Fazail e Manaqib e Imam Hussain AlahisSalam Yaum e Wiladat 3 Shaban.

🌹🌹𝐘𝐎𝐔𝐌 𝐄 𝐖𝐈𝐋𝐀𝐃𝐀𝐓 𝐄 𝐏𝐀𝐊 𝐌𝐔𝐁𝐀𝐑𝐀𝐊 –
𝟎𝟑 𝐒𝐇𝐀𝐁𝐀𝐍 𝐔𝐋 𝐌𝐔𝐀𝐙𝐙𝐀𝐌 –
𝐒𝐀𝐑𝐃𝐀𝐑 𝐄 𝐒𝐇𝐀𝐇𝐄𝐄𝐃𝐀𝐍 𝐄 𝐊𝐀𝐑𝐁𝐀𝐋𝐀 –
𝐀𝐀𝐋 𝐄 𝐑𝐀𝐒𝐎𝐎𝐋 ﷺ –
𝐀𝐔𝐋𝐀𝐃 𝐄 𝐀𝐋𝐈 𝐀.𝐒. –
𝐀𝐇𝐋𝐄 𝐁𝐀𝐈𝐓 𝐄 𝐀𝐓𝐓𝐇𝐀𝐑 –
𝐆𝐎𝐒𝐇𝐀 𝐄 𝐏𝐀𝐍𝐉𝐀𝐓𝐀𝐍 𝐄 𝐏𝐀𝐊 –
𝐀𝐀𝐒𝐇𝐈𝐐 𝐄 𝐑𝐀𝐒𝐎𝐎𝐋 ﷺ –
𝐈𝐒𝐇𝐐 𝐄 𝐑𝐀𝐒𝐎𝐎𝐋 ﷺ –
𝐏𝐇𝐎𝐎𝐋 𝐄 𝐂𝐇𝐀𝐌𝐈𝐍𝐀𝐒𝐓𝐇𝐀𝐍 𝐄 𝐙𝐀𝐇𝐑𝐀 𝐒.𝐀. –
𝐒𝐇𝐄𝐑 𝐄 𝐒𝐇𝐄𝐑 𝐄 𝐊𝐇𝐔𝐃𝐀 𝐀.𝐒. –
𝐉𝐀𝐍𝐀𝐒𝐇𝐄𝐄𝐍 𝐄 𝐌𝐎𝐔𝐋𝐀 𝐄 𝐊𝐀𝐘𝐍𝐀𝐀𝐓 –
𝐊𝐇𝐀𝐋𝐈𝐅𝐀 𝐄 𝐈𝐌𝐀𝐌 𝐄 𝐇𝐀𝐒𝐀𝐍 𝐄 𝐌𝐔𝐉𝐓𝐀𝐁𝐀 𝐀.𝐒. –
𝐒𝐀𝐘𝐄𝐃 𝐀𝐋 𝐒𝐇𝐎𝐇𝐀𝐃𝐀 –
𝐒𝐘𝐄𝐃 𝐔𝐒 𝐒𝐇𝐀𝐁𝐀𝐁𝐈 𝐀𝐇𝐋𝐈𝐋 𝐉𝐀𝐍𝐍𝐀𝐇 –
𝐀𝐁𝐀 𝐀𝐁𝐃𝐔𝐋𝐋𝐀𝐇 –
𝐒𝐇𝐀𝐇𝐄𝐍𝐒𝐇𝐀𝐇 𝐄 𝐊𝐀𝐑𝐁𝐀𝐋𝐀 –


𝐇𝐀𝐙𝐑𝐀𝐓 𝐒𝐘𝐄𝐃 𝐈𝐌𝐀𝐌 𝐇𝐔𝐒𝐒𝐀𝐈𝐍 𝐈𝐁𝐍𝐄 𝐌𝐎𝐔𝐋𝐀 𝐀𝐋𝐈 𝐀𝐋𝐀𝐈𝐇𝐈𝐒𝐒𝐀𝐋𝐀𝐌

(𝐊𝐀𝐑𝐁𝐀𝐋𝐀 𝐒𝐇𝐀𝐑𝐈𝐅, 𝐈𝐑𝐀𝐐).🌹🌹


“𝗛𝘂𝘀𝘀𝗮𝗶𝗻 𝗼 𝗠𝗶𝗻𝗻𝗶 𝗪𝗮 𝗔𝗻𝗮 𝗠𝗶𝗻𝗮𝗹 𝗛𝘂𝘀𝘀𝗮𝗶𝗻.”

“𝗛𝘂𝘀𝘀𝗮𝗶𝗻 𝗠𝘂𝗷𝗵𝗲 𝗦𝗲 𝗛𝗮𝗶𝗻,𝗠𝗮𝗶𝗻 𝗛𝘂𝘀𝘀𝗮𝗶𝗻 𝗦𝗲 𝗛𝗼𝗼𝗻.”


[Sunan Ibn Majah,Hadith No.144, Vol.1]

[Sunan al-Tirmidhi, Hadith No. 3800, Vol.5, Page 429].

*******************************

𝑨𝑹𝑺𝑯 𝑾𝑨𝑳𝑶𝑵 𝑲𝑬 𝑮𝑯𝑨𝑹 𝑪𝑯𝑨𝑹𝑨𝑮𝑨 𝑯𝑨𝑰

𝑺𝑬𝑯𝑬𝑵 𝑬 𝑺𝑨𝒀𝑬𝑫𝑨 س 𝑴𝑬𝑰𝑵 𝑵𝑶𝑶𝑹 𝑪𝑯𝑨𝒀𝑨 𝑯𝑨𝑰

𝑲𝒀𝑶𝑵 𝑲𝑬 𝑻𝑨𝑲𝑴𝑬𝑬𝑳 𝑬 𝑷𝑨𝑵𝑱𝑨𝑻𝑨𝑵 𝑲𝑨𝑹𝑵𝑬

𝑴𝑬𝑹𝑨 𝑴𝑶𝑼𝑳𝑨 𝑯𝑼𝑺𝑺𝑨𝑰𝑵 ع 𝑨𝑨𝒀𝑨 𝑯𝑨𝑰.


*******************************

Mᴇʀᴇ Hᴜsᴀɪɴ Bᴀɢʜ ᴇ Nᴀʙᴜᴡᴡᴀᴛ Kᴀ Pʜᴏᴏʟ Hᴀɪ,
Hᴀɪᴅᴀʀ Kɪ Is Mᴇ Jᴀᴀɴ Hᴀɪ, Kʜᴏᴏɴ E Bᴀᴛᴏᴏʟ Hᴀɪ,

Aɪsɪ Aᴢᴇᴇᴍ Zᴀᴀᴛ Hᴀɪ Mᴀᴜʟᴀ Hᴜsᴀɪɴ Kɪ,
Jɪs Kᴇ Lɪʏᴇ Hᴜᴢᴏᴏʀ Kᴇ Sᴀᴊᴅᴏ Mᴇ Tᴏᴏʟ Hᴀɪ.

Gᴜᴢʀᴀ Jᴀʜᴀ Jᴀʜᴀ Sᴇ Nᴀᴡᴀᴀsᴀ Rᴀsᴏᴏʟ Kᴀ,
Aʙ Tᴀᴋ Wᴀʜᴀ Kʜᴜᴅᴀ Kᴇ Rᴀʜᴍᴀᴛ Kᴀ Nᴜᴢᴏᴏʟ Hᴀɪ.

Jɪs Kᴇ Lɪʏᴇ Yᴀᴢᴇᴇᴅ Nᴇ Iᴛɴᴇ Sɪᴛᴀᴍ Kɪʏᴇ,
Wᴏʜ Tᴀᴀᴊ Tᴏʜ Hᴜsᴀɪɴ Kᴇ Qᴀᴅᴍᴏɴ Kɪ Dʜᴏᴏʟ Hᴀɪ.

********************************

Aap ki wiladat 3 Sha’abaan 4 Hijri (8 January 626 A.D.) ko Mangal ke roz Madeena Munawwara me hui.

🌹 *यौमे विलादत हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मुबारक (3 शाबान, सन 4 हिजरी)*

*इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सख़ावत और दरियादिली*

रिवायत में है कि एक दिन एक ज़रूरतमंद शख़्स मदीने में आ कर लोगों से किसी ऐसे इंसान का पता पूछता है जो उसकी मदद कर सके, लोगों ने उसे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के घर का पता बता दिया, वह जैसे ही मस्जिद के दरवाज़े पर पहुंचा और इमाम को देखा तो उसने अपनी ज़रूरत को शायरी में बयान कर दिया, इमाम उसे घर लेकर गए और जनाबे क़म्बर को हुक्म दिया कि घर में जितने पैसे हों सब निकाल लाओ, क़म्बर गए और उस समय घर में मौजूद कुल चार हज़ार दीनार लाकर इमाम के सामने पेश करके कहा: मौला! घर में कुल इतनी ही रक़म है, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने वह पैसे लिए और दरवाज़े के पीछे जाकर उसको दिए, इमाम को दरवाज़े के पीछे जाकर उसको वह रक़म देने का राज़ यह था कि आप उसकी आंख में शर्मिंदगी नहीं देखना चाहते थे क्योंकि जब इंसान किसी के सामने हाथ फैलाता है तो उसकी आंखों में और उसके चेहरे पर शर्मिंदगी आ जाती है, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जब वापस उस अरबी के पास आए तो देखा वह उन पैसों को हाथ में लेकर रोते हुए कह रहा था: मौला! क्या यह कम रक़म थी जो आप दरवाज़े के पीछे जाकर दे रहे थे… मैं तो यह सोंच रहा हूं कि ऐसा करम करने वाला हाथ कैसे ज़मीन के नीचे दफ़्न होगा।

*इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विनम्रता*
 
वह दौर जहां इंसान अपने माल और दौलत पर तकब्बुर और घमंड करते हुए ग़रीबों को अपने पास खड़ा भी नहीं करता था उस दौर में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ग़रीबों के साथ उठते बैठते थे, रिवायत में है कि एक दिन इमाम एक रास्ते से गुज़र रहे थे वहीं पर एक किनारे मोहल्ले के कुछ फ़क़ीर एक साथ एक दस्तरख़ान पर बैठे खाना खा रहे हैं उन्होंने जैसे ही इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को देखा तो अपने साथ खाने की दावत दी, इमाम ने तुरंत उनकी दावत को क़ुबूल कर लिया और उनके साथ बैठकर खाने लगे और फिर आपने फ़रमाया: अल्लाह तकब्बुर करने वालों को पसंद नहीं करता, जब सभी खाना खा चुके तो इमाम ने फ़रमाया: आज मैंने तुम्हारी दावत क़ुबूल की अब तुम लोग मेरे घर दावत पर आना, जिस समय वह लोग आपके घर दावत पर गए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने खुले दिल से उनका इस्तेक़बाल किया। 

*आप का माफ़ करना*

जब कूफ़ा के रास्ते में हुर ने अपने हज़ार सिपाहियों के साथ आपका रास्ता रोका तो कुछ रिवायत के अनुसार उस समय हुर का पूरा लश्कर प्यास से हलाक होने के क़रीब था, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जानते हुए भी न केवल उन्हें और उनके सिपाहियों बल्कि जानवरों तक को पानी पिलाया और उसके बाद हुर ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को आगे जाने से रोक दिया और उनके अपने शहर मदीना भी वापस नहीं जाने दिया और इमाम को पूरे परिवार और साथियों के साथ करबला के मैदान में घेरकर ले आया और फिर जब शबे आशूर अपनी ग़तली का एहसास कर के इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास आए तो इमाम ने बिना किसी शर्त के कह कर माफ़ किया कि ऐ हुर! मैंने भी माफ़ किया और मेरे ख़ुदा ने भी माफ़ किया और फिर गले लगा कर ख़ुद इस बात की माफ़ी मांगी कि हुर ऐसे समय में आए हो जब तुम्हारी मेहमान नवाज़ी के लिए मेरे पास पानी भी नहीं है।

*ग़रीबों का ख़याल*

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम छिप कर और खुलेआम दोनों तरह से ग़रीबों का ख़याल रखते थे, रात के सन्नाटे में उनके घरों में घर का राशन और दूसरी ज़रूरत की चीज़ें ख़ुद पहुंचाते थे, शुऐब इब्ने अब्दुल रहमान ख़ुज़ाई कहते हैं कि जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम शहीद हो गए तो उनकी पीठ पर घट्टे और ज़ख़्म देखे गए जब उनके बेटे इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम से उनका कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह घट्टे और ज़ख़्म मेरे वालिद के अपने पीठ पर खाने का सामान रखकर ग़रीबों और यतीमों के बीच पहुंचाने के कारण है और वह इस काम को इतना छिपकर अंजाम देते थे कि उनके इस काम का ना ही किसी आदमी को पता चलता था और ना ही ख़ुद उन ग़रीबों और यतीमों को। 

*आप की इबादत*

आप के दौर में अल्लाह की इबादत में आपकी कोई मिसाल नहीं थी, आपने अपनी पूरी ज़िंदगी में 25 पैदल हज अंजाम देने के लिए मदीने से मक्के का सफ़र किया, आपका दिल कभी ख़ुदा की याद से ख़ाली नहीं रहता था, ख़ुदा के ख़ौफ़ का असर आपके चेहरे से ही ज़ाहिर रहता था, एक दिन एक शख़्स ने आपसे इतना ज़ियादा ख़ुदा के ख़ौफ़ की वजह पूछी तो आपने फ़रमाया: इस दुनिया में जिस शख़्स के दिल में ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं हुआ तो वह आख़ेरत में उसके अज़ाब से नहीं बच सकता, आपको नमाज़ से बहुत लगाव था जैसा कि रिवायत में है कि शबे आशूर आपने अपने भाई हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम से दुश्मन से एक रात के समय की मांग करने को कहा ताकि उस रात में नमाज़ पढ़ सकें, अल्लाह से कुछ दिल की बातें कर सकें और क़ुरआन की तिलावत कर सकें, अल्लाह जानता है कि मैं नमाज़, क़ुरआन की तिलावत, दुआ और इस्तेग़फ़ार से बहुत मोहब्बत करता हूं।

*आप का इल्म*
 
आप के इल्म के लिए इतना ही काफ़ी है कि आप इल्मे पैग़म्बर (स) के वारिस हैं, चाहने वालों और दुश्मन दोनों का मानना है कि आपके दौर में आपसे बड़ा कोई आलिम नहीं था, एक दिन नाफ़ेअ इब्ने अज़रक़ जो ख़वारिज के अज़ारेक़ा फ़िर्क़े का सरगना था इसने अल्लाह की मारेफ़त से संबंधित इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कुछ सवाल पूछे आपने ऐसा मुंह तोड़ इल्मी जवाब दिया कि वह हैरत में पड़ गया और उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे और कहने लगा कि आपने बहुत सहीह जवाब दिया है, फिर इमाम ने उससे कहा मैंने सुना है कि तुम मुझे और मेरे वालिद इमाम अली अलैहिस्सलाम को काफ़िर समझते हो, उसने कहा अगर मुझ से यह भूल हुई है तो आज मैं इस बात का पूरे यक़ीन के साथ एलान करता हूं कि आज के बाद से मेरी निगाह में आप इस्लाम के चिराग़ और अल्लाह के अहकाम को सबसे अधिक जानने वाले हैं और लोगों को आपके उलूम और मआरिफ़ से फ़ायदा उठाते हुए जेहालत के अंधेरों से बाहर निकलना चाहिए और आपके वुजूद की बरकत से हिदायत हासिल करनी चाहिए।

🌹 *अस्सलामु अलैका यब्न रसूलल्लाह या हुसैन इब्ने अली व रहमतुल्लाहि व बरकातु*

🤲 *अल्लाह हुम्मा अज्जिल ले वलियेकल फ़रज…*

Advertisement