Ya Ali

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अली ही आलिम है अली ही इल्म है*

*आलिम के मानी है इल्म वाला।**इसलिए वो शख्स तब तक आलिम नहीं बन सकता जब तक बाबे मदिनतुल इल्म से ना गुज़रे।*और इस दरवाज़े से वही गुज़रता है जो मौला अली अलैहिस्सलाम को अपना मौला और इमाम तस्लीम करता है और वही हक़ीक़ी आलिम है और उस के अलावा जो आलिम होने का दावा करे वो आलिम नहीं जाहिल अहमक है।*नुबूवत का सिलसिला खत्म हुआ इमामत का सिलसिला जारी हुआ जिस्का आगाज़ रसुलल्लाह अलैहीस्सलाम ने गदीर के मैदान मे सवा लाख सहाबा के मजमे मे इस एलान से किया**”मन कुंतो मौला फहाज़ा अलिय्युन मौला”*यानी
*मैं जिसका मौला अली उसका मौला**इमामत का आगाज़ इमाम अली अलैहीस्सलाम से शुरु हुआ और इसका इख्तिताम (End) मौला इमाम महदी अलैहीस्सलाम पर होगा।**बादे रिसालत के इमामत वो दर्जा ए लासानी है जहाँ नुबूवत के अलावा हर जीन्स के सर ख़म होते है।*
*जिसको जो कुछ मिलेगा अली इब्न अबी तालिब अलैहिस्सलाम के घर से ही मिलेगा। इसके अलावा किसी और दर का तसव्वुर ही नहीं।**क्युंकि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशादे पाक है*”मन कुंतो मौला फहाज़ा अलिय्युन मौला”मैं जिसका मौला अली उसका मौला*ये हुक्मे रिसालत किस क़दर गहराई को समेटे हुए है ये राज़ अहले मारिफ़त ए अहलेबैत पर ही अफशां है।*
*इस को वही समझ सकता है जो आरिफ ए नूर ए मुहम्मदी हो। और ये नूरे मुहम्मदी जो नूरे इलाह है पांच तन मे जल्वानुमा है।*
*पन्जतन जिसमे मौला अली उनकी ज़ौजा माँ फातीमा और मौला हसन और मौला हुसैन का शुमार है (अलैहीमुस्सलाम)**इसलिये जिस जिस ने मौला अली अलैहीस्सलाम पर और आपके वलीद जनाबे अबू तालिब पर और आपकी औलाद पर किसी भी मामले मे तन्क़ीद की है, वो किसी किस्म की भलाई को नही पा सकता!! दर्जा ए विलायत तो बहोत दूर की बात है।*ये वो घराना है जिन पर कोई बहस होनी ही नही चाहिये।*(मौला अली अलैहीस्सलाम के सैय्यद होने पर बहस आपके वलीद जनाबे अबू तालिब अलैहीस्सलाम के ईमान पर बहस, पन्जतन के नूरी होने पर बहस, उनके मासूम होने पर बहस उन्हे अलैहीस्सलाम कहने पर बहस ये तमाम बहस ईमान को बर्बाद करने वाली, हर खैर से महरूम करने वाली, आखिरत बर्बाद करने वाली है। चाहे वो लाख नमाज़े पढ़ ले।)*और ऐसे शख्स की पैरवी करना उसे पीर, उस्ताद मानना जो ईन बहसों मे मुब्तिला है महज़ गुमराही और हलाक़त है।🇲🇷
*मुनकिर को गुजरने की यहाँ ताब नहीं है**माथे का निशान इतना भी नायाब नहीं है**है बुग्ज़े अली दिल में तो पढ़ लाख नमाज़ें**ये बुग्ज़ का धब्बा है मेहराब नहीं है*
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Hadith on Ahele Bait in Tirmzi

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَللّٰهُمَّ صَلِّ عَلٰى سَيِّدِنَا وَ مَوْلَانَا مُحَمَّدٍ وَّ عَلٰى اٰلَهٖ وَ اَصْحَابِهٖ وَ عَلىٰ سَيِّدِنَا وَ مُرْشِدِنَا وَ مَحْبُوْبِناَ حَضْرَتِ رَاجْشَاهِ السُّونْدَهَوِيِّ وَ بَارِكْ وَ سَلِّمْ۞

Huzoor ﷺ Ke Ahl-E-Bait Aur Qaraabatdaaron Ke Manaqib Ka Bayan

Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Key Parwarda (Parwarish Kiye Huwey) Hazrat Umar Bin Abu Salma RadiyAllahu Ta’ala Anhu Farmatey Hain Ke Jab Ummul Momineen Umme Salma RadiyAllahu Ta’ala Anha Key Ghar Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Aalehi Wa Sallam Par Yeh Aayat ˝Pas Allah Yahi Chaahta Hey Ke (Rasoolullah ﷺ Key) Ahl-E-Bait Tum Sey Har Kism Key Gunaaah Ka Mail (Aur Shako-Nuqs Ki Gard Tak) Door Kar Dey Aur Tumhey (Kaamil) Tahaarat Sey Nawaaz Kar Bilkul Paak Saaf Kar Dey˝ [Al-Ahzab, 33 : 33] Naazil Huwi To Aap SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Wa Sallam Ney Sayyada Fatima Aur Hasnain Kareemain سﻻم الله عليهم Ko Bulaaya Aur Unhey Aik Kamlee Mey Dhaanp Liya Hazrat Ali KarramAllahu Ta’ala Waj’hah-ul-Kareem Aap SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Key Peechhey They.
Aap SallAllahu Ta’ala Alaihi Wa Aalehi Wa Sallam Ney Unhey Bhi Kamlee Mey Dhaanp Liya Phir Farmaya :
Aye Allah!
Yeh Merey Ahl-E-Bait Hain Pas In Sey Har Kism Ki Aaloodagee Door Farma Aur Inhey Khoob Paako-Saaf Kar Dey. Sayyada Ummey Salma RadiyAllahu Ta’ala Anha Ney Arz Kiya :
Aye Allah Key Nabi ﷺ!
Mein (Bhi) In Key Saath Hoo’n. Farmaya Tum Apni Jagah Raho Aur Tum To Behtar Maqam Par Fa’iz Ho.

[Tirmidhi As-Sunan, 05/351, Raqam-3205, &
05/699, Raqam-3871,
Tabarani Al-Mu’jam-ul-Awsat, 04/134, Raqam-3799,
Al-Minhaj-us-Sawi, Safah-608, Raqam-667.]

यमन का बादशाह…


♥किताबुल-मुस्तज़रिफ और हुज्जतुल्लाहि अलल-आलमीन और तारीख़े इब्ने आसकिंर में है क़ि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से एक हज़ार साल पेशतर यमन का बादशाह तुब्बा अव्वल हिमयरी था। एक मर्तबा वह अपनी सलतनत के दौरे को निकला। बारह हज़ार आलिम और हकीम एक लाख बत्तीस हज़ार सवार और एक लाख तेरह हज़ार प्यादह अपने हमराह लिए और इस शान से निकला की जहां भी पहुँचता उसकी शान व शौकत शाही देखकर मख़लूक़े खुदा चारों तरफ से नज़ारा को जमा हो जाती थी यह बादशाह जब दौरा करता हुआ मक्का मोअज़्ज़मा पहुंचा तो अहले मक्का से कोई उसे देखने न आया। बादशाह हैरान हुआ और उसने अपने वज़ीरे आज़म से इसकी वजह पूछी तो उसने बताया की इस शहर में एक घर है जिसे बैतुल्लाह कहते हैं। उसकी और उसके खादिमो की यहां की जो यहां के बाशिंदे हैं तमाम लोग बेहद ताज़ीम करते हैं और जितना आपका लश्कर है,इससे कहि ज़्यादा दूर और नज़दीक के लोग इस घर की ज़ियारत को आते हैं और यहां के बाशिंदो की खिदमत करके चले जाते हैं। फिर आपका इनके ख्याल में क्यों आए? यह सुनकर बादशाह को गुस्सा आया और क़सम खाकर कहने लगा की मैं इस घर को खुदवा दूंगा और यह के बाशिंदो को क़त्ल कराऊंगा। यह कहना था बादशाह के नाक,मुँह और आखों से ख़ून बहना शुरू हो गया। ऐसा बदबूदार माददा बहने लगा की उसके पास बैठने की भी किसी की ताकत न रही। इस मर्ज़ का इलाज किया गया मगर अच्छा नहीं हुआ। शाम के वक़्त बादशाह के साथी आलिमों में से एक आलिमे रब्बानी तशरीफ़ लाये और नब्ज़ देखकर फ़रमाया की मर्ज़ आसमानी है और इलाज ज़मीन का हो रहा है। ऐ बादशाह!आपने अगर कोई बुरी नियत की है तो फ़ौरन उससे तौबा कीजिये। बादशाह ने दिल-ही-दिल में बैतुल्लाह शरीफ और खुद्दामे काबा के मुताल्लिक अपने इरादे से तौबा की। तौबा करते ही उसका वह खून और माददा बहना बंद हो गया और फिर सेहत की ख़ुशी में उसने बैतुल्लाह शरीफ को रेशमी ग़िलाफ़ चढ़ाया और शहर के हर बाशिन्दे को सात-सात रेशमी जोड़े नज़्र किए। फिर यहाँ से चलकर जब मदीना मुनव्वरा पहुंचा तो हमराही आलिमों ने (जो आसमानी किताबों के आलिम थे) वहां की मिटटी को सूंघा और कंकरियों को देखा और नबी आख़िरुज़्ज़मां की हिजरतगाह की जो अलामतें उन्होंने पढ़ी थी उनके मुताबिक़ उस सरज़मीन को पाया तो आपस में अहद कर लिया कि हम यहाँ ही मर जायेंगे। मगर इस सरज़मीन को न छोड़ेंगे। अगर हमारी किस्मत ने साथ दिया तो कभी-न-कभी जब नबी आख़िरुज़्ज़मां (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) यहाँ तशरीफ़ लाएंगे, हमें भी ज़्यारत का शर्फ हासिल हो जायेगा, वरना हमारी क़ब्रो पर तो ज़रूर ही कभी-न-कभी उनकी जूतियों की मुक़द्दस ख़ाक उड़कर पड़ जाएगी जो हमारी निजात के लिए काफ़ी है।

यह सुनकर बादशाह ने उन आलिमों के वास्ते चार सौ मकान बनवाये।और उस बड़े आलिमें रब्बानी के मकान के पास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खातिर एक दो मंजिला उमदा मकान तैयार कराया और वसीयत कर दी कि जब आप तशरीफ लाए तो यह मकान आपकी आरामगाह होगी और उन चार सौ उलमा की काफी इमदाद भी की। कहा, तुम हमेशा यहीं रहो। फिर बड़े आलिमे रब्बानी को एक खत लिख कर दिया और कहा कि मेरा यह खत उस नबी आखिरुज़्ज़मां सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमते अक़दस में पेश कर देना और अगर जिंदगी भर तुम्हें हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत का मौक़ा न मिले तो अपनी औलाद को वसीयत कर देना कि नसलन बाद नस्लिन मेरा यह खत महफूज रखें। हत्ता कि सरकारे अक़दस सल्ल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में पेश किया जाए। यह कहकर बादशाह वहां से चल दिया। वह खत नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में एक हज़ार साल बाद पेश हुआ कैसे हुआ? और खत में क्या लिखा था? सुनिए और अज़मते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एतराफ़ फ़रमाइए। खत का मज़मून यह था। कमतरीन मख़लूक़ तुब्बा अव्वल हिमयरी की तरफ से शफी-उल मुज़मबीन सय्यदुल-मुरसलीन मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अम्मा बाद! ऐ अल्लाह के हबीब मैं आप पर ईमान लाता हूं और जो किताब आप पर नाज़िल होगी उस पर भी ईमान लाता हूं और मैं आपके दीन पर हूँ। पस अगर मुझे आपकी ज्यारत का मौका मिल गया तो बहुत अच्छा व ग़नीमत और अगर मैं आपकी ज्यारत न कर सका तो मेरी शफाअत फ़रमाना और क़्यामत के रोज़ मुझे फ़रामोश न करना। मैं आपकी पहली उम्मत में से हूं और आपके साथ आपकी आमद से पहले ही बैअत करता हूं। मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह एक है और आप उसके सच्चे रसूल हैं।

शाहे यमन का यह खत उन चार सौ आलिमों की नस्ल-दर-नस्ल द्वारा जान की तरह हिफाज़त की जाती रही। यहां तक कि एक हजार साल का वक़्त गुज़र गया। उन आलिमों की औलाद इस कसरत से बढ़ी की मदीने की आबादी में कई गुना इज़ाफा हो गया और यह खत दस्त-ब-दस्त मअ वसीयत के उस बड़े आलिमे रब्बानी की औलाद में से हजरत अबू ऐय्यूब अंसारी रदियल्लाहु तआला अन्हु के पास पहुंचा और आपने वह खत गुलामे खास अबू लैला की हिफाज़त में रखा। जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का मोअज़्ज़मा हिजरत फरमा कर मदीना मुनव्वरा पहुंचे और मदीना मुनव्वरा की अलवदाई घाटी सनीयात की घाटियों से आपकी ऊंटनी नमूदार हुई और मदीने के खुशनसीब लोग महबूबे खुदा का इस्तिक़बाल करने को जूक़ दर जूक़ (भीड़-की-भीड़) आ रहे थे। कोई अपने मकानों को सजा रहा था, कोई दावत का इंतजाम कर रहा था और सब यही इसरार कर रहे थे कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे घर तशरीफ फरमा हो । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: कि मेरी ऊँटनी की नकील छोड़ दो। जिस घर में यह ठहरेगी और बैठ जाएगी, वही मेरी क़्यामगाह (रहने की जगह) होगी। चुनाचे जो दो मंजिला मकान शाहे यमन तुब्बा ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खातिर बनाया था, वह उस वक्त हजरत अबू ऐय्यूब अंसारी रदियल्लाहु तआला अन्हु के पास था। उसी में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ऊंटनी जाकर ठहर गई। लोगों ने अबू-लैला को भेजा कि जाओ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शाहे यमन तुब्बा का ख़त दे आओ। जब अबू-लैला हाजिर हुआ तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे देखते ही फरमाया : तू अबू-लैला है? यह सुनकर अबू-लैला हैरान हो गया। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर फरमाया: मैं मुहम्मद रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हूँ, शाहे यमन का जो मेरा खत तुम्हारे पास है, लाओ। वह मुझे दो। चुनाचे अबू-लैला ने वह खत दिया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पढ़कर फ़रमाया नेक भाई तुला को आफ़रीँ व शाबाश है।

•सबक : हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हर ज़माने में चर्चा रहा है। खुशकिस्मत अफराद ने हर दौर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से फ़ैज़ पाया। हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अगली पिछली तमाम बातें जानते हैं। यह भी मालूम हुआ कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद-आमद की ख़ुशी में मकानों और बाज़ारो को सजाना और सजावट करना सहाबाए किराम की सुन्नत है। फिर आज अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद की खुशी में बाज़ारो को सजाया जाए, घरों की सजावट की जाए और जुलूस निकाला जाए तो उसे बिदअत कहने वाला खुद क्यों बिदअती न होगा?

Quotes of Maula Ali Alahissalam

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*अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *तुम्हारा अच्छा दोस्त वह है जो तुम्हें फ़ासिद (गुनाहगार) होने से बचाएं*

*अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *अपने दोस्त के दुश्मन से दोस्ती मत करो वरना तुम अपने दोस्त के दुश्मन बन जाओगे*

: *अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *उस इंसान की दोस्ती पर ऐतबार ना कर, के जो अपने वादे (कॉल) को पूरा ना कर सके*

अमीरुल मोमिनीन अली इब्न अबी तालिब अलैहिस्लाम* *कमीने की दोस्ती के बा-निस्बत इंसान शरीफ की दुश्मनी से ज्यादा महफूज है*

*अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *इंसान का दोस्त उसकी अक्ल के मुताबिक होता है*

: *अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिसलाम* *कंजूस का वही दोस्त होता है जिसने उस का तजुर्बा ना किया हो*

*अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *तुम्हारा दोस्त वह है जो तुम्हें गुनाहों से मना करें*

: *अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *जब अल्लाह किसी बंदे को दोस्त रखना चाहता है तो उसके दिल में इल्म की तड़प डाल देता है*

*अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम* *उस शख्स को दोस्त कभी ना बनाओ जो तुम्हारी खूबियों को छुपाए और तुम्हारे एबो को फैलाए*

*अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *यकीनन बाप के मरने के बाद उस पर एहसान ये है कि बाप के दोस्तों से मोहब्बत रखें*

*अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *तवज्जो का नतीजा दोस्ती और तकब्बुर का नतीजा दुश्मनी है*

*अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *हर चीज के लिए एक आफत होती है और नेकियों के लिए बुरा दोस्त एक आफत है*

*अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्लाम* *तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह है जो तुम्हारी गलतियों को भूल जाए और तुम्हारे एहसानों को याद रखें*