Maqam e Maula Ali AlaihisSalam aur Wilayat o Imamat.

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Yaum e Fatah Mubahila 24 ZilHajj

_💫✨💫ईदे मुबाहेला मुबारक💫✨💫_
*_तमाम सैयद ओ सादात आशिका ने अहलेबैत_*
*_को बहुत-बहुत मुबारक हो_*

_24 ज़िलहिज्ज (10 हिजरी) वह अहम दिन है जब इस्लाम को क्रिश्चियनिटी पर फ़तह हासिल हुई और क्रिश्चियनस ने अपनी हार ख़ुद क़ुबूल की।_

*_हुआ यूं कि मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने 10 हिजरी में नजरान के क्रिश्चियनस को लेटर भेजा जिसमें उन्हें इस्लाम की दावत दी और हज़रत ईसा मसीह को ख़ुदा का बेटा मानने से रोका लेकिन नजरान के क्रिश्चियनस ने इस्लाम की दावत क़ुबूल नहीं की और इसी बात पर अड़े रहे कि ईसा मसीह ख़ुदा के बेटे हैं और अपना एक डेलीगेशन मुहम्मद मुस्तफा ﷺ की ख़िदमत में मदीना भेज दिया, नबी ए करीम ﷺ ने ख़ुदा के हुक्म से उन्हें मुबाहेला (एक दूसरे पर लानत, बद्दुआ) की दावत दी जिसे क़ुरआने मजीद के सूरए आले इमरान की आयत 61 में इस तरह बयान फ़रमाया है:_*

فَمَنْ حَاجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ وَنِسَاءَنَا وَنِسَاءَكُمْ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَتَ اللَّهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ…

_ए हबीब! इल्म के आ जाने के बाद जो लोग तुम से (ईसा मसीह के बारे में) कटहुज्जती करें उनसे कह दीजिए कि आओ हम लोग अपने अपने बेटों, अपनी अपनी औरतों और अपने अपने नफ़्सों (अपने जैसों) को बुलाएं और फिर ख़ुदा की बारगाह में दुआ करें और झूठों पर ख़ुदा की लानत क़रार दें।_

*_इस्लामी केलेंडर के बारहवें महीने ज़िलहिज्ज की 24 तारीख़ का दिन तैय हुआ।_*

_हुजूर ﷺ ने बेटों की जगह इमाम हसन ع और इमाम हुसैन ع को लिया, औरतों से सिर्फ़ ख़ातूने जन्नत फ़ातिमा ज़हरा س को लिया और अपने जैसा सिर्फ़ मौला अली अलैहिस्सलाम को लिया और मुबाहेला (एक दूसरे पर लानत भेजने के लिए ) निकले, जैसे ही क्रिश्चियनस ने इन नूरानी चेहरों को देखा तो यह कहते हुए मुबाहेला से पीछे हट गये कि अगर इन्होंने अभिशाप दे दिया तो क्रिश्चियनिटी बर्बाद हो जायेगी और अपनी हार तस्लीम करते हुए जिज़या देना कबूल कर लिया और इस तरह इस्लाम को इन पांच हस्तियों यानी पंजतन ए पाक ع सदके में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल हुई_

*_लेकिन ताज्जुब की बात है इतने इतिहासिक मुबारक दिन आम मुसलमान कोई भी खुशी क्यों नहीं मनाता_*
_मोबाहेला का जिक्र तो कुराने पाक में है फिर भी हमें खारजी और नासबी मुल्लाह जो सुन्नियत के ठेकेदार बने बैठे हैं वह हमें नहीं बताते क्योंकि यह बताने से पंजतन ए पाक ع की अजमत और शान मालूम पड़ती है_

*_और जो आम मुसलमान जो पढ़ा लिखा नहीं है वह कहता है कि क्या नया नया दिन मना रहे हैं_*

🌟 २४ – जिलहीज्जा 🌟

🌺🌼 यौमे मुबाहला ईदे मुबाहला 🌺🌼

➡️ मुबाहला क्या हे ???

अल्लाह ने अपने मेहबूब हजरत मोहम्मद मुस्तफा (स.अ.व.व) को पुरे आलम के लिये रहमत बना कर जंमी पर भेजा ताके वो इन्सानों में अमन, सलामती , और ऐक दुसरे के लिये प्यार पैदा कर सके
तभी हीजरत के बाद अल्लाह के रसुल (स.अ.व.व) मुख्तलिफ मुख्तलिफ मुमालिक की तरफ पैगामे हक भेजते रहे ताकी लोग मजहब और जात पात से आगे निकलके ऐक दुसरे से प्यार कर सके ऐक अल्लाह की इबादत कर सके
वैसे ही रसुलल्लाह (स.अ.व.व) के सफीर पैगामे हक लेके नजरान जो यमन के करीब था आ पहोंचे
और वंहा के बादशाह को रसुलल्लाह (स.अ.व.व) का पैगाम दे के ये फरमाने लगे के अल्लाह के रसुल ने अल्लाह के दीन की तरफ आपको दावत भेजी हे ताकी आप गुमराही से निकलके सिराते मुस्तकीम तक आ सके
ऐहले नजरान बा इल्म और मोतबर कौम थी उन्होंने जब रसुलल्लाह (स.अ.व.व) के इस पैगाम को पढा तो ऊनका बादशाह अपनी कौम से पुछने लगा के क्या जंमी पे आख़री नबी भी आने वाले हे .?
ऊनमे से कुछ ऊलमाऐ दीन ने खडे होकर कहा हां हमने अपनी कीताबो में पढा है
के ऐक आखरी नबी ऐजाज से इस तरहा से ऊभरेगा ऊसका नुर पुरे जंहा को रोशन करेगा
लेकिन ऊसकी कुछ निशानीयां हे
तो नजरान के बादशाह ने कहा के यंहा के जो ज्यादा इबादत गुजार और इल्म पर ऊबुर रखते हे ऊन लोगो को लेकर जाओ और देखो के वो निशांनीया मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह में हे या नहीं
नजरान से ऊलमाऐ दिंन का काफला मदीना की तरफ आ पहोंचा
ऊनकी कीताबो में निशांनीया थी उनमें से पहली निशांनी ये थी
के अल्लाह का रसुल नबी यो का सरदार होगा लेकिन खुद सादा से सादा लिबास पेहने होगा
दुसरी निशांनी वो मेहमान नवाज होगा अगर ऊसके पास दुश्मन भी जाऐगा तो ऊसको भी खाना खिलाऐगा
तिसरी निशांनी वो बादशाहों की तरह न तखत पर बैठेगा न ऊसका कोई महल होगा
वो ज्यादातर वकत अल्लाह के लोगो में इस्लाह करने में गुजारेगा और लोगो के साथ जंमीन पर बैठेगा
और ऊसके घर वाले ऊसिकी तरह सादगी इख्तियार करेंगे ऊनके भी कपडे जगह जगह से सिये हुवे होगे
इन तमाम निशानी यो को याद करते करते जब मदीने पहोंचे पुछने लगे हम नजरान से आऐ हे बताव आप का बादशाह कंहा हे
लौग हैरत से पुछने लगे मोहम्मद (स.अ.व.व) बादशाह नही बल्कि अल्लाह के रसुल हे
ऐ नजरानीयो ऊनके कपडे फटे हुवे हे ऊनकी नालैंन हर जगह से टुटी हुई हे
वो जंमीन पर बैठते हे और गरीबो को सीने से लगातें हे सुखी हुई रोटी खाते हे
कीसने तुम्हें कहा की मोहम्मद (स.अ.व.व) बादशाह हे….. ?
वो पशेमान हो के गौरो फिक्र करने लगे ये तो वही निशांनीया हे जो हमारी कीताबो में मौजुद हे
ये सोचते सोचते जैसे ही मस्जिदे नबवी पहोंचे अल्लाह के रसुल को देखा अल्लाह के रसुल ने अपने साथ ऊनको बिठाया मेहमान नवाजी की और उन्होंने देखा के वाकई ये तो बादशाह की तरह नंही रेहता बल्कि गरीब से गरीब इन्सान को अपने सीनेसे लगाता हे इनके पास नसल,जात, धर्म, कोई ऐहमीयत नही रखता इनका वुजुद तो हर इन्सान के लिये रहेमत हे
बिल आखीर ऐहले नजरान वाले आपस में बाते करने लगे के ये तो वोही निशांनीया हे जो हमारी किताबो में मौजुद हे,लेकीन हम जल्द बाजी में तस्लीम करेंगे तो हमारे लोग हम पर हंसेंगे सायद हमारे पास कोई इल्म ही नंही
हम अपने दलायेल पेश करते हे देखते हे हमे क्या जवाब मिलता हे
उन्होंने पहेला सवाल अल्लाह के रसुल से पुछा ऐ मोहम्मद हम तुम्हें अल्लाह के रसुल तस्लीम नही करते
अल्लाह के रसुल ने उनको सिनेसे लगाया अपने साथ बिठा कर ये फरमाने लगे,अय अल्लाह के बंदो हीदायत अल्लाह की तरफ से अनमोल तोहफा हे , वो जब चाहे जिसे चाहे अता करता हे,नजरानी नजरें जुकाने लगे और हैरत से ऐक दुसरे को देखने लगे ये अखलाक तो आखरी नबी का हे
फिर उन्होंने सवाल पुछा आप बताऐ आप इशा मशी के लिये कया सोच रखते हे
अल्लाह के रसुल ने फरमाया इशा रुहुल्लाह हे अल्लाह के वो नबी हे जो अल्लाह की निशानी हे, ह.इशा पैगामे हक लेके इस ज़मीन पे आऐ,और मैं वोही पैगाम आगे बढाने आया हुं
नजरानीयो ने कहा इशा अल्लाह के नबी…..?
नही वो अल्लाह के बेटे हे वो बगैर बाप के पैदा हुवे हे
अल्लाह के रसुल ने फरमाया अगर बगैर बाप के पैदा होना अल्लाह के बेटे होने की दलील हे तो फिर इससे ज्यादा हक तो आदम का हे बगैर बाप और बग़ैर मां के पैदा हुवे तो इस हीसाब से तो अल्लाह के पेहले बेठे आदम हुवे
ऐ सख्स अल्लाह कुदरत रखता हे के वो जब चाहे जो चाहे वो केहता हे तो वो हो जाता हे न वो कीसीका बाप हे और नही वो कीसीका बेटा हे वो तो लासरीक हे
इस बात पर बहेस चलती रही यंहा तक के तीन दीन गुजर गऐ नजरान वाले इस बात पर अडे रहे के पेहले तुम इशा को अल्लाह का बेटा मानो फिर हम तुम्हें अल्लाह का नबी मानेंगे
बिल आखिर अल्लाह ने सुर-ऐ आले इमरान की इस आयत का नूजुल कीया ऐ रसुल अगर वाजेह करने के बाद भी ये तस्लीम न करे तो केह दो
ये अपने मर्द लाऐ,हंम भी अपने मर्द लाऐगें,
ये अपनी औरते लाऐ,हंम भी अपनी औरते लाऐगें
ये अपने बच्चे लाऐ,हम भी अपने बच्चे लाऐ ,और फिर जो झुठा होगा ऊस पर अल्लाह की लानत बरसेगी
जैसे ही ऐहले नजरान ने ये सुना जोर जोर से हंसने लगे ऐ मोहम्मद जो यंहा ऐहले नजरान के आलीम मौजुद हे,कीसीने ७० साल इबादत की हे,कीसीने १०० साल इबादत की हे हम तुम्हारे लिये तुम्हारे खानदान के लिये बद दुआ करेगे देखना तुमपे अजाब आऐगा
मस्जिदें नबवी में सारे असहाब हैरान व परेसांन बेठे थे अल्लाह के रसुल ने फरमाया इज्जतो जिल्लत ऊसिके हाथ में हे जीसने काऐनात को खल्क किया
तारीख ने लिखा पुरा मदीना मुबाहला की जगाह पे आके ऐक जगह जमां हो गया
ऐहले नजरान के आलीम पुछने लगे बताव तुम्हारा नबी कीस जगाह से आऐगा लोगो ने बताया इस सामने वाले रास्ते से ऐहले नजरान के आलीम ऊस रास्ते की तरफ देखके दुआ मांग ही रहे थे के इतनी देर में अल्लाह के रसुल अपनी गोद मे अपने नवाशे हुसैन और ऐक हाथ में इ.हसन और पीछे अपनी बेटी फातेमतुजझहरा और ऊनके पीछे चचाजाद भाई व दामाद अली इब्ने अबुतालीब को लेकर
मुबाहला की तरफ आने लगे
ऐहले नजरान ने दुर से जब देखा तो लोगो से पुछा तुम्हारे नबी के साथ ये दो बच्चे, ये ऐक औरत और ये मर्द कौन हे
असहाब ने फरमाया जो ये पीछे मर्द हे ये हमारे नबी के चचाजाद भाई व दामाद अली हे,और जो इनके साथ औरत हे ये हमारे नबी की बेटी ,और अली की जवजा हे,और वो बच्चे अल्लाह के नबी के साथ हे वो रसुलल्लाह के नवासे जन्नत के सरदार हसनो हुसैन हे
ऐहले नजरान ने जब पंजेतन पाक के नुर को देखा तो आपस में केहने लगे के क्या जो में देख रहा हुं तुमभी वही देख रहे हो सब ऐक जबान होके केहने लगे के रसुलल्लाह का खांनदान तो ऊंनही की तरह सादगी इख्तियार करता हे
इनके फटे हुवे कपडे होने के बा वजुद भी अल्लाह ने इनकी सखसियत में कीतना रोब रक्खा है
वो आपस में केहने लगे ऐ लोगो इनके चेहरे का नुर ये बता रहा हे के आज अगर ये केहदे के पहाड भी अपनी जगह से हट जाऐ तो वो भी हट जाऐगा ऐसा ना हो के अल्लाह का अजाब हंमपे बरसे
वो चिख खडे हुवे और दौडके अल्लाह के रसुल के पास आ पहोंचे और फरमाने लगे,ऐ मोहम्मद हम तस्लीम करते हे के तुम अल्लाह के रसुल हो तुमहारा खांनदान सच्चा हे तुम सच्चे हो तुम बद दुआ न करना वरना हम आज नेस्तनाबूद हो जाऐगें
ये मंजर देख कर असहाब अल्लाह हु अकबर, अल्लाह हु अकबर की सदा बुलंद करने लगे और फिजा खुशीसे महेक गई हर ऐक मुसलमान खुशी से ऐक दुसरे को गले लगाके मुबारक बादी देने लगा
आज भी ऊस दिन को ईदे मुबाहेला के दीन से याद किया जाता हे।


(राह ए इरफ़ान ओ सुलूक के मुसाफ़िर के लिये पंजतन पाक और आले मुहम्मद की मार्फ़त ही उसकी इब्तेदा ओ इंतेहा है)

بسم اللہ رب الحسنین و الصلوۃ و السلامُ علٰی جد الحسنین

आयत ए #मुबाहिला में जो लफ्ज़ इस्तेमाल हुए वो क़ाबिले ग़ौर हैं –
अल्लाह ने अपने हबीब से यह नहीं कहलवाया कि “कहो मैं अपने बेटों को लाता हूँ तुम अपने बेटों को लाओ”, बल्कि यूं कहलवाया कि “कहो हम अपने बेटों को लाते हैं तुम अपने बेटों को लाओ, हम अपनी औरतों को लाते हैं तुम अपनी औरतों को लाओ, हम अपने आप को लाते हैं तुम अपने आप को लाओ”

– सूरह आले इमरान आयत 61 (नीचे अटैच)

अब अरबी के क़ायदेदान और #मार्फ़त रखने वालों के लिये नुक्ता ग़ौरतलब है –
सरकार अगर “मैं अपने बेटों को” कहते तो समझ में आता कि हुज़ूर अपने बेटों को कह रहे हैं,
मगर यह “हम” से मुराद हुज़ूर के साथ और कौन है जो सीग़ा जमा मुज़क्कर मौजूद यानी हम और हमारे का इस्तेमाल किया?

या तो यहाँ मुराद #मौला ए कायनात और मौला मुहम्मद की ज़ात है या मौला मुहम्मद और रब्बे कायनात की ज़ात है या फिर इन तीनों की ज़ात है।

यहाँ मौलाए कायनात की ज़ात का नफ्स ए #रसूल होना और अली का मुहम्मद और मुहम्मद का अली होना तो ज़ाहिर हुआ ही लेकिन दूसरी बात जो ज़ाहिर हुई वो यह कि हुज़ूर का नफ्से खुदा होना और आपकी आल का आले खुदा मुंतखब होना जिस तरह हुज़ूर का फेंकना अल्लाह का फेंकना, हुज़ूर का अता करना #अल्लाह का अता करना, हुज़ूर को अज़ीय्यत अल्लाह को अज़ीय्यत, हुज़ूर की इताअ़त अल्लाह की इताअ़त, हुज़ूर की मोहब्बत अल्लाह की मोहब्बत, हुज़ूर से आगे बढ़ना अल्लाह से आगे बढ़ना वग़ैरह।

घबराने की ज़रूरत नहीं है कि आले #मुहम्मद को आले खुदा बना दिया या हसनैन करीमैन को माज़ल्लाह अल्लाह के बेटे बना दिया।

ख़बरदार मैं कुछ अपनी तरफ से नहीं कह रहा, बल्कि अल्लाह ने यह बात खुद #क़ुरआन में ज़ाहिर फरमा दी कि अगर अल्लाह औलाद का इरादा फरमाता तो अपनी मख़लूक में से जिसे चाहता मुंतखब फरमा लेता, वो सुब्हान है (कि औलाद जने)
– सूरह ज़ुमर आयत 4 (पोस्ट के साथ अटैच)

यानी मालूम हुआ कि अल्लाह की ज़ात अपने लिये औलाद पैदा करने से पाक है लेकिन अगर वो #औलाद का इरादा फरमाता तो भी पैदा नहीं करता बल्कि अपनी मख़लूक में से ही जिसे चाहता मुंतखब फरमा लेता।
लिहाज़ा यहाँ औलाद के इंतेख़ाब का इमकान अल्लाह के इरादे पर मशरूत #अम्र है कोई उसके इरादे के हवाले से हतमी फैसले का जवाज़ नहीं रखता।

लिहाज़ा #आयत ए मुबाहिला में अल्लाह का अपनी तरफ से यह कहलवाना कि “कहो हम अपने बेटों को लाते हैं तुम अपने बेटों को लाओ” इसमें कहे गये अल्फाज़ अल्लाह के है जो बज़ुबाने #मुस्तफ़ा अदा हो रहे हैं यानी सादा लफ्जों में अगर कहूँ तो परवरदिगार अपने हबीब की ज़ुबान से फरमा रहा है कि ऐ नजरानियों हम अपने बेटों को लाते हैं तुम अपने बेटों को लाओ, हम अपनी औरतों को लाते हैं तुम अपनी औरतों को लाओ, हम अपने आप को लाते हैं तुम अपने आप को लाओ।

यानी मालूम हुआ कि अगर अल्लाह अपने लिये औलाद का इरादा फरमाता तो #हसनैन करीमैन को मुंतखब फरमाता।
और अगर इरादा फ़रमाया है तो हसनैन करीमैन का ही इंतेख़ाब फरमाया। हालांकि उसकी ज़ात सुब्हान है।

वाज़ेह रहे कि मुबाहिला की वजह ही नजरानियों का हज़रत ईसा को अल्लाह का बेटा कहने पर अड़े रहना था लिहाज़ा यहाँ ऐन मुमकिन है कि अल्लाह ने इंतेख़ाब के ज़रिये विलादत की तरदीद फरमाने के लिये मुबाहिला का चैलेंज कराया हो।
वल्लाहु आलम व सुब्हानह

अब ज़रा हुज़ूर के दर्ज ए ज़ैल फरमान –

* अली मुझसे है मैं #अली से हूँ।
* #फ़ातमा मेरा टुकड़ा है।
* हसन मुझसे है मै #हसन से हूँ।
* #हुसैन मुझसे है मै हुसैन से हूँ।
* हमारा पहला भी मुहम्मद दरमियानी भी मुहम्मद आखरी भी मुहम्मद बल्कि हम सारे के सारे मुहम्मद हैं।
* #सक़लैन (कुरआन और अहलेबैत) एक दूसरे से भारी हैं।
* मेरी अहलेबैत कश्ती ए नूह की मानिंद है, जो इसमें आ गया निजात पा गया जो पीछे रह गया हलाक हो गया।

और ऐसे ही दीगर फरामीन पर ग़ौर करो तो मक़ाम ए #पंजतन पाक व अहलेबैत का एहसास होगा और मालूम होगा क्यों बेदम पर जब यह राज़ खुला तो बेसाख्ता चीख उठा कि-

#बेदम यही तो पांच हैं मकसूद ए कायनात!
खैरुन्निसा हुसैन ओ हसन मुस्तफ़ा अली!!

और यहाँ से यह बात भी मालूम हुई कि अली ना सिर्फ #नफ्स ए रसूल हैं बल्कि नफ्स ए खुदा भी हैं।
और यह भी मालूम हुआ कि आले रसूल न सिर्फ आले रसूल है बल्कि आले खुदा भी हैं।
और यह भी कि सिर्फ #सैय्यदा ए कायनात की औलाद ही आले रसूल नहीं बल्कि मौला ए कायनात की तमाम औलाद आले रसूल है।
और यह भी कि अली की दीगर औलाद को फक़त 3 निस्बतें (अली, #हुज़ूर, और अल्लाह की) हासिल हैं, लेकिन #हसनैन करीमैन की औलाद को 5 से 6 निस्बतें हासिल हैं, (अल्लाह, मुहम्मद, अली, फ़ातमा, हसनैन करीमैन)

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(नोट : यह पोस्ट और इसके निकात सिर्फ़ राहे सुलूक के शायक़ीन और मार्फ़त की तरफ कोशां हज़रात के लिये ख़ास हैं किसी ना अहल या जाहिल को इस तहरीर से कोई नया अक़ीदा या नयी बात मसलन आले खुदा या फरज़न्दाने रसूल को फरज़न्दाने खुदा कहने की हरगिज़ इजाज़त नहीं है और ना ही कोई इस पोस्ट को रिपोस्ट /कापी करे।)
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खैर इन पंजतन पाक को देखकर #नजरानी तो ताइब हो गये मगर अफसोस यह उम्मत नजरानियों से भी गयी गुज़री!
#ईसाई तो सैय्यदा ए कायनात और हसनैन करीमैन को देखकर मुबाहिला किये बग़ैर ही हार तस्लीम कर गये, मगर #कलमा पढ़ने वालों ने सैय्यदा ए कायनात की हया की ना हसनैन करीमैन की, ना मादरे हसनैन की #हुज्जत को तसलीम किया गया ना मौला हसन से किये अहद पूरे किये फिर #करबला में तो जो कुछ हुआ नाकाबिल ए बर्दाश्त है।

हाय अफसोस ऐ #उम्मत जिस आल को अल्लाह अपने इंतेख़ाब के क़ाबिल ज़ाहिर फरमादे उन फरज़न्दाने रसूल के खून से तुम्हारे हाथ रंगीन हैं। 😭

तुम्हें रोना चाहिए उस दिन पर जिस दिन तुम्हारे दरमियान ना कुरआन मौजूद होगा ना उसके साथी #अहलेबैत!

اللہ اکبر اللہ اکبر اللہ اکبر
لاالہ الا اللہ واللہ اکبر اللہ اکبر و للہ الحمد
سبحان اللہ و بحمدہ سبحان اللہ العظیم و الصلوۃ و السلامُ علٰی سید الانبیاء و المرسلین و علٰی آلہ اجمعین