हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (199 – 212)

199

आप (अ.स.) ने एक बार आम लोगों की भीड़ को देख कर फ़रमायाः

ये वो लोग हैं जो अगर इकट्ठा हो जाते हैं तो छा जाते हैं और जब फैल जाते हैं तो पहचाने नहीं जाते।

एक दूसरी जगह यही बात इस प्रकार कही गई हैः

ये वो लोग हैं कि जब इकट्ठा हो जाते हैं तो हानि पहुँचाते हैं और जब फैल जाते हैं तो लाभदायक होते हैं।

आप (अ.स.) से कहा गया कि इन लोगों के एकत्र होने से होने वाली हानि के बारे में तो जानते हैं किन्तु इन के फैल जाने से क्या लाभ होता है, तो फ़रमायाः

विभिन्न प्रकार के काम करने वाले लोग अपने अपने कारोबार की ओर लौट जाते हैं और लोग इस से लाभ उठाते है। राज मिस्त्री लोग अपने द्वारा बनाए जाने वाले भवनों की ओर लौट जाते हैं, कपड़ा बुनने वाले लोग अपने काम की जगह की ओर और नानबाई अपनी रोटी बनाने की जगह की तरफ़ लौट जाते हैं।

200

आप (अ.स.) के सामने एक अपराधी लाया गया तो उस के पीछे पीछे तमाशाइयों का हुजूम भी था, जिस को देख कर आप (अ.स.) ने फ़रमायाः

ऐसे चेहरों पर फिटकार हो जो केवल बुरे अवसरों पर ही नज़र आते हैं।

201

हर इनसान के साथ दो फ़रिश्ते होते हैं जो उस की रक्षा करते हैं और जब मौत का समय आता है तो उस के और मौत के बीच से हट जाते हैं। और बेशक इंसान की निर्धारित आयु उस के लिए मज़बूत ढाल है।

202

तलहा व ज़ुबैर ने आप (अ.स.) से कहा कि हम इस शर्त पर आप की बैअत करते हैं कि इस हुकूमत में आप के शरीक होंगे, तो आप (अ.स.) ने फ़रमायाः

नहीं, बल्कि तुम शक्ति पहुँचाने और हाथ बँटाने में शरीक और कमज़ोरी और कठिनाई के अवसर पर सहायक होगे।

203

आप (अ.स.) ने फ़रमायाः अल्लाह का तक़वा इख़तियार करो (अर्थात अपने मन और कर्मों को पवित्र कर लो) क्यूँकि तुम जो कुछ कहते हो वो उस को सुनता है और अगर तुम कोई बात अपने दिल में छिपा कर रखो तो वो जानता है। और उस मौत की ओर बढ़ने की तैयारी करो कि अगर तुम उस से भागो गे तो वो तुम को पा लेगी और अगर ठहर जाओगे तो तुम को पकड़ लेगी और अगर तुम उस को भूल जाओ गे तो वो तुम को याद रखे गी।

204

किसी व्यक्ति का तुम्हारे उपकार के बदले तुम्हारा कृतज्ञ न होना तुम को उपकार करने से हतोत्साहित न कर दे। क्यूँकि कभी कभी ऐसा भी होता है कि तुम्हारे उपकार की वो व्यक्ति सराहना करता है जिस ने उस उपकार से कोई लाभ ही न उठाया हो। और उस अकृतज्ञ व्यक्ति ने तुम्हारे हक़ को जितनी हानि पहुँचाई हो तुम उस से कहीं अधिक उस सराहना करने वाले की सराहना से प्राप्त कर लो गे। और अल्लाह उपकार करने वालों को दोस्त रखता है।

205

हर पात्र (बरतन) उस में रखी गई चीज़ की वजह से तंग हो जाता है, किन्तु ज्ञान का पात्र एक ऐसा पात्र है कि उस में जितना ज्ञान भरा जाता है वो उतना ही विशाल हो जाता है।

206

शालीन (बुर्दबार) व्यक्ति को अपनी शालीनता (बुर्दबारी) का पहला प्रतिफल यह मिलता है कि लोग जाहिल व्यक्ति के ख़िलाफ़ उस के तरफ़दार हो जाते हैं।

207

अगर शालीन (बुर्दबार) नहीं हो तो बुर्दबार बनने की कोशिश करो क्यूँकि ऐसा कम ही होता है कि कोई व्यक्ति ख़ुद को लोगों के एक विशेष समूह जैसा दिखाने की कोशिश करे और वो उन जैसा न हो जाए।

208

आप (अ.स.) ने फ़रमायाः जिस ने अपने आप का हिसाब किया उस ने लाभ उठाया और जो इस काम से बेपरवा रहा उस ने नुक़सान उठाया, और जो डरा वो सुरक्षित हो गया और जिस ने उपदेश ग्रहण किया वो देखने वाला हो गया और जो देखने वाला हो गया वो समझ गया और जिस ने समझ लिया उस ने ज्ञान प्राप्त कर लिया।

209

यह दुनिया मुँहज़ोरी दिखाने के बाद हमारी तरफ़ झुकेगी, उसी तरह जिस तरह काटने वाली ऊँटनी अपने बच्चे की तरफ़ झुकती है। फिर आप (अ.स.) ने क़ुरान शरीफ़ की एक आयत की तिलावत फ़रमाई जिस का अर्थ हैः

“हम चाहते हैं कि जो लोग ज़मीन पर कमज़ोर कर दिए गए हैं उन पर एहसान करें और उन को इमाम बनाएँ और उन्हीं को इस ज़मीन का वारिस बनाएँ।”

210

आप (अ.स.) ने फ़रमाया, अल्लाह का तक़वा इख़तियार करो (अर्थात अपने मन व कर्मों को पवित्र कर लो) उस व्यक्ति की तरह जो कमर कस कर तैयार हो गया और जिस ने समय पर कोशिश की और अल्लाह की बन्दगी के रास्ते पर डरता हुआ मगर तेज़ी से आगे बढ़ा और जिस ने अपने कर्मों और अपनी आख़िरी मन्ज़िल (गन्तव्य) पर नज़र रखी।

211

दानशीलता (सख़ावत) मान मर्यादा की रक्षक है, बुर्दबारी मूर्ख के मुँह का तसमा है, क्षमा करना सफ़लता की ज़कात है (अर्थात सफ़लता के लिए क्षमा करना ज़रूरी है), ग़द्दारी करने वाले को भूल जाना ही उस का बदला है। परामर्श (मशवरा) लेने का अर्थ सही रास्ता पा जाना है। जो व्यक्ति केवल अपनी राय पर भरोसा करता है ख़ुद को ख़तरे में डालता है। धैर्य (सब्र) विपत्तियों को दूर करता है। व्याकुलता (व्यक्ति के बुरे) समय की सहायता करती है। सबसे बड़ी दौलत आकांक्षाओं से हाथ उठा लेना है। बहुत सी बुद्घियाँ अमीर लोगों की वासनाओं की दास हो जाती हैं। अनुभव अल्लाह की मेहरबानी से ही प्राप्त होता है। दोस्ती एक तरह की रिश्तेदारी है। जो तुम से दुखी हो उस पर विश्वास मत करो।

212

इंसान की ख़ुदपसंदी उस की अक़ल की दुश्मन है।

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About naming of doubt as such and disparagement of those in doubt

Doubt is named doubt because it resembles truth. As for lovers of Allah, their conviction serves them as light and the direction of the right path (itself) serves as their guide; while the enemies of Allah, in time of doubt call to misguidance in the darkness of doubt and their guide is blindness (of intelligence). One who fears death cannot escape it nor can one who fears for eternal life secure it.

कुंडे की नियाज़ की हक़ीक़त।।

22 रज्जब उल मुरज्जब इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की नियाज़।।

हिजरी 122 रज्जब की 22 तारीख़ की रात यानी 21 का दिन गुजार कर 22 की रात बा वक़्त ए नमाज़ ए तहज्जुद अल्लाह तआला ने सैय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को मक़ाम ए ग़ौसियत ए कुब्रा अता फरमाया।।

सुबह 22 रज्जब को आपने अल्लाह तआला की जानिब से ये अज़ीम नेमत मिलने पर बतौर ए शुक्र अदा करने के लिए नियाज़ करवाई जो दूध और चावल मिलाकर बनाई गई जिसे हम खीर कहते हैं।।

आप ख़ानदान ए रसूल सल्लम के चश्म ओ चिराग़ थे, आप के घर में टूटी चटाई और मिट्टी के बर्तन ही थे इसी पर आप शाकिर ओ साबिर थे, आप ने मिट्टी के पियाले में नियाज़ रख कर अपने दोस्त ओ अहबाब को बुला कर फरमाया कि आज रात अल्लाह तआला ने मुझे मक़ाम ए ग़ौसियत ए कुब्रा अता फ़रमाया है इसी का शुक्र अदा करते हुए ये नियाज़ आप लोगों को पेश करता हूं।।

आप के शाहब ज़ादे इमाम मूसा क़ाज़िम अलैहिस्सलाम और आप के दीगर मुसाहेबीन ने पूछा कि इस में हमारे लिए क्या फायदा है?

आप ने फरमाया कि रब्बे काबा की कसम अल्लाह तआला ने जो नेमत मुझे अता फरमाई है जिस का मैं शुक्र अदा करता हूं नियाज़ की शक्ल में इसी तरह इसी तारीख में जो भी शुक्र अदा करेगा और हमारे वसीले से जो दुआ मांगेगा तो अल्लाह तआला उसकी मुराद ज़रूर पूरा फरमाएगा और दुआ ज़रूर कबूल होगी क्योंकि अल्लाह तआला अपने शुक्र गुज़ार बन्दों को मायूस नहीं करता।।

कुंडे का फातिहा 22 रज्जब उल मुरज्जब को ही करें।
22 रज्जब ना ही आप के विशाल की तारीख़ है और ना ही विलादत की तारीख है, बल्कि इस दिन आपको मक़ाम ए ग़ौसियत ए कुब्रा अता की गई थी इसी खुशी में हम ये नियाज़ करते हैं।

~ रेफरेंस ~
ये ऊपर लिखी बात इन किताबों से साबित है।

📚 मिन्हाज उस सालेहीन।
✍ सैयदना इमाम मोहि उद्दीन इब्ने अबू बकर बगदाद।

📚 कशफुल असरार।
✍सैयदना इमाम अब्दुल्लाह बिन अली अस्फाहनी।

📚 मदाम ए असरार अहले बैत।
✍ सैयदना इमाम मोहम्मद बिन इस्माईल मुतक्की।

📚 मखजन ए अनवार ए विलायत।
✍ सैयदना इमाम बरहन उद्दीन अस्कलनी।

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22 रजब सैय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ अला जददेही व अलैहिस्सलाम की नियाज़ के मुताल्लिक़ उल्मा ए अहलेसुन्नत की गवाही
ये सब उल्मा ए हक़ सिर्फ़ दो चार किताबें पढ़ने पढ़ाने वाले नही बल्कि अपने वक़्त के इमाम अमीर शैखुल हदीस मुफ़्ती मुहक़्क़िक़ मुहद्दिस हकीमुल उम्मत हैं ये सब इस बात को क़ुबूल करते हैं कि 22 रजब को नियाज़ ए इमाम जाफ़र सादिक़ दिलाई जाती है और ये नियाज़ अहलेसुन्नत में बहुत ही मशहूर और मारूफ़ है

Kunde Ki Niyaz 22 Rajab Ko Hi Honi Chahiye

“Aey momino niyaz dilao Imam ki
BAQAR ke laal Sahibe Aali Maqam ki”

Aajkal kuchh Ulema Hazraat ne ek ajeebo ghareeb mahaul paida kar diya hai, Rajab Shareef ka Mahina atey hi barsaati mendako ki tarah tarraaaney lag jatey hain ki kundo ki niyaz jayaz nahi, fizool ki rasm hai wagairah wagairah,

Majbooran aaj ye msg likh raha hoon ki koondo ki niyaz, yani 22 Rajabul Murarajjab ko Sarkar Sayedna Imam Jaafar Assaadiq Alaihissalam ki niyaz lagana, aur us tareeqey se lagana jaisa ki riwaz hai bila shuba jayaz aur baais e Rehmat wa barkat hai ismein kuchh fizool nahi, haqeeqat yahan mulahiza farmaein,

22 Rajab Sarkar Sayedna Imam Jaafar Assaadiq Alaihissalam ki niyaz

Hijri san 122 Rajab ki 22 tarikh ki raat yani 21 ka din guzarkar 22 ki raat bawaqte namaze tahajjud Allah Sub’hanahu wa Ta’ala ne Syedna Imam Jaafar Assaadiq Alaihissalam ko MAQAME GAUSIYATE KUBRA ata farmaya,

Subah yani 22 Rajab ko Aap ne Allah ki janib se ye azeem ne’amat Milne par bataur e shukr niyaz banwayi Jo dudh or chawal milakar banayi gayi jise hum kheer kehtey hain.

Aap khandane Rasool Sallallahu Alaihi wasallam ke chashmo chirag hain aap ke ghar mein tuti chatayi or mitti ke bartan hi the,
isi par Aap shakir o sabir the Aapne mitti k pyale me niyaz rakhkar apney dost o ahbab ko bulakar farmaya ki Aaj raat Allah Sub’hanahu wa Ta’ala ne mujhey maqame gausiyate kubra ata farmaya isi ka shukr ada karte huwe ye niyaz aap logo ko pesh karta hu aap k sahabzadey Syedna Imam MUSA KAZIM ALAIHISSALAM aur aap ke digar musahibeen ne daryaft kiya (puchha) ki is mein hamarey liye kya fayda hai

Aap ne farmaya ki Rabbe Ka’aba ki qasam
Allah Ta’ala ne Jo ne’mat mujhe Ata farmayi jis ka me shukr ada karta hu niyaz ki Shakl me isi tarah isi tarikh me Jo bhi shukr ada karega aur hamarey wasiley se Jo dua mangega to Allah Ta’ala uski murad zarur puri farmayega aur duwa zarur kubool hogi kyunki Allah Ta’ala apney shukr guzaar bando ko mayus nahi farmata.

Imam JAFAR Sadiq Alaihissalam ke parpotey Sayedna Imam HASAN Askari Alaihissalam se kuch dushmanaane Ahle Bayt ne sawal kiya ke jab hamare ghar me pital tanbe ke behatareen bartan moujood hain to mitti ke Kundo ki kya zarurat hai

Aap ne farmaya hamarey NANA JAAN Muhammadur Rasoolullah Sallallahu Alaihi wa Aalihi wasallam ki sunnat hai mitti ke bartan me khana.

Aaj musalmano ne hamare Nana jaan ki sunnato ko tark kar diya hai hum ne is niyaz ko mitti ke piyalo me is liye zaruri karar diya taki kam az kam saal me ek 1 martaba hi sahi Nana jaan ki ummat mitti ke kundo mein niyaz khakar Sunnat e Rasool Sallallahu Alaihi wasallam ada kar lein.

Kunde ki niyaz ya fatiha 22 Rajab ko hi karein

22 Rajab na hi aap ke wisal ki tarikh hai na hai paidayish ki

Ye to aapko maqame gausiyate kubra Milney par ada ki jati hai

Beshak Aap Aale Rasool Sallallahu Alaihi wa aalihi wasallam hain.

Hawalazaat
1: Minhajussaaliheen
musannifa Sayedna Imam Mohiyuddin ibne Abu Bakr Baghdad

2: Kashaful Asrar
Musannifa Syedna Imam Abdullah bin Ali Asfahani

3: Madame Asrare Ahle bait
Musannifa Syedna Imam Mohammad bin Ismail muttaqi makki

4: Makhzane Anware wilayat
Musannifa Syedna Imam Burhanuddin Asqalani
Sag e Khandan e Ahle Bayt :
Kadri Nawaz Panjtani :
Kodinar sharif gujrat :