आयत ए मुबाहिला पर मुसलमानों को गौर ओ फिक्र की दावत!

* ✍   *मुबाहिला* के मौके पर *अल्लाह* ने ये आयत नाजिल की فَمَنۡ حَآجَّکَ فِیۡہِ مِنۡۢ بَعۡدِ مَا جَآءَکَ مِنَ الۡعِلۡمِ فَقُلۡ تَعَالَوۡا نَدۡعُ اَبۡنَآءَنَا وَ اَبۡنَآءَکُمۡ وَ نِسَآءَنَا وَ نِسَآءَکُمۡ وَ اَنۡفُسَنَا وَ اَنۡفُسَکُمۡ ۟ ثُمَّ نَبۡتَہِلۡ فَنَجۡعَلۡ لَّعۡنَتَ اللّٰہِ عَلَی الۡکٰذِبِیۡنَ ﴿۶۱﴾ ये *आपसे* ( *ईसाع* के मुताल्लिक) हुज्जत करे, इसके बाद आपको इल्म आ चुका… फरमा दीजिए हम बुलाते है *अपने बेटे* और तुम्हारे बेटे, *हमारी औरते* और तुम्हारी औरते,*हमारी जाने* और तुम्हारी जाने! फिर मुबहिला करे तो झूठों पर *अल्लाह* की लानत हो!  सुरह आले इमरान आयत 61   *हुजूरﷺ* ….. *अल्लाह* के हुक्म के बाद मुबाहिले में… बेटो में *इमाम हसनع* और *इमाम हुसैनع* को साथ लाए  *औरतों* में *सैय्यदा फातिमाس* को लाए और अपनी *नफ्स* अपनी *जान* के बदले *मौला अलीع* को साथ लाए!   वो लोग जो *अफजलियत* के नाम पर उम्मत में इंतेशार फैलाते है वो जरा सोचे! तराजू के एक पड़ले में *हुजूरﷺ* के *“मु ए मुबारक या खून मुबारक”* का एक कतरा रखा जाए और दूसरे पड़ले में तमाम उम्मत तमाम मखलूक को रखा जाए तो कौनसा पड़ला भारी होगा….?  तो हर *आशिक ए रसूल* यही पुकार उठेगा *हुजूर* के मुए मुबारक या खून मुबारक वाला पड़ला भारी होगा!   तो मेरे भाई! *जिनके अंदर खून ए रसूल हो!* *जो खुद जान ए रसूल हो!* जो *जुज ए रसूल* हो उससे कोई कैसे *अफजल* हो सकता है…?   *हर मकाम में हर लिहाज से हुजूर के बाद फकत हुजूर की आल ही अफजल है!!!*   और इसीलिए कसीर तादाद में *सहाबाرض* भी *मौला अलीع* की अफजलियत का अकीदा रखते थे!

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हदीस :हुज़ूर का टुकड़ा और मक़ाम में बीबी फातिम Alahissalam

हुज़ूर का टुकड़ा

पहली हदीस

रावीयान ए हदीस, कुतैबह बिन सईद, अल्- लैस बिन साद, अब्दुल्लाह बिन उबैदिल्लाह, अबु मुलय’ कह (मुले’ कह) ।

हज़रत अल्- मिस वर बिन मकरमा रज़िअल्लाहु अन्हो कहते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम को मिम्बर पर फरमाते हुए सुना है कि, “बनी हाशिम बिन मुगीरा ने मुझसे हज़रत अली बिन अबु तालिब के साथ अपनी बेटी के निकाह की इजाज़त तलब की है, मैं इसकी हरगिज़ इजाज़त नहीं दूँगा, फिर कहता हूँ कि मैं इसकी इजाज़त नहीं दूँगा सिवाय इसके कि अली बिन अबु तालिब मेरी बेटी को तलाक देने और उनकी बेटी से निकाह करने के इरादे का इज़हार करें। फातिमा तो मेरा टुकड़ा है, जो चीज़ उसे क़लक़ में डालती है, वो बात मुझे भी परेशान करती है और जो चीज़ उसे तकलीफ देती है वो मुझे भी तकलीफ देती है और जिसने अल्लाह तआला के रसूल को तकलीफ़ दी उसके अमल जाया हो गए।

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रावीयान ए हदीस, अहमद बिन सुलेमान, यहया बिन आदम, बिश्र बिन अस्-सरिय, लैस बिन साद, इब्न ए अबु मुलय’ कह (मुले कह) ।

अल्-मिस्’वर बिन मकरमा कहते हैं कि मैंने मक्का में मिम्बर पर रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम को फरमाते सुना कि, “बनी हाशिम बिन मुगीरा ने मुझसे हज़रत अली इब्न ए अबी तालिब के साथ अपनी बेटी के निकाह की इजाज़त तलब की और मैं इसकी इजाजत नहीं दूँगा सिवाय इसके की अली मेरी बेटी को छोड़ना और उनकी बेटी से निकाह करना चाहे”, फिर फरमाया, “फातिमा मेरा टुकड़ा है, जो बात उसे तकलीफ़ देती है वो मुझे भी तकलीफ़ देती है और जो बात उसे परेशान करती है, वो मुझे भी परेशान करती है। और उनके पास कोई हक़ नहीं की वो खुदा के नबी की बेटी और खुदा के दुश्मन की बेटी के दरमियान इतिफ़ाक़ करा दे।”

तीसरी हदीस

रावीयान ए हदीस, अल्- हारिस बिन मिस्कीन, सूफियान बिन उय्यनाह, अम्र बिन दीनार, इब्न अबी मुलय’ कह | अल्-मिस्वर बिन मकरमा बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने फरमाया कि, “फातिमा मेरा टुकड़ा है। जिसने उसे नाराज़ किया, उसने मुझे नाराज़ किया।

चौथी हदीस

रावीयान ए हदीस, मुहम्मद बिन खालिद, बिश्र बिन शुऐब बिन अबु हम्ज़ा, अज़ू-ज़ुहरी, अली बिन हुसैन ।अल्-मिस्’वर बिन मकरमा ने अली बिन हुसैन को बताया कि रसूलुल्लाह

सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने फरमाया कि, “फातिम मेरा टुकड़ा है और मेरे गोश्त का टुकड़ा (लोथड़ा) है।

पाँचवीं हदीस

रावीयान ए हदीस, उबैदिल्लाह बिन साद बिन इब्राहीम बिन साद, याकूब, अल्- वलीद बिन कसीर, मुहम्मद बिन अम्र बिन तल्हा, इब्न शिहब अज़ू-ज़ुहरी, अली बिन हुसैन । अल्मिस्’वर बिन मकरमा कहते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम को अपनी बलाग़त के ज़माने में उस मिम्बर पर फरमाते हुए सुना कि, “फातिमा मेरा टुकड़ा

है। “