मौला अली की जंग ::जंग ए ख़न्दक

यहूदियों की एक बड़ी तादाद मदीने से निकलकर खैबर और उसके आसपास रहने लगी थी, रसूलुल्लाह की फौज़ और मुसलमानों से बदला लेने के लिए, कई मंसूबे बना रही थी। यहूदियों ने कुरैश और कुफ्फार ए मक्का के सरदारों से मुलाकात की और ये तय किया कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम से तब तक जंग की जाएगी जब तक मुसलमानों का नाम ओ निशान ना मिट जाए।

धीरे-धीरे करके सारे इस्लाम के दुश्मन इकट्ठा होना शुरू कर दिए,ये तादाद चार हजार तक पहुँची फिर दस हजार। इनके पास चार हजार ऊँट, तीन सौ घोड़े, हथियार और जंग से लेकर, खाने-पीने तक का सामानों का ज़खीरा जमा था।

रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने अपने सहाबा राज़िअल्लाह को जमा करके उन्हें दुश्मनों के इरादों के बारे में आगाह किया तो सलमान फारसी राज़िअल्लाह ने ये मशवरा दिया की ख़न्दक खोदी जानी चाहिए। पहाड़ों, मकानों, रेत के समुंदर से घिरा मदीना, तीन तरफ़ से तो महफूज़ था लेकिन पूरब की तरफ़ से कोई रुकावट नहीं थी ।

आप सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने सलमान फारसी राज़िअल्लाह की बात मान ली और ख़न्दक खोदने का हुक्म दिया। आप सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने, दस-दस लोगों पर चालीस -चालीस हाथ ज़मीन तक़सीम कर दी।

राज़िअल्लाह का तन्हा काम, दस आदमियों के बराबर होता था इसलिए अंसार और मुहाज़िर, दोनों आपको खुदमें शामिल करना चाहते थे।

बीच में एक बात और बताता चलू, हज़रत सलमान फारसी

आप एक वाहिद ऐसे सहाबा राज़िअल्लाह हैं जिनके लिए रसूलुल्लाह फरमाया कि सलमान ना

ने अंसार है ना मुहाज़िर बल्कि वह मेरी अहलेबैतसे है।

बहरहाल, रात दिन की खुदाई के बाद, तीन मील लंबी, पाँच गज़ चौड़ी, पाँच गज़ गहरी ख़न्दक खोदकर तैयार कर ली गई. आप सल्लललाहु अलैहे वसल्लम के हुक्म से खन्दक पर आठ चौकियाँ बनी जिस पर एक-एक दस्ता

तैनात कर दिया गया।

रसूलुल्लाह की फौज़ के पास ज़्यादा हथियार नहीं थे तो तय ये हुआ कि अगर मुश्-रिकीन, ख़न्दक पार करके अंदर घुसने की कोशिश करेंगे तो उनपर पथराव करके रोका जाएगा।

यहूद और कुफ्फारे कुरैश को अपने हथियारों पर भरोसा था , उन्हें यकीन था कि मदीना पहुँचते ही, पूरे जोर ओ शोर से रसूलुल्लाह की फौज़ पर टूट पड़ेंगे लेकिन मदीना आते ही जब उन्होंने ख़न्दक देखी तो उनके होश उड़ गए।

• बनि कुरैजा ने रसूलुल्लाह के साथ अहद किया था लेकिन वह भी दुश्मन ए रसूल की बातों में पड़ गया और लाख समझाने पर भी नहीं माना।

अब तीन तरफ़ से ख़तरा था, पहली तो हजारों की फौज़ बाहर खड़ी थी, दूसरा, बनि कुरैजा, अंदर होते हुए ख़तरा बन गया था, तीसरा खतरा था अपनों से, जी हाँ, कुछ लोग मुनाफिक भी थे और कुछ बहाने बनाकर भागने वाले भी थे।

तकरीबन सत्ताईस शब गुज़र गईं थीं, सर्दी भी थी और हालात भी बड़े सख्त थे। दोनों तरफ़ से जंग के नाम पर बस कभी तीर आते तो कभी पत्थर। दुश्मनों ने ख़न्दक का मुआयना किया तो एक जगह से ख़न्दक थोड़ी सकरी निकली। दुश्मनों ने सोचा कि यहाँ से घोड़े की छलाँग के साथ खन्दक पार की जा सकती है।

इस काम के लिए मशहूर घुड़सवारों और ताकतवर लोगों को चुना गया। अमरू बिन अब्देवुद आमरी, अकरमा बिन अबुजहल, हसल बिन अमरू, मुन्बा इब्ने उस्मान, ज़रार बिन ख़ताब फ़हरी, नौफिल इब्ने अब्दुल्लह और हीरह बिन अबी वहब, ख़न्दक को पार करने में कामयाब हो गए।

दुश्मन के खेमों ने सफ़बंदी कर ली ताकि जंग देखकर मजा ले सकें और इधर ये दुश्मन ए दीन, रसूलुल्लाह के शहर में घुसकर ललकारने लगे। इनमें से अमरू बहुत ज़्यादा ख़तरनाक था। उसकी ललकार सुन सबके होश उड़ने लगे, ऊपर से एक सहाबा ने ये भी कह दिया कि मैंने खुद अमरू को हजार लोगों से तन्हा लड़ते देखा है।

एक तरफ़ सब डर रहे थे, दूसरी तरफ़ अमरू ललकार रहा था, हज़रत अली ख़न्दक की एक चौकी से रसूलुल्लाह की ख़िदमत में आकर, इजाजत माँगने लगे लेकिन रसूलुल्लाह ने रोक दिया। अमरू ने फिर ललकारा लेकिन किसी सहाबा ने हिम्मत ना की, सब एक दूसरे की तरफ़ कनखियों से देखते।

तीसरी बार अमरू ने ललकार के कहा, “आओ कहाँ गई तुम्हारी जन्नत और जहन्नुम, या तो मुझसे मरकर जान में चले जाभो या तो मुझे मारकर जहन्नुम पहुँचा दो।”

उस जालिम से लड़ने की किसी में हिम्मत ना थी। उसे अमादे अरब कहकर पुकारा जाता था। किसी में उसका गुरूर तोड़ने की हिम्मत ना थी बस हज़रत अली अलैहिस्सलाम बार-बार इजाजत माँग रहे थे। तब मेरे आका सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने मेरे मौला का अजूम तौलने कहा, “ऐ अली! वह अमरू बिन अब्देवुद आमरी है।”

मौला अली ने सुनकर कहा कि “मैं भी तो अली हूँ, अबु तालिब का बेटा।” , सुनकर मेरे नबी खामोश रहे, फिर कुछ देर बाद अपने सर से अमामा उतारकर, मौला अली को पहनाया। अपनी ज़िरा पहनाई कमर पर जुल्फिकार बाँधी और अल्लाह से दुआ करने लगे।

आपने दुआ में अर्ज़ किया, ” परवरदिगार! तूने उबैदा को बदर के दिन और हमजा को ओहद के दिन उठा लिया, अब सिर्फ़ अली रह गये हैं। तू इसकी हिफाज़त फ़रमाना और मुझे अकेला ना छोड़ना।”

इधर हज़रत अली अलैहिस्सलाम, दुआओं के साए में जंग के लिए निकले ही थे कि उधर मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने ऐसे अल्फाज़ कहे जो फ़िजाओ में गूंजने लगे। आपने फरमाया कि “आज कुल्ले ईमान कुल्ले कुफ्र के मुकाबले की तरफ़ बढ़ रहा है।”

पहले तो दोनों में बात चीत हुई. दस्तूरे अरब के मुताबिक अमरू ने मौला से नाम पूछा, जब आपने बताया कि मैं अली बिन अबु तालिब हूँ, तो सुनकर कहने लगा कि तुम तो मेरे दोस्त के बेटे हो, मैं नहीं चाहता कि तुम पर हाथ उठाऊँ लिहाजा वापिस चले जाओ।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बदले में फरमाया, “लेकिन मैं तुम्हारा खून बहाना पसंद करूँगा।”

शियाओं के सारे उलेमा और सुन्नियों के कुछ उलेमा, इस बात पर मुताफिक हैं कि अमरू ने दोस्ती की वजह से नहीं बल्कि डर की वजह से

जाने को कहा था क्योंकि वह मौला अली की शुजाअत के चर्चे सुन चुका

जब अमरु समझ गया कि जान छुड़ाना मुश्किल है तो लड़ने तैयार हो गया। पहले तो हज़रत अली ने उसे मुहब्बत के साथ तब्लीग की लेकिन वह लइने पर उकसाता रहा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उससे कहा कि मैंने सुना है कि अगर तुम्हारा हरीफ़, जंग के मैदान में तुमसे तीन बातों की दरख्वास्त करता है तो तुम उसमें से एक मान लेते हो।

अमरूने हामी भरी तो मौला अली अलैहिस्सलाम ने उसे फरमाया, पहली दरख्वास्त ये है कि तुम दीन कुबूल कर लो लेकिन वह नहीं माना। दूसरी दरख्वास्त मौला ने ये की कि तुम मैदान छोड़कर भाग जाओ लेकिन वह नहीं माना। तीसरी दरख्वास्त में मौला ने उसे, घोड़े से उतरकर जंग करने कहा, जिसे वह मान गया।

अमरू ने उतरते ही के साथ, अपने घोड़े के चारों पाँव काट दिए। वैसे तो किसी बेजुबान जानवर के पाँव काटने की कोई वजह नहीं होती लेकिन शायद अमरू अपनी ताकत दिखाना चाहता था। या फिर वह ये इशारा कर रहा था कि अब मैंने सवारी मिटा दी यानी अब आर-पार की जंग होगी, जीत या मौत।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जल्दबाजी नहीं की और अमरू को हमला करने का मौका दिया, हज़रत अली ने उसके वार को ढाल से रोका लेकिन अमरू ने फुर्ती दिखाकर दोबारा वार किया, जिससे आप मौला अली अलैहिस्सलाम की पेशानी से खून रवाँ हो गया।

अब कुल्ले ईमान, हैदर ए कर्रार की तलवार मेयान से बाहर निकली और आपने शेर की तरह ऐसे वार किया की अमरू के दोनों पैर, एक ही वार में काट दिए. अमरू लड़खड़ा कर गिर पड़ा।

जाने को कहा था क्योंकि वह मौला अली की शुजाअत के चर्चे सुन चुका था।

जब अमरू समझ गया कि जान छुड़ाना मुश्किल है तो लड़ने तैयार हो गया। पहले तो हज़रत अली ने उसे मुहब्बत के साथ तब्लीग की लेकिन वह लड़ने पर उकसाता रहा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उससे कहा कि मैंने सुना है कि अगर तुम्हारा हरीफ़, जंग के मैदान में तुमसे तीन बातों की दरख्वास्त करता है तो तुम उसमें से एक मान लेते हो।

अमरू ने हामी भरी तो मौला अली अलैहिस्सलाम ने उसे फरमाया, पहली दरख्वास्त ये है कि तुम दीन कुबूल कर लो लेकिन वह नहीं माना। दूसरी दरख्वास्त मौला ने ये की कि तुम मैदान छोड़कर भाग जाओ लेकिन वह नहीं माना। तीसरी दरख्वास्त में मौला ने उसे, घोड़े से उतरकर जंग करने कहा, जिसे वह मान गया।

अमरू ने उतरते ही के साथ, अपने घोड़े के चारों पाँव काट दिए। वैसे तो किसी बेजुबान जानवर के पाँव काटने की कोई वजह नहीं होती लेकिन शायद अमरू अपनी ताकत दिखाना चाहता था। या फिर वह ये इशारा कर रहा था कि अब मैंने सवारी मिटा दी यानी अब आर-पार की जंग होगी, जीत या मौत।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जल्दबाजी नहीं की और अमरू को हमला करने का मौका दिया, हज़रत अली ने उसके वार को ढाल से रोका लेकिन अमरू ने फुर्ती दिखाकर दोबारा वार किया, जिससे आप मौला अली अलैहिस्सलाम की पेशानी से खून रवाँ हो गया।

अब कुल्ले ईमान, हैदर ए कर्रार की तलवार मेयान से बाहर निकली और आपने शेर की तरह ऐसे वार किया की अमरू के दोनों पैर, एक ही वार में काट दिए.अमरू लड़खड़ा कर गिर पड़ा।

आप अली अलैहिस्सलाम ने तकबीर के साथ, उस जालिम का सर काटा और एक हाथ में खून से भरी तलवार और दूसरे हाथ में अमरू का कटा सर लेकर खेमे की तरफ़ चल दिए।

सारे सहाबा हैरान थे और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम, फख्र के साथ मुस्कुरा रहे थे। हज़रत मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने अली मुर्तजा को सीने से लगाया और फरमाया कि “आज यौम ए खन्दक में अली की एक ज़र्बत, इबादत ए सकलैन से बेहतर है।”

अमरू की बहन ने भी जब सुना कि उसके भाई को कत्ल करने वाला शख्स अली है तो उसने दो अश्शार कहे, “अगर अमरू का कातिल अली के अलावा कोई और होता तो रहती दुनिया तक मैं इस पर गिरया करती।” , आगे कहती है, “मगर इसका कातिल तो वह है, जिसमें कोई ऐब है, ना बुराई है और जिसका बाप सरदार ए मक्का के नाम से पुकारा जाता है।”

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की आला ज़ी, शुजाअत, नेक किरदार का एतराफ़ खुद दुश्मन के घराने के लोग भी किया करते थे।

अमरू के मरने के बाद, बाकि के लोग ख़न्दक की तरफ़ भागे लेकिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उन्हें आगे बढ़कर घेर डाला। जिसमें से हज़रत अली ने अमरू के बेटे हसल को तलवार के एक वार से ढेर कर दिया।

नौफिल इब्ने अब्दुल्लाह ख़न्दक फाँदते हुए, ख़न्दक में ही गिर गया, जिसे मौला ने ख़न्दक में कूदकर, जहन्नुम पहुँचा दिया। मुन्बा इब्ने उसमान, तीर से जख्मी हुआ जो बाद में मर गया, बाकि के लोग भाग गए।

अपने ताकतवरों का ये हाल देखकर बाकि के लोग भी इधर उधर भागने लगे और कुछ ही देर में सामने का मैदान खाली हो गया। रसूलुल्लाह के साथियों ने सज्दा ए शुक्र अदा किया और इस तरह जंग एख़न्दक में मौला ने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम को जीत दिलाई।

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मौला अली की जंग ::जंग ए ओहद

जंग ए बद्र में शिकस्त खाने के बाद, मुश-रीकेन ए मक्का निढाल और बेहाल हो गए थे लेकिन उनमें बदले की आग भड़क रही थी। अबुसूफियान ने वरसा पर रोने की पाबंदी लगा दी थी और सब बदला लेने के मंसूबे बना रहे थे।

इस जंग की तफसीर भी आप तारीख़ में देख सकते हैं, मैं मौला अली अलैहिस्सलाम की शुजाअत की बात करूँगा लेकिन साथ ही साथ दोबातें और याद रखने कि हैं वह ये किये ही वह जंग है जिसमें हज़रत हमजा

इसी जंग के पहले रसूलुल्लाह सल्लललाह अलैहे वसल्लम ने अपनी एक तलवार, अबु दुजाना ( दजाना ) अंसारी को दी थी,आप जंग में लड़ते

राज़िअल्लाह शहीद हुए और हिंदा ने उनका कलेजा चबाया ।

हुए हिंदा के करीब जा पहुंचे थे पर तलवार को रोक दिया था क्योंकि वह रसूलुल्लाह की तलवार , औरत पर नहीं चलाना चाहते थे ।

दुश्मन के खेमे में औरतें जोश भरने के लिए अश्शार पढ़ रहीं थीं। मर्द “ऐले हुबल” यानी हुबल का बोल-बाला रहे के नारे बुलंद करते हुए जंग पर उतर चुके थे।

यहाँ से हज़रत अली, हज़रत हम्जा और इनके साथियों ने अल्लाहु अकबर के नारे के साथ वार किए . तलहा बिन उस्मान, फिर उस्मान बिन अबु तल्हा और देखते ही देखते, दुश्मन खेमे के आठ अलमदार ढेर हो

हज़रत अली जिस सिम्त जाते, शेर की तरह दुश्मन पर हमला करते और दुश्मन भेड़ बकरियों की तरह इधर उधर भागने लगते। बची हुई कसर हज़रत हम्जा के हमले कर रहे थे। अंसार और हज़रत अली के साथियों ने दुश्मनों को भागने पर मजबूर कर दिया।

फौजों को भगते देखकर लोग अपनी-अपनी जगह छोड़कर माल ए गनीमत लूटने के लिए दौड़ पड़े, अब्दुल्लाह बिन जबीर के दस्ते ने भी दौड़ लगा दी , आपने अल्लाह और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैह वसल्लम के फरमान याद दिलाकर, रोकने की कोशिश की लेकिन किसीने एक ना सुनी।

रसूलुल्लाह की फौज़ को अपनी जगह से हटा देखकर, खालिद बिन वलीद और अकरमा बिन अबु जहल ने लश्कर के साथ दोबारा हमला बोल दिया। अचानक हए हमले से मुसलमान घबरा गए और होश हवास खोए हुए ढंग से जंग ही ना कर सके।

कुछ ही देर में सभी, हजूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम को छोड़कर भागने लगे, आप सल्लललाहु अलैहे वसल्लम, आवाज़ देकर बुलाते रहे, आप अल्लाह के बंदों को पुकारते रहे लेकिन

लोग आपको तन्हा छोड़करभाग रहे थे ।

मैं किसी का नाम नहीं लूँगा वरना आप शायद मुझे भी फिरकों से जोड़कर देखने लगें। बाकि हदीसों और कुरआन की सूरः तौबा की आयतों की तफसीर में आपको भागने वालों और रुकने वालों, दोनों के नाम मिल जाएंगे।

जिस वक्त सब पहाड़ों की तरफ़ भाग रहे थे, इसी बीच तीन बातें और पेश आईं, हज़रत हम्जा को वहशी ने शहीद कर दिया, दूसरी बात ये कि किसी ने रसूलुल्लाह की शहादत की भी अफवाह उड़ा दी। तीसरी बात ये कि अल्लाह के वली, शेर ए खुदा अली, अपनी जगह से इधर-उधर ना

इस जंग में इंतिकाम लेते हुए तकरीबन ७० मुसलमान शहीद कर दिए गए थे लेकिन जालिमों ने लाशों से बेहुर्मती करनी शुरू कर दी। एक औरत का हज़रत हम्जा का कलेजा चबाना इस बात का इशारा है कि जिस फौज़ की औरत इतनी वहशी हो तो उस फौज़ का वहशी कितना वहशी रहा होगा।

वैसे तो मैं मौला अली की बात कर रहा हूँ लेकिन मौला खुद फरमाते है कि अगर कोई इज्जत के लायक हो तो उसे इज्जत दो, अगर तुम ऐसा

नहीं करते तो उसका हक़ खाने वालों में शुमार हो जाओगे। एक तरफ़ जब सारे मर्द भाग रहे थे तब वहाँ दो औरत भी मौजूद थीं जो पानी देने, मरहम देने का काम करती थीं । इनमें से एक का नाम था उम्मे अमारा नसीबा बिन्ते काब , इनके शौहर और बेटे भी इसी जंग में शहीद हए थे लेकिन कुर्बान जाऊँ आपकी मुहब्बत ए रसूल पर, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम पर तीर चलते देख आपने अपने आपको रसूलुल्लाह के आगे कर लिया और सारे तीर अपने सीने पर खा लिए । दूसरी खातून थीं , उम्मे ऐमन , जो भाग रहे लोगों से कहतीं कि तुझमें लड़ने का कलेजा नहीं है तो कम से कम अपनी तलवार मुझे देता जा । याद रखें औरतों का मुकाम भी इस्लाम में ज़र्रा बराबर भी कम नहीं है। जहाँ कुछ मर्द भागते दिखे हैं, वहाँ कुछ औरतें हक़ बचाती भी दिखी हैं। आख़िरकार रसूलुल्लाह की फौज, रसूलुल्लाह का हुक्म ना मानने की वजह से शिकस्त खा गई लेकिन यहाँ भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी ताकत और वफा के दम पर शर्मनाक हार से बचा लिया । आप जिस साबित कदमी और वफादारी से रसूलुल्लाह के साथ खड़े रहे, वह भुलाया नहीं जा सकता । आपने रसूलुल्लाह के साथ साथ, दीन को भी बचा लिया। आप हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जिस्म पर तलवार की सोलह ज़र्ब ली और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम की पेशानी मुबारक पर चोट लगी, इसी जंग में आपप्यारे आका सल्लललाहु अलैहे वसल्लम के दो दाँत मुबारक भी शहीद हो गए थे। एक मौके पर रसूलुल्लाह बीच में खड़े थे, हर सिम्त से हमले हो रहे थे और हज़रत अली अलैहिस्सलाम आपके चारों तरफ़ घोड़ा दौड़ाकर, हर वार रोक रहे थे। जब कभी इस मंज़र को तसव्वुर में लाता हूँ तो दिल से

मौला अली की जंग:: जंग ए बद्र

यूँ तो मौला अली मुर्तजा ने जिस भी जंग में कदम रख दिया, फत्ह ही हासिल की और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम की जीत में अहम किरदार निभाते हुए दीन का परचम और तकबीर बुलंद की। मैं सारी जंगों को अगर तफ्सीर से लिखने बैलूं तो एक किताब, उसी पर लिखा सकती है। अगर आप जंगों के बारे में तफ्सीर से पढ़ना चाहे तो आप, तारीख़ की किताबों को पढ़-समझ सकते हैं।

मैं ये किताब मौला अली अलैहिस्सलाम की फजीलतें आम करने की नियत से लिख रहा हूँ इसलिए मैं जंगों की तफ्सीर में ना जाकर, मौला अली अलैहिस्सलाम की शान बयान करने की कोशिश कर रहा हूँ। इसी सिलसिले में, कुछ जंगों में मौला की शुजाअत को आप सबके सामने रख रहा हूँ। सबसे पहले मैं बद्र का जिक्र करूँगा।

मदीने के यहूदियों ने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम की आमद पर उनसे ये मुहायिदा कर लिया था कि अगर मदीने पर हमला हुआ तो

जंग ए बद्र

वह, दुश्मनों के खिलाफ़ , एक दूसरे की मदद करेंगे। लेकिन बाद में जब

उन्होंने रसूलुल्लाह की कुव्वत और ताकत को समझा तो कुफ्फारे कुरैश के साथ जा मिले । कई तरह से मुसलमानों को परेशान किया गया, कभी उनके मवेशियों को चुराया गया , कभी उनके चारागाहों पर हमले किए गए। जंग शुरू होने की वजहें आप तारीख़ की किताब में तफसीर से पढ़ सकते हैं , दुश्मनों की तादाद लगभग एक हजार थी, सात ऊँट, तीन सौ घोड़े, तलवारों , तीरों , नेजों और हथियारों की कोई कमी नहीं थी । वहीं रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम , अपने साथ ३१३ का लश्कर ले कर गए, जिनमें से ७७ मुहाज़रीन थे और बाकि के अंसार थे । इनके पास सिर्फ दो घोड़े थे , हथियार भी बहुत कम थे । जब दुश्मनों ने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम के लश्कर के सामने सफ़बंदी कर ली तो रसूलुल्लाह ने भी अपने लश्कर को सफ़ बंद कर लिया । आप सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने अन्सार का अलम , साद बिन अबादा और मुहाज़िरीन का अलम , हज़रत अली के सुपुर्द किया , जबकि आप मौला अली अलैहिस्सलाम , उस वक्त सिर्फ बीस साल के थे । कुरैश, अंसार को अपना हरीफ़ नहीं समझते थे, उन्होंने साद बिन अबादा से लड़ने से मना किया, तब रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने, अबीदा इब्ने हारिस और हमजा इब्ने अब्दुल मुत्तालिब को भेजा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को आप, पहले ही भेज चुके थे। 2. इन तीनों ने जब जंग शुरू की तो दुश्मन के खेमों में घबराहट पैदा ही गई. एक-एक वार दुश्मन की फौज़ पर भारी पड़ रहा था, इसी बीच अबीदा घायल हुए और उन्हें खेमे में वापिस लाया गया, हालाँकि चंद रोज़ बाद वह शहीद हो गए थे ।

इसके बाद फिर हज़रत अली और हज़रत हमजा ने हमले जारी कर दिए , दुश्मन के लश्कर के हौसले टूट रहे थे, अबु जहल उन्हें चीख चीखकर, हिम्मत बंधा रहा था।

हज़रत अली ने जब आठ-दस, दुश्मनों को जहन्नुम पहुँचा दिया तो सब मिलकर हमलावर हो गए।

दूबदू की जंग, मग़लूबा जंग में बदल गई. रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने भी इतिमाई हमले का हुक्म दिया। सारी तलवार एक साथ म्यान से निकलीं, तीरों की बौछार, घमासान रन शुरू हो गया। हज़रत अली और हज़रत हमज़ा के हमलों से, दुश्मनों के पाँव उखड़ने

यह इस्लाम का पहला गज़वा था, जिसमें तकरीबन ७० दुश्मन मारे गए और ७० दुश्मन, गिरफ्तार किए गए. बाकियों ने भागकर अपनी जान बचाई. रसूलुल्लाह की फौज़ से चौदह लोग शहीद हुए, जिनमें छः मुहाज़िर और आठ अंसार थे।

हज़रत अली की तलवार से हलाक़ होने वाले दुश्मनों की तादाद तकरीबन ३५ बताई जाती है। अल्लाह के खास करम और आप सल्लललाहु अलैहे वसल्लम की दुआ से जंग ए बद्र में कामयाबी भी अली अलैहिस्सलाम की शुजाअत और बाजुओं की दम से ही मिली।

Allah Ta’ala ki Maarifat

Jisey Allah Ta’ala ki Maarifat nasib hojaye wo Wali banjata hai aur jiesy jitni Maarifat nasib hoti hai utna uska Darja buland hota hai.

Imam Abu Nuaim ‘Hilyatul Aulia’ me apni sanad se riwayat karte hain ke Sayyeduna Maula Ali Alaihissalam ne Hazrat Abdullah ibne Abbas RadiAllahu Anhuma ko Zaid bin Suhaan ki taraf bheja to Hazrat Abdullah ibne Abbas RadiAllahu Anhuma ne farmaya:
“Ya Ameeral Mu’mineen! Inni Ma Alimtuka Labi Zaatillahi Aleemun, wa Innalaha Lafee Swadrika Azeemun!”
“Ay Ameer ul Momineen! Beshaq yaqinan mai Aapko Zaat-e-Ilaahi ke mutalliq sabse zyada Ilm rakhne waala jaanta hun! Beshaq! Allah Ta’ala (ki Maarifat) Aapke Seena-e-Aqdas me sabse badhkar hai!”

Imam Abu Nuaim, Hilyatul Aulia, 1/72
Dr. Tahir-ul-Qadri, Baab-e-Madinatul Ilm (Alaihi-Mussalam) Hadees #38

(Sayyeduna Abdullah ibne Abbas RadiAllahu Anhuma ko Khud Aaqa SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne “Hibro Haazihil Ummah” yaani “Ummat ke sabse bade Tarjumanul Quran” ka Laqab ata farmaya, aur Wo Maula-e-Kainat KarramAllahu Wajhahul Kareem ke bareme Ye keh rahe hain!!)

Allahumma Salle Ala Sayyedina wa Maulana Muhammad wa Ala Sayyedina Aliyyuw wa Sayyedatina Fatimah wa Sayyedatina Zainab wa Sayyedina Hasan wa Sayyedina Hussain wa Ala Aalihi wa Sahbihi wa Baarik wa Sallim

Zikr e Hazrat Sayyedna Ammar bin Yasir Radiallahu anhoojalilul qadar sahabi rasool

👉🏻 islam lane wale 8 we shaks

👉🏻apky walden islam k sab se pahle shaheed

👉🏻 rasool allah sallal allaho alyhe wasallam ne apko jannat ki basharat di

👉🏻 rasool allah sallal allaho alyhe wasallam ne farmaya jo ammar ko bura kahe allah s.w.t usko apni rahmat se door rakhe ga..

👉🏻rasool allah sallal allaho alyhe wasallam ky sath tamam gazwe me sharik rahe

👉🏻hazrat aisha r.z ko bura kahne walo ko MARDUD KAHTE THE..
(Ref sahsitta)

👉🏻daure siddiqi me aqeeda khatme nabovat ky tahffuz ky liye jange yamama me imp role ada kre…

👉🏻hazrat umar ne apko kufe ka governor banaya…

👉🏻hazrat ali ky hamra jange siffin me shaheed hoe…

👉🏻masjid nabvi ki tamir ky dauran rasool allah sallal allaho alyhe wasallam ne apko shahadat ki khabar di thi..
(Ref bukhari)

9th Safar Yaum E Shahdat Hazrat Amma Bin Yasar.,
Shekheen (RehmatULLAH) Ne Abu Saeed O Muslim (RehmatULLAH Aleh) ne Umme Salma (Razi ALLAH Anhu) Aur Abu Qatadah (Razi ALLAH Anhu) se Riwaayat ki Ke Rasool Allah (صلى الله عليه وآله وسلم) Ne Hazrat Ammar (Razi ALLAH Anhu) se Farmaya,
.
Tumhen Baagi Jama’at Shaheed Karegi, Tum Unhe Jannat Ki Taraf Bulaoge Woh Jannam Ki Taraf Bulaigi
.
Yeh Hadees Mutawatir hai, ise 10 Shabiyon ne Riwaayat kiya hai”.

(Baagi Jamaat Sab Ko Malum Hai Ameer Shaam (Maviya) Ki Fouj Thi.)
.
Reference :

  • Khasais Ul Kubra, Jild#2, Page#239, Matboo’a Daar Ul Kutub, Ilmiyah, Beroot
  • Muwaahib ul Ludinyah, Jild#3, Page#101, Matboo’a Dar ul Qutub ul Ilmiyah, Beroot
  • Sahih Bukhari, Raqam ul Hadees#447-2812
  • Sahih Muslim, Raqam ul Hadees#70-72-73
  • Dalael un Nabuwwah Imam Beh’ki, Jild#2, Page#546
  • Al Mu’jam ul Kabeer lit Tabarani, Jild#1, Page#320,
  • Raqam ul Hadees#954, Matboo’a Maktabah tul Uloom wal Hakam al Mosool.
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    Isi Tara Alag Alag Riwayato Ke Saat Aur Thoda Alfaz Aage Peeche Kar Ke Hai 👇
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  • Al Astiyaab, Zikar Hazrat Ammar Bin Yaasir (Razi ALLAH Anhu), Jild#3, Page#1140, Ba Raqam 1863, Matboo’a Daar Ul Jeel, Beroot
  • Bahwala: Waseela Tul Salaam Ba Nabi (ALEH SALAAM), Page#133, Matboo’a Daar Ul Garb Ul Islaami, Beroot
  • Bahawala: Tehzeeb Ul Asma, Jild#2, Page#351, Ba Raqam#465, MAtboo’a Daar Ul Fiqar, Beroot
  • Bahawala: Al Ahaad O Al Mashaani Zikar Ammaar Bin Yaasir, Jild#1, Page#207, Raqam Ul Hadees 271, Matboo’a Daar Ur Ra’ya Ur Riyaaz
  • Halyat Ul Oliya O Tabqaat O Al Asfiyah Jild#7 Page #197 Matboo’a Daar Ul Kitaab Al Arabi, Beroot
  • Roza ul Anaf Zikar Sumiya Umm e Ammar, Jild#2, Page#338, MAtboo’a Daar Ul Kutub Ilmiyah, Beroot
  • As Seerat Un Nabuwwah Al Maaroof Seerat Ibn-E-Hasshaam, Jild#3, Page#25, Matboo’a Daar Ul Jeel, Beroot … Ect…