मौला अली का इल्म ::अल्लाह और मख्लूकात में फर्क

अल्लाह और मख्लूकात में फर्क

मेरे मौला अली अलैहिस्सलाम ने एक खुत्बे में फरमाया कि “अल्लाह उन लोगों की बातों से बहुत बुलंद व बरतर है जो मखलूकात से उसकी तशबीह देते हैं और उसके वजूद से इंकार करते हैं।”

हम सब जानते हैं कि दुनिया में नास्तिक बहुत कम हैं, जो अल्लाह को नहीं मानते। कुछ लोग ऐसे लोग भी हैं जो खुदा को तो मानते हैं लेकिन तौहीद नहीं मानते। उनके लिए खुदा मख्लूकात जैसी ही किसी शय का नाम है। अल्लाह यानी हिन्दी भाषा में कहूँ तो, एक निराकार ईश्वर का इंकार करते हैं, वह तरह-तरह की चीज़े पूजने लगते हैं, खुदा की तरह-तरह की शक्लें बना लेते हैं, कभी कुदरती चीजों को तो कभी इंसान की बनाई हुई चीजों या बुतों की परस्तिश करते हैं।

मुसलमानों में यूँ तो सब तौहीद मानते हैं लेकिन जो तौहीद को समझ नहीं पाते उनके ज़हन में भी तरह-तरह के सवाल उठते हैं, मसलन के तौर पर अल्लाह कहाँ है, अल्लाह कैसा है? अल्लाह को किसने बनाया, अल्लाह कब से है?

अल्लाह मखलूक को किससे बनाता है, अगर मिट्टी से बनाया तो मिट्टी कहाँ से आई, अगर मिट्टी रब ने बनाई तो कैसे बनाई, अल्लाह है तो बुराईयाँ क्यों हैं?

यकीन मानना, अगर आपके दिल में भी ऐसे सवाल उठते हैं तो फिलहाल आप तौहीद से बहुत दूर हो। जो लोग अल्लाह को जिस्म वाला मानते हैं तो उनके सवालों की फहिश्त तो और भी लंबी होगी।

मेरे मौला ने खुत्बे में साफ़ फरमा दिया कि अल्लाह को मख्लूकात से नहीं तौला जा सकता ना तशबीह दी जा सकती है।

आज हम जानते हैं, हमारी पृथ्वी है, कई ग्रह हैं, तारे हैं, सूरज हैं, तारें हैं, कहकशाँ है और भी कई कहकशाएँ हैं, सब मिलकर एक ब्रह्माण्ड है और ये कितना बड़ा है, इसका अंदाजा लगाना भी फिलहाल नामुमकिन है। अल्लाह को जो लोग जिस्म वाला मानते हैं, वह उसका जिस्म ढूँढते हैं और फिर सवाल ये उठता है कि अल्लाह है कहाँ?


– आपको क्या लगता है, अल्लाह इन कहकशाओं में समा जाएगा, क्या अल्लाहु अकबर भी समझ नहीं आया?

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस कौल को समझाते हुए, इमाम अली रजा फरमाया करते थे, ” अल्लाह कैसा है, कहाँ है? , ये ख्याल करना गलत है। वह तो हर जगह का पैदा करने वाला है, खुद किसी जगह में नहीं है। वह कैफियतों को पैदा करने वाला है लेकिन खुद किसी कैफियत में नहीं है। वह कैफियत और मकाम से नहीं पहचाना जाता। हमने जब आजिज़ पाया, अपने हवास से उसके अदराक को यकीन कर लिया कि वह हमारा रब, हर शय से अलग है।

ठीक ऐसे ही इमाम जाफ़र सादिक़ ने भी बयान करते हुए फरमाया, “अल्लाह त’ आला, मखलूक से अलग है और मखलूक, उससे अलग है। अल्लाह हर शय का खालिक है। उस रब का ना जिस्म है और ना सूरत।”

तौहीद को समझना और दिल से कुबूल कर, मान लेना, बड़ा लंबा सफ़र है, अहलेबैत अलैहिस्सलाम के गुलामों से सीखते रहें।

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