हिजरत का आठवाँ साल part 1

सन्न ८ हिजरी

हिजरत का आठवाँ साल भी हुजूर सरवरे काएनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुकद्दस हयात के बड़े बड़े वाकिआत पर मुश्तमिल है। हम उनमें से यहाँ चन्द अहमियत व शोहरत वाले वाकिआत का तज़्किरा करते हैं।

जंगे मूता

*मूता मुल्के शाम में एक मकाम का नाम है। यहाँ – हिजरी में कुफ्र इस्लाम का वो अजीमुश्शान मअरका हुआ. जिस में एक लाख लश्करे कुफ्फार से सिर्फ तीन हज़ार जाँ निसार मुसलमानों ने अपनी जान पर खेल कर ऐसी म का आराई की कि ये लड़ाई तारीखे इस्लाम में एक तारीख़ी यादगार बनकर कियामत तक बाकी रहेगी। और इस जंग में सहाबए किराम की बड़ी बड़ी ऊलुल अज़्म हस्तियाँ शर्फे शहदत से सरफ़राज़ हुई।

इस जंग का सबब इस जंग का सबब ये हुआ कि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने “बुसरा’ के बादशाह या कैसरे रूम के नाम एक ख़त लिखकर हज़रते हारिस बिन उमैर रदियल्लाहु अन्हु के ज़रीओ रवाना फरमाया। रास्ते में “बलका’ के बादशाह शुरजील

पसलम

बिन अमर गस्सानी ने जो कैसरे रूम का बाजगुजार था। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इस कासिद को निहायत बेदर्दी के साथ रस्सी में बाँधकर कत्ल कर दिया। जब बारगाहे रिसालत में इस हादसे की इत्तलाअ पहुंची तो कल्बे मुबारक पर इन्तिहाई रंज व सदमा पहुँचा। उस वक्त आपने तीन हजार मुसलमानों का लश्कर तय्यार फरमाया। और अपने दस्ते मुबारक से सफेद रंग का झण्डा बाँधकर हज़रते जैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु के हाथ में दिया। और उनको इस फौज का सिपह सालार बनाया। और इर्शाद फरमाया कि अगर जैद बिन हारिसा शहीद हो जाएँ तो हज़रते जअफर सिपह सालार होंगे। और जब वो शहदत से सरफ़राज़ हो जाएँ। तो इस झण्डे के अलमबरदार हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा होंगे। (रदियल्लाहु अन्हुम) इनके बाद लश्करे इस्लाम जिस को मुन्तख़ब करे वो सिपह सालार होगा।

इस लश्कर को रुख़्सत करने के लिए खुद हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मकाम “सनीयतुल वदाअ तक तशरीफ ले गए और लश्कर के सिपह सालार को हुक्म फ़रमाया कि तुम हमारे कासिद हज़रते हारिस बिन उमैर (रदियल्लाहु अन्ह) की शहादत गाह में जाओ। जहाँ उस जाँ निसार ने अदाए फ़र्ज़ में अपनी जान दी है। पहले वहाँ के कुफ्फार को इस्लाम की दअवत दो। अगर वो लोग इस्लाम कबूल कर लें तो फिर वो तुम्हारे इस्लामी भाई हैं। वरना तुम अल्लाह की मदद तलब करते हुए उनसे जिहाद करो। जब लश्कर चल पड़ा तो मुसलमानों ने बुलन्द आवाज़ से ये दुआ दी “खुदा सलामत और कामयाब वापस लाए!”

जब ये फौज मदीना से कुछ दूर निकल गई ते खबर मिली कि

खुद कैसरे रूम मुशरिकीन की एक लाख फौज लेकर बलका की सर ज़मीन में खेमी ज़न हो गया है। ये खबर पाकर अमीरे लश्कर हज़रते जैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु ने अपने लश्कर को पडाव का हुक्म दे दिया औ इरादा किया कि बारगाहे रिसाल

में इसकी इत्तला दी जाए और हुक्म का इन्तिज़ार किया जाए मगर हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि हमारा मकसद फतहे या माले गनीमत नहीं है बल्कि हमारा मतलूब तो शहादत है। क्योंकि

शहादत है मकसूदो मतलूबे मोमिन

न माले गनीमत, न किशवर कुशाई और ये मकसदे बुलन्द हर वक़्त और हर हालत में हासिल हो सकता है। हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु की ये तकरीर सुनकर हर मुजाहिद जोशे जिहाद में बेखुद हो गया और सब की जबान पर यही तराना था कि

बढ़ते चलो मुजाहिदीने। बढ़ते चलो मुजाहिदो! गरज़ ये मुजाहिदाना इस्लाम मूता की सर जमीन में दाखिल हो गए। और वहाँ पहुँचकर देखा कि वाकई एक बहुत बड़ा लश्कर रेशमी ज़र्क बर्क वर्दियाँ पहने हुए बे पनाह तय्यारीयों के साथ जंग के लिए खड़ा है। एक लाख से ज़ाएद लश्कर का भला तीन हज़ार से मुकाबला ही क्या? मगर मुसलमान खुदा के भरोसे पर मुकाबला के लिए डट गए।

मअरका आराई का मंजर

सब से पहले मुसलमानों के अमीरे लश्कर हज़रते जैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु ने आगे बढ़कर कुफ्फार के लश्कर को इस्लाम की दअवत, दी। जिसका जवाब कुफ्फार ने तीरों की मार और तलवारों की वार से दिया। ये मंज़र देखकर मुसलमान भी जंग के लिए तय्यार हो गए और लश्करे इस्लाम के सिपह सालार हजरते जैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु घोड़े से उतरकर पा प्यादा मैदाने जंग में कूद पड़े। और मुसलमानों ने भी निहायत जोश व खरोश के साथ लड़ना शुरू कर दिया। लेकिन इस घमसान की लड़ाई में काफिरों ने हज़रते जैद बिन हारिसा

रदियल्लाहु अन्हु को नीज़ों और बरछों से छेद डाला। और वो जवाँ भी के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए। फौरन ही झपटकर हजरते जअफर बिन अबी तालिब रदियल्लाहु अन्ह ने परचमे इस्लाम को उठा लिया। मगर उनको एक रूमी मुशरिक ने ऐसी तलवार मारी कि ये कटकर दो टुकड़े हो गए। लोगों का बयान है कि हमने उनकी लाश देखी थी उनके बदन पर नीजों और तलवारों के नब्वे से कुछ ज़ाएद ज़ख्म थे। लेकिन कोई ज़ख्म उनकी पीठ के पीछे नहीं लगा था। बल्कि सब के सब जख्म सामने ही की जानिब लगे थे। हज़रते जअफ़र रदियल्लाहु अन्हु के बाद हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अनहु ने अलमे इस्लाम हाथ में लिया। फौरन ही उनके चचा जाद भाई ने गोश्त से भरी हुई एक हड्डी पेश की और अर्ज किया कि भाई जान! आपने कुछ खाया पिया नहीं है। लिहाजा उसको खा लीजिए। आपने एक ही मरतबा दाँत से नोचकर खाया था कि कुफ्फार के बे पनाह हुजूम आप पर टूट पड़ा। आपने हड्डी फेंक दी और तलवार निकालकर दुश्मनों के न में घुसकर रजज़ के अशआर पढ़ते हुए इन्तिहाई दिलेरी और जाँ बाज़ी के साथ लड़ने लगे। मगर ज़ख्मों से निढाल होकर ज़मीन पर गिर पड़ें और शरबते शहादत से सैराब हो गए। (बुखारी जि: २ स. ६११ गजवए मूता व जुरकानी जि. २ स २८१ ता स २७४)

अब लोगो के मशवरे से हज़रते खालिद बिनुल वलीद रदियल्लाहु अन्हु झण्डे के अलमबरदार बने और इस कदर शुजाअत और बहादुरी के साथ लड़े कि नौ तलवारें टूट टूटकर उनके हाथ से गिर पड़ीं। और अपनी जंग महारत और कमाले हुनरमंदी से इस्लामी फौज को दुश्मनों के नगें से निकाल लाए।

(बखारी जि.२ २ स. ६११ गजए मूता) इस जंग में जो बारह मुअज्ज़ज़ सहाबए किराम शहीद हुए उनके मुकद्दस नाम ये हैं। (१) हज़रते जैद बिन हारिसा (२) हजरते जअफर बिन अबी तालिब (३) हजरते अब्दुल्लाह बिन स्वाहा (४) हज़रते मसऊद बिन अवस ( हजरते वहब बिन सद

(६) हज़रते अब्बाद बिन कैस (७) हज़रते हारिस बिन नुअमान सीरतुल मुस्तफा अलैहि वसल्लम

392 (८) हजरते सुराका बिन उमर (९) हज़रते अबू कुलैब बिन उमर (१०) हज़रते जाबिर बिन उमर (११) हज़रते उमर बिन सअद (१२) हुबजबा जब्बी (रदियल्लाहु अनहुम अजमईन) (जरकानी जि.२ स २०३)

इस्लामी लश्कर ने बहुत से कुफ्फार को क़त्ल किया। और कुछ माले गनीमत भी हासिल किया। और सलामती के साथ मदीना वापस आ गए।

निगाहे नुबूव्वत का मुअजिज़ा जंगे

मूता में जब घमसान का रन पड़ा तो हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मदीना से मैदाने जंग को देख लिया और आपकी निगाहों से तमाम हिजाबात इस तरह उठ गए कि मैदाने जंग की एक एक सरगुज़िश्त को आपकी निगाहे नुबूव्वत ने देखा । चुनान्चे बुख़ारी की रिवायत है कि हज़रते ज़ैद व हज़रते जअफ़र अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हुम की शहादतों की ख़बर आपने मैदाने जंग से ख़बर आने से कब्ल ही अपने अस्हाब को सुना दी।

चुनान्चे आप ने इन्तिहाई रंज- गम की हालत में सहाबए किराम के भरे मजमअ. में ये इर्शाद फरमाया कि जैद ने झण्डा लिया और वो शहीद हो गए। फिर हज़रते जफर ने झण्डा उठाया और वो भी शहीद हो गए। फिर अब्दुल्लाह बिन रवाहा अलम बरदार बने और वो भी शहीद हो गए। यहाँ तक कि झण्डे को खुदा की तलवारों में से एक तलवार (खालिद बिन वलीद) ने अपने हाथों में लिया। हुजूर सल्लल्लाहुं तआला अलैहि वसल्लम सहाबए किराम को ये ख़बरें सुनाते रहे। और आपकी आँखों से आँसू जारी थे।

(बुख़ारी जि.२ स. ६११ गजवर मूत्रा) मूसा बिन उकबा ने अपने मगाज़ी में लिखा है कि जब हज़रते युअला बिन उमैय्या रदियल्लाहु अन्हु जंगे मूता की खबर लेकर

दरबारे नुबूब्बत में पहुंचे तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनसे फ़रमाया कि तुम मुझे वहाँ की खबर सुनाओगे? या मैं तुम्हें वहाँ की खबर सुनाऊँ । हज़रते युअला रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह! (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) आप ही सुनाईए। जब आपने वहाँ का पूरा पूरा हाल व माहौल सुनाया तो हज़रते युअला ने कहा कि उस ज़ात की कसम जिसने आपको हक के साथ भेजा है कि आपने एक बात भी नहीं छोडी कि जिसको मैं बयान करूँ। (जरकानी जि. २ स. २७६)

हज़रते जफ़र शहीद रदियल्लाहु अन्हु की बीवी हजरते अस्मा बिन्ते उमैस रदियल्लाहु अन्हा का बयान है कि मैं ने अपने बच्चों को नहला धुलाकर तेल काजल से आरास्ता करके आटा गूंध लिया था कि बच्चों के लिए रोटीयाँ पकाऊँ कि इतने में रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे घर में तशरीफ लाए। और फ़रमाया कि जअफ़र के बच्चों को मेरे सामने लाओ। जब मैं ने बच्चों को पेश किया तो आप बच्चों को सूंघने और चूमने लगे। और आपकी आँखों से आँसूओं की धार रुखसार पुर अनवार पर बहने लगी। तो मैं ने अर्ज किया कि क्या हज़रते जअफ़र और उनके साथियों के बारे में कोई खबर आई है? तो इर्शाद फरमाया कि हाँ! वो लोग शहीद हो गए हैं। ये सुनकर मेरी चीख निकल गई और मेरा घर औरतों से भर गया। इसके बाद हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अपने काशानए नुबूब्बत में तशरीफ ले गए और अज़वाजे मुतहहरात से फ़रमाया कि जफर के घर वालों के लिए खाना तय्यार कराओ। (जरकानी जि २ स. ३७७)

जब हज़रते ख़ालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु अपने लश्कर के साथ मदीना को करीब पहुँचे। तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम घोड़े-पर सवार हो कर उन लोगों के इस्तिकबाल के लिए तशरीफ ले गए। और मदीने के मुसलमान और छौटे बच्चे भी दोड़ते हुए मुजाहिदीने इस्लाम की मुलाकात के लिए गए। और हज़रते. हस्सान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु ने

जाते हैं।

जंगे मूता के शोहदाए किराम का ऐसा पुर दर्द मरसिया सुनाया

कि तमाम सामईन रोने लगे।

(ज़रकानी जि.२ स. २७७) हज़रते जअफर रदियल्लाहु अन्हु के दोनों हाथ शहादत के वक्त कटकर गिर पड़े थे। तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनके बारे में इर्शाद फरमाया कि अल्लाह तआला ने हज़रत जअफर को उनके दोनों हाथों के बदले दो बाजू अता फरमाए हैं। जिन से उड़ उड़कर वो जन्नत में जहाँ चाहते हैं चले

(ज़रकानी जि.२ स. २७४) यही वजह है कि हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हुम जब हज़रते जअफर दियल्लाहु अनहु के साहिबजादे हजरते अब्दुल्लाह को सलाम करते थे तो ये कहते थे कि “

  • “अस्सलामु अलैका या इब्ने ज़िल जनाहीन यानी ऐ दो बाजू वाले के फ़रज़नद! तुम पर सलाम हो।

(बुख़ारी जि.२ स. ६११. गजवए मूता) जंगे मूता और फतहे मक्का के दर्मियान चंद छोटी छोटी जमाअतों को हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कुफ्फार की मदाफ़अत के लिए मुख्तलिफ़ मकामात पर भेजा। उनमें से बअज लश्करों के साथ कुफ्फार का टकराव भी हुआ जिनका मुफ़स्सल तज्किरा ज़रक़ानी व मदारिजुन-नुबूव्वत वगैरा में लिखा हुआ है। इन सरीय्यों के नाम ये हैं। ज़ातुल सलासिल । सरीय्यतुल ख़ब्त। सरीय्या अबू कतादा (नज्द) सरीय्यए अबू कतादा (इज़म) मगर इन सरीय्यों में “सरय्यतुल ख़बत ज़्यादा मशहूर है जिनका मुख्तसर बयान ये है।

عليك يا ابن ذی الجناحين

والسلام

सरीय्यतुल ख़बत

इस सरीय्ये को हज़रते इमाम बुखारी ने ग़ज़वए सैफुल बहर’ के नाम से जिक्र किया है। रजब सन्न ८ हिजरी में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू उबैदा बिनुल

जर्राह रदियल्लाहु अन्हु को तीन सौ सहाबए किराम के लश्कर पर अमीर बनाकर साहिले समुन्दर के जानिब रवाना फरमाया। ताकि ये लोग कबीलए जुहैना क कुफ्फार की शरारतों पर नजर रखें। इस लश्कर में खुराक की इस कदर कमी पड़ गई कि अमीरे लश्कर मुजाहिदीन को रोज़ाना एक एक खजूर राशन में देते थे यहाँ तक कि एक वक्त ऐसा भी आ गया कि ये खजूर भी खत्म हो गई और लोग भूक से बेचैन हो कर दरख्तों के पत्ते खाने लगे। और यही वजह है कि आम तौर पर मुअर्रिणीन ने इस सरीय्ये का नाम “सरीय्यतुल ख़बत” या “जैशुल ख़बत” रखा है। खबत’ अरबी ज़बान मे दरख्त के पत्तों को कहते हैं। चूंकि मुजाहिदीने इस्लाम ने इस सरीय्ये में दरख्तों के पत्ते खाकर जान बचाई। इस लिए ये सरीय्यतुल ख़बत के नाम से मशहूर हो गया।

एक अजीबल खिलकत मछली

हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु का बयान है कि हम लोगों को इस सफर में तकरीबन एक महीना रहना पड़ा। और जब भूक की शिद्दत से हम लोग दरख्तों के पत्ते खाने लगे। तो अल्लाह तआला ने गैब से हमारे रिज़्क़ का ये सामान पैदा फरमा दिया कि समुन्दर की मौजों ने एक इतनी बड़ी मछली साहिल पर फेंक दी जो एक पहाड़ी के मानिन्द थी चुनान्चे तीन सौ सहाबा अठारह दिनों तक उस मछली का गोश्त खाते रहे। और उसकी चर्बी अपने बदन पर मलते रहे और जब वहाँ से रवाना होने लगे तो उसका गोश्त काट काट कर मदीना तक लाए। और जब ये लोग बारगाहे नुबूब्बत में पहुँचे। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से इसका तज्किरा किया तो आपने इर्शाद फरमाया कि ये अल्लाह तआला की तरफ से तुम्हारे लिए रिज्क का सामान हुआ था फिर आपने उस मछली का गोश्त तलब फरमाया। और उसमें से कुछ तनावुल भी फरमाया ये इतनी बड़ी मछली थी कि

अमीरे लश्कर हज़रते उबैदा रदियल्लाहु अन्हु ने उसकी दो पस्लीयाँ ज़मीन में गाड़कर खड़ी करदें। तो कुजा वो बंधा हुआ ऊँट उसके मेहराब से गुजर गया। (बुखारी जि.२ स. ६२५ गजवए सैफुल बहर, व ज़रकानी जि. २ स. २८०)

फतहे मक्का

(रमज़ान सन्न ८ हिजरी मुताबिक जनवरी ६३० ई.)

रमज़ान सन्न ८ हिजरी तारीखे नुबूव्वत का निहायत ही अजीमुश्श्ान उनवान है। और सीरते मुकद्दसा का ये वो सुनहरा बाब है कि जिसकी आब- ताब से हर मोमिन का कल्ब कियामत तक मुसर्रतों का आफ़ताब बना रहेगा। क्योंकि ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इस तारीख से आठ साल कब्ल इन्तिहाई रन्जीदगी के आलम में अपने यारे गार को साथ लेकर रात की तारीकी में मक्का से हिजरत फरमाकर अपने वतने अज़ीज़ को खैरबाद कह दिया था और मक्का से निकलते वक़्त खुदा के मुकद्दस घर ख़ाना कबा पर एक हसरत भरी निगाह डालकर ये फ़रमाते हुए मदीना रवाना हुए थे। कि “ऐ मक्का! खुदा की कसम! तू मेरी निगाहे मुहब्बत में तमाम दुनिया के शहरों से ज़्यादा प्यारा है। अगर मेरी कौम मुझे न निकालती तो मैं हरगिज़ तुझे न छोड़ता। लेकिन आठ बरस के बाद यही वो मसर्रत खेज़ तारीख है कि आपने एक फातहे अअज़म की शान- शौकत के साथ इसी शहरे मक्का में नजूले इजलाल फ़रमाया। और कअबतुल्लाह में दाखिल होकर अपने सज्दों के जमाल- जलाल से खुदा के मुकद्दस घर की अज़मत को सरफ़ाज़ फ्रमाया। लेकिन नाजरीन के जेहनों में ये सवाल सर उठाता होगा। कि जब कि हुदैबिया के सुलहनामे में ये तहरीर किया जा चुका था कि दस बरस तक फरीकैन के माबैन कोई जंग न होगी। तो फिर आखिर

वो कौनसा ऐसा सबब नुमूदार हो गया? कि सुलहनामा के फ़कत दो ही साल बाद ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को अहले मक्का के सामने हथियार उठाने की जरूरत पेश आ गई। और आप एक अज़ीम लश्कर के साथ फातेहाना हैसियत से मक्का में दाखिल हुए।

तो इस सवाल का जवाब ये है कि इस का सबब कुफ्फारे मक्का की “अहद शिकनी और हुदैबिया के सुलहनामे से गद्दारी है।

कुफ्फारे कुरैश की अहद शिकनी

सुलह हुदैबिया के बयान में आप पढ़ चुके कि हुदैबिया के सुलहनामे में ऐक ये शर्त भी दर्ज थी कि कबाइले अरब में से जो कबीले कुरैश के साथ मुआहदा करना चाहे वो कुरैश के साथ मुआहदा कर ले। और जो हज़रते मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मुआहदा करना चाहे वो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ मुआहदा कर ले।

चुनान्चे इसी बिना पर कबीले बनी बकर ने कुरैश से बाहमी इमदाद का मुआहदा कर लिया। और कबीलएबनी खुजाआ ने रसूलुल्लाह सलल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से इमदादे बाहमी का मुआहदा कर लिया। ये दोनों क़बीले मक्का के करीब ही आबाद थे। लेकिन उनदोनों में अर्सए दराज़ से सख्त अदावत और मुखालिफ़त चली आ रही थी।

एक मुद्दत से तो कुफ्फारे कुरैश और दूसरे कबाइले अरब के कुफ्फार मुसलमानों से जंग करने में अपना सारा ज़ोर सर्फ कर कर रहे थे। लेकिन सुलहे हुदैबिया की बदौलत जब मुसलमानों की जंग से कुफ्फारे कुरैश और दूसरे कबाएले कुफ्फार को इत्मिनान मिला तो कबीलए बनी बकर ने कबीलए बनी खुजाआ से अपनी पुरानी अदावत का इन्तिकाम लेना चाहा और अपने हलीफ कुफ्फारे कुरैश के तमाम रुऊसा (अमीरों) यानी इकरमा बिन अबी जहल,

सीरतुल मुस्तफा अलैहि वसल्लम व सफवान बिन उमय्या व सुहैल बिन अमर वगैरा वगैरा बड़े सरदारों ने एअलानिया बनी खुजाआ को कत्ल किया। बेचारे बनी खुजाआ इस खौफनाक जालिमाना हमले की ताब न ला सके और अपनी जान बचाने के लिए हरमे कबा में पनाह लेने के लिए भागे। बनी बकर के अवाम ने तो हरम में तलवार चलाने से हाथ रोक लिया। और हरमे इलाही का एहतराम किया। लेकिन बनी बकर का सरदार “नौफ़ल” इस कदर जोशे इन्तिकाम में आपे से बाहर हो चुका था। कि वो हरम में भी बनी खुजाआ को निहायत बेदर्दी के साथ कत्ल करता रहा। और चिल्ला चिल्लाकर अपनी कौम को ललकारता रहा कि फिर ये मौकअ कभी हाथ नहीं आ सकता। चुनान्चे उन दरिन्दा सिफत खूख्वार इन्सानों ने हरमे इलाही के एहतराम को भी खाक में मिला दिया। और हरमे कबा

हुदूद में निहायत ही ज़ालिमाना तौर पर बनी खुजाआ का खून बहाया। और कुफ्फारे कुरैश ने भी इस क़त्लने गारत और कुश्त- खून में खूब खूब हिस्सा लिया। (ज़रकानी जि.२ स २८९)

जाहिर है कि कुरैश ने अपनी इस हरकत से हुदैबिया के मुआहदे को अमली तौर पर तोड़ डाला। क्योंकि बनी ख़सुज़ाआ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मुआहदा करके आपके हलीफ बन चुके थे। इस लिए बनी खुजाआ पर हमला करना। ये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर हमला करने के बराबर था। इस हमले में बनी खुजाआ के तेईस आदमी कत्ल हो गए।

इस हादसे के बाद कबीलए बनी खुजाआ के सरदार अमर बिन सालिम खुज़ाई चालीस आदमियों का वफ़्द लेकर फर्याद करने और इमदाद तलब करने के लिए मदीना बारगाहे रिसालत में पहुंचे और यही फ़तहे मक्का की तमहीद हुई।

ताजदारे दो आलम से इस्तिआनत (इम्दाद)

हजरते बीबी मैमूना रदियल्लाहु अन्हा का बयान है कि एक

रात हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम काशानए नुबूब्बत में वुजू फरमा रहे थे। कि एक दम बिल्कुल नागहाँ आपने बुलन्द आवाज़ से तीन मर्तबा ये फरमाया कि “लब्बैक, लब्बैक, लब्बैक’ (मैं तुम्हारे लिए हाज़िर हूँ) फिर तीन मर्तबा बुलन्द आवाज़ से आपने ये इर्शाद फरमाया कि – ‘नुसिर-ता. नुसिर-ता, नुसिर-ता* (तुम्हें मदद मिल गई) जब आप वुजू खाना से निकले। तो मैंने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम आप तन्हाई में किस से गुफ्तगू फरमा रहे थे? तो इर्शाद फ़रमाया कि ऐ मैमूना! गज़ब हो गया। मेरे हलीफ बनी खुजाआ पर बनी बकर और कुफ्फारे कुरैश ने हमला कर दिया है और इस मुसीबत व बेकसी के वक्त में बनी खुजाआ ने वहाँ से चिल्ला चिल्ला कर मुझे मदद के लिए पुकार है। और मुझ से मदद तलब की है। और मैंने उनकी पुकार सुनकर उनकी ढारस बंधाने के लिए उनका जवाब दिया है। हज़रते बीबी मैमूना रदियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि इस वाकिआ के तीसरे दिन जब हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नमाज़े फ़ज के लिए मस्जिद में तशरीफ ले गए। और नमाज़ से फारिग हुए। तो दफ़अतन बनी खुजाआ के मज़लूमीन ने रजज़ के इन अशआर को बुलन्द आवाज़ से पढ़ना शुरू कर दिया। और हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और असहाबें किराम ने उनकी इस पुर दर्द और रिक्कत अंगेज़ फर्याद को. बगौर सुना। आप भी रजज़ के चन्द अश्आर को मुलाहज़ा फ़रमाईए :

या रबि इन्नी नाशिदुन मुहम्मदन

हिल्फा अबीना व अबीहिल अत-लदा (ऐ खुदा! मैं मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) को वो मुआहदा याद दिलाता हूँ। जो हमारे और उनके बाप दादाओं के दर्मियान कदीम जमाने से हो चुका है।)

ان كان الاطر ابدا .وان عباد الله با نزاد کا

फन्सुर हदाकल्लाहु नसरन अब्बदा

व इबादल्लाहि य-तू मद्ददा तो खुदा आप को सीधी राह पर चलाए। आप हमारी भरपूर मदद कीजिए। और खुदा के बन्दों को बुलाईए वो सब इमदाद के लिए आएँगे।

یتیم نون امير تة تحدي إن سیم کشت ترجمه زبا

फीहिम रसूलुल्लाहि कद त-हर्रदा

इन सीमा खसफ़न वज-हुहू तरब्बदा इन मदद करने वालों में रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) भी गज़ब की हालत में हों कि अगर उन्हें जिल्लत का दाग लगे तो उनका तेवर बदल जाए।

هم گویا بانوی محبة وتنا الثا؛ تبة

हुम बय्य-तूना बिल-वतीरि हुज्जदा

व कत्त-लूना रुकअर्वं व सुज्जदा उन लोगों (बनी बकर व कुरैश) ने “मकामे वतीर में हम सोते हुओं पर शबखून मारा और रुकूअ व सज्दे की हालत में भी हम लोगों को बेदर्दी के साथ कत्ल कर डाला।

ا گرشا الورق المؤيدا وفوا میثائق الشرگد

इन्ना कुरैशन अख-लफूकल मव-इदा

व नक्कदू मीसा-ककल मवक्कदा यकीनन कुरैश ने आपसे वअदा खिलाफी की है और आपसे मजबूत मुआहदा करके तोड़ डाला है।

इन इश्आर को सुनकर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन लोगों को तसल्ली दी और फरमाया कि मत घबराओ मैं तुम्हारी इमदाद के लिए तय्यार हूँ। (जरकानी जि.२ स. ५९०)

हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

की अमन पसन्दी इसके बाद हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कुरैश के पास कासिद भेजा और तीन शर्ते पेश फरमाई कि इन में से कोई एक शर्त मंजूर कर लें! (१) बनी खुज़ाआ के मकतूलों का खून बहा (फिदया, मुआवज़ा)

दिया जाए। (२) कुरैश कबीलए बनी बकर की हिमायत से अलग हो जाएँ। (३) एलान कर दिया जाए कि हुदैबिया का मुआहदा टूट गया।

जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कासिद ने इन शर्तों को कुरैश के सामने रखा तो कुर्ता बिन अब्द अमर ने कुरैश का नुमाइन्दा बनकर जवाब दिया कि ‘न हम मकतूलों के खून का मुआवज़ा देंगे। न अपने हलीफ़ कबीलए बिन बकर की हिमायत छोड़ेंगे। हाँ तीसरी शर्त हमें मंजूर है और हम एअलान करते हैं कि हुदैबिया का मुआहदा टूट गया लेकिन कासिद के चले जाने के बाद कुरैश को अपने इस जवाब पर नदामत हुई। चुनान्चे चन्द रुऊसाए (अमीर) कुरैश अबू सुफयान के पास गए। और ये कहा कि अगर ये मामला न सुलझा तो फिर समझ लो कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) हम पर हमला करेंगे। अबू सुफयान ने कहा कि मेरी बीवी हुन्द बिन्ते उत्तबा ने एक ख्वाब देखा है कि मक़ामे “हुजून से मकामे खन्दमा तक एक खून की नहर बहती हुई आई है। फिर नागहाँ वा खून गाएब हो गया। कुरैश ने इस ख्वाब को निहायत ही मन्हूस समझा और खौफ- दहशत से सहम गए और अबू सुफयान पर बहुत ज्यादा दबाव डाला कि वो फौरन मदीना जाकर मुआहदए हुदैबिया की तजदीद कर लें।

(जरकानी जि.२ स. २९२)

बेटी! तुम

अबू सुफ़यान की कोशिश

इसके बाद बहुत ही तेजी के साथ अबू सुफ़यान मदीना गया और पहले अपनी लड़की हज़रते उम्मुल मोमिनीन बीबी उम्मे हबीबा रदियल्लाहु अन्हा के मकान पर पहुंचा और बिस्तर पर बैठना ही चाहता था कि हज़रते बीबी उम्मे हबीबा रदियल्लाहु अन्हा ने जल्दी से बिस्तर उठा लिया और अबू सुफयान ने हैरान हो कर पूछा कि

ने बिस्तर क्यों उठा लिया क्या बिस्तर को मेरे काबिल नहीं समझा? या मुझको बिस्तर को काबिल नहीं समझा? उम्मुल मोमिनीन ने जवाब दिया कि ये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का बिस्तर है। और तुम मुशरिक और नजिस हो इस लिए मैंने ये गवारा नहीं किया तुम रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बिस्तर पर बैठों। ये सुनकर अबू सुफयान के दिल पर चोट लगी और वो रंजीदा होकर वहाँ से चला आया। और रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर होकर अपना मकसद बयान किया। आपने कोई जवाब नहीं दिया। फिर अबू सुफयान हज़रते अबू बकर सिद्दीक व हज़रते उमर व हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन के पास गया। उन सब हज़रात ने जवाब दिया कि हम कुछ नहीं कर सकते। हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के पास जब अबू सुफ्यान पहुँचा तो वहाँ हज़रते बीबी फातिमा और हज़रते इमाम हसन रदियल्लाहु अन्हुमा भी थे। अबू सुफ़यान ने बड़ी लजाजत से कहा कि ऐ अली! तुम कौम में बहुत ही रहम दिल हो हम एक मकसद लेकर यहाँ आए हैं। क्या हम यूँही नाकम चले जाएँ। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि तुम मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) से हमारी सिफारिश कर दो। हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु फरमाया कि ऐ अबू सुफ़यान! हम लोगों की ये मजाल नहीं है कि हम हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इरादे, और उनकी मर्जी में कोई मदाखलत कर सकें। हर तरफ से मायूस

लेकिन तुम

होकर अबू सुफ़यान ने हज़रते फातिमा जोहरा रदियल्लाहु अन्हा से कहा कि ऐ फातिमा ये तुम्हारा पाँच बरस का बच्चा (इमामे हसन) एक मर्तबा अपनी ज़बान से इतना कह दे कि मैं ने दोनों फरीक में सुलह करा दी तो आज से ये बच्चा अरब का सरदार कहकर पुकारा जाएगा। हज़रते बीबी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा ने जवाब दिया कि बच्चों को इन मामलात में क्या दखल? बिल आख़िर अबू सुफयान ने कहा कि ऐ अली! मामला बहुत ही कठिन नज़र आता है कोई तदबीर बताओ? हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि मैं इस सिलसिले में तुम को कोई मुफीद राय तो दे नहीं सकता

बनी किनाना के सरदार हो। तुम खुद ही लोगों के सामने एलान कर दो कि मैंने हुदैबिया के मुआहदे की तजदीद कर दी। अबू सुफ़यान ने कहा कि क्या मेरा एअलान कुछ मुफीद हो सकता है? हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि यकतरफ़ा एअलान ज़ाहिर है कि कुछ मुफीद नहीं हो सकता। मगर अब तुम्हारे पास इसके सिवा और चारए कार ही क्या है? अबू सुफयान वहाँ से मस्जिदे नबवी में आया। और बुलन्द आवाज़ से मस्जिद में एलान कर दिया कि मैंने मुआहदए हुदैबिया की तजदीद कर दी। मगर मुसलमानों में से किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया।

अबू सुफ़यान ये एलान करके मक्का रवाना हो गया। जब मक्का पहुँचा तो कुरैश ने पूछा कि मदीना में क्या हुआ? अबू सुफयान ने सारी दास्तान बयान कर दी। तो कुरैश ने सवाल किया कि जब तुनने अपनी तरफ से मुआहदए हुदैबिया की तजदीद का एअलान किया तो क्या मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने इसको कुबूल कर लिया? अबू सुफयान ने कहा कि “नहीं” ये सुनकर कुरैश ने कहा कि ये तो कुछ भी नहीं हुआ। ये न तो सुलह है कि हम इत्मिनान से बैठे। न ये जंग है कि लड़ाई का सामान किया जाए। (ज़रकानी जि२ स. २९२ ता २९३)

सल्लल्लाहु तआला

404 सीरतुल मुस्तफा अलैहि वसल्लम इसके बाद हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने लोगों को जंग की तय्यारी का हुक्म दे दिया और हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा से भी फरमा दिया कि जंग के हथियार दुरुस्त करें। और अपने हलीफ कबाएल को भी जंगी तय्यारियों के लिए हुक्म नामा भेज दिया। मगर किसी को हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये नहीं बताया कि किस से जंग का इरादा है? यहाँ तक कि हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु से भी आपने कुछ नहीं फरमाया। चुनान्चे हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा के पास आए और देखा कि वो जंग हथियारों को निकाल रही हैं। तो आपने दर्याफ्त किया कि क्या हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया है? अर्ज़ किया कि “जी हाँ फिर आपने पूछा कि क्या तुम्हें कुछ मालूम है कि कहाँ का इरादा है? हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा ने कहा कि “वल्लाह मुझे ये मालूम नहीं (जरकानी जि.२ स. २६१)

गरज़ इन्तिहाई ख़ामोशी और राज़दारी के साथ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जंग की तय्यारी फरमाई। और मकसद ये था कि अहले मक्का को ख़बर न होने पाए और अचानक उन पर हमला, कर दिया जाए।

हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ का ख़त

हजरते हाबित बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु जो एक मुअज्जज सहाबी थे। उन्होंने कुरैश को एक ख़त इस मज़मून का लिख दिया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जंग की तय्यारियों कर रहे हैं। लिहाज़ा तुम लोग होशियार हो जाओ। उस खत को उन्होंने एक औरत के ज़रीओ मक्का भेजा। अल्लाह तआला ने अपने हबीब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इल्मे गैब अता फरमाया था। आपने अपने इस इल्मे गैब की

बदौलत ये जान लिया कि हजरते हातिब बिन अबी बनता नीरतुल गुस्तफा

या कार्रवाई की है। धुनान्चे आपने हजरत अली व हजरते जुबैर हज़रते मिकदाद रदियल्लाहु अन्हुम को फौरन ही रवाना फरमाया कि तुम लोग रोजए खान’ में चले जाओ। वहाँ एक औरत है और उसके पास एक एक खत है। उसमें वो खत छीनकर मेरे पास लाओ। चुनान्चे ये तीनों असहावे कवार तेज रफ्तार घोड़ों पर सवार हो कर “रौजए खान’ में पहुँचे और औरत को पा लिया। जब उससे खत तलब किया तो उसने कहा कि मेरे पास कोई खत नहीं है। हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि खुदा की कसम! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कभी कोई झूटी बात नहीं कह सकते। न हम लोग झूटे हैं। लिहाजा तू ख़त निकालकर हम दे दे। वर्ना हम तुझको नंगी करके तलाशी लेंगे। जब औरत मजबूर हो गई तो उसने अपने बालों के जूड़े में से वो ख़त निकालकर दे दिया। जब ये लोग खत लेकर बारगाहे रिसालत में पहुँचे तो आपने हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु को बुलाया। और फरमाया कि ऐ हातिवा ये तुम

ने क्या किया? उन्होंने अर्ज किया कि या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम आप मेरे बारे में जल्दीन फरमाएँ। न मैंने अपना दीन बदला है। न मुरतद हुआ हूँ। मेरे खत लिखने की वजह सिर्फ ये है कि मक्के में मेरे बीवी बच्चे हैं। मगर मक्के में मेरा कोई रिश्तेदार नहीं है जो मेरी बीवी बच्चों की खबरगीरी व निगहदाश्त करे। मेरे सिवा दूसरे तमाम मुहाजिरीन के अज़ीज़- अकारिब मक्का में मौजूद हैं जो उनके अहलअयाल की देख भाल करते रहते हैं। इस लए मैंने ये खत लिखकर कुरैश पर अपना एक एहसान रख दिया है ताकि मैं उनकी हमदर्दी हासिल कर लूँ और वो मेरे अहलने अयाल के स.य कोई बुरा सुलूक न करें। या रसूलल्लाह! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरा ईमान है कि अल्लाह तआला जरूर उन काफिरों को शिकस्त देगा और मेरे इस खत से कुफ्फार को

सीरतुल मुस्तफा तहसिल्लम हरगिज हरगिज़ कोई फाएदा हासिल नहीं हो सकता। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते हातिब रदियल्लाहु अन्हु के इस बयान को सुनकर उनके उज़ को कुबूल फ़रमा लिया भगर हजरते उमर रदियल्लाहु अन्हु उस ख़त को देखकर इस कदर तैश में आ गए कि आपे से बाहर हो गए और अर्ज किया कि या रसूलल्लाह! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुझे इजाजत दीजिए कि मैं इस मुनाफिक की गर्दन उड़ा दूं। दूसरे

सहाबए किराम भी गैज़- गज़ब में भर गए। लेकिन रहमते आलम | सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के जबीने रहमत पर इक ज़रा

शिकन भी नहीं आई। और आपने हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु से इर्शाद फ्रमाया कि ऐ उमर् क्या तुम्हें ख़बर नहीं कि हातिब

अहले बदर में से है। और अल्लाह तआला ने अहले बदर को | मुखातब करके फ्रमा दिय है कि तुम जो चाहे करो। तुम से कोई

मुवाखज़ा नहीं ये सुनकर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु की आँखें नम हो गई और वो ये कहकर बिल्कुल ख़ामोश हो गए। अल्लाह और उसके रसूल को हम सब से ज़्यादा इल्म है’ इसी मौका पर कुरआन की ये आयत नाज़िल हुई कि या-अय्युहल लजीना आ-मनू ला oza Hennet तत-तखिजू अदुव्वी व अदुवकुम औलिया (सुरए मुमतहिन्ना)

(ऐ ईमान वालो! मेरे और अपने दुश्मन काफिरों को दोस्त मत बनाओ!)

बहर हाल हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हजरते हातिब बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु को माफ फरमा दिया।

(बुखारी जि.२. स. ६१२ गजवतल फतह)

सल्लल्लाहु तआला

सीरतुल मुस्तफा अलैहि वसल्लम

1407 तआला अलैहि वसल्लम मदीना से दस हज़ार का लश्करे पुर अनवार साथ लेकर मक्का की तरफ रवाना हुए। बअज रिवायतों में है कि फतह मक्का में आपके साथ बारह हजार का लश्कर था। इन दोनों रिवायतों में कोई तआरुज़ नहीं हो सकता है कि मदीने से रवानगी के वक्त दस हज़ार का लश्कर रहा हो। फिर रास्ते में बज़ कबाइल इस लश्कर में शामिल हो गए हों तो मक्का पहुँचकर उस लश्कर की तअदाद बारह हज़ार हो गई हो। बहर हाल मदीना से चलते वक़्त हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और तमाम सहाबए कबार रोज़ादार थे जब आप “मकामे कुदीद’ में पहुँचे तो पानी माँगा। और अपनी सवारी पर बैठते हुए पूरे लश्कर को दिखाकर आपने दिन में पानी नोश फ़रमाया। और सब को रोज़ा छोड़ने का हुक्म दिया। चुनान्चे आप और आप के असहाब ने सफ़र और जिहाद में होने की वजह से रोजा रखना मौकूफ कर दिया। (बखारी जि 2 स १३ व जरकानी जि.स.स ३०० व सीरते इन्ने हश्शाम जि 2 स.100)

हज़रते अब्बास वगैरा से मुलाकात

जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मकामे “हुजफा में पहुंचे तो वहाँ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चचा हजरते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु अपने अहल- अयाल के साथ ख़िदमते अकदस में हाज़िर हुए। ये मुसलमान हो कर आए थे। बल्कि इससे बहुत पहले मुसलमान हो चुके थे और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मर्जी से मक्का में मुकीम थे। और हुज्जाज को जमजम पिलाने के मुअज्ज़ज़ ओहदे पर फाइज थे। और आपके साथ में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चचा हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब के फ़रज़न्द जिनका नाम भी अबू सुफयान था और हुज़र सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के फूफी जाद भाई अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या जो उम्मुल मोमिनीन

हज़रते बीबी उम्मे सन्त रदियल्लाहु अन्हा के सौतेले थाई भी थे। बारगाहे अकदस में हाज़िर हुए। उन दोनों साहिबों की हाज़िरी का हाल जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को मालूम हुआ तो आपने उन दोनों साहिबों की मुलाकात से इन्कार फ़रमा दिया। क्योंकि उन दोनों ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को बहुज ज़्यादा ईज़ाएँ पहुँचाई थीं खुसूसन अबू सुफ़यान बिनुल हारिस आपके चचा ज़ाद भाई जो एअलाने नुबूव्वत से पहले आपके इन्तिहाई जाँ निसारों में से थे। मगर एअलाने नुबूव्वत के बाद उन्होंने अपने कसीदों में इतनी शर्मनाक और बेहूदा हजो(बुराई) हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की कर डाली थी कि आपका दिल ज़ख्मी हो गया थां इस लिए आप उन दोनों से इन्तिहाई नाराज़ व बेज़ार थे। मगर हज़रते बीबी उम्मे सल्मा रदियल्लाहु अन्हा ने उन दोनों का कुसूर माफ करने के लिए बहुत ही पुर जोर सिफारिश की। और अबू सुफ़यान बिनुल हारिस ने ये कह दिया कि अगर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मेरा कुसूर न माफ़ फ़रमाया तो मैं अपने छोटे छोटे बच्चों को लेकर अरब के रेगिस्तान में चला जाऊँगा। ताकि वहाँ बिगैर दाना पानी के भूक प्यास से तड़प तड़प कर मैं और मेरे सब बच्चे मरकर फ़ना हो जाएँ। हज़रते बीबी उम्मे सल्मा रदियल्लाहु अन्हा ने बारगाहे रिसालत में आबदीदा होकर अर्ज किया कि या रसूलल्लहा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम क्या आपके चचा का बेटा

और आपकी फूफी का बेटा तमाम इन्सानों से ज़्यादा बद नसीब रहेगा? क्या उन दोनों को आपकी रहमत से कोई हिस्सा नहीं मिलेगा? जान छिड़कने वाली बीवी के इन दर्द अंगेज़ कलिमात से रहमतुल लिल आ-लमीन के रहमत भरे दिल में रहम- करम और अपव दर गुज़र के समुन्दर मौजें मारने लगे। फिर हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने उन दोनों को ये मशवरा दिया कि तुम दोनों अचानक बारगाहे रिसालत में सामने जाकर खड़े हो जाओं और जिस तरह हज़रते यूसुफ अलैहिस्सलाम के भाईयों ने कहा था वही

तुम दोनों भी कहो कि – लकद आ-स-रकल्लाहु अलैना व इन कुन्ना लखा-ति-ईन। (सूतए यूसुफ)

कि यकीनन आपको अल्लाह तआला ने हम पर फजीलत दी है और हम बिला शुबह ख़तावार हैं।)

चुनान्चे उन दोनों साहिबों ने दरबारे रिसालत में नागहाँ हाजिर होकर यही कहा। एक दम रहमते आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की जबीने रहमत पर रहम- करम के हजारों सितारे चमकने लगे। और आपने उनके जवाब में बिनिही वही जुमला अपनी ज़बाने रहमते निशान से इर्शाद फ़रमाया जो हजरते यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने भाईयों के जवाब में फ़रमाया था कि

ला तसरीबा अलैकुमुल यौमा यगफिरुल्लाहु लकुम वहुवा अर-हमुर-राहिमीन। (सूतए यूसुफ़)

(तर्जमा :- आज तुम से कोई मुआख़ज़ा नहीं है। अल्लाह तुम्हें बख्श दे। वो अरहमुर राहिमीन है।)

जब कुसूर माफ हो गया तो अबू सुफयान बिनुल हारिस रदियल्लाहु अन्हु ने ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मिदह में अश्आर लिखे। और ज़मानए जाहिलीयत के दौर में जो कुछ आप की हजो में लिखा था उसकी मअजिरत की और उसके बाद उम्र भर निहायत सच्चे और साबित कदम मुसलमान रहे। मगर हया की वजह से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने कभी सर नहीं उठाते थे और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम भी उनके साथ बहुत ज्यादा मुहब्बत रखते थे और फरमाया करते थे कि मुझे उम्मीद है कि अबू सुफयान बिनुल हारिस मेरे चचा हज़रते हम्जा रदियल्लाहु अन्हु के काइम मुकाम साबित होंगे। (जरकानी जि.40 0 ता १२ व सीरते बिन हश्शाम जि.२ स. ४००)

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Taleemat e Ameer 42

** تعلیمات امیر (Taleemat e Ameer r.a)
** بیالیسواں حصہ (part-42)

الصفدي الوافي بالوفيات ،ج ۳ ص ۲۴۲
ابن عنبة : عمدة الطالب، ص ۱۰۳
ابن الطقطقي الحسني : الاصيلي انساب الطالبيين، ص ۶۹
اليماني الموسوي : النفحة العنبرية، ص ۱۱۸
ابی القاسم الزياني : جمهرة التيجان اور فہرست الياقوت والمرجان، ص۷۰
الفتوني العاملي : تهذيب حدائق الألباب : ص۱۴۸
مرتضى الزبيدي :الروض الجلي، میں أنساب آل باعلوي ،ص۱۳۰ کے حوالہ سے بیان ہوتا ہے کہ ۔ ابوجعفر منصور کو جب امام نفس الزکیہ کے اعلان خلافت کا علم ہوا تو اس نے انہیں ڈرانے دھمکانے کے انداز میں لکھا کہ میرے اور تمہارے درمیان میں اللہ اور رسول کا عہد و میثاق ہے اور ذمہ ہے کہ اگر تم اپنے ارادے سے باز آجاؤ تو تمہیں تمہارے خاندان اور تمہارے پیرکاروں کو جان و مال و اسباب کی امان دیتا ہوں۔ اس کے علاوہ جو کوئی اور حاجت بھی تمہارے ہوگی وہ پوری کی جائے گی۔ جس شہر میں تم چاہو گے تمہیں قیام پزیر ہونے کی اجازت ہوگی اور تم اور تمہارے لوگوں سے کوئی مواخذہ نہیں کیا جائے گا۔ اس سب کے لیے اگر تم عہد نامہ لکھوانا چاہتے ہو تو وہ بھی لکھا جاسکتا ہے۔ یہ خط جب امام نفس الزکیہ کے پاس پہنچا تو انہوں نے جواب میں تحریر کیا کہ ہم تمہارے لیے ایسی امان پیش کرتے ہیں جیسی تم نے ہمارے لیے پیش کی۔ حقیقت یہ ہے کہ حکومت ہمارا یعنی بنو فاطمہؑ کا حق ہے۔ تم ہمارے سبب سے اس کے مدعی ہوئے اور ہمارے ہی گروہ والے بن کر حکومت حاصل کرنے کو نکلے اور اسی لیے کامیاب ہوئے۔ پھر بنو فاطمہؑ کی فضیلت بیان کرتے ہوئے مزید لکھا کہ میں بہ اعتبار نسب بہترین ہاشمی ہوں۔ میرے باپ یعنی حضرت علی بنی ہاشم کے مشاہیر میں سے ہیں مجھ میں کسی عجمی کی آمیزش نہیں اور نہ مجھ میں کسی لونڈی باندی کا اثر ہے۔ اگر تم میری اطاعت کرو گے تو میں تم کو تمہاری جان و مال کی آمان دیتا ہوں۔ میں عہد پورا کرنے والا ہوں تم نے مجھ سے پہلے بھی لوگوں کو امان اور قول دیا تھا پس تم مجھے کونسی امان دیتے ہو امان ابان بن ہیرہ کی یا امان اپنے چچا عبداللہ کی یا امان ابومسلم خراسانی کی۔

📚 ماخذ از کتاب چراغ خضر۔