Roza_E_Rasool (saww) Aur Imam_Ali_Ibne_Hussain (as) Ki_Fariyaad

“Jab Luta Hua Kafila Madine Mai Daakhil Hua To Imam Ali Ibne Hussain (as) Apne Nana Mohammad Mustufa (saww) Ki Kabr’e Mubarak Par Tashreef Laye Aur Apne Rukhsaar Kabr’e Mutahar Se Mas Karte Hue Fariyaad Karne Lage ….

“Ana Zeka Ya Jaddaha Ya Khair Mursal ..
Anazeka Fakhrona , Aleika Maujalan …
Jasbak Maqtool Wa Nas’lak Zaka …
Aseran Wamala Hamiya Wa Mda Fa’aa …
Subyana Kmatsbai Ama Wamsana …
Man Al’zarma La’tehtamlahu Asabaa …

Tarjuma :-

“Mai Aap (saww) Se Fariyaad Karta Hu Aye Nana!
Aye Tamam Rsoolo’n (asws) Mai Sabse Behtar!

Aap (saww) Ka Mehboob Hussain (as) Shaheed Kar Diya Gaya,
Aur Aapki Nasl Tabah Wa Barbaad Ki Gai,
Aye Nana!
Ham Sabko Is Tarah Qaid Kiya Gaya Jis Tarah Lawaris Qaneezo’n Ko Qaid Kiya Jata Hai,

Aye Nana!
Ham Par Itne Masayab Dhaye Gaye Jo Ungliyo’n Par Gine Nahi Ja Sake.”

(Ref# Makhnaf, Safa-143)


Hamara Salam Ho Us Imam Par Jinki Imamat Ki Pehli Shaam Hi Shaam’e Ghareeba Thi …

“25” Moharramul Haram San “95” Hijri Shahadat Imam Ali Ibne Hussain (as) Ke Pur’dard Mauqe Par Apne Waqt Ke Imam Farzand’e Jnabe Fatima Zahra (sa) Waris’e Deen’e Mohammad Mustufa (saww) Ko Tajalliyaat Wa Pursa’e Aqeedat Paish Karte Hai …

“Qatil’e Imam’e Sajjad (as) Waleed Bin Abdul Malik Malaoon Par Lanat Beshumaar

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Hadith Hasnain Kariman AlahisSalam ko Nabi Pak ﷺ Dam farmate.

“Hazrat Abd-ul-Allah Bin Abbas RadiyAllahu Ta’ala Anhuuma Se Riwayat Hai Ki Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Hasan Aur Husain عليهما السلام Ke Liye (Khusoosi Taur Par) Kailmate Ta’wwuz Ke Saath Dam Farmate They Aur Farmate Ki Tumhare Jadd-E-Amzad (Ibrahim عَلَيْهِ السَّلَام Bhi) Apne Donon Saahibzaadon Ismail Wa Is’haq (عليهما السلام Ke) Liye In Kalimaat Ke Saath Ta’wwuz Karte They :
Mein Allah Ta’ala Ke Kaamil Kalimaat Ke Zariye Har (Waswasae Andaazi Karne Waale) Shaitaan Aur Bala Se Aur Har Nazare Badd Se Panaah Mangta Hoo’n.”

Is Hadith Ko Imam Bukhari, Aboo Dawood Aur Ibn Majah Ne Riwayat Kiya Hai.

[Bukhari Fi As-Sahih, 03/1233, Raqam-3191,

Aboo Dawood Fi As-Sunan, 04/235, Raqam-4737,

Ibn Majah Fi As-Sunan, 02/1164, Raqam-3525,

Ghayat-ul-Ijabah Fi Manaqib-il-Qarabah,/212, Raqam-257.]

दमिश्क में यज़ीद का कैदखाना

फिर उसके बाद यज़ीद ने अहले हरम को कैदखाने में डलवा दिया। ऐसा कैदखाना, ऐसी अन्धेरी कोठरी में रखा गया जहां यह पता चलना दुश्वार था कि रात कब हुई, दिन कब हुआ।

बाप के सीने पर पुरसुकून की नींद पाने वाली सकीना अन्धेरे कैदखाने की घटी हुई फ़िज़ा में अपने बाप को याद करके रोती रहती थीं।

कैदखाने में रहते जब एक अरसा गुज़ार गया तो एक दिन अब्दुल्लाह नामी एक शख़्स का उधर से गुज़र हुआ। वहां उसने कुछ नहीफ़ व नातवां बच्चों की सिस्कियां सुनीं, ठहर गया। और कान लगा के सुनने लगा तो सुना कि एक बच्ची बार-बार तड़प कर कह रही है कि फूफी जान मेरे बाबा मुझे अब कब लेने आएंगे, हमें अपने वतन जाना कब नसीब होगा।

अब्दुल्लाह रहम दिल आदमी था इन जुमलों से दिल पर चोट लगी, पलट कर फौरन अपने घर आया और अपनी बीवी से कहने लगा कि आज मैं कैदखान-ए–यज़ीद से गुज़र रहा था। तो वहां मैंने कुछ बच्चों की सिस्कियां सुनीं, मुझे ऐसा लग रहा है कि वह यतीम व बेसहारा बच्चे शायद भूखे और प्यासे हैं।

तब से मेरा दिल बेचैन है। ऐ बीवी तेरा मामूल है जब शबे जुमा नज़रे हुसैन का खाना मिस्कीनों और यतीमों को खिलाती है आज वह खाना जब तैयार हो तो उन कैदियों तक पहुंचा देना।

औरत मोमिना थी। खुशी-खुशी खाना तैयार किया और ख्वान सर पर रखा और कैदखाने में आई जैसे ही कैदखाने की चौखट पर कदम रखा। देखा तो एक बहुत कमज़ोर लागर बीमार है। जिसके हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ी पड़ी है। गले में ज़ख्म और ज़ख्मों में खार दार

तौक पड़ा है। औरत ने तड़प कर कुछ पूछना चाहा मगर उस बीमार ने गर्दन की तरफ कुछ इशारा किया। मतलब यह था कि जलम की तक्लीफ से कुछ बोला नहीं जाता।

वह औरत आगे बढ़ी तो देखा कि खुले सर एक बीबी बैठी हैं। जिनकी पुश्त पर जा बजा खून के धब्बे पड़े हैं और उनकी रानों पर सर रखे एक पांच साल की बच्ची लेटी हुई है। जो आंखें बन्द किए हुए है। दिल

यह वह मंज़र था जिसे देख कर बेइख्तियार उस औरत का भर आया। खाने का ख्वान वहीं रख कर बैठ गई।

तमांचे खाई और प्यासी यतीम सकीना ने आहट पाकर अपनी आंखें खोल दीं। और सर उठा कर एक दफा खाने की तरफ देखा और फिर अपनी फूफी का चेहरा देखने लगीं।

वह औरत तड़प कर आगे बढ़ी और सकीना को गोद में उठा लिया। और बड़े प्यार से कहा बेटा यह खाना मैं तुम्हारे वास्ते ही लाई हूं खूब सैर हो कर खा लो। मगर पहले अपना नाम व पता बता दो कि तुम कहां की रहने वाली हो और किस जुर्म में यह सज़ा मिली है।

यह सुन कर हज़रत जैनब ने फरमाया कि ऐ औरत तुझे मेरी हालत पर रहम आ गया। उसका शुक्रिया अब उस खाने को वापस ले जा। हम सादात पर सदका हराम है।

औरत ने जवाब दिया कि ऐ बीबी यह सदके का खाना नहीं है। यह तो हमारे आका हुसैन की नज़ व सलामती का खाना है। आप भी खाइए और अपने बच्चों को भी खिलाइए।

बीबी मैं हर शबे जुमा हज़रत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु की नन का खाना तक्सीम करती हूं। और फिर उनकी ज़िन्दगी व सलामती की दुआएं करती हूं क्योंकि मेरे आका ने ही मुझे दोबारा ज़िन्दगी अता की है। मैं तो खत्म हो चुकी थी। हज़रत सैय्यदा ज़ैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा ने पूछा वह कैसे? तो उस औरत ने कहा कि मैं अपने वालिदैन की इक्लौती बेटी थी, मेरा बाप मुझ से बेहद मुहब्बत करता था। एक दफा मैं बहुत सख्त बीमार हुई दवा इलाज के बाद भी ठीक न हुई हालत अबतर हो गई।

जब तमाम मुआलिजों ने ला इलाज कह कर मुझे जवाब दे दिया तो मेरा बाबा मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खिदमत में लाया और उनके कदमों में गिर कर रो-रो कर मेरी ज़िन्दगी की भीख मांगी। इतने में मैंने देखा कि सब्ज़ पर्दा उठा और हुजरे से एक चांद जैसा बच्चा निकला। रसूले खुदा ने उसे हुसैन कह कर आवाज़ दी जब बच्चा करीब आया तो रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मेरे लाल उस बच्ची की दोबारा ज़िन्दगी की दुआ कर दो उसका बाप बहुत परेशान है।

यह सुनना था उस बच्चे ने अपना नन्हा सा हाथ मेरे सर पर रखा और कुछ पढ़ना शुरू किया।

मुझे याद है कि वह बच्चा जितना पढ़ता जाता था मेरे अन्दर ज़िन्दगी के आसार पैदा होते जाते थे जब बच्चा दुआ पढ़ चुका तो रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ऐ शख्स जा तेरी बच्ची को खुदा ने मेरे हुसैन के सदके दोबारा ज़िन्दगी अता कर दी।

जब से मैं फिर कभी बीमार न हुई। मेरे बाबा ने मरते वक़्त वसीयत की थी कि बेटी देख जिस हुसैन ने तुझे दोबारा ज़िन्दगी अता की है। जब तक तू ज़िन्दा रहना। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नवासे की ज़िन्दगी व सलामती की नज़ कराती रहना।

औरत यह वाकया सुना ही रही थी कि हज़रत सैय्यदा जैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा सिस्कियां लेकर रोने लगीं। औरत ने घबरा कर पूछा बीबी आप क्यों रोने लगी, बीबी जल्दी बताइए खैर तो है?

हज़रत सैय्यदा जैनब बढ़ कर उस औरत ने लिपट गईं सब्र का

बन्धन टूट गया। आंखों के खुश्क सोते फूट पड़े रो-रो कर फरमाने लगे कि ऐ औरत अब हुसैन की सलामती की दुआ न करना, अब वह दुनिया में नहीं रहे। उन्हें ज़ालिमों ने शहीद कर दिया और उनका सर कलम करके जिस्म को घोड़ों से पामाल कर दिया। उसके बाद घरों में आग लगा दिया। और सारा सामान लूट लिया। उनकी पांच बरस की बच्ची को मार कर कान के गोशवारे छीन लिए।

बेसहारा बहनों के सरों से चादरें छीन लीं ताज़ियाने लगाते हुए बाजारों में फिराया गया।

ऐ बीबी अगर तू देखना चाहती है तो ले मैं उसी हुसैन की बहन जैनब हूं, यह उन्हीं का बीमार बेटा है।

और तेरी गोद में उसी हुसैन की यतीम बच्ची सकीना है। जब हमारा कोई दुनिया में न रहा तो हमें मजबूर समझ कर उस कैदखाने में कैद कर दिया।

मन्कूल है कि जब शाम होने लगती और चिड़ियां चेहचहाती हुई आसमान से गुज़रतीं तो जनाब सकीना हज़रत सैय्यदा जैनब से पूछतीं फूफी यह परिन्दे शाम के वक़्त कहां जा रहे हैं। हज़रत सैय्यदा ज़ैनब आंसू पी कर जवाब देतीं बेटी यह परिन्दे अपने-अपने घोसलों में जा रहे हैं।

यह सुन कर हज़रत सकीना अपनी आंखों में आंसू भर कर कहती फूफी जान हम कब अपने वतन जाएंगे। गम की सताई फूफी बेटी को कलेजा से लगा कर देर तक तसल्ली देती रहतीं।

फूफी की आगोश से चिमट कर दिल शिकस्ता सकीना थोड़ी देर तक सिसक कर रोती-रोती सो जाएं। बइख़्तिलाफ़े रिवायत एक दिन हज़रत सैय्यदा जैनब से हज़रत सकीना ने कहा कि ऐ मेरी फूफी आज के बाद आप मुझे नहीं पाएंगी।

मैं आपसे एक वसीयत करती हूं कि जब मेरी रूह निकल जाए तो मेरी लाश को ऐसे मकाम में दफन करना जहां की ज़मीन सर्द और ठण्डी हो। ताकि मेरी हड्डियों को तरावट पहुंचे क्योंकि प्यास का सदमा उठाते-उठाते मेरी हड्डियां सोख्ता हो गई हैं।

बच्ची के जुमले सुन कर असीराने हरम में कोहराम बरपा हो गया चुनांचे जब आपने कैदखाने में इंतिकाल फरमाया तो वसीयत के मुताबिक आपको हज़रत इमाम जैनुल आबेदीन बीमारे करबला ने दफन किया। वक्त दफन कब्र से दो हाथ निकले आवाज़ आई ऐ बेटा सैय्यद सज्जाद मैं तुम्हारी दादी फातिमतुज़्ज़हरा हूं। लाओ मेरी सकीना को। हज़रत सकीना दादी के हाथों में चली गईं।

रज़वी किताब घर 105 एक रिवायत में है कि 225 हिज. में एक शब मुल्के शाम में सैय्यद मुर्तज़ा नामी एक शख्स ने ख्वाब में देखा कि हजरत सकीना तशरीफ़ लाई हैं और फरमाती हैं कि ऐ मुर्तजा मेरी कब्र में कुछ पानी आ गया है। कल हाकिम शाम मेरी कब्र की मरम्मत का हुक्म देगा।

देखो तुम हाज़िर रहना और कब्र से मेरी लाश को निकाल कर अपनी गोद में रखना। जब कब्र दुरुस्त हो जाए तो फिर मुझे ख़ाक पर लिटा देना।

सैय्यद मुर्तजा कहते हैं कि जब मैं ख्वाब से बेदार हुआ तो किसी ने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी। दरयाफ्त करने पर मालूम हुआ कि हाकिमे शहर ने बुलाया है। मैं हाज़िर हुआ। हाकिमे शहर ने भी वही ख़्वाब बयान किया जो मैंने देखा था। और कहा कि हज़रत सकीना ने तुम्हीं को लाश निकालने का हुक्म दिया है। सिवाए तुम्हारे कोई दूसरा हाथ न लगाए।

सैय्यद मुर्तजा हाकिमे शहर के साथ शहज़ादी की कब्र पर गये। थोड़ी देर के बाद जब कब से बाहर निकले तो दोनों हाथों से सर पकड़ कर धाड़ें मार कर रोने लगे। लोगों ने घबरा कर रोने का सबब पूछा तो फरमाया कि जब मैंने शहज़ादी के कुछ का तख्ता हटाया। तो वल्लाह मैंने देखा कि हज़रत सैय्यदा सकीना मेरे मज़लूम आका की वह बच्ची फटा कुर्ता पहने रुख्सारों पर तमांचों के नील, बाजुओं और नन्हीं-नन्हीं कलाइयों में रस्सियों के निशान लिए अपने बिस्तरे ख़ाक पर आराम कर रही हैं।

शहज़ादी सकीना को जब मैंने गोद में उठा कर क्रीब से देखा तो मेरा कलेजा मुंह को आ गया।

अरे मेरी शहज़ादी के रुख्सारों पर बहते हुए आंसुओं के निशान अब भी बने हुए हैं। और कानों की फटी हुई लवों में ताजा-ताज़ा खून जमा हुआ है।