
जालसाज़ी
बिरादराने यूसुफ अलैहिस्सलाम ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को एक गहरे कुएं में फेंक दिया। अपने गुमान में उन्हें मार डाला फिर आपकी कमीज़ मुबारक जो कुंए में फेंकने के वक़्त उनके बदन से उन्होंने उतारी थी उसको एक बकरे के खून में रंगकर साथ ले लिया और वापस आये। जब मकान के करीब पहुंचे तो रोना शुरू कर दिया । हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम ने उनको इस हाल में देखा तो पूछाः मेरे फ़रज़ंद क्या हुआ? यूसुफ़ कहां है? वह रोते हुए बोलेः अब्बाजान! हम आपस में एक दूसरे से दौड़ करते थे कि कौन आगे निकल जाता है। इस दौड़ में हम सब बहुत दूर निकल गये। यूसुफ को हम अपने असबाब के पास छोड़ गये थे। वह अकेला रह गया और एक भेड़िया मौका पाकर उसे खा गया। यह उसकी खून आलूदा कमीज़ है। अब्बाजान! आप हमारा यकीन तो न करेंगे मगर बात दरअसल यही है। हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम ने फरमायाः बेटो! तुम्हारे दिल ने यह एक बात गढ़ी है अच्छा मैं तो अब सब्र करूंगा और अल्लाह ही से इस बात में फैसला चाहूंगा। (कुरआन करीम पारा १२, रुकू १२, ख़ज़ाइनुल इरफ़ान सफा ३३६)
सबक़ : ज़ालिम अपना जुल्म छुपाने के लिए बड़ी बड़ी जालसाज़ियों से काम लेते हैं । अपनी मज़लूमियत साबित करने के लिए रोकर भी दिखा देते हैं। मालूम हुआ कि हर रोने वाला ज़रूरी नहीं है कि सच्चा ही हो। यह भी मालूम हुआ कि कमीज़ को मसनूई खून से रंगकर उसे असल खून बताना यह भी जालसाज़ी ही है। यह भी मालूम हुआ कि हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम को इस बात का सब इल्म था कि मेरे यूसुफ को भेड़िये ने हरगिज़ नहीं खाया बल्कि उनके दिल की यह बनाई हुई बात है। यह भी मालूम हुआ कि जहां बिरादराने यूसुफ ने जालसाज़ी से रोना चिल्लाना शुरू कर दिया वहां अल्लाह के पैगम्बर हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम ने सब्र का मुजाहरा फ़रमाया। गोया सब्र का मुज़ाहरा ही हक है न कि चीखना चिल्लाना।