एक बार की बात है हज़रत मालिक बिन दीनार जंगल से गुजर रहे थे गुजरते वक्त अपने देखा की एक बच्चा जंगल में लकड़ियां बिन रहा था और लड़कियां बिन ते बिन ते रोता जा रहा था
आपके दिल में खयाल आया कि इसके मा बाप ने इस पर कितना ज़ुल्म क्या जो इस छोटे से बच्चे को लकड़ियां बिन ने जंगल में भेज दिया आप उस बच्चे के पास गए और पास जाकर अपने सोचा की इस बच्चे को सलाम कर लेता हूं फिर सोचा कि छोटा सा बच्चा है इसे क्या सलाम करू लेकिन फिर खयाल आया कि मुह़म्मद मुस़्त़फा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम भी तो बच्चो को सलाम किया करते थे तो मै भी कर लेता हूं अपने सलाम किया तो बच्चे ने आपका नाम लेकर आपको जवाब दिया मालिक हैरान हो गए की इस बच्चे को मेरा नाम भी मालूम है
फिर अपने उस बच्चे से कहा कि तेरे मा बाप ने तुझ पर कितना ज़ुल्म किया जो तुझे इस छोटी सी उम्र में यहां लकड़ियां बिनने भेज दिया ये बात सुन कर बच्चा बोला आए मालिक मेरे मा बाप ने मुझ पर कोई ज़ुल्म नहीं किया मै तो बस अपने मा बाप की मदद करने के लिए लकड़ियां बिन रहा हूं मेरा मकसद मा बाप की मदद करना है मुझपे कोई ज़ुल्म नहीं किया मेरे मा बाप ने
ये सुन कर मालिक बिन दीनार कहने लगे आए बच्चे मुझसे गलती हो गई मैंने सोचा शायद तुम्हारे मा बाप ने तुम्हे यह भेजा लेकिन आए बच्चे ये तो बताओ तुम रोते क्यों हो जब उस बच्चे ने ये सुना तो वो बच्चा बोला आए मालिक मै रोता इसलिए हूं की अल्लाह ने इंसान को जहन्नम का ईंधन बनाया है जिस तरह मेरी मा चुला जलाती है और आग जलाने के लिए जिस तरह वो चुले में पहले छोटी छोटी लकड़ियां रखती है मुझे डर है कहीं अल्लाह जहन्नम की आग को भड़काने के लिए बड़े बड़े गुनाह गारो से पहले हम छोटे छोटे बच्चो को ना जहन्नम में डाल दे मै इसलिए खुदा के खौफ में रोता हूं
मालिक बिन दीनार ने जब ये बात सुनी तो हैरान हुए की इतना छोटा बच्चा और इसमें इतना खौफे खुदा ये देखने के बाद मालिक ने सोचा क्यूं ना इस बच्चे से एक सवाल पूछ लिया जाए
मालिक ने उस बच्चे से सवाल किया आए बच्चे मेरे एक सवाल का जवाब दोगे बच्चे ने कहा कि हा सवाल पूछे मालिक ने पूछा बताओ क़ल्ब और नफ्स में क्या फर्क है इतना पूछना था कि बच्चे ने जवाब दिया
अए मालिक सुनो जिसने तुम्हे सलाम। करने से इसलिए रोका की ये छोटा बच्चा है इसे क्या सलाम करू वो तुम्हारा नफ्स था और जिसने तुम्हे ये याद दिलाया कि बच्चो को नबी भी सलाम करते थे तो मै भी सलाम करू वो तुम्हारा क़ल्ब था
मालिक ने बच्चे का जवाब सुना तो हैरान होकर पूछा तुम्हारा नाम क्या है बच्चे ने जवाब दिया आए मालिक मेरा नाम जाफर स़ादिक़ है और मेरे वालिद का नाम मुह़म्मद बाकर है मेरे दादा का नाम ज़ैनुल आबेदीन है और उनके वालिद का नाम ह़ुसैन इब्ने अली है और हम मुह़म्मद मुस़्त़फा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की आल है
अहले बैत का दामन थामे रहना मौला हम सबको अहले बैत से मोहब्बत मरते दम तक दिलो में कायम रखे
फतह के बाद खैबर की ज़मीन पर मुसलमानों का कब्जा हो गया और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरादा फ़रमाया कि बनू नुज़ैर की तरह अले खैबर को भी जला वतन कर दें। लेकिन यहूदियों ने ये दरख्वास्त की कि हम को खैबर से न निकाला जाए। और ज़मीन हमारे ही कब्ज़ा में रहने दी जाए। हम यहाँ की पैदावर का आधा हिस्सा आपको देते रहेंगे। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनकी ये दरख्वास्त मंजूर फ़रमा ली चुनान्चे जब खजूर पक जाती, और गल्ला तय्यार हो जाता तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु को खैबर भेज देते वो खजूरों और अनाजों को दो बराबर हिस्सों में तकसीम कर देते और यहूदियों से फरमाते कि इस में से जो हिस्सा तुम को पसन्द हो वो ले लो। यहूदी इस अद्ल पर हैरान होकर कहते थे कि जमीन- आस्मान ऐसे ही अदल से काएम है। (फुतूहुल बलदान बला जरी स. २७ फतह खैबर)
हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु का बयान है कि खैबर फतह हो जाने के बाद यहूदियों से हुजूर सल्लल्लाहु
तआला अलैहि वसल्लम ने इस तौर परं सुलह फरमाई कि यहूदी अपना सोना, चाँदी, हथियार सब मुसलमानों के सिपुर्द कर दें। और जानवरों पर जो कुछ लदा हुआ है वो यहुदी अपने पास ही रखें। मगर शर्त ये है कि यहूदी कोई चीज मुसलमानों से न छुपाएँ। मगर इस शर्त को कुबूल कर लेने के बावुजूद हुय्या बिन अख्तब का वो चर्मी थैला यहूदियों ने गायब कर दिया जिसमें बनू नुजैर से जिला वतनी के वक्त वो सोना चाँदी भर कर लाया था। जब यहूदियों से पूछ गछ की गई तो वो झूट बोले। और कहा कि वो सारी रकम लड़ाईयों में खर्च हो गई लेकिन अल्लाह तआला ने ब ज़रीओ वही अपने रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को बता दिया कि वो थैला कहाँ हैं? चुनान्चे मुसलमानों ने उस थैले को बर आमद कर लिया। उसके बाद चूँकि किनाना बिन अबिल हुकैक ने हज़रते महमूद बिन मुस्लिमा को छत से पत्थर गिराकर कत्ल कर दिया था) इस लिए हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उस को किसास में कत्ल करा दिया और उसकी औरतों को कैदी बना लिया। (मदारिजुन्नुबूब्बत जि.२ स.२४५ व अबू दाऊद जि. २ स. ४२४ बाब माजा फी अर्ज़ खैबर)
हजरते सफीय्या का निकाह
कैदियों में हज़रते बीबी सफीय्या रदियल्लाहु अन्हा भी थीं। ये बनू नुज़ैर के रईसे अअज़म हुय्या बिन अख्तब की बेटी थीं और उनका शौहर किनाना बिन अबिल हुकैक भी बनू नुज़ैर का रईसे अअज़म था। जब सब कैदी जमा किये गए तो हज़रते दिया कलबी रदियल्लाहु अन्हु ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! इन में से एक लौंडी मुझको इनायत फरमाईए! आपने उनको इख़्तियार दे दिया कि खुद जाकर कोई लौंडी ले लो। उन्होंने हज़रते सफीय्या रदियल्लाहु अन्हा को ले लिया। बअज़ सहाबा ने इस पर गुज़ारिश की कि या रसूलल्लाह!
अतैता दिह्यता सफीय्यता बिनुता हुयय्यिन सय्येदता कुरैजता वन्नदीरि ला तस-लहू इल्ला लका (अबू दाऊद जि. २ स. ४२०) (बाब माजा फी सहमुस सफी) या रसूलल्लाह! आपने सफीय्या को दिहया के हाले कर दिया। वो कुरैजा और बनू नुर्जर की रईसा है आपके सिवा और कोई इसके
लाएक नहीं।
ये सुनकर हज़रते दिहया कलबी और हजरते सफीय्या रदियल्लाहु अन्हुमा को बुलाया और हज़रते दिहया से फ़रमाया कि तुम इसके सिवा कोई दूसरी लौंडी ले लो। इसके बाद हज़रते सफीय्या रदियल्लाहु अन्हुमा को आजाद करके आपने उनसे निकाह फरमा लिया। और तीन दिन तक मंजिले सहबा में उनको अपने खीमे में सरफराज़ फ़रमाया और सहाबए किराम को दअवते वलीमा में खजूर, घी, पनीर का मालीदा खिलाया। (बुख़ारी जि. १ स. २९८ बाब हल यसाफिर बिल जारिया व बुख़ारी जि. र स. ७६१ बाब इत्तिख़ाजुल सरारी व मुस्लिम जि. १ स. ४५८ बाब फ़ज़ल एअतकाक उम्मि)
हुजूर को ज़हर दिया गया
फ़तह के बाद चन्द रोज़ हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम खैबर में ठहेरे। यहूदियों को मुकम्मल अमन- अमान अता फरमाया। और किसम किसम की नवाजिशों से नवाजा। मगर इस बद बातिन कौम की फितरत में इस कदर खबासत भरी हुई थी। कि सल्लाम बिन मिशकम की बीवी “जैनब ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की दअवत की और गोश्त में जहर मिलाया। खुदा के हुक्म से गोश्त की बोटी ने आपको ज़हर की ख़बर दी और आपने एक ही लुकमा खाकर हाथ खींच लिया।
लेकिन एक सहाबी हज़रते बशीर बिन बरा रदियल्लाहु अन्हु ने शिकम सेर खा लिया। और जहर के असर से उनकी शहादत हो गई और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को उस जहरीले लुकमे से उम्र भर तालू में तकलीफ रही। आपने जब यहूदियों से इसके बारे में पूछा तो उन ज़ालिमों ने अपने जुर्म का इकरार कर लिया और कहा कि हम ने इस निय्यत से आपको जहर खिलाया कि अगर आप सच्चे नबी होंगे तो आप पर इस जहर का कोई असर नहीं होगा। वर्ना हम को आपसे निजात मिल जाएगी। आपने अपनी ज़ात के लिए तो कभी किसी से इन्तिकाम लिया ही नहीं। इस लिए आपने जैनब से कुछ भी नहीं फरमाया। मगर जब हजरते बशीर बिन बरा रदियल्लाहु अन्हु की इसी ज़हर से वफात हो गई। तो उनके किसास में जैनब कत्ल कर दी गई।
(जरकानी जि.२ स. २४२ व मदारिज जि.२ स. २५१)
हज़रते जफ़र हब्शा से आ गए
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़तहे खैबर से फ़ारिग हुए ही थे कि. मुहाजिरीने हब्शा में से हज़रते जफ़र रदियल्लाहु अन्हु जो हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के भाई थे और मक्का से हिजरत करके हब्शा चले गए थे वो अपने साथियों के साथ हशा से आ गए। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फर्ते मुहब्बत
से उनकी पेशानी चूम ली और इर्शाद फरमाया कि मैं कुछ नहीं कह सकता कि मुझे खैबर की फतह से ज़्यादा खुशी हुई है या जअफ़र के आने से। (ज़रकानी जि २ स. २४६)
उन लोगों को हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने “साहिबुल हिजरतैन” (दो हिजरतों वाले) का लकब अता फरमाया क्योंकि ये लोग मक्का से हब्शा हिजरत करके गए। फिर हब्शा से हिजरत करके मदीना आए और बावुजूद ये कि ये लोग जंगे खैबर में शामिल न हो सके थे। मगर उन लोगों को आपने माले गनीमत में से मुजाहिदीन के बराबर हिस्सा दिया।
खैबर में एअलाने मसाइल
जंगे खैबर में मुन्दर्जा जैल फिकही मसाइल की हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने तब्लीग फरमाई :(१) पंजादार परिन्दों को हराम फ़रमाया । (२) तमाम दरिन्दों की हुर्मत का एलान फ़रमा दिया ।(हराम
फरमाया) (३) गधा और खच्चर हराम कर दिया गया। (४) चाँदी साने की ख़रीद फरोख्त में कमी बेशी के साथ
खरीदने और बेचने को हराम फरमाया। और हुक्म दिया कि चाँदी को चाँदी के बदले, और सोने को साने के बदले बराबर बराबर बेचना ज़रूरी है। अगर कमी बेशी होगी तो वो
सूद होगा जो हराम है। (५) अब तक ये हुक्म था कि लौंडियों से हाथ आते ही सोहबत
करना जाएज़ था। लेकिन अब “इस्तबरा” जरूरी करार दे दिया गया। यानी अगर वो हामिला हों तो बच्चा पैदा होने तक वर्ना एक महीना उनसे सोहबत जाएज नहीं। औरतों से मुतअ करना भी हराम कर दिया गया।
(जरकानी जि.२ स. २३३ ता २३४)
वादीयुल कुरा की जंग
खैबर की लड़ाई से फ़ारिग होकर हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम “वादीयुल कुरा” तशरीफ़ ले गए। जो मकामे “तीमा’ और “फिदक’ के दर्मियान एक वादी का नाम है। यहाँ यहूदियों की चन्द बस्तियाँ आबाद थीं। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जंग के इरादे से यहाँ नहीं आए थे। मगर यहाँ के यहूदी चूँकि जंग के लिए तय्यार थे। इस लिए उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर तीर बरसाना शुरू कर दिया। चुनान्चे आपके एक गुलाम जिनका नाम हज़रते बिदअम रदियल्लाहु अन्हु था। ये ऊँट से कजावा उतार रहे थे कि उनको एक तीर लगा और ये शहीद हो गए रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन यहूदियों को इस्लाम की दअवत दी जिसका जवाब उन बद बख्तों ने तीर- तलवार से दिया और बाकाएदा सफ़बंदी करके मुसलमानों से जंग के लिए तय्यार होगए। मजबूरन मुसलमानों ने भी जंग शुरू कर दी। चार दिन तक नबीए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उन यहूदियों का मुहासरा किये हुए उनको इस्लाम की दअवत देते रहे मगर ये लोग बराबर लड़ते रहे। आख़िर दस यहूदी कल हो गए और मुसलमानों को फ़तहे मुबीन हासिल हो गई। इसके बाद अहले खैबर की शर्तों पर उन लोगों ने भी सुलह कर ली कि मकामी पैदावार का आधा हिस्सा मदीना भेजते रहेंगे।
जब खैबर और वादीयुल कुरा के यहूदियों का हाल मालूम हो गया तो “तीमा” के यहूदियों ने भी जज़िया(टेक्सी) देकर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सुलह कर ली। वादीयुल कुरा में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम चार दिन मुकीम रहे। (मदारिजुन्नुबूब्वत जि. २ स. २६२ व जुरकानी जि.२ स. २४८),
फ़िदक की सुलह
जब “फदक’ के यहूदियों को खैबर और वादीयुल कुरा के मामले की इत्तिलाअ मिली। तो उन लोगों ने कोई जंग नहीं की बल्कि दरबारे नुबूब्बत में कासिद भेजकर ये दरख्वास्त की कि खैबर और वादीयुल करा वालों से जिन शर्तों पर आपने सुलह की है इसी तरह के मामले पर हम से भी सुलह कर ली जाए। रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनकी ये दरख्वास्त मंजूर फ़रमा ली. और उनसे सुलह हो गई। लेकिन यहाँ चूंकी कोई फौज नहीं भेजी गई इस लिए इस बस्ती में मुजाहिदीन को कोई हिस्सा नहीं मिला बल्कि ये ख़ास हुजूर सल्लल्लाहु
तआला अलैहि वसल्लम की मिलकियत करार पाई और खैबर व वादीयुल कुरा की जमीनें तमाम मुजाहिदीन की मिलकियत ठहरीं।
(जरकानी जि.२ स. २४८)
उमरतुल कज़ा
चूँकि हुदैबिया के सुलहनामा में एक. दफअ ये भी थी कि आइन्दा साल हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मक्का आकर उम्रा अदा करेंगे और तीन दिन मक्का में ठहरेंगे। इस दफअ के मुताबिक माहे जुल कअदा सन्न ७ हिजरी में आपने ऊम्रा अदा करने के लिए मक्का रवाना होने का अज़्म फरमाया और एअलान करा दिया कि जो लोग गुज़श्ता साल हुदैबिया में शरीफ थे वो सब मेरे साथ चलें। चुनान्चे बजुज़ उन लोगों के जो जंग खैबर में शहीद या वफ़ात पा चुके थे सब ने ये सआदत हासिल की।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को चूँकि कुफ्फारे मक्का पर भरोसा नहीं था कि अपने अहद को पूरा करेंगे। इस लिए आप जंग की पूरी तय्यारी के साथ रवाना हुए। ब-वक्त रवानगी हज़रते अबू रुहम गिफ़ारी रदियल्लाहु अनहु को आपने मदीने पर हाकिम बना दिया। और दो हज़ार मुसलमानों के साथ जिन में एक सौ घोड़ों पर सवार थे आप मक्का के लिए रवाना हुए। साठ ऊँट कुर्बानी के लिए साथ थे जब कुफ्फारे मक्का को ख़बर लगी कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हथियारों और सामाने जंग के साथ मक्का आ रहे हैं तो वो बहुत घबराए और उन्होंने चन्द आदमियों को सूरते हाल की तहकीकात के लिए “मराज्जहरान’ तक भेजा। हज़रते मुहम्मद बिन मसलमा रदियल्लाहु अन्हु जो अस्प(घोड़ा) सवारों के अफसर थे कुरैश के कासिदों ने उनसे मुलाकात की। उन्होंने इत्मिनान दिलाया कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम सुलहनामा की शर्त के मुताबिक बिगैर
हथियार के मक्का में दाखिल होंगे ये सुनकर कुफ्फारे कुरैश मुतमइन हो गए।
चुनान्चे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मकाम “याजज” में पहुँचे जो मक्का से आठ मील दूर है। तो तमाम हथियारों को उस जगह रख दिया और हज़रते बशीर बिन सअद रदियल्लाहु अन्हु की मा तहती में चन्द सहबाए किराम को उन हथियारों की हिफाजत के लिए मुतअय्यन फरमा दिया। और अपने साथ एक तलवार के सिवा कोई हथियार नहीं रखा और सहाबए किराम के मजमअ के साथ “लब्बैक” पढ़ते हुए हरम की तरफ बढ़े। जब मक्का में दाखिल होने लगे तो दरबारे नुबूव्वत के शाओर हजरते अबदुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु ऊँट की मुहार थामे हुए आगे आगे रजज़ के ये अश्आर जोश- खरोश के साथ बुलन्द आवाज़ से पढ़ते जाते थे कि
خلوه ين اللتای علی سبیله اليوم تطيب على تزييه
खल्लू बनिल कुफ्फारि अन सबीलिही
अल-यौमा. नरिबुकुम अला तन्ज़ीलिही (ऐ काफिरों के बेटो! सामने से हट जाओ। आज जो तुम ने उतरने से रोका तो हम तलवार चलाएँगे।)
ويد مانخلي ع ييم
کن بایز التام عن قييم
दर-बय्युज़िलुल हामा अन मकीलिही
व युज़हिलुल ख़लीला अन ख़लीलिही (हम तलवार का ऐसा वार करेंगे जो सर को उसकी ख्वाबगाह से अलग करदें और दोस्त की याद उसके दोस्त के दिल से भुला दे।)
हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने टोका और कहा कि ऐ अब्दुल्लाह बिन रवाहा! रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के आगे आगे और. अल्लाह तआला के हरम में तुम अश्आर पढ़ते हो? तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने
फरमाया कि ऐ उमर! इनको छोड़ दो। ये अश्आर कुफ्फार के हक में तीरों से बढ़कर हैं। (शमाएले तिर्मिजी स. १७ व जरकानी जि. २ स. २५५ ता २५७)
जब रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम खास हरमे कबा में दाखिल हुए तो कुछ कुफ्फारे कुरैश मारे जलन के इस मंज़र की ताब न ला सके और पहाड़ों पर चले गए। मगर कुछ कुफ्फार दारुल नदवा (कमेटी घर) के पास खड़े आँखें फाड़ फाड़ कर बादए तौहीद- रिसालत से मस्त होन वाले मुसलमानों के तवाफ का नजारा करने लगे और आपस में कहने लगे कि ये मुसलमान भला क्या तवाफ़ करेंगे? उनको तो भूक और मदीना के बुखार
ने
कुचल कर रख दिया है। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मस्जिदे हराम में पहुँचकर इज्तिबाअ कर लिया। यानी चादर को इस तरह ओढ़ लिया कि आपका दाहिना शांना और बाजू खुल गया। और आपने फ़रमाया कि खुदा उस पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमाए जो इन कुफ्फ़ार के सामने अपनी कुब्बत का इजहार करे। फिर आपने अपने असहाब के साथ शुरू के तीन फेरों में शानों को हिला हिलाकर खूब अकड़ते हुए चलकर तवाफ़ किया। इस को अरबी ज़बान में “रमल’ कहते हैं। चुनान्चे ये सुन्नत आज तब बाकी है और कियामत तक बाकी रहेगी कि हर तवाफे कबा करने वाला शुरू तवाफ के तीन फेरों में “रमल” करता है ।(बुखारी जि.१ स. २१८ बाब कैफा काना बदउर रमल)
हज़रते हम्ज़ा की साहिबज़ादी
तीन दिन के बाद कुफ्फा मक्क के चन्द सरदार हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के पास आए और कहा कि शर्त पूरी हो चुकी। अब आप लोग मकका से निकल जाएँ हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने बारगाहे नूबूव्वत में कुफ्फार का पैगाम सुनाया तो आप उसी वक्त मक्का से रवाना हो गए। चलते वक्त हज़रते हम्जा
रदियल्लाहु अन्हु की एक छोटी साहिबजादी जिनका नाम ‘उमामा’ था। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को चचा, चचा कहती हुई दौड़ी आई । हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चचा हज़रते हम्जा रदियल्लाहु अन्हु जंगे उहुद में शहीद हो चुके थे। उनकी यतीम छोटी बच्ची मक्का में रह गई थीं। जिस वक्त ये बच्ची आपको पुकारती हुइ दौड़ी आईं तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को अपने शहीद चचा जान की इस यादगार को देखकर प्यार आ गया। इस बच्ची ने आपको भाई जान कहने की बजाए चचा जान इस रिश्ते से कहा कि आप हजरते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु के रिज़ाई भाई भी थे। क्योंकि आपने और हज़रते हमज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते सुवैबा रदियल्लाहु अन्हा का दूध पिया था। जब ये साहिबज़ादी करीब आईं तो हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने आगे बढ़कर उनको अपनी गोद में उठा लिया। लेकिन अब उनकी परवरिश के लिए तीन दवेदार खड़े हो गए। हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने ये कहा कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये मेरी चचा ज़ाद बहन है और मैंने इस को सब सब पहले अपनी गोद में उठा लिया है। इस लिए मुझ को इसकी परवरिश का हक मिलना चाहिए। हज़रते जअफ़र रदियल्लाहु अन्हु ने ये गुज़ारिश की कि या रसूलल्लाह! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये मेरी चचा जाद बहन भी है और इसकी ख़ाला मेरी बीवी है। इस लिए इस की परवरिश का मैं हकदार हूँ। हज़रते जैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह! सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये मेरी दीनी भाई हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु
की लड़की है। इस लिए मैं इसकी परवरिश करूँगा। तीनो सहिबों का बयान सुनकर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये फैसला फरमाया कि “खाला माँ के बराबर होती है। लिहाजा ये लड़की हज़रते .जअफर की परवरिश में रहेगी। फिर तीनों साहिबों की दिलदारी और दिलजुई करते हुए रहमते आलम
सीरतुल मुस्तफा अलैहि वसल्लम
सल्लल्लाहु
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सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये इर्शाद फरमाया कि ऐक अली! तुम मुझ से हो और मैं तुम से हूँ, और हज़रते जअफ़र रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया कि “ऐ जअफर तुम सीरत व सूरत में मुझ से मुशाबहत रखते हो और हज़रते जैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया कि ऐ जैद! तुम मेरे भाई और मेरे मौला के आज़ाद कर्दा गुलाम हो।(बुखारी जि.२ स ६१० उमरतुल कजा)
हज़रते मैमूना का निकाह इसी उमरतुल क़ज़ा के सफ़र में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते बीबी मैमूना रदियल्लाहु अन्हा से निकाह फ़रमाया आपकी चंची उम्मुल फ़ज़ल ज़ौजए हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा की बहन थीं। उमरतुल क़ज़ा से वापसी में जब आप मकामे “सरिफ़’ में पहुंचे तो उनको अपने ख़ीमे में रखकर अपनी सोहबत से सरफ़राज़ फ़रमाया। और अजीब इत्तिफाक के इस वाकिआ से चौवालीस बरस के बाद इसी मकाम सरिफ में हज़रते बीबी मैमूना रदियल्लाहु अन्हा का विसाल हुआ। और उनकी कब्र शरीफ़ भी इसी मकाम सरीफ़ में है। सही कौल ये है कि उनकी वफात का साल सन्न ५१ हिजरी है। मुफस्सल बयान इन्शा अल्लाह तआला अज़वाज़े मुतहहरात के बयान में आएगा।
नबी ए करिम (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने इरशाद फरमाया जिस (मुसलमान) ने अपनी एक भी लड़की या बहन की परवरिश की और उसे सराई अदब सिखाया,उसे प्यार व मुहब्बत से पेश आया और उनकी शादी (निकाह) करवा दी तो अल्लाह तआला उसे जन्नत मे दाखिल करेगा।