इमाम ‘जैनुल आबेदीन रज़ि अल्लाहु अन्हु की यज़ीद पलीद से गुफ्तगू

यजीद ने हज़रत इमाम जैनुल आबेदीन से कहा कि आप क्या चाहते हैं? तो इमाम ने फरमाया कि

अव्वल : यह कि मेरे वालिद के कातिल को मेरे हवाले कर दे।

दोम : यह कि शोहदाए किराम के सिरों को मुझे दे दे ताकि मैं इन्हें लेजाकर उनके जिस्मों के साथ दफन कर दूं।

सोम : यह कि आज जुमे का दिन है मुझे इजाज़त दे कि मिम्बर पर चढ़कर खुत्बा पदूं।

चहारम : यह कि हमारे लिये हुए काफिले को मदीना पहुंचा दे।

यज़ीद ने कहा कि कातिल का मुतालबा दरगुज़र कीजिये।

बाकी आपके तमाम मतालबात मंजूर हैं। जिस वक्त यज़ीद जामा मस्जिद में पहुंचा तो देखा कि शाम के तमाम अमराए रऊसा मौजूद हैं।

यज़ीद सोचने लगा कि कहीं ऐसा न हो कि इमाम जैनुल आबेदीन के खुत्बा देने से अपना बना बनाया काम बिगड़ जाये।

यज़ीद ने फौरन एक शामी खतीब को हुक्म दिया कि वह फौरन मिम्बर पर चढ़कर खुत्बा दे।

शामी खतीब ने मिम्बर पर चढ़कर अहले अबू सुफियान की तारीफ और आले अबू तालिब की बुराईयां ब्यान करना शुरू कर दी।

हज़रत इमाम जैनुल आबेदीन बर्दाश्त न कर सके आप फौरन खड़े हो गये और आगे बढ़कर फरमाया ऐ शामी तू झूटा और फिला परवर ख़तीब है।

एक फ़ासिक व फाजिर के लिये तू अल्लाह की नाफरमानी कर रहा है और अपने को अज़ाबे इलाही का मुस्तहिक ठहराता है।

आपने यज़ीद को ललकारा और कहा तू वादा खिलाफी क्यों करता है? मुझे खुत्वा पढ़ने का मौका क्यों न दिया? तमाम हाज़िरीने मस्जिद खड़े हो गये और कहा कि हम आज इन्हीं का खुत्बा सुनना चाहते हैं।

जिनकी फसाहत व बलागत का अरब व इज्म में डंका बज रहा है। मजबूर होकर यजीद ने आपको खुत्वा पढ़ने की इजाजत दे दी। हज़रत इमाम जैनुल आबेदीन रज़ियल्लाहु अन्हु मस्जिद के मिम्बर पर तशरीफ़ लाये। अल्लामा अबू इस्हाक असफर अपनी किताब “नूरुलऐन” में यूं रकमतराज़ हैं।

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