
हज़रत सय्यद मख़दूम अशरफ सिम्नानी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह के पास मौजूद नीर शरीफ की हकीक़त👆👆👆
उस दौर में किछैछा शरीफ(उत्तर प्रदेश) में पानी की बहुत किल्लत थी इसलिए हज़रत मख़दूम पाक ने अपने मकान के करीब तालाब खोदने का हुक्म दिया,इस तालाब की खुदाई का काम मलक महेमूद के सुपुर्द किया गया था!
दर्वेशों की एक बड़ी जमात यहां रहती थी, अपने फराइज़ व नवाफिल से फारिग होने के बाद उनका काम था तालाब की खुदाई नीर शरीफ की खुदाई इस एहतमाम के साथ होती थी कि, फावड़े का हर ज़रब ज़िक्र हद्दादी यानी ला इलाह- इल्लल्लाह मुहम्मदूर रसुल अल्लाह के ज़िक्र के साथ लगता था!
इस काम में औलिया अल्लाह, दरवेशों के साथ आप हज़रत मख़दूम पाक भी खुद अपने रफका के साथ शामिल होते थे, आपकी गैर मौजूदगी में आपकी नयाबत आपके खलीफा शेख कबीर के सुपुर्द होती!
जब तालाब की खुदाई आपके मौजूदा मज़ार शरीफ के तीनों तरफ मुकम्मल हो गई तो , आप हज़रत मख़दूम अशरफ समनानी रहमतुल्लाहि अलैह ने सात बार आबे ज़मज़म शरीफ काफी मिकदार में डालकर तालाब को भर दिया!
ये आपकी बहुत बड़ी करामत है! मक्का शरीफ में आबे ज़मज़म से अपना लोटा भरते और किछौछा में खोदे गए तालाब में डालते जाते ,इस तरह सात चक्कर में आपने पूरा तालाब भर दिया!
इसलिए नीर शरीफ के पानी में ये असर पैदा हो गया के ये पानी मसहूर यानी जादू वाले,आसेब ज़दा यानी जिन्नात वाले,पागल मरीज़ और दीगर बहुत अमराज़ के लिए आबे हयात का काम करता है!
हज़रत अब्दुर रहमान चिश्ती अपनी किताब (मरातुल असरार) में नीर शरीफ के बारे में फरमाते हैं (आबे आं होज हर गीज़ गंदा नमी शुवद व आसेब ज़दा शिफा बायद) यानी इस हौज़ का पानी कभी गंदा नहीं होता और आसेब ज़दा शिफा पाते हैं!
इसकी तासीर की वजह से बड़े बड़े जिन्नात भी इस पानी से पनाह मांगते हैं!
📓हयाते ग़ौसुल आलम सफ़ह, 108

