
ताज महल को लोग शाहजहां और मुमताज के नाम से जानते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि 1631 से आज तक ताजमहल की रक्षा कौन कर रहा है? इस खूबसूरत इमारत की रक्षा कर रहे हैं चार पीर, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
क्या है मान्यता
हर वर्ष ताजमहल पर मुग़ल बादशाह शाहजहां का तीन दिवसीय उर्स मनाया जाता है लेकिन जिन पीरों (संतों) की वजह से ताजमहल की नींव रखी गई जिनकी वजह से आज ताजमहल की इमारत कायम है, उन पीरों की दरगाह को हर साल उर्स के मौके पर श्रद्धा और सुविधा से वंचित रखा जाता है। इतना ही नहीं, मान्यता भी ये है कि अगर कोई जायरीन शाहजहां की जियारत करने आया है तो उसे सबसे पहले पीर हजरत अहमद बुखारी की दरगाह पर जाकर माथा टेकना होता है उसके बाद शाहजहां की मजार पर जाना चाहिए लेकिन ताजमहल की चकाचौंध में परंपराओं की अनदेखी की जा रही है।
हजरत जलाल शरीफ दरगाह।
भूत औऱ जिन्न नहीं बनने दे रहे थे ताजमहल
दरगाह अहमद बुखारी शाह के सज्जादानशीन मो. निजाम शाह बताते हैं कि जब मुग़ल बादशाह शाहजहां ताजमहल की नींव रखवा रहे थे उसी दौरान भूत-जिन्न कारीगरों को ताजमहल की बुनियाद रखने नहीं दे रहे थे। वे रात में कारीगरों को डराकर भगा देते थे साथ ही रखी हुई नींव को ध्वस्त कर देते थे। इसके चलते कोई भी कारीगर यहां रुकने को तैयार नहीं था।
हजरत लाल शाह बुखारी दरगाह।
अरब से बुलाए गए थे पीर
ताजमहल की नींव रखी जा सके और बिना किसी विघ्न के ताजमहल का निर्माण पूरा हो सके इसके लिए इमामों ने मुग़ल बादशाह शाहजहां को अरब में बुखारा शहर के पीर हजरत अहमद बुखारी को बुलाने की राय दी। शाहजहां के बुलावे पर पीर अपने तीन भाइयों के साथ सैय्यद जलाल बुखारी शाह, सैय्यद अमजद बुखारी शाह और सैय्यद लाल बुखारी शाह भारत चले आए। शाहजहां सभी पीर बाबाओं को खुद लेकर आगरा आए थे।
हजरत अहमद शाह बुखारी दरगाह।
तब जाकर रखी गई नींव
दरगाह कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने बताया कि चारों पीर बंधुओं ने आगरा में ताजमहल के नींव परिसर पर पहुंचकर कुरान और कलमों की तिलावत (पाठ) कराया। इसके बाद शाहजहां के हाथों नींव रखवाकर ताजमहल को बनवाने का काम शुरू करवाया। तब कहीं जाकर ताजमहल का निमार्ण पूरा हो सका।
हजरत अमजद बुखारी दरगाह।
ताकि ताज रहे सुरक्षित
जानकार मुनव्वर अली ने बताया कि चारों पीर बाबाओं के जन्नत में पहुंचने के बाद उन चारों की मजार ताज के चारों कोनों पर बनाई गईं। हजरत अहमद की मजार पूर्वी गेट के पास बनी हुई है। जलाल बुखारी की पश्चिमी, लाल बुखारी की थाना ताजगंज और अमजद बुखारी की बिल्लोचपुरा (तेलीपाड़ा) में बनाई गई। सैय्यद मुनव्वर ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जब तक ताज के चारों ओर इनकी दरगाह मौजूद हैं तब तक ताज को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता।
शाहजहां से पहले पीर की जियारत जरुरी
दरगाह अहमद बुखारी के सज्जादानशीन मो. निजाम शाह ने बताया कि उर्स पर जियारत करने वाले श्रद्धालुओं के लिए मान्यता है कि अगर वे जियारत करने शाहजहां की मजार पर जाना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले अहमद बुखारी की दरगाह पर आना होगा, तभी उनकी जियारत पूरी होगी।
ताज की अपेक्षा नहीं है यहां सुविधाएं
स्थानीय निवासी शाहिद ने बताया कि यहां इस परंपरा को माना नहीं जा रहा है। एक तरफ ताजमहल पर दिनभर में 50 से 60 हजार श्रद्धालु आकर चले जाते हैं वहीं, सैय्यद अहमद बुखारी की दरगाह पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कुछ एक हजार होती है। इसके अलावा प्रशासन जितनी मुस्तैदी से ताज परिसर में व्यवस्थाएं करता है उसकी अपेक्षा में यहां कोई ध्यान भी नहीं देता।
क्या कहना है स्थानीय लोगों का
दरगाह कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मुईन बाबूजी ने बताया कि शाहजहां के उर्स से पहले पीर अहमद बुखारी शाह का उर्स शुरू हुआ था। लेकिन ताजमहल की चकाचौंध और लोगों की धारणा ने पीर बाबा को पीछे कर दिया। वहीं ताजमहल इंतजामिया कमेटी के सैय्यद मुनव्वर अली ने बताया कि ताजमहल की वजह से लोग शाहजहां का उर्स करने के लिए पहले जाते हैं। लेकिन ये गलत है जो मान्यता और जो परंपरा है उसका पालन करना चाहिए।

