
मदीने की बेहुर्मती से यज़ीद की प्यास अभी नहीं बुझी, उसने अपनी फौज को हुक्म दिया कि अब मक्का मुअज़्जमा और कबतुल्लाह को भी ताराज कर डालों।
मा बदे करबला यज़ीद की फौज हिसीन दिन नमीर की सरकरदगी में मक्का पहुंची और पहुंचते ही फौरन काबा का मुहासरा कर लिया। और इस कद्र संगबारी की कि हर हर तरफ़ सहने काबा में पत्थर ही पत्थर नज़र आने लगे। मस्जिदे हराम के कई सुतून शहीद कर डाले, खान-ए-काबा में आग लगा दी।
64/रोज़ तक बराबर मक्का वालों को कत्ल करते रहे। काबा का गिलाफ जल गया, दीवारें फट गईं और जो दुबा हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की जगह जिबह हुआ था उसकी दोनों सींगें काबा में रखी हुई थीं जल गई और उसका चमड़ा भी जल गया। हजरत सैय्यदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम के कई तबलंकात जल गये। काबा कई रोज़ तक बेगिलाफ रहा। अभी यजीदी मक्का में कत्ल द गारत में मस्रूफ थे कि यज़ीद की मौत की खबर आई। फौजें मुन्तशिर हो गई। (जज़्बुल-कुलूब, इने असीर जिल्द 1, स. 31 ता 313, तबरी स. 2 ता 3. अल-बिदाया वन्निहाया स. 219)

