मदीना के करीब “जातुल कर्द’ एक चरागाह का नाम है। जहाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ऊँटनियाँ चरती थीं। अब्दुर्रहमान बिन उय्येना फ़ज़ारी जो क़बीलए गतफ़ान से तअल्लुक रखता था। अपने चन्द आदमियों के साथ नागहाँ (अचानक) इस चरागाह पर छापा मारा और ये लोग बीस ऊँटनियों को पकड़कर ले भागे। मशहूर तीरन्दाज़ सहाबी हज़रते सल्मा बिन अकोअ रदियल्लाहु अन्हु को सब से पहले इसकी ख़बर मालूम हुई। उन्हों ने इस ख़तरे का एअलान करने के लिए बुलन्द आवाज से ये ना मारा कि “athay. ‘या सबा हा फिर अकेले ही उन डाकुओं के तआकुब में दौड़ पड़े। और उन डाकुओं को तीर मार मारकर तमाम ऊँटनियों को भी छीन लिया। और डाकू भगते हुए जो तीस चादरें फेंकते गए थे उन चादरों पर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम लश्कर लेकर पहुँचे। हज़रते सल्मा बिन अकोअ रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह! मैंने उन छापा मारों को अभी तक पानी नहीं पीने दिया है। यब सब प्यासे हैं। उन लोगों के तआकुब में लश्कर भेज दीजिए तो ये सब गिरफ्तार हो जाएँगे। आपने इर्शाद फ़रमाया कि तुम अपनी ऊँटनियों के मालिक हो चुके हो। अब उन लोगों के साथ नर्मी का बरताव करो। फिर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते सल्मा बिन अको रदियल्लाहु अन्हु को अपने ऊँट पर अपने पीछे बिठा लिया और
मदीना वापस तशरीफ़ लाए। हज़रते इमाम बुख़ारी का बयान है कि ये गजवा जंगे खैबर के रवाना होने से तीन दिन कब्ल हुआ।
(बुख़ारी गजवए जातुल कर्द जि.२ स. ६०३ व मुस्लिम जि.२ स. ११३)
जंगे खैबर “खैबर”
मदीना से आठ मंजिल की दूरी पर एक शहर है। एक अंग्रेज सय्याह ने लिखा है कि खैबर मदीना से तीन सौ बीस किलोमीटर दूर है। ये बड़ा ज़रखेज़ इलाका था। और यहाँ उम्दा खजूरे ब-कसरत पैदा होती थी अरब में यहूदी का सब से बड़ा मरकज़ यही खैबर ही था। यहाँ के यहूदी अरब में सब से ज्यादा मालदार और जंगजू थे। और उनको अपनी माली और जंगी ताकतों पर बड़ा नाज़ और घमण्ड भी था। ये लोग इस्लाम और बानीए इस्लाम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बद तरीन दुश्मन थे। यहाँ यहूदियों ने बहुत से मजबूत किलो बना रखे थे। जिनमें से बअज के आसार अब तक मौजूद हैं। उनमें से आठ किलले बहुत मशहूर हैं। जिनके नाम ये हैं।
कुतैबा, नाइम, शक्क, कमूस, नताह, सब, वतीख, सुलालिम। दर हकीकत ये आठों किलो आट मुहल्लों के मिस्ल थे। और इन्ही आठों किलओं का मजमूआ “खैबर” कहलाता था।
(मदारिजुन्नुबूब्बत जि.२ स. २३४)
गजवए खैबर कब हुआ?
तमाम मुअरिंखीन का इस बात पर इत्तिफ़ाक है कि जंगे खैबर मुहर्रम के महीने में हुई। लेकिन इसमें इख्तिलाफ है कि सन्न ६ हिजरी था या सन्न ७ हिजरी। गालिबन इस इख्तिलाफ की वजह ये है कि बअज लोग सन्न ६ हिजरी की इब्तिदा मुहर्रम से करते हैं। इस लिए उनके नज़दीक मुहर्रम में सन्न ७ हिजरी शुरू हो गया। और बज लोग सन्न हिजरी की इब्तिदा रबीउल अव्वल
से करते हैं। क्योंकि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हिजरत रबीउल अव्वल में हुई। लिहाजा उन लोगों के नजदीक ये मुहर्रम व सफर सन्न ६ हिजरी के थे। वल्लाहु अअलम।
जंगे खैबर का सबब
ये हम पहले लिख चुके हैं कि जंगे खन्दक में जिन जिन कुफ्फारे अरब ने मदीना पर हमला किया था उनमें खैबर के यहूदी भी थे। बल्कि दर हकीकत वही इस हमले के बानी और सब से बड़े मुहर्रिक थे। चुनान्चे “बनू नुज़ैर” के यहूदी जब मदीना से जला वतन किये गए तो यहूदियों के जो रुऊसा खैबर चले गए उसमें से हुय्या बिन अख्तब और अबू राफेअ सल्लाम बिन अबिल हुकैक ने तो मक्का जाकर कुफ्फारे कुरैश को मदीना पर हमला करने के लिए उभारा। और तमाम कबाइल का दौरा करके कुफ्फ़ारे अरब को जोश दिलाकर बर अंगेख्ता किया। और हमला आवरों की माली इमदाद के लिए पानी की तरह रूपया बहाया। और खैबर के तमाम यहूदियों को सथ लेकर यहूदियों के ये दोनों सरदार हमला करने वालो में शामिल रहे। हुय्या बिन अख्तब तो जंगे कुरैज़ा में कत्ल हो गया। और अबू राफेअ सल्लाम बिन अबिल हुकैक को सन्न ६ हिजरी में हज़रते अब्दुल्लाह बिन अतीक अन्सारी रदियल्लाहु अन्हु ने उसके महल में दाखिल हो कर कत्ल कर दिा। लेकिन इन सब वाकिआत के बाद भी खैबर के यहूदी बैठ नहीं रहे। बल्कि और ज्यादा इन्तिकाम की आग उनके सीनों में भड़कने लगी चुनान्चे ये लोग मदीना पर फिर एक दूसरा हमला करने की तय्यारियाँ करने लगी और इस मकसद के लिए कबीलए गतफात को भी आमादा कर लिया। कबीलए गतफान अरब का एक बहुत ही ताकतवर और जंगजू कबीला था। और उसकी आबादी खैबर से बिल्कुल ही मुत्तसिल थी। और खैबर के यहूदी खुद भी अरब के सब से बड़े सरमायादार होने के साथ बहुत ही
जंग बाज और तलवार के धनी थे। उन दोनों के गठ जोड से एक बड़ी ताकतवर फौज तय्यार हो गई और उन लोगों ने मदीना पर हमला करके मुसलमानों को तहस नहस कर देने का प्लान बना
लिया।
मुसलमान खैबर चले
जब रसूले खुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को खबर मिली कि खैबर के यहूदी कबीलए गतफान के सथ मिलकर मदीना पर हमला करने वाले हैं। तो उनकी इस चढ़ाई को रोकने के लिए सोलाह सौ सहाबए किराम का लश्कर साथ लेकर आप खैबर रवाना हुए। मदीना पर हज़रते सिबाअ बिन उरफुता रदियल्लाहु अन्हु को अफ़सर मुकर्रर फ़रमाया । और तीन झण्डे तय्यार कराए। एक झन्डा हज़रते हुबाब बिन मुनज़िर रदियल्लाहु अन्हु को दिया और एक झन्डे का अलमबरदार हज़रते सद बिन उबादा रदियल्लाहु अन्हु को बनाया और एक ख़ास अलमे नबवी हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के दस्ते मुबारक में इनायत फ़रमाया। और अज़वाजे मुतहात से हज़रते बीबी उम्मे सल्मा रदियल्लाहु अन्हा को साथ लिया।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम रात के वक्त हुदूदे खैबर में अपनी फौजे जफर मौज के साथ पहँच गए। और नमाज़े फज्र के बाद शहर में दाखिल हुए तो खैबर के यहूदी अपने अपने हंसिया और टोकरी लेकर खेतों और बागों में काम काज के लिए किलअ से निकले। जब उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को देखा तो शोर मचाने लगी और चिल्ला चिल्लाकर कहने लगे कि “खुदा की कसम! लश्कर के साथ मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) हैं उस वक्त हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि :
खैबर बरबाद हो गया। बिला शुब्हा हम जब किसी कौम के
मैदान में उतर पड़ते हैं तो कुफ्फार की सुबह बुरी हो जाती है।
(बुखारी जि२ स. ६०३) हजरते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु कहते है कि जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम खैबर की तरफ मुतवज्जह हुए तो सहाबए किराम बहुत ही बुलन्द आवाज़ों से नअरए तकबीर लगाने लगे। तो आपने फरमाया कि अपने ऊपर नर्मी बरतो। तुम लोग किसी बहरे और गाएब को नहीं पुकार रहे हो। बलिक उस (अल्लाह) को पुकार रहे हो जो सुनने वाला और करीब है। मैं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सवारी के पीछे : intHin) “ला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह’ का वजीफा पढ़ रहा था। जब आपने सुना तो मुझ को पुरा और फ़रमाया कि क्या मैं तुम को एक ऐसा कलिमा न बता दूं जो जन्नत के ख़ज़ानों में से एक खज़ाना है। मैं ने अर्ज किया कि “क्यों नहीं. या रसूलल्लाह! आप पर मेरे माँ बाप कुर्बान” तो फरमाया कि वो कलिमा
“ता हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह है। (बुख़ारी जि.२ स. ६०५)
यहूदियों की तय्यारी
यहूदियों ने अपनी औरतो और बच्चों को एक महफूज़ किलो में पहुंचा दिया और राशन का जखीरा किलआ “नाइम में जमअ कर दिया। और फौजों को ‘नतात और कमूस’ के किलओं में इकट्ठा कर दिया। इन में सब से ज़्यादा मज़बूत और महफूज किलअ “कमूस’ था और “मुरहहब यहूदी जो अरब के पहलवानों में एक हजार सवार के बराबर माना जाता था। इसी किलों का रईस था। सल्लाम बिन मिशकम यहूदी गो बीमार था। मगर वो भी किलो नतात” में फौजें लेकर डटा हुआ था। यहूदियों के पास तकरीबन बीस हजार फौज थी तो मुखतलिफ किलओं की हिफाज़त के लिए मोर्चा बंदी किये हुए थी।
महमूद बिन मसलमा शहीद हो गए
सब से पहले किलअए “नाइम’ पर मअरका आराई और जमकर लड़ाई हुई हज़स्ते महमूद बिन मसलमा रदियल्लाहु अन्हु ने बड़ी बहादुरी और जाँ बाज़ी के साथ जंग की। मगर सख्त गर्मी और लू के थपेड़ों की वजह से उन पर प्यास का गल्बा हो गया। वो किलो नाइम की दीवार पर सो गए। किनाना बिन अबिल हुकैक यहूदी ने उनको देख लिया। और छत से एक बहुत बड़ा पत्थर उनके ऊपर गिरा दिया। जिससे उनका सर कुचल गया। और वो शहीद होगए। इस किलओ को फतह करने में पचास मुसलमान जख्मी हो गए। लेकिन किलअ फतह हो गया।
असवद राई की शहादत
हज़रते असवद राई रदियल्लाहु अन्हु इसी किलो की जंग में शहादत से सरफ़राज़ हुए। उनका वाकिआ. ये है कि ये एक हुशी थे जो खैबर के किसी यहूदी की बंकरियाँ चराया करते थे। जब यहूदी जंग की तय्यारियाँ करने लगे तो उन्होंने पूछा कि आख़िर तुम लोग किस से जंग के लिए तय्यारियाँ कर रहे हो? यहूदियों ने कहा कि आज हम उस शख्स से जंग करेंगे जो नुबूव्वत का दवा करता है। ये सुनकर उनके दिल में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुलाकात का जज़्बा पैदा हुआ। चुनान्चे ये बकरियाँ लिए हुए बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो गए आर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से दर्याफ्त किया कि आप किस चीज़ की दअवत देते हैं? आपने उनके सामने इस्लाम पेश फरमाया। उन्होंने अर्ज़ किया कि अगर मैं मुसलमान हो जाऊँ तो मुझे खुदावंद तआला की तरफ से क्या अज- सवाब मिलेगा? आपने इर्शाद फरमाया कि तुमको जन्नत और उसकी नेअमतें मिलेंगी। उन्होंने फौरन ही कलिमा पढ़कर इस्लाम कुबूल कर लिया। फिर अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! ये बकरियाँ मेरे
पास अमानत हैं। अब मैं इनको क्या करूँ? आपने फरमाया कि तुम इन बकरियों को किला की तरफ हाँक दो। और इनको कंकरियों से मारो ये सब खुद ब-खुद अपने मालिक के घर पहुँच जाएँगी। चुनान्चे ये हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का मुअजिजा था कि उन्हों बकरियों को कंकरियाँ मारकर हाँक दिया। और वो सब अपने मालिक के घर पहुँच गईं।
इसके बाद ये खुश नसीब हब्शी हथियार पहनकर मुजाहिदीने इस्लाम की सफ में खड़ा हो गया। और इन्तिहाई जोश-खरोश के साथ जिहाद करते हुए शहीद हो गया।
जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इसकी ख़बर हुई तो फ़रमाया कि “अमिला कलीलवं व उजिरा कसीरा” यानी इस शख्स ने बहुत ही कम अमल किया। और बहुत ज़्यादा अज दिया गया। फिर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनकी लाश को खीमे में लाने का हुक्म दिया। और उनकी लाश के सिरहाने खड़े होकर आपने ये बिशारत सुनाई कि अल्लाह तआला ने इसके काले चेहरे को हसीन बना दिया। इसके बदन को खुश्बूदार बना दिया। और दो हरें इसको जन्नत में मिलीं। इस शख्स ने ईमान और जिहाद के सिवा कोई दूसरा अमल नहीं किया। न एक वक्त की नमाज़ पढ़ी, न एक रोजा रखा, न हज्ज व ज़कात का मौका मिला। मगर ईमान और जिहाद के सबब से अल्लाह तआला ने इसको इतना बुलन्द मरतबा अता फरमाया। (मदारिजुन्नुबूब्बत जि.२ स. २४०)
عملية و أجویژه
इस्लामी लश्कर का हैंड क्वार्टर
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को पहले ही से ये इल्म था कि कबीलए गतफान वाले ज़रूर ही खैबर वालों की मदद को आएँगे इस लिए आपने खैबर और गतफान के दर्मियान मकामे “रजीअ में अपनी फौजों का हैंड क्वार्टर बनाया और खीमों, बार
बरदारी सामानों और औरतों को भी यहीं रखा था। और यहीं से निकल निकलकर यहूदियों के किलओं पर हमला करते थे।
(मदारिजुन्नुबूव्वत जि. २ स.२३९) किलो नाइम के बाद दूसरे किलो भी ब आसानी और बहुत जल्द फतह हो गए। लेकिन किलआ “कमूस” चूंकि बहुत ही मजबूत और महफूज किलआ था। और यहाँ यहूदियों की फौजें भी बहुत ज्यादा थीं। और यहूदियों का सब से बड़ा बहादुर “भुरहहब खुद इस किलो की हिफाजत करता था इस लिए इस किलो को फतह करने में बड़ी दुशवारी हुई कई रोज़ तक ये मुहिम सर न हो सकी, हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इस किलो पर पहले दिन हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की कमान में इस्लामी फौजों को चढ़ाई के लिए भेजा और उन्होंने बहुत ही शुजाअत और जाँ बाज़ी के साथ हमला फ़रमाया। मगर यहूदियों ने किलओ की फ़सील पर से इस जोर की तीरन्दाज़ी और संगाबारी की कि मुसलमान किलो के फाटक तक न पहुँच सके । और रात हो गई। दूसरे दिन हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने जबरदस्त हमला किया। और मुसलमान बड़ी गर्मजोशी के साथ बढ़ बढ़कर दिन भर किलो पर हमला करते रहे। मगर किलआ फतह न हो सका और क्यों कर फतह होता? फातहे खैबर होना तो अली हैदर के मुकद्दर में लिखा था। चुनान्चे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि:ल-उतयन्नर रायता इन्दा रजुलन यफ-तहुल्लाहु अला यदैहि युहि बुल्लाहा व रसू-लुहू व युहिबुल्लाहु व रसू-लुहू काला। फबातन्नासु यदूकूना लै-ल-त-हमु अय्युहम युअताहा (बुख़ारी जि.२ स. ६०५ गजवए खैबर)
(“कल मैं उस आदमी को झण्डा दूँगा जिसके हाथ पर अल्लाह तआला फतह देगा। वो अल्लाह व रसूल का मुहिब भी है और महबूब भी।) रावी ने कहा कि लोगों ने ये रात बड़े इज्तिराब में गुज़ारी कि देखिए कल किस को झण्डा दिया जाता है।”
सुबह हुई तो सहाबए किराम ख़िदमते अकदस में बड़े इश्तियाक के साथ तमन्ना लेकर हाज़िर हुए कि ये एअज़ाज़ व शरफ हमें मिल जाए। इस लिए कि जिसको झण्डा मिलेगा उसके लिए तीन बिशारतें हैं। (१) वो अल्लाह व रसूल का मुहिब है। (२) वो अल्लाह व रसूल का महबूब है। (३) खैबर उसके हाथ से फतह हागा।
हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु का बयान है कि उस रोज़ मुझे बड़ी तमन्ना थी कि काश आज मुझे झण्डा इनायत होता। वो ये भी फरमाते हैं कि इस मौकअ के सिवा मुझे कभी भी फौज की सरदारी और अफ़सरी की तमन्ना न थी। हज़रते सद रदियल्लाहु अन्हु के बयान से मालूम होता है कि दूसरे सहाबए किराम भी इस नेअमते उजमा के लिए तरस रहे थे।
(मुस्लिम जि.२. स. २७८,२७९ बाब मिन फ़ज़ाएले अली) लेकिन सुबह को अचानक ये सदा लोगों के कान मे आई कि अली कहाँ हैं? लोगों ने अर्ज़ किया कि उनकी आँखों में आशोब है। आपने कासिद भेजकर उनको बुलाया। और उनकी दुखती हुई आँखों में अपना लुआबे दहन लगा दिया और दुअ फ़रमाई तो फौरन ही उन्हें ऐसी शिफा हासिल हो गई कि गोया उन्हें कोई तकलीफ थी ही नहीं। फिर ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक. से अपना अलमे नबवी जो हज़रते उम्मुल मुमिनीन बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा की सियाह चादर से तय्यार किया गया था हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु
के हाथ में अता फरमाया। (जरकानी जि.२ स. २२२) और इर्शाद फरमाया कि
(‘तुम बड़े सुकून के साथ जाओ और उन यहूदियों को इस्लाम की दअवत दो। और बताओ कि मुसलमान हो जाने के
बाद तुम पर फुलाँ फुलाँ अल्लाह के हुकूक वाजिब हैं। खुदा की कसम। अगर एक आदमी ने भी तुम्हारी बदौलत इस्लाम कुबूल कर लिया तो तुम्हारे लिए सुर्ख ऊँटों से भी ज्यादा बेहतर है।
(बुखारी जि.२ स. ६०५ गजवए खैबर)
हज़रते अली और मुरहहब की जंग
हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु ने “किलो कमूस” के पास पहुँचकर यहूदियों को इस्लाम की दवत दी। लेकिन उन्होंने इस दअवत का जवाब ईंट ओर पत्थर और तीर- तलवार से दिया। और किलो का रईसे अअज़म “मुरहूहब” खुद बड़े तनतने के साथ निकला। सर पर यमनी ज़र्द रंग का ढाटा बाँधे हुए और उसके ऊपर पत्थर का खुद पहने हुए रजज़ का ये शेअर पढ़ते हुए हमले के लिए आगे बढ़ा कि
कद अलिम्ता खै-बरु अन्नी मुरहहब
शाकीस-सिलाहि बतल्लुम मुजर्रब (खैबर खूब जानता है कि मैं “मुरहहब” हूँ। असलह पोश हूँ। ही बहादुर और तजरूबाकार हूँ।)
हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने इसके जवाब में रजज़ का ये शेअर पढ़ा कि –
बहुत
अनल्लीज़ी सम्मतनी उम्मी हैद-र-ह
कलैसि गाबातिन करीहिल मन-ज़-रह (मैं वो हूँ कि मेरी माँ ने मेरा नाम हैदर (शेर) रखा है। मैं कछार के शेर की तरह हैबतनाक हूँ )
मुरहहब ने बड़े तमतराक के साथ आगे बढ़कर शेरे खुदा पर तलवार से वार किया। मगर आप ने ऐसा पैंतरा बदला कि
मुरहहब
बाद तुम पर फुलाँ फुलाँ अल्लाह के हुकूक वाजिब हैं। खुदा की कसम! अगर एक आदमी ने भी तुम्हारी बदौलत इस्लाम कुबूल कर लिया तो तुम्हारे लिए सुर्ख ऊँटों से भी ज्यादा बेहतर है।”
(बुख़ारी जि.२ स. ६०५ गजवए खैबर)
हज़रते अली और मुरहहब की जंग
हजरते अली रदियल्लाहु अन्हु ने “किलो कमूस” के पास पहुँचकर यहूदियों को इस्लाम की दवत दी। लेकिन उन्होंने इस दश्वत का जवाब ईंट ओर पत्थर और तीर– तलवार से दिया। और किलो का रईसे अअज़म “मुरहूहब” खुद बड़े तनतने के साथ निकला। सर पर यमनी जर्द रंग का ढाटा बाँधे और उसके ऊपर पत्थर का खुद पहने हुए रजज़ का ये शेअर पढ़ते के लिए आगे बढ़ा कि
हुए हमले
شاکی استلاع بن جب
تزعلت بر این شرکب
कद अलिम्ता खै-बरु अन्नी मुरहहब
शाकीस-सिलाहि बतल्लुम मुजर्रब (खैबर खूब जानता है कि मैं “मुरह्हब” हूँ। असलह पोश हूँ। बहुत ही बहादुर और तजरूबाकार हूँ।)
हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने इसके जवाब में रजज़ का ये शेअर पढ़ा कि
ليث غابات گه يوفر
أنا الزي منين ان كيده
अनल्लीज़ी सम्मतनी उम्मी हैद-र-ह
कलैसि गाबातिन करीहिल मन-ज़-रह (मैं वो हूँ कि मेरी माँ ने मेरा नाम हैदर (शेर) रखा है। मैं कछार के शेर की तरह हैबतनाक़ हूँ )
मुरहहब ने बड़े तमतराक के साथ आगे बढ़कर शेरे खुदा पर तलवार से वार किया। मगर आप ने ऐसा पैंतरा बदला कि मुरह्हब
का वार खाली गया। फिर आपने बढ़कर उस के सर पर इस ज़ोर की तलवार मारी कि एक ही ज़ब से खुद कटा, मगफर कटा और जुल फिकारे हैदरी सर को काटती हुई दाँतों तक उतर आई और तलवार की मार का तड़ाका फौज तक पहुँचा। और मुरहहब ज़मीन पर गिरकर ढेर हो गया। (मुस्लिम जि. २ व स. २७८)
मुरहूहब की लाश को ज़मीन पर तड़पते हुए देखकर उसकी तमाम फौज हज़रते शेरे खुदा पर टूट पड़ी लेकिन जुल फिंकारे हैदरी बिजली की तरह चमक चमक कर गिरती थी जिस से सफें की सफें उलट गईं और यहूदियों के मायए नाज़ बहादुर मुरहहब, हारिस, उसैर, आमिर वगैरा कट गए। इसी घमसान की जंग में हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु की ढाल कट कर गिर पड़ी। तो आपने आगे बढ़कर किलो कमूस का फाटक उखाड़ डाला। और किवाड़ को ढाल बनाकर उस पर दुश्मनों की तलवार रोकते रहे। ये किवाड़ इतना बड़ा और वज़नी था कि बाद को चालीस आदमी इस को न उठा सके। (जरकानी, जि.२.स. २३०) जंग जारी थी कि हज़रते अली शेरे खुदा ने कमाले शुजाअत के साथ लड़ते हुए खैबर को फतह कर लिया। और हज़रते सादिकुल वद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का फरमाने सदाक़त का निशान बनकर फजाओं में लहराने लगा कि –
“कल मैं उस आदमी को झण्डा दूँगा जिसके हाथ पर अल्लाह तआला फ़तह देगा। वो अल्लाह व. रसूल का मुहिब भी है और अल्लाह के रसूल का महबूब भी है।”
बेशक हज़रत मौलाए काएनात रदियल्लाहु अन्हु अल्लाह व रसूल के मुहिब भी हैं और महबूब भी हैं और बिला शुब्हा अल्लाह तआला ने आपके हाथ से खैबर की फतह अता फरमाई और कियामत तक के लिए अल्लाह तआला ने आपको फतह खैबर के मुअज्जज लकब से सरफराज़ फरमा दिया। और ये वो फतहे अज़ीम है जिसने पूरे “जज़ीरतुल अरब में यहूदियों की जंगी ताकत का जनाज़ा निकाल दिया। फतह खैबर से कब्ल इस्लाम
यहूदियों और मशरिकीन के गठ जोड़ से नरगा की हालत में था। लेकिन खैबर फतेह हो जाने के बाद इस्लाम इस खौफनाक नर्गे से निकल गया और आगे इस्लामी. फुतूहात के दरवाजे खुल गए। चुनान्चे इस के बाद ही मक्का भी फतह हो गया। इस लिए एक मुसल्लमा हकीकत है कि फातहे खैबर की जात से तमाम इस्लामी फुतूहात का सिलसिला वाबस्ता है।
बहर हाल खैबर का किलअ कमूस बीस दिन के मुहासरे और जबरदस्त मअका आराई के बाद फतह हो गया। इन मअरकों में तिानवे यहूदी कत्ल हुए और पन्द्रह मुसलमान जामे शहादत से सैराब हुए। (जुरकानी जि.२ स.२२८)