मौला अली का घराना

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घराने का जिक्र, कुरआन और हदीस में मौजूद है। आप अहलेबैत अलैहिस्सलाम की अजमत को पता नहीं क्यों लेकिन कभी छिपाने की कोशिश की गईं, कभी दबाने की कोशिश की गई लेकिन कहते हैं कि हक कभी नहीं छिपाया जा सकता। आइए देखते हैं कि अहलेबैत और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बारे में कुरआन और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने क्या-क्या फरमाया है।

आयत ए मुबाहला

वैसे तो सारा का सारा कुरआन ही रसूलुल्लाह और अहलेबैत की शान बयान कर रहा है लेकिन लोग दलील नहीं मानते हालाँकि अगर आप सूरः आल ए इमरान की आयत ६१ पढ़कर देखेंगे तो पाएंगे कि अल्लाह ने इन्हें दलील से ऊपर रखा है। ये आयत, आयत ए मुबाहला कहलाती है। हक छिपाने वाले कुछ मौलवी साहब को भी मजबूरन ये आयत तो बताना ही पड़ती है क्योंकि ये कुरआन का हिस्सा है लेकिन वह तफ्सौर ना बताकर अपना बचाव कर ही लेते हैं।

इस आयत में अल्लाह रब उल इज्जत फरमाता है, जिसका तर्जुमा है “फिर जब तुम्हारे पास कुरआन आ चुका, उसके बाद भी अगर तुमसे कोई हुज्जत बाजी करे तो उन्हें कहो कि हम और तुम अपने-अपने बेटों लाएँ और हम अपनी औरतों को बुला लाएँ, तुम अपनी औरतों को बुला लाओ. हम अपनी जानों को बुलाएँ और तुम अपनी जानों को और सब मिलकर दिल से दुआ करें कि जो झूठा हो उस पर खुदा की लानत हो”

अब हम देखते हैं कि आखिर ऐसी क्या बात हुई जो बात मुबाहला तक पहुँची। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में नजरान के नसारा को हज़रत मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने बहुत समझाया कि उनको खुदा का बेटा ना कहो, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की भी मिसाल दी, मगर उन लोगों ने नबी की एक ना सुनी, आख़िर में खुदा के ही हुक्म से बात कसम और लानत की दुआ पर आकर ठहरी। ऊपर आयत में दोबारा देख सकते हैं।

यहाँ पर गौर करने वाली बात है अल्लाह ने बेटों को साथ लाने का हुक्म दिया और शिया-सुन्नी दोनों मसलक इस बात पर सहमत हैं कि रसूलुल्लाह के बेटे नहीं थे यानी हुए भी तो अल्लाह को प्यारे हो गए. फिर वह कौन हैं जिन्हें रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने बेटा माना और वह नबी सल्लललाह अलैहे वसल्लम की जान हैं?

बहरहाल, जिस दिन मुबाहला होने वाला था, अस्हाब तैयार होकर रसूलुल्लाह के पास आए कि शायद आप साथ ले लें लेकिन आपने सुबहसुबह ही हज़रत सलमान फारसी रजिअल्लाहु अन्हो को चार लकड़ी

और एक कम्बल देकर उस मैदान की तरफ़ रवाना किया और छोटा-सा सायबान तैयार करने का हुक्म दिया और खुद इस शान से निकले की हज़रत हसन अलैहिस्सलाम का हाथ थामा, हज़रत हुसैन अलैहिस्सलाम को गोद में लिया, जनाब फातिमा सलामुल्लाह अलैहा अपने बाबा के पीछे हो गईं और हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके पीछे हो गए।

यानी बेटों की जगह नवासों को, इमाम हसन और इमाम हुसैन और औरतों की जगह फातिमा सलामुल्लाह अलैहा को और जानों की जगह हज़रत अली अलैहिस्सलाम को लेकर मुबाहला की तरफ़ चल दिए. इसलिए हम मौला अली को नफ्स ए रसूल भी कहते हैं।

आपने निकलने के पहले ये दुआ भी की खुदाया हर नबी के अहलेबैत होते हैं और ये मेरे अहलेबैत हैं, इनको हर बुराई से दूर और पाक व पाकीज़ा रखना। आपको इस शान से तश्-रीफ़ लाता देख, नसारा का सरदार, आप सल्लललाहु अलैहे वसल्लम और अहलेबैत की तरफ़ देखकर कहने लगा, ” खुदा की कसम, मैं ऐसे नूरानी चेहरे देख रहा हूँ कि अगर ये पहाड़ को अपनी जगह से हट जाने के लिए कहें तो यकीनन वह हट जाएगा इसलिए खैरियत इसी में है कि मुबाहला ना किया जाए वरना कयामत तक के लिए हमारी नस्ल ही ख़त्म हो जाएगी।

आखिर उन लोगों ने सारी बातें मान लीं तब रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि अगर ये बात ना मानते तो ये मैदान आग में तब्दील हो जाता, इनकी शक्लें सुअर और बन्दरों की तरह हो जाती और यहाँ सब तबाह हो जाता।

जी हाँ आप अपने घर में रखे कुरआन में खुद देख सकते हैं, एक ऐसी आयत जिसकी तफ्सीर बताने से कुछ मौलवी साहब घबराते हैं।

आयत ए मवद्दत

सूरः शूरा की आयत २३ को आयत ए मवद्दत भी कहते हैं। इस आयत में अल्लाह फरमाता है –

जिसका तर्जुमा है “यही (इनआम) है जिसकी खुदा अपने बन्दों को खुशख़बरी देता है, जो ईमान लाए और नेक काम करते रहे। तुम (ऐ रसूल!) कह दो, मैं इस (तब्लीग ए रिसालत) का अपने क़राबत दारों (अहलेबैत) की मुहब्बत के सिवा कोई सिला नहीं माँगता और जो शख्स नेकी हासिल करेगा हम उसके लिए उसकी खूबी में इजाफा कर देंगे बेशक खुदा बख्शने वाला कद्रदान है।”

इस आयत से साफ़ है कि रसूलुल्लाह ने इस उम्मत से कोई सिला नहीं माँगा सिवाय अपनी अहलेबैत से मुहब्बत के लेकिन आज इस आयत की तफ्सीर को भी कुछ हज़रात छिपाना चाहते हैं, वजह साफ़ है अगर इस आयत को खोल खोलकर बयान करेंगे तो उम्मत समझने लगेगी कि रसूलुल्लाह ने बस एक ही सिला माँगा था और बदले में लोगों ने मुहब्बत ना दी तो ना दी बल्कि अहलेबैत अलैहिस्सलाम पर जुल्म की हद कर दी।

आलिम लिखते हैं कि ये आयत तब नाज़िल हुई जब रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम, अंसार को फजीलत ए अहलेबैत बता रहे थे और साथ-साथ ये भी बता रहे थे कि आल ए मुहम्मद से मुहब्बत ईमान को कामिल करती है और इनकी मुहब्बत में जान गंवाने वाला भी शहीद है। कर * में मिलता है कि “अल्लाह अहलेबैत से मुहब्बत करने

वालों को और भी ज्यादा नेकी देगा”

आयत ए ततहीर –

सूरः अहजाब की आयत ३३ में अल्लाह रब उल इज्जत , नबी अलैहिस्सलाम की बीवियों को समझाईश दे रहे हैं फिर इसी आयत में आगे अहलेबैत के लिए फरमाते हैं –

” ऐ पैगम्बर के अहलेबैत ! खुदा तो बस ये चाहता है कि तुमको (हर तरह की) बुराई से दूर रखे और जो पाक व पाकीज़ा रखने का हक़ है , वैसा पाक व पाकीज़ा रखे। “

यहाँ भी शिया – सुन्नी के बीच कोई इख्तिलाफ़ नहीं है , सब मानते हैं कि चादर ए ततहीर में पाँच लोग हैं जिनके लिए खास तौर पर ये आयत आई हज़रत मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे वसल्लम , हज़रत अली अलैहिस्सलाम , हज़रत फातिमा सलामुल्लाह अलैहा , हज़रत हसन अलैहिस्सलाम और हज़रत हुसैन अलैहिस्सलाम ।

आलिमों ने अपने अपने हिसाब से अहलेबैत को समझाया है , कुछ ने इन पाँच को अहलेबैत माना कुछ ने रसूलुल्लाह की बीवियों और बच्चों को शुमार किया और कुछ ने कयामत तक पैदा होने वाली हर हसनी – हुसैनी औलाद को अहलेबैत में शुमार माना बहरहाल इसमें इख्तिलाफ़ है लेकिन इसमें भी कोई इतिलाफ़ नहीं की अहलेबैत में पंजतन का मर्तबा ज्यादा बुलंद है।

अल्लाह ने अहलेबैत को हर तरह की गंदगी से , बुराई से दूर रखकर पाक किया । यहाँ पाक करने से मुराद सिर्फ़ जिस्मानी नहीं है बल्कि अहलेबैत अलैहिस्सलाम की रूह और कल्ब भी पाक हैं । ये गलत काम नहीं करते , ना झूठ ही बोलते हैं , ये ऐबों से पाक हैं , बहुत नेक और पाकदामन हैं।

आयत ए विलायत

बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिन्होंने ग़दीर को या तो झुठलाने की कोशिश की है या फिर बयान गलत ढंग से करने की कोशिश की है। मेरा अल्लाह, लोगों के हर फैल जानता है और वो कभी नहीं चाहता कि उसके बंदे गुमराह हों। इसलिए मेरे रब ने अपना कलाम हमें दिया, जिसमें सारे जवाब मौजूद हैं तो क्या ऐसा हो सकता है कि इसमें विलायत से कोई बात ना आई हो?

आई है और साफ़ साफ़ इशारा करते हए आई है, जाहिर सी बात है, जहाँ बात विलायत की हो, इशारा मेरे मौला अली अलैहिस्सलाम की तरफ़ ही होगा, आइए कुरआन में देखते हैं कि क्या लिखा है।

जब आप सूरः माइदा की आयत नंबर ५५ पर पहुँचोगे तो पाओगे कि अल्लाह रब उल इज्जत फरमाते हैं –

जिसका तर्जुमा ये है कि, “ऐ ईमानवालों! तुम्हारे सरपरस्त(वली) तो बस यही हैं, खुदा और उसका रसूल और वह मोमिनीन जो नमाज़ अदा करते हैं और हालत ए रुकू में ज़कात देते हैं”

इस आयत के बारे में एक बात बता दूं कि शिया और सुन्नी के हर बड़े आलिम ने तफ्सीर में ये बात मानी है कि ये आयत, हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शान में नाज़िल हुई है, लेकिन आज देखता हूँ कि ज्यादातर कुरआन के तर्जुमों में तर्जुमा करने वालों ने इस आयत को सही तरह से नहीं समझाया, कुछ कुरान के तर्जुमों में तो बस इतना लिखा है कि “नमाज़ पढ़ते हैं और ज़कात देते हैं” यानी “हालत ए रुकू”, तर्जुमे से ही गायब कर दिया।

अल्लाह ही जाने ऐसा क्यों किया गया बाकि एक बात मैं ये जानता हूँ कि हालत ए रुकू में, कभी किसी ने ज़कात दी हो, ऐसा तारीख़ में नहीं मिलता सिवाय मौला अली अलैहिस्सलाम के।

आप मौला अली अलैहिस्सलाम ने दौरान ए रुकू, एक माँगने वाले को अपनी अँगूठी ज़कात कर दी थी और उलेमाओं ने लिखा है कि उसके बाद ही ये आयत नाज़िल हुई।

इस आयत में भी साफ़ इशारा है कि हमारा मौला, हमारा वली, हमारा सरपरस्त सिर्फ़ अल्लाह है और अल्लाह ने ही हमें दो सरपरस्त और दिए हैं पहले तो हमारे आका सल्लललाहु अलैहे वसल्लम जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम के भी मौला हैं और तीसरे हमारे मौला अली अलैहिस्सलाम।

अल्लाह रब उल इज्जत, हम सबको हक़ पर चलने वाला और हक़ कहने वाला बनाए।

दो गराँकद्र चीजें

रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम ने फरमाया-” बिला शुबह मैं तुम लोगों में दो गराँकद्र चीजें छोड़े जाता हूँ जो ऐसी हैं कि अगर तुम इन दोनों से तमस्सुक रखोगे (यानी दोनों को मजबूती से थामकर रहोगे) तो मेरे बाद हरगिज़ गुमराह ना होगे। वह हैं अल्लाह की किताब, कुरआन और मेरी इतरत, अहलेबैत।

रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने ये भी फरमाया कि “अल्लाह की किताब और मेरे इतरत अहलेबैत अलैहिस्सलाम एक दूसरे से ता-कयामत जुदा ना होंगे हता के हौज़ ए कौसर पर भी मेरे पास दोनों इकट्ठे ही आएँगे। अगर तुम इन दोनों से तमस्सुक रखोगे, इन दोनों को थामकर रखोगे तो मेरे बाद तुम्हारे गुमराह न होने का कोई इम्कान ही ना बचेगा और साबित कदम रहोगे।”

इस्लाम में कई फिरके हैं, सब एक दूसरे से नफ़रत भी कर रहे हैं और लड़ भी रहे हैं लेकिन मैं आपको बता दूँ इस्लाम का रास्ता एक है, फिरकापरस्ती छोड़कर लोगों को ये दो चीजें थामना चाहिए. इनसे तमस्सुक रखना ही फलाह ए दुनिया ओ आख़िरत है।

सफीना ए नूह

मुहम्मद मुस्तफा सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया की “मेरी अहलेबैत अलैहिस्सलाम की मिसाल, सफीना फ नूह की मिसाल के मानिंद है, जो उसमें सवार हुआ उसने निजात पाई और जो उससे पीछे रह गया वह गर्क हो गया”

अगर आप कुरआन की रौशनी में देखें तो सफीना ए नूह, ना ही सितारों को देखकर चल रहा था, ना ही कोई अपने मुताबिक चला रहा था

वसी-ए-रसूल

बल्कि वह कश्ती तो अल्लाह की निगरानी में चल रही थी।

इस हदीस से ये भी साबित होता है कि अहलेबैत ज़रिया ए निजात हैं, उनके तरीकों पर चलने वाला और उनसे मवद्दत करने वाला बच जाएगा लेकिन उनके खिलाफ़ रहने वाला दोनों आलम में डूब जाएगा।

बाब ए हिता

रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने ये भी फरमाया कि “मेरे अहलेबैत की मिसाल बनी इस्राईल के बाब ए हिता यानी दरवाजा ए बख्शिश की मानिंद है, जो भी इसमें दाखिल हुआ उसकी मगफिरत हो गई।”

जाहिर-सी बात है कि गुमराहों के लिए बख्शिश नहीं यानी अल्लाह ने अहलेबैत अलैहिस्सलाम को “गुमराही से बचाने वाला बनाया है” और ज़रिया ए मगफिरत भी। अगर ये एक बात लोग समझ लें तो फिरके की गुंजाइश नहीं रहेगी लेकिन ये भी हक़ है, जो कौम हज़रत हुसैन अलैहिस्सलाम के पुकारने पर एक नहीं हुई वह एक नहीं होगी।

लेकिन हिदायत अल्लाह के हाथ में है और हमें हक़ आम करना चाहिए।

हदीस ए अमान

नबी सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि “सितारे ज़मीन वालों के लिए गर्क होने से अमान हैं और मेरे अहलेबैत अलैहिस्सलाम, मेरी उम्मत के लिए इखतिलाफ़ से अमान हैं यानी साफ है, जब कोई गिरोह उनसे इखतिलाफात करेगा तो गिरोह एइब्लीस से होगा।”

इस हदीस से भी साफ़ साबित हो रहा है, अहलेबैत का दुश्मन शैतान के गिरोह से है और अहलेबैत के गुलाम और आशिक़, कामयाब होंगे।

मन कुन्तो मौला

हज़रत मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि मैं जिसजिस का मौला हूँ, अली भी उसका मौला है। यहाँ मौला के मायने सरपरस्त से ही हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने विलायत भी अता की और आप तमाम वलियों के सरदार हैं। आपकी विलायत को मानना भी ज़रूरी है क्योंकि आप अलैहिस्सलाम की मुहब्बत ही मोमिन और मुनाफिक के बीच का फर्क बताने वाली है।

इल्म ए रसूल का दरवाज़ा

तमाम फिरकों के ओलेमा ने यह हदीस नक्ल की है कि सरकार ए दो जहाँ मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया, “मैं इल्म का शहर हूँ और अली उसका दरवाज़ा है”

यानी इल्म के शहर में जाना है तो बाब, अली हैं और याद रखें तालिब ए इल्म, दरवाजे से ही दाखिल होता है, खिड़कियों से दाखिल होने की कोशिश करने वाला चोर होता है।

हिकमत ए रसूल का दरवाज़ा

रसूल ए खुदा सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि ” मैं हिकमत का घर हूँ और अली उसका दरवाजा” यानी हिकमत भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ज़रिए ही मिलती है।

हज़रत अली और अलामत ए इश्क ए रसूल

सहाबा रजिअल्लाहु अन्हो ने पूछा-या रसूलुल्लाह! आपकी मुहब्बत की अलामत क्या है?

आप हज़रत सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने हज़रत अली के कन्धे पर मारते हुए इशारा किया यानी ये मेरी मुहब्बत की अलामत है।

यानी जिसके दिल में मौला अली अलैहिस्सलाम का बुग्ज़ भी हो और इश्क एनबी का दावा भी हो, तो ये दावा झूठा है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम और कुरआन

रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया कि “अली, कुरआन के साथ है और कुरआन, अली के साथ है और ये दोनों एक दूसरे से जुदा ना होंगे। हता कि इकट्ठे ही हौज़ ए कौसर पर वारिद होंगे।”

हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हक़

कुछ मुहद्दिसीन ने अम्मा सलमा रजिअल्लाहु अन्हा से रिवायत कर के

लिखा है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फरमाया की अली हक़ के साथ है और हक़ अली के साथ है।

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असीराने हरम का काफिला मदीने में

जिस वक्त अहले हरम का काफिला मदीने के करीब पहुंचा तो हज़रत सैय्यदा जैनब के हुक्म पर काफिला बैरूने शहर रोका गया। हज़रत सैय्यदा जैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा ने एक शख्स को शहर में भेजा कि जाकर मदीने में ऐलान कर दे कि अहले हरम वापस आ गये हैं। तो सबसे पहले हज़रत जाबिर इने अब्दुल्लाह ने उस काफिले का खैर मकदम किया।

अहले मदीना जमाअत दर जमाअत हाज़िर होने लगे। मदीने में कोई ऐसी पर्दादार औरत न थी जो आह व फुगां करते हुए बाहर न निकल आई हो। लोगों का इज़्देहाम हो गया। हर तरफ रोने की आवाजें बुलन्द थीं। हज़रत इमाम जैनुल आबेदीन रजि अल्लाहु अन्हु ने तमाम रूदादे सफर पर रौशनी डाली। जिसे अहले मदीना सुन कर तड़प गये और बेखुद हो गये जिन-जिन हालात का मुकाबला अहले बैत को करना पड़ा सब पर रौशनी डाली गई।

यह मुकद्दस काफिला मदीने में दाखिल हुआ हजरत सैय्यदा ज़ैनब का यह हाल था कि घुटनों के बल चल कर मदीने में दाखिल हुईं। मदीने के ज़र्रे-ज़र्रे से जो हज़रत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु को वाबस्तगी थी वह न किसी तफ़सील की मुहताज है न तशरीह की। यह मदीना ही तो है जहां हज़रत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु और हज़रत सैय्यदा जैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा पैदा हुए, पले बढ़े और जवान हुए यह वही मदीना है अब जहां सिर्फ हज़रत सैय्यदा जैनब थीं और हज़रत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु न थे। हज़रत उम्मे कुल्सूम रज़ि अल्लाहु अन्हा की यह हालत थी कि ज़ार व कतार रो रही थीं और अर्ज करती जा रही थीं : ऐ नाना जान! हम आपके दरे पाक में हसरत भरे दिलों से लोट आए हैं।

तमाम माओं की गोदें सूनी हो गईं। हम सब व रज़ा पर हर हाल में कायम हैं। ऐ नाना! हम आपकी चहेती और लाडली बेटियां हैं, ऐ नाना! आज हम पर यह जुल्म हुआ कि हम ऊंटों पर बेहिजाब व बेपर्दा सवार की गई।

हज़रत सैय्यदा ज़ैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा का यह हाल था कि आप घुटनों के बल दूध पीते बच्चे की तरह घसीटती हुई मदीने में दाखिल हुई इसी तरह रौज़-ए-रसूल तक गईं क्योंकि खड़े होने की सकत न थी। नाना जान के मज़ारे अक्दस से लिपट कर हज़रत सैय्यदा जैनब बेहोश हो गईं, कोई क्या बताए कि वह क्या मन्ज़र रहा होगा। हज़रत सैय्यदा जैनब ने अपने नाना से क्या कहा।

भाई के ईफ़ाए वादा का तकिरा किया या उम्मत की शिकायत की। अपने बाजुओं के नील दिखाए या भाई का खून आलूद पैरहन पेश किया।

रौज़-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हिलने लगा बाज मुअरेखीन का ख्याल है कि मदीना में कई दिन तक मातम रहा। हज़रत इमाम जैनुल आबेदीन रज़ि अल्लाहु अन्हु नाना के रौजे पर हाज़िर हुए और दस्तबस्ता अर्ज़ करने लगे : “ऐ नाना जान! दुश्मनों ने हमारा सब कुछ लूट लिया, हमारे वालिदे मोहतरम को बड़ी तौहीन व तहकीर के साथ कत्ल कर दिया।

और आपके जिगर के टुक्ड़े हजरत सैय्यदना इमाम हुसैन रजि अल्लाहु अन्हु बड़ी बेदर्दी से शहीद हुए। दुश्मनों ने उनका सरे मुबारक काट कर नोक नेज़ह पर बुलन्द किया। लेकिन वह सरे मुबारक नेज़े पर ऐसा चमकता था जैसे आसमान में चौदहवीं का चांद चमकता है।

ऐ नाना! दुश्मनों ने हम पर मज़ालिम के पहाड़ तोड़े, हमारे माल व असबाब को छीन लिया। और हमारे खेमों को लूट लिया हमारा कोई मुआविन व मददगार न था। उन्होंने हमारी तौहीन करने के लिए ऊंटों की नंगी पीठों पर सवार करके शहर-शहर, करिया-करिया घुमाया और दमिश्क में लाकर यज़ीद के दरबार में खड़ा कर दिया।

यजीद ने कहा कि मैंने तुमसे अपना मक्सद हासिल कर लिया और तुम्हारे पिद्र मुअज़म के कत्ल से मुझे खुशी हुई। क्योंकि बद्र व उहद का बदला लिया है, ऐ नाना जान! उसने तो मुझे भी कत्ल करना चाहा था मगर मेरी फूफी हजरत सैय्यदा ज़ैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा चिल्ला उठी और शोर मचाया तो यज़ीद ने कहा उसे छोड़ दो यह आज़ादों में से है।

ऐ नाना जान! कल क्यामत में उस से हमारा हक लीजिए और हथ में कल फैसला के दिन फैसला कीजिए।

उसके बाद सरे इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु को पहलूए सैय्यदा खातूने जन्नत में दफन किया गया। हज़रत इमाम जैनुल आबेदीन रज़ि अल्लाहु अन्हु ने वापसी करबला के बाद मदीना मुनव्वरा को अपना मसकन बनाया। और आबादी से अलग थलग रहने लगे।

बिन अब्दुल मलिक ने 75 हिज. में आपको ज़हर दिलवा दिया।

वलीद 57/साल की उम्र पाक में 18 मुहर्रमुल-हराम बरोज़ मंगल पहलूए सैय्यदना हज़रत इमाम हसन रजि अल्लाहु अन्हु जन्नतुल-बकी में दफन हुए। (मिरातुल-असरार)

हज़रत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु का शहीद होना था कि यज़ीद ने खुल्लम खुल्ला जना, लेवातत, हराम कारी, भाई बहन का बियाह, सूद व शराब खोरी को फरोग देना शुरू किया।

Doshe Payambar SallAllahu Ta’ala ‘Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Par Sawaari

Huzoor SallAllahu Ta’ala ‘Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Ko Apne Laadle Nawaaso’n Se Kitni Mahabbat Thi Woh Unhein Kitna Chaahte They Shaayad Aaj Hum Us Ka Andaazah Na Kar Sakein Kyun Ki Hum Jhagdo’n Me Pad Gaye Hain, Haqiqatein Hamaari Nazro’n Se Ojhal Ho Chuki Hain, Haqaa’iq Ka Chehrah Gard Aalood Hai, Aa’ine Dhund Me Lipte Huwe Hain Hala’n Ki Khulafa-E-Rashidin Aur Ahl-E-Bayt-E-Nabawi RadiyAllahu Ta’ala ‘Anhum Ukhuwwat Aur Mahabbat Ke Gehre Rishto’n Me Munsalik They. Khandane Mustafa SallAllahu Ta’ala ‘Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Ke Ihtiraam Kee Faza-E-Noor Qalb-o-Nazar Pr Muheet Thi. Ali KarramAllahu Ta’ala Waj’hah-ul-Karim Ke Noore Nazar, As’habe Rasool Kee Aankho’n Ka Taara They.

عن عمر يعني ابن الخطاب قال رأيت الحسن والحسين علي عاتقي النبي صلى الله تعالى عليه وآله وسلم فقلت نعم الفرس تحتکما فقال النبي صلى الله تعالى عليه وآله وسلم ونعم الفارسان

“Hazrat Umar Bin Khattab RadiyAllahu Ta’ala ‘Anhu Se Marwi Hai Ki Mein Ne Hasan Aur Husayn Dono’n Ko Dekha Ki Nabiyye Akram SallAllahu Ta’ala ‘Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Ke Kandho’n Par Sawaar Hain Mein Ne Kaha Kitni Achchhi Sawaari Tumhaare Neeche Hai Pas Nabiyye Akram SallAllahu Ta’ala ‘Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Ne Ma’an Farmaya Sawaar Kitne Achchhe Hain.”

[Haythami Fi Majma’-uz-Zawa’id Wa Manba’-ul-Fawa’id, 09/182,

Rawahu Aboo Ya’la Fi Al-Kabir Wa Rijaaluhu Rijaal As-Sahih.]
Woh Manzar Kya Dilkash Manzar Hoga. Jannat Ke Jawaano’n Ke Sardaar Shahzaada Hasan Aur Husayn Apne Naana Jaan Ke Muqaddas Kandho’n Par Sawaar Hain, Sayyidina Farooqe A’zam Yeh Rooh Parwar Manzar Dekhte Hain Aur Shehzado’n Ko Mubarakbaad Dete Huwe Be Saakhta Pukaar Uthey Hain. Shahzaado’n! Tumhaari Neeche Kitni Achchhi Sawaari Hai. Farmaya Tajdare Ka’enat SallAllahu Ta’ala ‘Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Ne : Umar! Dekha Nahin Sawaar Kitne Achchhe Hain? Woh Hasan Aur Husayn RadiyAllahu Ta’ala ‘Anhuma Jinhein Aaqa-E-Do-Jaha’n Ke Muqaddas Kandho’n Par Sawaari Ka Sharaf Haasil Ho Aur Woh Hasan Aur Husayn RadiyAllahu Ta’ala ‘Anhuma Huzoor Nabiyye Akram SallAllahu Ta’ala ‘Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Ne Jinhein Choosne Ke Liye Apni Zubaan Mubaarak Ata Kee, Jinhein Apne Lu’aabe Dahan Se Nawaaza, JinheinApni Aaghoshe Rahmat Me Behlaaya.

[Dhib’he ‘Azeem(Dhib’he Isma’il ‘Alayh-is-Salam Se Dhib’he Husayn RadiyAllahu Ta’ala ‘Anhu Tak)/84_85.]

Sare Husayn RadiyAllahu Ta’ala ‘Anhu Kee I’jaazi Shaan

Kehte Hain Ki Sab Se Aage Imam Husayn ‘Alayh-is-Salam Ka Sar Mubarak Tha Jab Yazeedi Log Saro’n Ko Le Kar Ghum Rahe They To Us Waqt Aik Makaan Ke Qareeb Se Guzre Andar Se Kisi Shakhs Kee Aawaaz Aayi, Jo Soorah Kahf Kee Tilawat Kar Raha Tha Aur Us Kee Zubaan Par Yeh Aayate Karimah Thi :

أَمْ حَسِبْتَ أَنَّ أَصْحَابَ الْكَهْفِ وَالرَّقِيمِ كَانُوا مِنْ آيَاتِنَا عَجَبًا ۝

[Al-Kahf : 09.]

“Kya Too Ne Socha Ki As’haabe Kahf Ya’ni Ghaar Waale Log Hamari Ajeeb Nishaaniyo’n Me Se Aik Nishaani They”

Us Waqt Imame Pak Ke Sar Mubarak Ne Faseeh Zubaan Me Kaha :

أعجب من أصحاب الكهف قتلي وحملي

“Mera Qatl Kiya Jaana Aur Yoo’n Galiyo’n Me Phiraaya Jaana As’haabe Kahf Ke Waaqi’e Se Bhi Ajeeb Tar Hai”

Aik Shakhs Ka Bayan Hai Ki Allah Kee Izzat Kee Qasam Mein Ne Apni Aankho’n Se Dekha ki Imam Husayn Ka Sare Anwar Yazeed Ke Hukm Par Dimashq Me Phiraaya Jaa Raha Tha Un Ke Neze Ke Saamne Aik Dimashq Ka Shakhs Jaa Raha Tha Aur Woh Soorah Kahf Kee Tilaawat Kar Raha Tha Jab Woh Is Maqam Par Pahuncha Ki Kahf Aur Raqeem Ke Logo’n Ke Waqe’at Bahut Ajeeb Hain To Allah Paak Ne Sare Husayn Ko Zubaan Ata Kar Dee Aur Imam Husayn Ka Sare Anwar Neze Kee Nok Se Faseeh Zubaan Me Bola Ki Kahf Aur Raqeem Ke Waaqi’aat Par Ta’ajjub Karne Waalo’n! Nawasa-E-Rasool Ka Sar Kat Kar Neze Par Sawaar Kiya Jaana Yeh Kahf Ke Waaqie Se Bhi Ajeeb Tar Hai Aur Ziyaada Dardnaak Hai.

Imam Aali Maqam Ke Is Waaqie Ke Baa’d Imam Aali Maqam Ke Us Muqaddas Qaafile Aur Un Bibiyo’n Ko Phir Madinah Kee Taraf Rawaana Kiya Gaya. Yeh Luta Puta Qaafila Hazrat Zayn-ul-Aabidin Kee Qiyaadat Me Jab Madinah Pahuncha To Shahre Madinah Kee Galiyo’n Me Qiyamat Bapa Ho Gayi Aik Kohraam Mach Gaya. Aik Ajeeb Kaifiyyat Taari Ho Gayi Aur Hum Nahin Samajh Sakte Ki Waha’n Ke Dharraat Ka Aalam Kya Hoga? Madine Kee Galiyo’n Kee Jis Khaak Par Husayn Ka Bachpan Guzra Tha Us Khaak Ke Zarre Is Lute Huwe Qaafile Ko Dekh Kar Kya Kehte Honge? Madine Kee Fazaao’n Me Jaha’n Husayn Apne Naana Ke Kandho’n Par Sawaar Ho Kar Saans Lete Rahe Un Fazaao’n Ke Afsurdagi Ka Aalam Kya Huwa Hoga? Madine Ke Dar-o-Diwaar Kya Kehte Honge? Waha’n Ke Buzurg Aur Naujawaan Kya Soch Rahe Honge Are Gumbade Khadra’ Ke Saaye Kya Kehte Honge Aur Huzoor SallAllahu Ta’ala ‘Alayhi Wa-Aalihi Wa-Sallam Ke Rawda-E-At’har Kee Fazaaein Kya Kahti Hongi? Yeh Mu’amala To Allah Hee Behtar Jaanta Hai.

[Shahadate Imame Husayn RadiyAllahu Ta’ala ‘Anhu Haqa’iq Wa Waqe’at Kee Raushni Me, Safha-63_64.]
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Types of Hadith

Hadith refers to the sayings or narrations of the Prophet Muhammad ﷺ’s speech, his deeds, acts of approval & disapproval (verbal or by way of action) about something.

Hadith, in general, is made up of three basic components:

ISNAD (Sequence of Reporters) – This is the chain of narrators through which the Hadith has spread.
TARAF (Introductory Text) – This is the beginning of the text which refers to the actions or characteristics of the Holy Prophet ﷺ.
MATN (Content) – This is the main text of the Hadith, or the actual speech of the Prophet ﷺ.

The following are the five basic categorisations of Hadith:

1) According to Reference to a Particular Authority
2) According to the Links of Isnad (Sequence of Reporters)
3) According to the Number of Reporters
4) According to Nature of Matn and Isnad
5) According to Authenticity of Correspondents

1) According to Reference to a Particular Authority

Qudsi: meaning “Divine”. These were sent directly from Allah to the Prophet ﷺ, who then passed it on to his companions
Marfu`: meaning “Elevated”. These were directly heard from the Prophet ﷺ by His companions.
Mauquf: meaning “Stopped”. It is a kind of command which was directly given by Prophet ﷺ to his companions who forwarded it.
Maqtu`: meaning “Severed”. It is a form of Instruction which cannot be traced back to the Prophet ﷺ, but to one of his companions, who explained it in their own words

2) According to the Links of Isnad (Sequence of Reporters)

Musnad: meaning “Supported”. Reported by a well known companion of the Holy Prophet ﷺ, although the final narrator might not have been with him at that time.
Muttasil: meaning “Continuous”. The one with undisturbed Isnad (Sequence of Reporters) which only goes back to a companion or successor.
Mursal: meaning “Hurried”. A Hadith quoted by one of the following generations directly in the name of the Prophet without the name of any of the Companions being mentioned.
Munqati`: meaning “Broken”. Hadiths which have one or more than one narrators missing, but not consecutively.
Mu`adal: meaning “Perplexing”. Hadiths with two or more narrators missing successively.
Mu`allaq: meaning “Hanging”. Hadiths in which one or more narrators are not known at the beginning of the sanad (Sequence of Reporters) or none of the narrators are known.

3) According to the Number of Reporters

This can be is divided into two groups:
Mutawatir: meaning “Consecutive”. Hadith being reported by such a large number of rightful companions that it is agreed upon as authentic.
Ahad: meaning “Isolated”. Hadith which has been narrated by a countable number of people.

Ahad has been further categorised into three sub-types:
Mash’hur: meaning “Famous”. Hadith which is related by more than two individuals from each generation.
Aziz: meaning “Rare yet Strong”. Hadith having only two reporters in its Isnad (Sequence of Reporters).
Gharib: meaning “Strange”. Saying of Holy Prophet ﷺ with only one narrator in its Isnad (Sequence of Reporters).

4) According to Nature of Matn and Isnad

Munkar: meaning “Denounced”. Hadith which contradicts an authentic Hadith and belongs to a weak narrator.
Mudraj: meaning “Interpolated”. Hadith with some additional words to the authentic Hadith by its narrator.

5) According to Authenticity of Correspondents

Sahih: meaning “Sound”. Hadith reported by a trustworthy reporter known for his truthfulness, knowledge, correct way of narrations etc.
Hasan: meaning “Good”. Hadith whose reporters are known and have solid character but weak memory.
Da`if: meaning “Weak”. Hadith ranking under Hasan (good) because of a shortcoming in the Isnad (Sequence of Reporters).
Maudu`: meaning “Fabricated”. Hadith having wording opposite to the confirmed Prophetic traditions.