
🍁हज़रत उसमान ग़नी रदि अल्लाहो अन्हो 🍁
जंगे तबुक़ के मौक़े पर हुज़ुर (सल्लल्लाहु अलैही वा आलेही वसल्लम) मुस्लमानो को अल्लाह की राह मे ख़र्च करने की तरग़ीब दे रहे थे। की हज़रत उसमान ग़नी (रदि अल्लाहु अन्हो ) उठे और अर्ज़ किया या रसुलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैही वा आलेही वसल्लम) साज़ो समान समेत एक सौ ऊंट देता हूँ
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हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैही वा आलेही वसल्लम) ने फिर तरग़ीब दी तो हज़रत उसमान ने अर्ज़ किया या रसुलल्लाह! साज़ो समान के साथ दो सौ ऊंट देता हूँ
हुजुर ने फिर फ़रमाया तरग़ीब दी तो हज़रत उसमान ने फिर अर्ज़ किया हुज़ूर साज़ो समान के साथ तीन सौ ऊंट देता हूँ ।
फिर उन तीन सौ ऊंटो के अलावा हज़रत उसमान ने एक हज़ार दीनार भी हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैही वा आलेही वा सल्लम ) की ख़िदमत में पेश कर दिये।
हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैही वा आलेही वा सल्लम ) ने हज़रत उसमान की यह सखावत पर उनके पेश किये गये दिनारों मे अपना हाथ मुबारक डालकर फ़रमाया उसमान के इस नेक अमल के बाद अब उसे कोई बात नुक़्सान न देगी।
{ मिश्क़ात शरीफ़, सफ़ा – 553 }