकी आँखें नम हो गई और आपने अपनी चादरे मुबारक ज़मीन पर बिछाकर उनको बिठाया। और कुछ ऊँट कुछ बकरियाँ उनको देकर फरमाया कि तुम आज़ाद हो । अगर तुम्हारा जी चाहे तो मेरे घर पर चलकर रहो। और अगर अपने घर जाना चाहो तो मैं तुम को वहाँ पहुँचा दूं। उन्होंने अपने घर जाने की ख्वाहिश जाहिर की। तो निहायत ही इज्ज़त व एहतराम के साथ वो उनके कबीले में पहुँचां दी गईं।
(तबरी जि. ३ स. ६६८)
ताएफ का मुंहासरा
ये तहरीर किया जा चुका है कि हुनैन से भागने वाली कुफ्फार की फ़ौजें कुछ तो औतास में जाकर ठहरी थीं। और कुछ ताएफ़ के किलों में जाकर पनाह गज़ी हो गई थीं। औतास की फौजें तो आप पढ़ चुके कि वो शिकस्त खाकर हथियार डाल देने पर मजबूर हो गई और सब गिरफ्तार हो गईं। लेकिन ताएफ में पनाह लेने वालों से भी जंग ज़रूरी थी। इस लिए हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हुनैन और औतास के अमवाले गनीमत और कैदियों को “मकामे जइर्राना में जमा करके ताएफ का रुख फ़रमाया।
ताएफ खुद एक बहुत ही महफूज शहर था जिस के चारों
ही तरफ शहर पनाह की दीवार बनी हुई थी। और यहाँ एक बहुत मजबूत किलअ भी था। यहाँ का रईसे अअज़म उरवा बिन मसऊद सकफी था। जो अबू सुफयान का दामाद था। यहाँ सकीफ का जो खानदान आबाद था वो इज्जत व शराफत में कुरैश का हम पल्ला शुमार किया जाता था। कुफ्फार की तमाम फौजें साल भर का राशन लेकर ताएफ के किलओ में पनाह गज़ी हो गई थीं। इस्लामी अफ़वाज ने ताएफ पहुँचकर शहर का मुहासरा कर लिया। मगर किलो के अन्दर से कुफ्फार ने इस जोर शोर के साथ तीरों की बारिश शुरू कर दी कि लश्करे इस्लाम इसकी ताब न ला सका । और मजबूरन इसको पसपा होना पड़ा। अठारह दिन तक शहर का मुहासिरा जारी रहा। मगर ताएफ़ फ़तेह न हो सका। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब जंग के माहिरों से मशवरा फरमाया तो हज़रते नौफ़ल बिन मुआविया रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह!
“लोमड़ी अपने भट में घुस गई है। अगर कोशिश जारी रही तो पकड़ ली. जाएगी अगर छोड़ दी जाए तो भी इससे कोई अन्देशा नहीं है।
ये सुनकर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुहासरा उठा लेने का हुक्म दे दिया। (जरकानी जि.३ स ३३)
ताएफ के मुहासरे में बहुत से मुसलमान ज़ख़्मी हुए। और कुल बारह असहाब शहीद हुए। सात कुरैश। चार अन्सार और एक शख्स बनी लैस के। ज़ख्मीयों में हज़रते अबू बकर रदियल्लाहु अन्हु के साहिबजादे अब्दुल्लाह बिन अबू बकर रदियल्लाहु अन्हुमा भी थे। ये एक तीर से जख्मी हो गए थे। फिर अच्छे भी हो गए। लेकिन एक मुद्दत के बाद फिर उनका ज़ख़्म फट गया और अपने वालिदे माजिद हजरते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अनहु के दौरे ख़िलाफ़त में इसी जख्म से उनकी वफात हो गई।
(जरकानी जि.स.30
ताएफ की मस्जिद
ये मस्जिद जिसको हज़रते अमर बिन उमय्या रदियल्लाहु अन्हु
ने तअमीर किया था एक तारीख़ी मस्जिद है। इस जंगे ताएफ में अज़वाजे मुतहहरात में से दो साथ थीं। हजरते उम्मे सल्मा और हज़रते जैनब रदियल्लाहु अन्हुमा उन दोनों के लिए हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दो खीमे गाड़े थे। और जब तक ताएफ का मुहासरा रहा। आप उन दोनों खीमों के दर्मियान में नमाजें पढ़ते रहे। जब बाद में कबीलए सकीफ के लोगों ने इस्लाम कुबूल कर लिया। तो उन लोगों ने उसी जगह पर मस्जिद बना ली।
(जरकानी जि.३ स. ३१)
जंगे ताएफ में बुत शिकनी
जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ताएफ का इरादा फ़रमाया तो हज़रते तुफैल बिन अमर रदियल्लाहु अन्हु को एक लश्कर के साथ भेजा कि “जुलकफीन” के बुत ख़ाने को बरबाद कर दें। यहाँ अमर बिन हमहमा दौसी का बुत था जो लकड़ी का बना हुआ था। चुनान्चे हज़रते तुफैल बिन अमर दौसी रदियल्लाहु अन्हु ने वहाँ जाकर बुत ख़ाना मुनहदिम कर दिया और बुत को जला दिया। बुत को जलाते वक्त वो इन अशआर को पढ़ते जाते थे।
با الک کن کن من مباد
या ज़ल कफैनि लस-तु मिन इबादिका ऐ ज़ल कफैन मैं तेर बन्दा नहीं हूँ
بلادنا الخبر من مثلا
मीलादुना अकबरु मिन मीलादिका मेरी पैदाइश तेरी पैदाइश से बड़ी है
إن ترك الصلاة في وادگا
इन्नी हसौतुन्नारा फी फुवादिका मैंने तेरे दिल में आग लगा दी है।
हज़रते तुफैल बिन अमर दौसी रदियल्लाहु अन्हु चार दिन में इस मुहिम से फारिग होकर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास ताएफ में पहुँच गए। ये “जल कफैन’ से किला तोड़ने के आलात मन्जनीक वगैरा भी लाए थे। चुनान्चे इस्लाम में सब से पहली यही मन्जनीक है जो ताएफ़ का किलअ तोड़ने के लिए लगाई गई। मगर कुफ्फार की फौजों ने तीर अन्दाजी के साथ साथ गरम गरम लोहे की सलाखें फेंकनी शुरू कर दी। इस वजह से किलअ तोड़ने में कामयाबी न हो सकी। (जरकानी जि.३ स. ३१) इसी तरह हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु को भेजा कि ताएफ के अतराफ में जो जा बजा सकीफ़ के बुत ख़ाने हैं उन सब को मुनहदिम कर दें। चुनान्चे आपने इन सब बुतों और बुत ख़ानों को तोड़ फोड़कर मिस्मार कर दिया। और जब लूट कर ख़िदमते अदस में हाज़िर हुए तो
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उनको देखकर बेहद खुश हुए। और बहुत देर तक उनसे तन्हाई में गुफ्तुगू फरमाते रहे, जिससे लोगों को बहुत तअज्जुब हुआ (िमदारिजुन्नुबूव्वत जि.२ स.३१८)
ताएफ़ से रवांगी के वक़्त सहाबए किराम ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) आप कबीलए सकीफ़ के कुफ्फार के लिए हलाकत की दुआ फ़रमा दीजिए। तो आपने दुआ माँगी कि – अल्लाहुम्महदि सकीफवं वति बिहिम bhagat या अल्लाह! सकीफ़ को हिदायत दे और उनको मेरे पास पहुंचा दे। (मुस्लिम जि.२ स. ३०७ बाब फ़ज़ाएल गफ्फार व दौस वगैरा)
चुनान्चे आपकी ये दुआ मकबूल हुई कि कबीलए सकीफ का वफ़्द मदीना पहुँचा और पूरा कबीला मुशर्रफ़ ब-इस्लाम हो गया।
(माले गनीमत की तकसीम)
ताएफ से मुहासरा उठाकर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि
वसल्लम “जिइर्राना तशरीफ़ लाए। यहाँ अमवाले गनीमत का
बहुत बड़ा जखेरा जमअ था। जो बीस हज़ार ऊँट । चालीस हज़ार ! बकरियाँ, कई मन चाँदी और छे हज़ार कैदी।
(सीरते इने हश्शाम जि.२ स. ४८८ व जरकानी) असीराने जंग के बारे में आपने उनके रिश्तेदारों के आने का इन्तिज़ार फ़रमाया। लेकिन कई दिन गुज़रने के बावुजूद जब कोई
न आया। तो आपने माले गनीमत को तक्सीम फरमा देने का हुक्म ॥
दे दिया। मक्का और उसके अतरांफ के नौ मुस्लिम रईसों को आपने बड़े बड़े इनआमों से नवाजा। यहाँ तक कि कसी को तीन सौ ऊँट, किसी को दो सौ ऊँट, किसी को सौ ऊँट इनआम के तौर पर अता फरमा दिया। इसी तरह बकरियों को भी निहायत फय्याज़ी के साथ तक्सीम फ़रमाया। (सीरते इने हश्शाम जि.२ स. ४८९)
अन्सारियों से खिताब
जिन लोगों को आपने बड़े बड़े इनआमात से नवाज़ा वो मक्का वाले नौ मुस्लिम थे। इस पर बअज अन्सारियों ने कहा कि
*रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कुरैश को इस कदर अता फरमा रहे हैं और हम लोगों का कुछ भी ख़याल नहीं फ़रमा रहे हैं। हालाँकि हमारी तलवारों से खून टपक रहा है।
(बुखारी जि. २ स. ६२० राजवए ताइफ) और अन्सार के कुछ नौ जवानों ने आपस में ये भी कहा कि और अपनी दिल शिकनी का इज़हार किया कि
“जब शदीद जंग का मौका होता है तो हम अन्सारियों को पुकारा जाता है और गनीमत दूसरे लोगों को दी जा रही है।
(बुखारी जि.२ स ६२१ गजवए ताइफ) आपने जब ये चर्चा सुना तो तमाम अन्सारियों को एक खीमे में जमा फरमाया और उनसे इर्शाद फरमाया कि ऐ अन्सार! क्या तुम
लोगों ने ऐसा कहा है? लोगों ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह!
(सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) हमारे सरदारों में से किसी ने भी
कुछ नहीं कहा है। हाँ चन्द नई उम्र के लड़कों ने ज़रूर कुछ कह दिया है हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अन्सार को मुखातब फरमाकर इर्शाद फरमाया कि
“क्या ये सच नहीं है कि तुम पहले गुमराह थे मेरे ज़रीओ से खुदा ने तुम को हिदायत दी तुम मुतफ़रिक और परागंदा थे, खुदा ने मेरे जरीओ से तुम में इत्तिफाक व इत्तिहाद पैदा फ़रमाया। तुम मुफ़लिस थे। खुदा ने मेरे ज़रीओ से तुम को गनी बना दिया।
(बुख़ारी जि.२ स. ६२० गजवए ताइफ) हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये फ़रमाते जाते और अन्सार आपके हर जुमले को सुनकर कहते जाते थे कि –
“अल्लाह और रसूल का हम पर बड़ा एहसान है।
आपने इर्शाद फ़रमाया कि ऐ अन्सार! तुम लोग यूँ मत कहो, बल्कि मुझको ये जवाब दो कि –
“या रसूलल्ला! जब लोगों ने आपको झुटलाया तो हम लोगों ने आपकी तस्दीक की। जब लोगों ने आपको छोड़ दिया। तो हम लोगों ने आपको ठिकाना दिया। जब आप बेसरो सामानी की हालत
में आए। तो हम ने हर तरह से आपकी मदद की।
लेकिन ऐ अन्सारियो! मैं तुम से एक सवाल करता हूँ। तुम मुझे इसका जवाब दो। सवाल ये है कि
” “क्या तुम लोगों को ये पसन्द नहीं कि सब लोग यहाँ से माल- दौलत लेकर अपने घर जाएँ। और तुम लोग अल्लाह के नबी को ले कर अपने घर जाओ। खुदा की कसम! तुम लोग जिस चीज़ को लेकर अपने घर जाओगे वो इस माल-दौलत से बहुत बढ़ कर है जिसको वो लोग लेकर अपने घर जाएँगे।
ये सुनकर अन्सार बे इख्तियार चीख़ पड़े कि या रसूलल्लाह! (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) हम इस पर राज़ी हैं। हम को सिर्फ अल्लाह का रसूल चाहिए और अकसर अन्सार का तो ये हाल हो गया कि वो रोते रोते बे करार हो गए। और आँसुओं
से उनकी दाढ़ियाँ तर हो गई। फिर आपने अन्सार को समझाया कि मक्का के लोग बिल्कुल ही नव मुस्लिम हैं। मैं ने उन लोगों को जो कुछ दिया है ये उनके इस्तेहकाक की बिना पर नहीं है बल्कि सिर्फ उनके दिलों में इस्लाम की उल्फत पैदा करने की गरज से दिया है। फिर इर्शाद फरमाया कि
“अगर हिजरत न होती तो मैं अन्सार में से होता और अगर तमाम लोग किसी वादी और घाटी में चलें। और अन्सार किसी दूसरी वादी और घाटी में चलें तो मैं अन्सारी की वादी और घाटी में चलूँगा।
(बुखारी जि.२ स. ६२० व ६२१ गजवए ताएफ)
कैदियों की रिहाई
आप जब अमवाले गनीमत की तंक्सीम से फ़ारिग हो चुके तो कबीलए बनी सञ्जद के रईस जुहैर अबू सुरद, चन्द मुअज्जिज़ीन के साथ बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए। और असीराने जंग की रिहाई के बारे में दरख्वास्त पेश की इस मौकअ पर जुहैर बिन सुरद
ने एक बहुत मुअस्सर तकरीर की। जिस का खुलासा ये है कि
“ऐ मुहम्मद! (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) आपने हमारे खानदान की एक औरत. हलीमा का दूध पिया है। आपने जिन औरतों को इन छपरों में कैद कर रखा है। उनमें से
बहुत आपकी (रिज़ाई) फूफीयाँ । और बहुत सी आपकी ख़ालाएँ हैं। खुदा की कसम! अगर अरब के बादशाहों में से किसी बादशाह ने हमारे खानदान की किसी औरत का दूध पिया होता तो हम को उस बहुत ज़्यादा उम्मीदें होती । और आप से तो और भी ज़्यादा हमारी तवक्कोआत वाबस्ता हैं। लिहाजा आप उन सब कैदियों को रिहा कर दीजिए।
जुहैर की तकरीर सुनकर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बहुत ज़्यादा मुतास्सिर हुए और आपने फरमाया कि मैं
ने आप लोगो का बहुत ज्यादा इन्तिजार किया। मगर आप लोगों ने आने में बहुत ज्यादा देर लगा दी। बहेर कैफ मेरे ख़ानदान वालों के हिस्से में जिस कदर लौंडी और गुलाम आए हैं। मैंने उन सब को आजाद कर दिया। लेकिन अब आम रिहाई की तदबीर ये है कि नमाज के वक्त जब मजमअ हो तो आप लोग अपनी दरख्वास्त सब के सामने पेश करें। चुनान्वे नमाजे जुहर के वक्त उन लोगों ने ये दरख्वास्त सब के सामने पेश की। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मजमअ के सामने ये इर्शाद फरमाया कि मुझ को सिर्फ अपने खानदान वालों पर इख्तियार है लेकिन तमाम मुसलमानों से सिफारिश करता हूँ कि कैदियों को रिहा कर दिया जाए। ये सुनकर तमाम अन्सार व मुहाजिरीन और दूसरे तमाम मुजाहिदीन ने भी अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) हमारा हिस्सा भी हाज़िर है। आप उन लोगों को भी आज़ांद फ़रमा दें इस तरह दफ़अतन छ: हजार असीराने जंग की रिहाई हो गई। (सीरते इले हश्शाम जि.४ स.४८८ व ४८९)
बुख़ारी शरीफ़ की रिवायत ये है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दस दिनों तक “हवाज़िन’ के वफ्द का इन्तिज़ार फ़रमाते रहे। जब वो लोग न आए तो आपने माले गनीमत और कैदियों को मजाहीदीन के दरमियान तक्सीम फरमा दिया। इस के बाद जब “हवाज़िन’ का वफ़्द आया और उन्हो ने अपने इस्लाम का एलान कर के ये दरख्वास्त पेश की कि हमारे माल और कैदियों को वापस कर दिया जाए तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मुझे सच्ची बात ही पसन्द है लिहाज़ा सुन लो कि माल और कैदी दोनों को तो मैं वापस नहीं कर सकता। हाँ उन दोनों में से एक को तुम इख़्तियार कर लो। या माल ले लो या कैदी। ये सुनकर वफ़्द ने कैदियों को वापस लेना मंजूर कियां इसके बाद आपने फौज के सामने एक खुत्वा पढ़ा। और हम्द- सना के बाद इर्शाद फ़रमाया कि
“ऐ मुसलमानो! ये तुम्हार भाई ताएब हो कर आ गए हैं। और
मेरी ये राय है कि मैं उनके कैदियों को वापस कर दूँ। तो तुम
में से जो खुशी खुशी इसको मंजूर करे वो अपने हिस्से के कैदियों को वापस कर दे। तो मैं वअदा करता हूँ कि सब से पहले अल्लाह तआला मुझे जो गनीमत अता फरमाएगा। मैं उसमें से इसका हिस्सा दूंगा। ये सुन कर सारी फौज ने कह दिया कि या रसूलल्लाह! (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) हम सब ने खुशी खुशी सब कैदियों को वापस कर दिया। आपने इर्शाद फ़रमाया कि इस तरह पता नहीं चलता कि किस ने इजाजत दी और किस ने नहीं दिया लिहाज़ा तुम लोग अपने अपने चौधरियों के ज़रीओ मुझे ख़बर दो। चुनान्चे हर क़बीले के चौधरियों ने दरबारे रिसालत में आकर अर्ज कर दिया कि हमारे कबीले वालों ने खुशदिली के साथ अपने हिस्से के कैदियों को वापस कर दिया है। (बुख़ारी जि.१ स. ३४५ बाब मिन मुल्क मिनुल अरब व बुख़ारी जि.२ स. ३०९ बाबुल वकालत फी कज़ाउद्दीन व बुखारी जि… स ६१८)
गैब दाँ रसूल
सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हवाजिन के वफ़्द से दर्याफ्त फ़रमाया कि मालिक बिन औफ कहाँ है? उन्होंने बताया कि वो “सकीफ के साथ ताइफ में है। आपने इर्शाद फ़रमाया कि तुम लोग मालिक बिन औफ को ख़बर दो कि अगर वो मुसलमान होकर मेरे पास आ जाए तो मैं उसका सारा माल उसको वापस दे दूंगा। इसके अलावा उसको एक सौ ऊँट और भी दूंगा। मालिक बिन औफ को जब ये ख़बर मिली तो वो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में मुसलमान हो कर हाज़िर हो गए। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनका कुल माल उनके सिपुर्द फरमा दिया और वअदा के मुताबिक एक सौ ऊँट इस के अलावा भी इनायत फरमाया।
मालिक बिन औफ आपके इस खुल्के अजीम से बेहद मुतास्सिर हुए और आपकी मिदह में एक कसौदा पढ़ा। जिसके दो शेअर ये हैं।
मा इन स्अयतु वला समितु लिवाहिदिन फिन्नासि कुल्लिहिमी कमिस-लि मुहम्मदिन अवफ़ा फ़-अअता लिल-जज़ीलि लि-मुज-तदि
व मता तशा युख-बिरका अम्मा फी ग़दी यानी तमाम इन्सानों में हज़रते मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का मिस्ल न मैंने देखा न सुना जो सब से ज्यादा वअदा को पूरा करने वाले और सब से ज़्यादा माले कसीर अता फ़रमाने वाले हैं। और जब तुम चाहो। उनसे पूछ लो वो कल आइन्दा की ख़बर तुम को बता देंगे।
रिवायत है कि नत के ये अशआर सुनकर हुजूर सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम उनसे खुश हो गए। और उनके लिए कलिमाते खैर फ़रमाते हुए उन्हें बतौरे इनआम एक हुल्ला
भी इनायत फ़रमाया। (सीरते इने हश्शाम जि.४ स. ४९१ व मदारिज जि.२ स.३२४)
ने
उमरए जिइर्राना
इसके बाद नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ज़िद्दरांना ही से उमरा का इरादा फरमाया और एहराम बाँधकर मक्का तशरीफ ले गए। और जुल कअदा सन्न ८ हिजरी को मदीने में दाखिल हुए।
की
सन्न ८ हिजरी के मुतफ़रिक वाकिआत
Xvइसी साल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के फरजन्द हजरते इब्राहीम रदियल्लाहु अन्हु हज़रते मारिया किबतिया रदियल्लाहु अन्हा के शिकम से पैदा हुए। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को उनसे बेपनाह महब्बत थी। तकरीबन डेढ साल की उम्र में उनकी वफात हो गई।
इत्तिफाक से जिस दिन उनकी वफ़ात हुइ सूरज ग्रहन हुआ। चूँकि अरबों का अकीदा था कि किसी अजीमुश्शान इन्सान की मौत पर सूरज ग्रहन लगता है। इस लिए लोगों ने ये ख़याल कर लिया कि ये सूरज ग्रहन हज़रते इब्राहीम रदियल्लाहु अन्हु वफात का नतीजा है। चाहिलीयत के इस अकीदे को दूर फ़रमाने के लिए हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक खुत्बा दिया जिसमें आपने इर्शाद फरमाया कि
चाँद और सूरज में किसी की मौत व हयात की वजह से ग्रहन नहीं लगता। बल्कि अल्लाह तआला इसके जरीओ अपने बन्दों को खौफ दिलाता है। इसके बाद आपने नमाजे कसोफ जमाअत के साथ पढ़ी। (बखारी जि१ स १४२ अबवाबल कसूफ़) (२) इसी साल हुजूर नबीए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की साहिबजादी हज़रते जैनब रदियल्लाहु अन्हा ने वफात पाई। ये साहिबज़ादी साहिबा हज़रते अबुल आस बिन रबी रदियल्लाहु अन्हु की मन्कूहा थीं। उन्होंने एक फ्रजन्द जिनका नाम “अली’ था। और एक लड़की जिनका नाम ‘उमामा’ था। अपने बाद छोड़ा। हज़रते बीबी फ़ातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा ने हज़रते अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु अन्हु को वसीय्यत की थी कि मेरी वफात के बाद हज़रते उमामा रदियल्लाहु अन्हा से निकाह करें। चुनान्चे हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते सय्येदा फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की वसीय्यत पर अमल किया।
(मदारिजन्नबलत जि.स 3.280
(३) इसी साल मदीने में गल्ले की गिरानी (महंगाई) बहुत ज्यादा बढ़ गइ। तो सहाबए किराम ने दरख्वास्त की कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम आप गल्ले का भाव मुकर्रर फ़रमा दें तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने गल्ले की कीमत पर कन्ट्रोल फरमाने से इन्कार फरमा दिया। और इर्शाद फ़रमा दिया कि इन्नल्लाहा हुवल मुस-इरु अलकाबिदुल बासितुर-रज्जाकु (४) बअज़ मुअरिंखीन के बकौल इसी साल मस्जिदे नबवी में मिंबर शरीफ़ बनाया गया। इस से कब्ल हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक सुतून से टेक लगाकर खुत्बा पढ़ा करते थे। और बअज़ मुअरिंखीन का कौल है कि मिंबर सन्न ७ हिजरी में रखा गया। ये मिंबर लकड़ी का बना हुआ था।जब ये मिंबर बहुत ज़्यादा पुराना होकर इन्तिहाई कमज़ोर हो गया तो खुलफाए अब्बासिया ने भी इसकी मरम्मत कराई
(मदारिजुत्नुबूब्वत जि.२ स. ३२७) (५) इसी साल कबीलए अब्दुल कैस का वपद हाज़िरे ख़िदमत
हुआ। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन लोगों को खुश आमदीद कहा। और उन लोगों के हक में यूँ दुआ फ़रमाई कि ऐ अल्लाह! तू अब्दुल कैस को बख्श दे, जब ये लोग बारगाहे रिसालत में पहुंचे तो अपनी सवारीयों से कूद कर दौड़ पड़े। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुकद्दस कदम चूमने लगे और आपने उन लोगों को मनअ नहीं फरमाया।
(मदारिजुन्नुबूव्वत जि.२ स. ३३०)