
फ़ाज़िले बरेलवी फ़रमाते है – दुश्मन ए अली बिल इज्मा काफ़िर है अब आप ही बताओ मुआविया काफिर हुआ ना आला हजरत के फरमान के मुताबिक़
📚हवाला :- फ़तवा रजविया जिल्द 15 सफ़ह 236

फ़ाज़िले बरेलवी फ़रमाते है – दुश्मन ए अली बिल इज्मा काफ़िर है अब आप ही बताओ मुआविया काफिर हुआ ना आला हजरत के फरमान के मुताबिक़
📚हवाला :- फ़तवा रजविया जिल्द 15 सफ़ह 236
*Silsila e Madariya Jari Tha Jari Hain Jari Rahega*
*Sanad ul Muhaqqiq Hazrat Meer Syed Abdul Wahid Bilgrami Rehmatullah Alaih Ki Taraf Mansoob Kitab Saba Sanabil Ka Hawala De Kar Silsila e Madariya Ko Sokht Kehne Wale Silsila e Madariya Me Mureed Hone Ko Najayz o Haram Batane Wale Hazraat Aankhe Khol Kar Is Post Ko Pura Padhe Ye Un 121 Kutub (Kitabo) Ke Naam Hain Jinme Sarkar Madar ul Aalimeen Qutub ul Madar Hazrat Syed Badiuddin Zinda Shah Madar Razi Allahu Tala Anhu Ke Maratib Tahreer Hain Aapse Jis Aakabir Auliya Ne Faiz Paya Unke Ism e Girami Aur Sarkar Madar ul Aalimeen Ke Khulafa e Ikram Ke Ism e Girami Aapke Silsile Ke Jari Hone Ki Roshan Dalile Maojood Hain*
*1.* Manaqib ul Aarifeen
*2.* Bahre Zakhkhaar
*3.* Lataif e Ashrafi
*4.* Fusool e Masoodiya
*5.* Usool ul Maqsood
*6.* Samaat ul Akhyaar
*7.* Siyar ul Akhyaar
*8.* Akhbar ul Akhyaar
*9.* Durr Al Maarif
*10.* Maasir ul Kiram
*11.* Tazkirat ul Kiram
*12.* Khazinat ul Asfiya
*13.* Asrar e Abul Aala
*14.* Tabqaat e Shah Jahanwi
*15.* Silsila tul Aali
*16.* Maqalat e Tariqat
*17.* Saraj ul Awarif Fi Alwasaya wal Marif
*18.* Lataif e Quddusiya
*19.* Al Qaul ul Jali
*20.* Tohfa e Chishtiya
*21.* Nuzhat ul Khawatir
*22.* Masalik us Salekin
*23.* Mukhbir ul Wasilin
*24.* Manaqib ul Muhibeen
*25.* Jawahir e Hidayat
*26.* Tazkirat ul Aarifeen
*27.* Karamat e Masoodiya
*28.* Gulistaan e Masoodiya
*29.* Anwar ul Rafee
*30.* Tohfa e Muhammad Sher Miya
*31.* Badayun Qadeem wa Jadeed
*32.* Mir’rat e Masoodi
*33.* Mir’rat ul Ansaab
*34.* Khum Khana Tasawwuf
*35.* Al Noor wal Bha Fi Asnaad ul Hadees wa Salasil ul Auliya
*36.* Kaynat e Tasawwuf
*37.* Tarikh e Salateen Sharqiya wa Sufiya e Jaunpur
*38.* Maqtoobat e Imaam Rabbani
*39.* Tazkira e Mashaik e Izzam
*40.* Sahaif e Ashrafi
*41.* Anwar e Ashrafi
*42.* Khandan e Barkat
*43.* Seerat e Qutub e Aalam
*44.* Tarikh e Mashaik e Chisht
*45.* Mardan e Khuda
*46.* Tanweer ul Aaen
*47.* Tazkirat ul Fhuqara
*48.* Ashjar ul Barkaat
*49.* Miftah ul Tavarikh
*50.* Mashaik e Gorakhpur
*51.* Tazkira e Ulama e Hind
*52.* Tazkira e Ulama e Basti
*53.* Tazkira e Mashaik e Qadriya Barkatiya Rizviya
*54.* Tazkira e Syed Ahmad Badya Pa
*55.* Tazkira e Aakabir Ulama e Ahle Sunnat
*56.* Kulliyat e Imdadiya
*57.* Tarikh e Mashaik e Qadriya
*58.* Shah Barkatullah Hayat Aur Ilmi Karname
*59.* Faizan e Auliya An Noor Wal Baha
*60.* Al ijazat ul Matinah Liulamae Bakkatah wal Madina
*61.* Hayat e Aala Hazrat
*62.* Sawaneh Aala Hazrat
*63.* Sayi e Aakhir
*64.* Nasir ul Saliqeen
*65.* Noor e Wahdat
*66.* Qutub e Ghori Auliya
*67.* Fuqaha e Hind
*68.* Anees ul Abraar
*69.* Siyar ul Madar
*70.* Imaam Ahmad Raza Magazine
*71.* Moin e Aamil Murshid e Kamil
*72.* Asrar e Tasawwuf
*73.* Peeran e Chisht Ahle Bahisht
Asrar e Tasawwuf
*74.* Sufiyana Shayari
*75.* Mashaik e Hind
*76.* Jawahir e Alwiya
*77.* Tazkirat ul Kiram Khulfa e Arab o Islam
*78.* Salk Tariqat
*79.* Fawaid e Saeedia
*80.* Tazkira e Mashaik e Ghazipur
*81.* Tazkira e Mashaik e Sheraz Hind Jaunpur
*82.* Tazkira e Mashaik e Banaras
*83.* Manaqib e Ghousia
*84.* Abu Najeeb Suharwardi
*85.* Afzaal e Rahmani
*86.* Maadan Al Maani
*87.* Tarikh e Mehmoodi
*88.* Tahaqiqaat e Chishti
*89.* Bahrul Mu’aani
*90.* Ganj Tawarikh
*91.* Anwar Razzakiya
*92.* Tazkira e Habeebi
*93.* Manaqib e Fakharya
*94.* Kanzul Salasil
*95.* Risala Qutubiya
*96.* Ahwaal Urs Baba Fareed
*97.* Sajjada Nashinan Bihar (Mashaik e Sukhan Pardaz)
*98.* Sawaneh Umri Mehboob e Subhani Imaam Rabbani
*99.* Tazkira e Noori
*100.* Seerat e Bayazeed
*101.* Kashf ul Mahjoob
*102.* Sirat ul Akhyaar Al Shajarat ur Rafaiya
*103.* Tazkirat ul Mutaqeen
*104.* Matlubul Talibeen
*105.* Tazkira e Sufiya e Mewat
*106.* Millat e Rajshahi
*107.* Nimhaaj ul Tariqat
*108.* Awarul Ma’arif
*109.* Safinat ul Auliya
*110.* Mir’rat ul Israar
*111.* Taqwiyat ul Imaan
*112.* Tohfa e Aqaid
*113.* Ma’aroof e Masnawi
*114.* Tazkirat ul Aabideen Imdad ul Aarifeen
*115.* Auliya e Saharanpur
*116.* Qutub e Wahdat
*117.* Tarikh e Shah Meena
*118.* Madar e Aazam
*119.* Madar e Aalam
*120.* Tarikh e Madar e Aalam
*121.* Nasibat ul Abraar
*Aur Bhi Kitabe Hain Jo Is Waqt Yaad Nahi Aa Rahi Hain Ye Wo Kitabe Hain Jisme Silsile Madariya Jari Hone Ki Daleele Hai*
*Ab Me Apko Us Kitab Ki Baat Bata Raha Hu Jisme Silsila e Madariya Ko Sokht Likha Hain Jis Kitab Ka Sahara Lekar Log Madari Silsile Ko Sokht Kehte Hain Lekin Us Kitab Me Aur Kya Kya Khurafat Hain Wo Bhi Dekh Lijiye Phir Aap Khud Faisla Kare Ki Ye Ak Kitab Sahi Hain Ya Upar Wali 121 Kitabe…*
*Aaiye Dekhye Saba Sanabil Ki Kuch Aur Ibarate* 👇
*1.* Huzoor Sallallahu Aalehi wa Aala Aalehi wa Sallam Aur Mola Ali Alahis Salam Ne Bhi Qawwali Suni Hain.
[Sabe Sanabil:- Safa – 118]
*2.* Namaz Se Behtar Qwwali Hain.
[Sabe Sanabil:- Safa- 364]
*3.* Hazrat Nizamuddin Auliya Ke Janaze Ke Sath Qwwali Gayi Ja Rahi Thi.
[Sabe Sanabil:- Safa- 150]
*4.* Hazrat Khawaja Abul Hasan Khirqani Ki Ruh Khud Allah Pak Ne Qabz Ki Thi.
[Sabe Sanabil:- Safa 377]
*5.* Huzoor Sallallahu Aalehi wa Sallam Ke Walideen Kafir Hain.
[Sabe Sanabil:- Safa -90]
*6.* Khawaja Gareeb Nawaz Rehmatullah Alaih Apne Mureed Se Kalma Padhwate The La ilaha il lallah Chishty Rasool Allah
[Sabe Sanabil:- Safa -234]
*7.* Hazrat Khizar Alaihis Salam Qwwali Me Aaye Logo Ki Juto Par Nighebani Farmate The.
[Sabe Sanabil:- Safa – 120]
*Ab Aap Khud Faisla Kare Jis Kitab Me Itni Khurafati Ibarte Bhari Ho Us Kitab Ko Ek Sunni Sahi ul Aaqida Kese Mante Hain Aur Ajeeb Bat To Ye Tamaam Auliya Ki Ulama Ki Mashaik Ki Kitabe Taakh Me Rakh Kar Ak Saba Sanabil Ki Jhuti Riwayat Ko Kyu Mana Jata Hain…*
मदारिया सिलसिले का संगीत पक्ष- सुमन मिश्र
उत्तर भारत में सिलसिला मदारिया बहुत प्रचलित रहा है. इस सिलसिले की कई उप-शाखें यथा – पंचपीरिया आदि भी लोक में प्रचलित रहे हैं. सिलसिला मदारिया पीछे जाकर सैयद बदीउद्दीन शाह मदार से जुड़ता है जो शैख़ मुहम्मद तैफ़ूर बुस्तामी के मुरीद थे . मदारिया सिलसिले से पहले भी सूफ़ियों में कुछ फ़िर्क़े थे जो आम सूफ़ियों से अलग प्रतीत होते थे . इनमे से सबसे प्राचीन सिलसिला मलामतियों का है, जो आत्म निंदा को ज्यादा महत्व देते थे .दूसरा सिलसिला क़लंदरों का था जो अपनी धुन में मस्त रहा करते थे और हज़रत ख़िज़्र रूमी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे .
मलामतियों और क़लंदरों से इतर मदारिया सिलसिला चौदहवी शताब्दी के दूसरे भाग में उभरा .मदारिया सिलसिले के बारे में ज्यादा नहीं लिखा गया और मिरत उल मदारी और मिरत ए बदी व मदारी जैसी कुछ किताबों और पांडुलिपियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. मदारिया सिलसिला के बानी हज़रत शाह बदीउद्दीन ज़िंदा शाह मदार का सबसे पहले ज़िक्र मिरत उल मदारी में आता है.
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ इस्लाम के अनुसार शाह मदार का जन्म 250 AH या 864 AD में हुआ था .तज़किरात उल मुत्तक़ीन के अनुसार यह 442 AH या 1051 AD है, जबकि मिरत उल मदारी के अनुसार यह 715 AH या 1315 AD है जो सबसे सही प्रतीत होता है .
गुलज़ार ए अबरार में भी शाह मदार और उनके मुरीदों का विस्तृत वर्णन है. भारत में यह सिलसिला कैसे फैला और कहाँ कहाँ फैला इसका ज़िक्र भी इस किताब में मौजूद है.इसकी हस्तलिखित प्रति सैयद मोहम्मद जमालुद्दीन, काज़ी मुहम्मद कंटूरी, काज़ी शियाबुद्दीन दौलताबादी, क़ादिर अब्दुल मलिक बहराइच, सैयद ख़स्सा, सैयद राज़ी देहलवी , शैख़ अल्ला और शैख़ मोहम्मद के जीवन पर भी प्रकाश डालती है.
शाह मदार पानी के जहाज से हिंदुस्तान तशरीफ़ लाये थे और उन्होंने कानपुर के निकट स्थित मकनपुर में क़याम किया . शाह मदार के हज़ारों मुरीद थे लेकिन उन्होंने अपना खलीफ़ा सैयद अबू मुहम्मद अरगुन को बनाया और उन्हें अपना ख़िर्क़ा सौपा. शाह मदार ने सैयद अबू मोहम्मद अरगुन , सैयद अबू तुराब ख़्वाजा फ़सूर और सैयद अबुल हसन तैफ़ूर को गोद लिया था . दो और लोगों की तरबियत शाह मदार की देख-रेख में हुई, वो थे सैयद मोहम्मद जमालुद्दीन और उनके छोटे भाई सैयद अहमद . ये दोनों प्रसिद्द क़ादरी संत हज़रत अब्दुल क़ादिर जिलानी ग़ौस उल आज़म के भांजे थे .
मदारिया सिलसिले की ही उपशाखा दीवानगान हैं जिन्हें मलंग कहा जाता है. मलंग अपने बाल नहीं कटाते और इनके बालों की लंबाई भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती रहती है. मलंग अपना सम्बन्ध हज़रत सैयद जमालुद्दीन जानेमन जन्नती से जोड़ते है . ये शहर से बाहर अपनी झोपडी बनाते है और ताउम्र अविवाहित रहकर ख़िदमत ए ख़ल्क़ करते है .
सिलसिला मदरिया हिंदुस्तान में बड़ी तेज़ी से फैला. इस की एक वजह यह भी रही कि इस सिलसिले में लोकाचार को महत्व दिया जाता रहा है. यह सिलसिला धीरे-धीरे कई अन्य सिलसिलों से भी जुड़ गया और यहाँ से हिन्दुस्तानी संस्कृति ने इस सिलसिले को अपने अनुसार सजाना शुरु कर दिया. हिंदुस्तान में सूफ़ी संतों का सब से प्रिय भोजन खिचड़ी रहा है. यह इस लिए क्यूंकि सूफ़ी संत विषमताएँ मिटा कर सब को ऐसे मिला देने में यक़ीन रखते हैं कि तू और मैं का भेद समाप्त हो जाए. यही वजह है कि हज़रत शाह मदार को अन्य सूफ़ी प्रादेशिक सूफ़ी सिलसिलों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त रहा. बिहार, बंगाल और पंजाब में प्रचलित पंचपीरिया संप्रदाय के लोग पाँच पीरों की पूजा करते हैं और इस संप्रदाय में हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल हैं. जैसे ही कोई व्यक्तित्व लोक का हिस्सा बनता है, वह लोक का ही नहीं लोक गीतों का भी हिस्सा बन जाता है. पंचपीरिया संप्रदाय के लोक गीतों का एक संग्रह The Heroes five (Pancho pir) के नाम से मिलता है. इस किताब में वाराणसी के आस-पास रहने वाले पंचपीरिया संप्रदाय के लोगों के गीत संग्रहित हैं. ये लोकगीत कई मायनों में ख़ास हैं. इन गीतों में हज़रत शाह मदार के गीत भी शामिल हैं. एक गीत देखते हैं –
हुआ हुक्म हक़ ता’ला का और दिया पीर फ़रमाय
ज़िन्दा मदार का शेवा कर मामल शहर मकनपुर जाय
गढ़ अजमेर शहर से मामल शहर मकनपुर जाती
रास्ता पूछ कूच किया डेरा लेकिन मैं पछताती
न जाने क्या लिखा बिधाता मेरी दोनों आँख फटती
किसी सूरत रात दिन मामल जाती वहाँ नागिन आती
बारे सवेरे ढेर लग पहुंची, जाके अदब बजाती
चश्मों से क़दमों को चूमा और अपना दर्द बताती
मेरी आरज़ू यही गिलानी, दुआ करो उस ख्वाविंद से मेरी कोख़ खुल जाती
आँचर खुले मिले बालक दुआ देत घर जाती
एक बंस बिन सुन साँस मुझे नहीं कुछ दुनियाँ भाती
ज़िन्दा मदार जगत जग ज़ाहिर तुरंत जवाब वहाँ पाती
तेरी अंस नहीं लिखा बंस मामल ना हक़ मुझे सताती
जिसे पूत महबूब दिया न सुन मामल ! उसे कौन करे अहवाती
दिया सोंचा ए : जाओ घर अपने, ना हक़ बदन जलाती
गई फूट टूट गई क़िस्मत उल्टा पछरा खाती
बिला खिदमत अज़मत नहीं पावे, चाहे आवे दुनिया चाहे जावे
चिल्ला बाँध ध्यान से मामल लियो पीर से जाय
ज़िन्दा मदार जगत जग ज़ाहिर, जिन से राज़ी है खुदाय !
जो जो गया वहाँ सुख पावा, तुमहूँ उन लियो लौ लाए
चिल्ला कसी ख़ुशी से मामल, कहा पीर से जाके गोद पसारि
लट छिटकाए जाए चौखट पर पलकन ढेर बुहारी
रनता बरन, बदन को अपना मामल उहन जाय के डारा
तीन बरस खिदमत किया मामल सैट सुकृत नहीं तारा
लागी दर्द देख एक दिन तब बोले पीर पियारा
पढ़ा दरूद दुआ किया रब्ब से ऐ ख्वाविंद तुही से एक सुखन हम डारा
ऐसा मालूम हुआ पीर को, अब खालिक़ हुकुम दिया सत्तारा
मुख भर दुआ दिया मामल को मंशा पूरन किया तुम्हारा
जो बाँझिन होय तेरे बंस, मुझे देओ दिखाई लेओ नार बेवारा
किया सलाम नाम लिया रब्ब का चली आई मामल अपने दुआरा
पहुंची गाँव पाँव हुआ भारी बीत गया मास अठवारा
नववाँ मास खलास भए रहम किया करतार
बेटा हुआ मामल को सूरत रब्ब ने आप संवारा
इस प्रकार के कई लोक गीतों में हज़रत शाह मदार का ज़िक्र आता है. ज़ाहिर है कि ये गीत गाये भी जाते रहे होंगे लेकिन आज ऐसे गीत हमें सुनने नहीं मिलते. एक और लोक गीत देखें –
जागे बंस मामल के, जब हुए ग़ाज़न ऐसे पूत
जागे बंस मामल के, जब हुए ग़ाज़न ऐसे पूत
रहे गाजन पीर बाले भोले लाड़ले सालार
नित उठ मामल प्यार करे –मुझे बख्शा ज़िन्दा शाह मदार
सहु सालार से अर्ज़ करे – मानूं तुम्हारा एहसान
शादी का सामान करो हट जाए दिल का अरमान
करते सामान अरमान भारी – न रहा ग़ाज़ी है मेरा
जग रहे बिधंस, बंस के ख़ातिर सहूँ बिपत घनेरा
कोख़ खातिर दुखिया होए, निकलूं फिरूं मुल्क चौफेरा
मैं तो पीर फ़क़ीर अल्लाह वली मनाऊं जहवाँ ख्व़ाजा का डेरा
मैं तो की उन सलाम नाम ले उन ख्व़ाजा का मांगूँ मुराद
–एक बंस बिन जग है अँधेरा
मुझे मिला जवाब शिताब रौज़े से
–जा मामल घर! नहीं कुछ क़ाबू मेरा
मेरी टूटी आस, घर चलूँ निरास, मुझे जमन जती ने फेरा
मुझे दिया दिलासा- पूजिहें आसा,
ऐ मामल, है रब का ख़याल घनेरा
मैं तो ज़िन्दा शाह मदार की चौखट चुमूँ,
उन मांगूं मुराद – मोरी पूजे आस दिल केरा
मैं तो सेवा टहल की, उन ज़िन्दा की लटों से दरबार बुहारूं,
सुबह ओ शाम दोनों तेरा
मैं तो शहंशाह का चिल्ला बाँधूँ, कुछ दिन की, उन पिछेरा
मेरा रब्ब साहिब का खेल अजब कुदरत की बहती दरिया,
जहवां रहे नाव न बेरा
मुझे ज़िन्दा शाह मदार की मिली बशारत
–क़िस्मत तोफ़ीक मारो घोटा मामल, ले लो!
बराए हीरा मोती लाल जो शौक़ मन तेरा
निहुराई माथ जब डालूं हाथ,
जब से आगम भवा अन्झोरा
मुझे ज़िन्दा शाह मदार का हुआ हुकुम था
–करो नहान, मामल ऐहो हज सवेरा
टुक लगी आँख, ख्व़ाब एक देखूं – ऐ ग्वालो छेरा
ब्याह के रोज़ शहीद होंगे बालम, कर संग फ़ौज डरेरा
यही चूके उन, कौल भूल भवा मोसे, रहा अदिन का फेरा
जी एरा धड़के, आगम लक्खे, आए वही जूँ वही बेरा
तुम शायद उमर घर भेजो खबर अब, मत लाओ कुछ बेरा
कहे सहू सालार-मामल रहे क़र्र्रार से भली घरी से छेरा
हज़रत शाह मदार के गीत गाने की परंपरा थी.यह धारणा और भी पुष्ट हो जाती है जब तानसेन द्वारा लिखित गीतों में हमें शाह मदार का ज़िक्र मिलता हैं. तानसेन द्वारा रचित गीत आप भी देखें .निश्चय ही ये गीत विभिन्न रागों में गाये जाते रहे होंगे–
दमदम मदार लाड़ले खाज पीर मेरे
तिनको विथा दूर करो निहोर
खाज मौनदीन कुतबदीं तुरक मान
राख ले तुम अपनी ओर !
एक और कलाम देखें –(राग -टोड़ी -रूपक )
मदार नूरी नूर बरसावै खलक पर
अपने जन के तन मन वैनन आनन सुर रागरंग रस सरस कर
जोई गति आवै मन इच्छा फल पावै परम धीर
सेति करम रति माथे पर
बादशाह औरंगज़ेब जब मकनपुर पहुंचा तब उस ने अपने घुटनों पर रूई बाँधी और घुटनों के बल हज़रत ज़िन्दा शाह मदार की दरगाह में पहुंचा था. हालांकि बादशाहों के सब दौरे आध्यात्मिक न होकर राजनितिक होते हैं, फिर भी भाषा के तौर पर यह दौरा इस लिए अहम् था क्योंकि उस के साथ दो हिन्दू कवि भी मकनपुर गए थे. उन कवियों के विषय में कभी विस्तार से लिखा जायेगा, पर उन में से एक कवि थे शिव पंडित, जिन्होंने हज़रत सय्यद ज़िन्दा शाह मदार पर एक कवित्त लिखा था वह कवित्त कुछ यूँ है –
नहीं सालोन, कारे, हिलसे
नहीं जात बिहार, न जात बुख़ारे
अजमेर, मनेर को कौन गने
अली और हैं पीर अनेक बड़ा रे
जोत अखंडित
मंगल पंडित
शिव पंडित
कविराज पुकारे
जा पर रीझत हैं करतार
सो आनत द्वार
मदार तिहारे
यहाँ इस कवित्त में कई जगहों के नाम भी आये है –
सलोन में हज़रत पीर मुहम्मद की दरगाह है
कड़ा में हज़रत शैख़ कड़क शाह की दरगाह है
हिलसा में शैख़ जमालुद्दीन जानेमन जन्नती की दरगाह है
बिहार शरीफ में मख़दूम साहब की दरगाह है
अजमेर में ख़्वाजा साहब की दरगाह है
और मनेर में हज़रत कमालुद्दीन अहमद याह्या मनेरी की दरगाह है .
पंजाब में भी हज़रत ज़िन्दा शाह मदार के गीत प्रचलित थे. कुछ गीत देखें –
1.
खेले ज़िन्दा शाह मदार
मैं ताँ ताँ जीवन
तेरा नूर भरा दीदार
तेरा मौला नाल क़रार
खेले ज़िन्दा शाह मदार
2.
शाह मदार मैं दीवानी देखो
शाह मदार मैं दीवानी
पीरा तेरे आवन दे क़ुर्बान
तूँ ताँ रोशन दोहीं जहानी
काला बकरा सवा मन अता देओ शाहाँ महमानी
शाह मदार मैं दीवानी देखो शाह मदार मैं दीवानी
3.
ज़िन्दा शाह मदार
अल्लाह किने औंदा देखिया
मदार नी मदार
नी घोड़े वाला
सब्ज़ दोशाले वाला
बाँकिया फौज़िया वाला
किने औंदा देखिया
ज़िन्दा शाह मदार
4.
शाह मदार तेरियाँ चौन किया भरदी
नूर भरियु दीदार, मेरा मीराँ औंदा देखा
मदारिया सिलसिले के लोकगीतों पर अगर शोध किया जाए तो हज़ारों गीत मिल सकते हैं. ये गीत हमारी अनमोल धरोहर हैं जिन्हें बचाना और दोबारा पुनर्जीवित करना रोमांचक होगा.