हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम मिस्र के बादशाह बन गये। सारा मिन आपके जेरे इंतजाम में आ गया। जुलैखा के खाविंद अजीजे मिम्र का इंतिकाल हो गया। जुलैखा मायूस व परेशान ख़ातिर होकर अपने इक्तिदार के दौर के कुछ ज़र व जवाहर साथ लेकर एक जंगल में चली गई। जंगल में ही एक कुटिया बना ली जिसमें रहने लगी। अब उसका वह हुस्न व जमाल और आलमे शबाब भी बाकी न रहा। यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के उरूज व इक्तिदार के तो डंके बजने लगे और जुलैख़ा गोशए गुमनामी में जा पड़ी। हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम एक दिन अपने लशकर समते बड़ी शान व शौकत और शाहाना जाह व जलाल के साथ उस जंगल से गुज़रे । जुलैखा को पता चला तो अपनी कुटिया से निकली और हजरत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को शाहाना अंदाज़ से गुज़रते हुए देखकर बेसाख्ता बोली
“पाक है वह जात जिसने नाफरमानी के बाइस बादशाहों को गुलाम बना दिया और फ़रमांबर्दारी के सदके में गुलामों को बादशाह बना दिया।”
जुलैखा की यह आवाज़ यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने सुनी तो रो पड़े। अपने एक गुलाम से फ़रमाया इस बुढ़िया की हाजत पूरी करो। वह गुलाम जुलैखा के पास पहुंचा और कहाः ऐ बुढ़िया! तुम्हारी क्या हाजत है? वह बोली मेरी हाजत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ही पूरी कर सकेंगे। चुनांचे वह गुलाम जुलैखा को शाही महल में ले आया। हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम जब महल में पहुंचे में और आपने अपना शाही लिबास उतारा और अल्लाह की इबादत के लिए अपने मुसल्ले पर बैठे तो उस वक्त आपको फिर वही जुमला याद आया और आप रोने लगे। फिर गुलाम को बुलाकर पूछा कि उस बुढ़िया की हाजत पूरी की या नहीं? उसने अर्ज किया कि हुजूर वह बुढ़िया यहीं आ गई है। कहती है कि मेरी हाजत तो यूसुफ़ अलैहिस्सलाम खुद ही पूरी करेंगे। अच्छा उसे यहां ले आओ। चुनाचे जुलैखा खिदमत में हाज़िर की गई। उसने हाज़िर होते ही सलाम अर्ज़ किया । हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने सिर झुकाये हुए ही सलाम का जवाब दिया। फिर फरमायाः ऐ औरत! तुम्हारी जो हाजत हो ब्यान करो। वह बोलीः हुजूर! क्या आप मुझे भूल गये? फ़रमाया : कौन हो तुम? वह बोली : ऐ यूसुफ़! मैं जुलैखा हूं।
फिर आपने जुलैखा से पूछा तुम्हारा वह आलमे शबाब और हुस्न व जमाल और माल कहां गया? जुलैखा ने जवाब दियाः वह ले गया जिसने आपको जेल से निकाला और मिस्र की हुकूमत आपको अता फरमाई। यूसुफ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः अच्छा तो बताओ अब तुम्हारी क्या हाजत है? वह बोलीः आप पूरी फ़मा देंगे। पहले वादा कीजिये । फ़रमाया : हां! ज़रूर पूरी करूंगा। वह बोलीः तो सुनिए। तीन हाजतें हैं।
पहली, यह कि मैं आपके गमे फ़िराक में रो-रो कर अंधी हो चुकी हूं। खुदा तआला से दुआ कीजिये कि वह मेरी नज़र मुझे वापस दे दे। दूसरी, यह कि मेरा हुस्न व शबाब मुझे वापस मिल जाये। हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने दुआ फ़रमाई तो जुलैखा की नज़र भी ठीक हो गई और पहले की तरह व जवान और हसीन भी हो गई।
यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः बता अब तीसरी हाजत क्या है? वह
बोलीः ऐ यूसुफ़! तीसरी हाजत यह है कि आप मुझसे निकाह फ़रमा लें। हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम खामोश हो गये। सरे अनवर झुका दिया। थोड़ी देर बाद जिब्रईल अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और कहाः ऐ यूसुफ! आपका रब आपको सलाम फ़रमाता है, और फ़रमाता है जुलैखा जो हाजत पेश कर रही है उनको पूरा करने में कंजूसी से काम मत लो उसकी दो हाजतें हमने तेरी दुआ से पूरी कर दी हैं। यह तीसरी हाजत उसको तुम पूरा कर दो। हमने तुम्हारे साथ उसका निकाह अर्श पर कर दिया है।
चुनांचे हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने बहुक्मे इलाही जुलैखा से निकाह कर लिया और आसमान से फरिश्तों ने आकर मुबारक बादें दीं। खुदा ने भी मुबारकबाद फरमाई। फिर जुलैखा ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से यह बात भी जाहिर कर दी कि अज़ीज़े मिस्र औरत के नाकाबिल था। अल्लाह ने मुझे आपके लिए महफूज़ रखा है।
चुनांचे हज़रत जुलैखा के यहां हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम के दो साहबज़ादे पैदा हुए। एक का नाम अफ़राईम और दूसरे का नाम मीशा था।आप दोनों ही हुस्न व जमाल का पैकर थे। (रूहुल-ब्यान जिल्द २, सफा १८२-१८४)
सबक : जुलैखा को अल्लाह तआला ने हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम की खातिर अज़ीज़े मिस्र से जो उसका जाइज़ शौहर था। महफूज रखा फिर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की महबूबा बीवी उम्मुल मोमिनीन हजरत आइशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा पर आज जो लोग किसी किस्म का इल्ज़ाम लगायें किस कद्र गुमराह जाहिल और बेदीन हैं। यह भी मालूम हुआ कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से हज़रत जुलैखा का निकाह अल्लाह के हुक्म से अर्श पर, फिर फर्श पर भी हुआ। आपके बतन से हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के दो फरजंद भी पैदा हुये।
हज़रत आयशा बिन्त साद कहती हैं कि मैंने अपने वालिद से सुना, वो कहते थे कि मैंने अल्-जुहफा के रोज़, देखा के रसूलुल्लाह मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम ने अली अलैहिस्सलाम का हाथ पकड़ा किया और खुत्बा इर्शाद फरमाया। आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने अल्लाह की हम्द व सना बयान की, फिर कहा, “ऐ लोगों! मैं तुम्हारा वली हूँ।”, लोगों ने कहा, “या रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम! आप दुरुस्त फरमा रहे हैं।”
फिर आपने, हज़रत अली अलैहिस्सलाम का हाथ पकड़कर बुलंद किया और फरमाया, “ये मेरा वली है और मेरी तरफ़ से मेरा कर्ज अदा करेगा और जो इससे दोस्ती करेगा, अल्लाह उसे अपना दोस्त रखेगा और जो इससे दुश्मनी रखेगा, अल्लाह उसे दुश्मन रखेगा। सैयद शादाब अली
(कुछ रिवायतों में ये भी मिलता है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने फरमाया कि जो अली अलैहिस्सलाम को अपना दोस्त रखेगा, मैं उसका दोस्त रहूँगा और जो इससे दुश्मनी रखेगा, मैं उसका दुश्मन रहूँगा। यानी अली अलैहिस्सलाम से मुहब्बत करने वाले से, अल्लाह और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम मुहब्बत करते हैं और अली अलैहिस्सलाम से दुश्मनी या बुग्ज़ रखना, अल्लाह और रसूलुल्लाह से दुश्मनी करने की तरह है।)
हज़रत आमिर बिन साद बिन अबी वक्कास कहते हैं कि मुआविया ने हज़रत साद को अमीर बनाया और कहा की अबु तुराब को गालियाँ देने से तुझे कौन सी बात रोकती है? हज़रत साद रज़िअल्लाहु अन्हो ने जवाब दिया कि मुझे रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम की फरमाई हुई तीन ऐसी बात याद हैं, मैं उन्हें हरगिज़ गाली नहीं दूंगा और अगर एक बात भी मुझमें पाई जाए तो वो मुझे सुर्ख ऊँटों से ज्यादा महबूब है।
मैंने हज़रत अली के लिए रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम को फरमाते सुना है, आपने किसी गज़वा में हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पीछे छोड़ा तो, हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया, “या रसूलुल्लाह! क्या आप मुझे औरतों और बच्चों में पीछे छोड़े जा रहे हैं।”, तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम ने फरमाया, “या अली! क्या तुम इस पर खुश नहीं हो की तुम मुझे ऐसे हो जैसे मूसा को हास्न अलैहिस्सलाम थे मगर मेरे बाद कोई नबूवत का सिलसिला नहीं।”
और जंग ए खैबर के रोज़ मैंने आपको ये फरमाते हुए सुना कि, “कल हम उस शख्स को अलम/झंडा अता करेंगे जो अल्लाह त आला और उसके रसूल से मुहब्बत रखता है और अल्लाह तआला और उसका रसूल भी, उससे मुहब्बत रखते हैं।”, पस हम गर्दनें बुलंद करके अलम झंडा की तरफ देख रहे थे तभी आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम ने फरमाया, “अली को मेरे पास बुलाओ।”, आप अली अलैहिस्सलाम जब वहाँ तशरीफ़ लाए तब आपकी आँखें दुख रही थीं, आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम ने, हज़रत अली की आँखों में लुभाब ए दहन मुबारक लगाया और आपको अलम/झंडा अता फरमाया।”
बस अल्लाह का इरादा ये है ऐ अहलेबैत (अलैहिस्सलाम) कि तुम से हर बुराई को दूर रखे और और इस तरह पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) रखे जो पाक व पाकीज़ा (साफ़-सुथरा) रखने का हक़ है
नाज़िल हुई तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने हज़रत अली, बीबी फातिमा, हज़रत हसन और हज़रत हुसैन, अलैहिस्सलाम को बुलाया और फरमाया, “ऐ अल्लाह! ये मेरी अहलेबैत है।”
हज़रत साद बिन अबी वक्कास रजिअल्लाहु अन्हो फरमाते हैं कि मैं बैठा हुआ था कि लोग हज़रत अली के ऐब बयान करने लगे तो मैंनेकहा कि, मैंने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम को, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के तीन ख़साइस बयान फरमाते हुए सुना है। अगर उनमें से कोई एक ख़सलत भी मुझमें मयस्सर हो तो, वो मुझे सुर्ख ऊँटों से ज्यादा महबूब होती।
आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम फरमाते थे, “अली मुझे ऐसा है जैसे मूसा अलैहिस्सलाम को हारून अलैहिस्सलाम मगर मेरे बाद नबी नहीं।”
और मैंने आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम को ये भी फरमाते हुए सुना है कि, “कल मैं उस शख्स को अलम/झंडा अता करूँगा जो अल्लाह तआला और उसके रसूल से मुहब्बत करता है और अल्लाह त आला और उसका रसूल भी, उससे मुहब्बत करते हैं।”
और मैंने आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम को ये भी फरमाते हुए सुना है कि, “जिसका मैं मौला हूँ, अली भी उसका मौला है।”
हज़रत साद रजिअल्लाहु अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम ने फरमाया, “कल मैं उस शख्स को अलम/झंडा अता करूँगा जो अल्लाह त आला और उसके रसूल से मुहब्बत करता है और अल्लाह तआला और उसका रसूल भी, उससे मुहब्बत करते हैं और अल्लाह तआला उसके हाथ पर फतह अता करेगा।”
चुनाँचे आप असहाब नज़रें उठा-उठाकर अलम की तरफ़ देखने लगे लेकिन आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम ने वो अलम, हज़रत अली अलैहिस्सलाम को इनायत फरमा दिया।
हज़रत अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहु अन्हो से रिवायत है कि, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम के पास एक परिंदा था। आपने फरमाया, “या अल्लाह! तुझे अपनी मखलूक में से जो शख्स सबसे ज्यादा महबूब है उसे मेरे पास भेज ताकि वो मेरे साथ इस परिंदे का गोश्त खाए।”
हज़रत अबु बक़र रजिअल्लाहु अन्हो आए तो आपने उन्हें वापिस भेज दिया, फिर हज़रत उमर रजिअल्लाहु अन्हो आए तो उन्हें भी आपने वापिस भेज दिया, फिर हज़रत अली अलैहिस्सलाम आए तो आपने इन्हें अपने पास आने की इजाजत फरमा दी।
हज़रत अब्दुर्-रहमान, अपने वालिद, अबु लैला से रिवायत करते हैं कि एक रोज़ वो हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ-साथ चल रहे थे और चलते-चलते आपने मौला अली अलैहिस्सलाम से कहा, “लोग आपकी कुछ बातों को ताज्जुब की निगाह से देखते हैं। आप सर्द मौसम में सिर्फ दो पतली चादर या कमीज़ पहनकर बाहर निकलते हैं और गर्म मौसम में मोटे और गर्म मौसम में पहने जाने लायक कपड़े पहनकर बाहर निकलते हैं।”, मौला अली अलैहिस्सलाम ने पूछा, “क्या जंग ए खैबर में तुम हमारे साथ ना थे?, अबु लैला ने कहा, “मैं आपके साथ था।”
आप हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया, “रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने हज़रत अबु बकर बिन अबु कहाफा रजिअल्लाहु अन्हो को खैबर फ़तह करने के लिए झंडा देकर भेजा, तो वो बगैर फ़तह किए वापस आ गए, फिर आपने हज़रत उमर रजिअल्लाहु अन्हो को भेजा तो वो भी फ़तह किए बगैर ही वापिस आ गए फिर आप रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने फरमाया, ” अब मैं उस शख्स को अलम/झंडा अता करूँगा जो अल्लाह त आला और उसके रसूल से मुहब्बत करता है और अल्लाह तआला और उसका रसूल भी, उससे मुहब्बत करते हैं और वो फरार होने वाला नहीं है और फिर आपने मेरी तरफ़ पैगाम भेजा और मैं आशूब चश्म में मुब्तिला था।”
आप मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने मेरी आँखों पर लुआब ए दहन लगाया और बारगाह ए इलाही में दुआ की कि, “ऐ अल्लाह! अली की गर्मी और सर्दी से हिफाज़त कर।”
हज़रत अली करम अल्लाहु वज़हुल करीम फरमाते हैं कि इसके बाद मुझे ना कभी गर्मी का एहसास हुआ है और ना ही कभी सर्दी महसूस हुई है।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन बुरैदह(बुरैदा) रजिअल्लाहु तआला अन्हो से रिवायत है कि मैंने अपने बाप बुरैदह को कहते सुना कि हम जंग ए खैबर के रोज़, पहलू ब पहलू चल रहे थे। अबु बकर रजिअल्लाहु अन्हो ने झंडा लिया मगर आपसे खैबर फ़तह ना हुआ। दूसरे दिन हज़रत उमर रजिअल्लाहु अन्हो ने झंडा लिया, आप भी लौट आए और फ़तह हासिल ना हुई और लोगों को भी तंगी और सख़्ती महसूस हुई तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने फरमाया कि, “मैं कल उस शख्स को झंडा देने वाला हूँ जो,अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत करता है और अल्लाह और उसके रसूल भी उस से मुहब्बत करते हैं। वो फ़तह हासिल किए बगैर नहीं लौटेगा।
हमने रात बहुत खुशी से गुजारी की कल फ़तह हासिल होने वाली है, सुबह को रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने नमाज़ ए फज़र पढ़ाई फिर आकर खड़े हो गए और झंडा अता करने का इरादा फरमाया, लोग अपनी-अपनी टोलियों में थे। हम में से जो आदमी भी रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम की नज़र में अपना कोई मकाम समझता था, वो इस बात का आरजूमंद था की झंडा उसे मिले। मगर आपने हज़रत अली बिन अबु तालिब अलैहिस्सलाम को बुलाया तो उनको आशूब चश्म का आरजा था, आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने उनकी आँखों में लुआब ए दहन लगाकर हाथ फेरा और उनको अलम इनायत फरमाया और अल्लाह तआला ने आप हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हाथ पर फ़तह अता फरमाई।
वो कहते हैं कि हमें ये बात उन लोगों ने बताई जो गर्दनें लंबी करके अलम को देख रहे थे।
हज़रत बुरैदह अल-असलमी रज़िअल्लाहु अन्हो फरमाते हैं कि जंग ए खैबर के दिन रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम, अहले खैबर के एक किले में उतरे (लश्कर के साथ) और आपने हज़रत उमर रजिअल्लाहु अन्हो को झंडा अता फरमाया। कुछ लोग हज़रत उमर के साथ गए और अहले खैबर के साथ लड़े और आखिर में मुंतशिर हुए और हारकर, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम के पास वापिस लौट आए तो रसूलुल्लाह ने फरमाया, “मैं उस शख्स को अलम/झंडा अता करूँगा जो अल्लाह तआला और उसके रसूल से मुहब्बत करता है और अल्लाह तआला और उसका रसूल भी, उससे मुहब्बत करते हैं।” और वो आशूब जब दूसरा दिन हुआ तो हज़रत अबु बक़र रज़िअल्लाहु अन्हो और हज़रत उमर रजिअल्लाहु अन्हो ने इसरार किया। पस आपने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बुलाया चश्म में मुब्तला थे। हुजूर सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने आपकी आँखों में लुआब ए दहन लगाया और कुछ लोग आपके साथ गए। आपका अहले खैबर से आमनासामना हुआ तो क्या देखते हैं कि मरहब ये अश्शार पढ़ रहा है
खैबर जानता है कि मैं मरहब हूँ। हथियारबंद हूँ और एक तजुर्बेकार बहादुर हूँ। जब शेर मेरी तरफ़ आते हैं तो मैं गजबनाक होकर कभी नेज़े-ज़नी और कभी शमशीर-ज़नी करता हूँ।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस पर (यानी मरहब पर) तलवार मारी जो इसके सर से पार हो गई। सब अहले लश्कर ने आपकी तलवार की आवाज़ को सुना। अभी अली अलैहिस्सलाम के लश्कर के कुछ लोगों को जंग करने का मौका भी नहीं मिला था और अल्लाह ने पहले ही आप अली अलैहिस्सलाम के हाथ पर खैबर की बड़ी फत्ह अता कर दी।
हज़रत अबु हाज़िम (सलामा इब्न ए दीनार) कहते हैं मुझे, हज़रत सहल बिन साद रजिअल्लाहु अन्हो ने बताया कि, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने खैबर के रोज़ फरमाया कि, “मैं कल उस शख्स को अलम/झंडा अता करूँगा, जिसके हाथ पर अल्लाह फ़तह अता फरमाएगा, वो अल्लाह त आला और उसके रसूल का मुहिब्बा है और उसके रसूल भी उसे महबूब रखते हैं।”
जब सुबह हुई तो लोग रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम के पास आ गए, हर आदमी इस बात का आरजूमंद था की झंडा उसे मिले। आप रसूलुल्लाह ने फरमाया, “अली इब्न ए अबु तालिब कहाँ है?” लोगों ने कहा अली आशूब चश्म में मुन्तिला है।
आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने फरमाया, उनकी तरफ़ पैगाम भेजो। आप आए तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने आपकी आँखों में लुआब ए दहन लगाया और दुआ फरमाई तो आप तंदरुस्त हो गए, गोया आपको कोई तकलीफ ही ना थी। फिर रसूलुल्लाह ने आपको अलम अता फरमाया तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अर्ज किया, “या रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम, मैं इनसे उस वक्त तक जंग करूँगा यहाँ तक कि वो हमारे जैसे हो जाएँ यानी इस्लाम कुबूल कर लें।
इस के जवाब में रसूलुल्लाह ने फरमाया कि, “आराम और वकार से जाइए यहाँ तक की आप इनके सहन में उतर जाएँ फिर इन्हें दावत ए इस्लाम दें और अल्लाह तआला की जानिब से जो फराईज़ इन पर आइद होते हैं, वो इन्हें बताएँ और खुदा की कसम अगर अल्लाह रब उल इज्जत आपके ज़रिए एक आदमी को भी हिदायत देदे तो वो आपके लिए सुर्ख ऊँटों से बेहतर है।”
Volume 1, Parts 1.34.1
He (Ibn Sa`d) said: Muhammad Ibn `Umar Ibn Wáqid al-Aslami informed us: Musa Ibn Shaybah informed us on the authority of `Umayrah Bint `Uhayd Allah Ibn Ka`b Ibn Malik, she on the authority of Umm Sa’d Bint Sa’d Ibn al-Rabi`, she as the authority of Nafisah Bint Munyah, sister of Ya`là Ibn Munyah; she said: When the Apostle of Allah, may Allah bless him, attained the age of twenty-five years, Abu Talib said to him: I am a man without wealth, and we are passing through hard days; here is a caravan of your people going to Syria. Khadijah Bint Khuwaylid sends men from among your people with her commodities; if you go and offer your services to her, she will readily accept them. The news of this conversation between his Uncle and the (Prophet) reached her; she sent for him [P. 83] and said to him: I shall pay you the double of what I pay to others from among your people.
Volume 1, Parts 1.34.2 He (lbn Sa`d) said: `Abd Allah Ibn Ja`far al-Riqqi informed us: Abu alMalih related to me on the authority of `Abd Allah Ibn Muhammad Ibn `Agil; he said: Abu Talib said: 0 my brother’s son ! it has come to my knowledge that Khadijah has appointed so and so on (a wage of) two camels, but we will not agree to the wage she has given him; will you like to have a talk with her? He (the Prophet) said: (You may) If you so like. Then he (Abu Talib) went to her and said: 0 Khadijah ! we have learnt that you have appointed so and so for two camels; if you will like to engage Muhammad for this job, we will not agree for less than four camels (for him). He (‘Abd Allah) said: Khadijah said: I would have accepted it even if you had demanded it for a distant enemy, and now you have done it for a near friend.
Volume 1, Parts 1.34.3 He (lbn Sa`d) said: Muhammad Ibn `Umar informed us: Musa Ibn Shaybah informed us on the authority of ‘Umayrah Bint `Ubayd Allah Ibn Ka`b lbn Malik, she on the authority of Umm Sa`d Bint Sa`d Ibn alRabi`, she on the authority of Nafisah Bint Munyah; she said: Abu Talib said: This is the provision that Allah has made for you. Thereupon he (the Prophet) set out with her (Khadijah’s) slave Maysarah, and his uncles advised the people of the caravan. It reached Busra in Syria. There the people took rest under the shadow of a tree. Thereupon the monk Nastur said: None except a Prophet has ever taken rest under this tree. Then he said to Maysarah: Is there redness in his eyes? He said: Yes ! it never vanishes. He (the monk) said: He is a Prophet, and the last of them. Then he (Prophet) sold his articles and there was some difference between him and the customer who asked him to take an oath of al-Lat and al-‘Uzzá. The Apostle of Allah, may Allah bless him, said: I never take an oath by them, and when I happen to pass by them I turn my face. The man said: The word is yours, and turning to Maysarah he said: By Allah ! he is a Prophet whose attributes, our scholars have noted in our scriptures. Besides, when it was noon time and heat was extreme, Maysarah observed two angels protecting the Apostle of Allah, may Allah bless him, against the sun. All this appealed to his heart, and Allah put his love in Maysarah’s breast, as if he was his slave. They sold their merchandise and earned profit double of what they were earning before. When they returned and reached Marr al-Zahràn, Maysarah said to him: 0 Muhammad ! go to Khadijah and inform her what Allah has bestowed on her because of you, so that she may know that this profit has been because of you. Thereupon the Apostle of Allah proceeded and entered Makkah in the afternoon. Khadijah was sitting in the attic. She saw the Apostle of Allah, may Allah bless him, riding his camel with two angels casting a shadow over him. She let other women see this, and they wondered at it. Soon the Apostle of Allah, may Allah bless him, reached there and informed her of what they had gained because of him. She was much pleased. When Maysarah arrived, she told him what she had seen. Thereupon Maysarah said: I have been noticing it since we set out from Syria, and informed her of what the monk Nastur had said, and the person, who had a dispute in bargaining, had said. The Apostle of Allah, may Allah bless him, brought his merchandise; she had earned double the profit she used to earn, and so she doubled the wages that she had settled.