असदुद्दीन शीरकूह

असदुद्दीन शीरकूह

असदुद्दीन शीरकूह सलाहुद्दीन अय्यूबी का चाचा और शाम के वाली नूरुद्दीन जंगी का मोतमिद सिपहसालार था। येरुशलम ( (बैतुल मुक़द्दस) पर कब्जे के बाद जब फ़लस्तीन और इतालिया के सलीबी हुकुमरानों की निगाहें मिस्र पर पड़ने लगी तो फ़ातिमी ख़लीफ़ा आज़िद का वज़ीर शावर दमिश्क पहुंचा और सुलतान नूरुद्दीन जंगी से मदद का तालिब हुआ।
नूरुद्दीन की मर्दुम शनास (लोगों की काबिलियत को पहचानने वाला आदमी) निगाहों ने असदुद्दीन शीरकूह का इन्तिख़ाब किया और उसे और सलाहुद्दीन अय्यूबी को एक फ़ौज देकर रवाना किया। असदुद्दीन शीरकूह की जंगी महारत और हिकमत-ए-अमली ऐसी थी कि उसने बहुत जल्द सलीबी लशकर को मार भगाया। इस जंग में असदुद्दीन शीरकूह ने इन्तिहाई जुर्भात से सलीबियों का सामना किया और उनके छक्के छुड़ा दिए।
असदुद्दीन शीरकूह ने सलीबियों को मार भगाया तो शावर भी अपने वादों से मुनहरिफ़ हो गया और उलटा ईसाइयों से साज-बाज करने लगा।
शीरकूह क्योंकि मर्द-ए-मैदान भी था और सियासी सूझ-बूझ भी थी, चुनांचे उसने मिस्र पर तीन हमले किए, इन हमलों में असदुद्दीन शीरकूह इन्तिहाई बेजिगरी से लड़ा और उसने ईसाइयों के साथ शावर को भी ख़तम कर दिया। खलीफ़ा ने शीरकूह को मिस्र का वज़ीर बना दिया और उनकी वफ़ात के बाद यह मनसब सुलतान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने संभाल लिया जिन्होंने आगे चलकर सलीबी जंगों में नम्रानियों को पै-दर-पै शिकस्त देकर एशिया से भागने पर मजबूर कर दिया और बैतुल-मुक़द्दस को आजाद कराके दोबारा इस्लामी सलतनत में शामिल किया।

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