Madine ke Moti 18

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ताज़िया शरीफ़ शरीअ़त की रौशनी में

ताज़िया शरीफ़ शरीअ़त की रौशनी में
अज✍🏻 हुज़ूर मुहक़्क़िक़े अस्र, अल्लामा मौलाना सय्यद मुनव्वर अली हुसैनी जाफ़री मदारी
उस्ताद जामिअह अरबिय्या मदारुल उलूम मदीनतुल औलिया
मकन पूर शरीफ़ ज़िला कानपुर उ.प्र


ताज़िया शरीफ़ रौज़ए इमाम आली मक़ाम अलैहिस्सलाम का तसव्वुराती (ख़याली) नक़शा है इसे बनाना चूमना ताज़ीम करना जायज़ है

जैसे दूसरे आसार व तबर्रुकात के नक़शों को चूमना और उनकी ताज़ीम करना सही व दुरुस्त है।
और नक़शा बनाना उसको चूमना और उसकी ताज़ीम करना हदीसे रसूल सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम नीज़ बुज़ुरगाने दीन के आसार से साबित है।
इस सिलसिले मे यहाँ हम सब से पहले एक हदीस नक्ल करते है जिस से इस अम्र पर ख़ास रौशनी पढ़ड़ेगी कि शरीअ़ते मुतह्हिरा मे तस्वीर, नक़शा और निस्बत की किया हैसियत है

हदीस का तरजुमा 👇
बेशक एक शख़्स हाज़िर हुए प्यारे नबी सल्ल्ल्लाह हो अलैह व सल्लम की बारगाह में – तो अर्ज़ किया उन्होने – या रसूल ल्लाह ﷺ बेशक मैने क़सम खाई है की मै बोसा दूँगा जन्नत की चौखट को – तो हुक्म फ़रमाया प्यारे नबी ﷺ ने यह कि चूम ले पाओं माँ के और पेशानी बाप की – और रवायत किया जाता है के बेशक उन्होने अर्ज़ किया या रसूल ल्लाह اﷺ अगर न हों मेरे वालिदैन ?
तो फ़रमाया प्यारे नबी ﷺ ने कि तो चूम लो वालिदैन की कब्र को – उन्हो ने अर्ज़ किया – नहीं पहचानता हु वालिदैन की कब्र को – फ़रमाया प्यारे नबी ﷺ ने के खींच लो दो लकीरो को – और नियत करलो इन दोनो में – की एक माँ की कब्र है और दुसरी बाप की कब्र है फिर चूम लो दोनों लकीरों को – तो हानिस (गुनहगार) नही होगा तू क़सम के बारे में – यानी कसम पूरी हो जाएगी –
रवाहु फ़ी किफ़ायतिश्शुअबी व मग़फ़िरतिल ग़फ़ूर
(जामिअ मदारी शरीफ जिल्द अव्वल सफहा 1096 )

मुसलमानो ! कितना साफ़ इरशादे नबवी ﷺ है के दो लकीरे खींच लो और नियत (तसव्वुर) कर लो किे इन में से एक बाप की कब्र है और दूसरी माँ की और दोनो को चूम लो ! क्या इस हदीस से हम को यह सबक़ नही मिलता के बुज़ुरगो के मज़ारात वगैरह के नक्शे बनाना और कब्र वगैरह का तसव्वुर करना और उसको उसी तसव्वुर और निस्बत की बुनियाद पर चूमना और उसकी ताज़ीम करना दुरुस्त है! और न सिर्फ दुरुस्त बल्के ऐन मनशा ए नुबुव्वत के मुताबिक़ है

इन्साफ के साथ बताईये के खीचें हुए खत( लकीरें) क्या हू बहू क़बरो के नक्शे हैं ?
अगर नही हैं ? और बेशक नही हैं – तो फिर मान लेना चाहिये कि ताज़िया शरीफ भी अगर चे रौज़ए इमाम पाक का हूु बहू नक़शा न हो मगर अपने तसव्वुर और ख्याल के एतबार से वो रौज़ए इमाम आली मक़ाम अलैहिस्सलाम का नक़शा ज़रूर है और उसकी निस्बत चुं कि रौज़ए इमाम पाक से की गयी है लिहाज़ा निस्बत की बुनियाद पर उसको चूमा भी जाएगा और उसकी ताज़ीम भी की जाएगी और यही अक़ीदत व अदब का तक़ाज़ा भी है इस लिये कि जो चीज़ अल्लाह वालो से मन्सूब हो जाती है वो ” शआइरुल्लाह ” (अल्लाह की निशानियां) क़रार पाती हैं
जैसा किे आयत
” इन्नस्सफ़ा वल मरवता मिन शआइरिल्लाह “
(बे शक सफ़ा और मरवा अल्लाह की निशानियां हैं )
की बलीग़ तफसीर से साबित है और उसकी ताज़ीम का दरस (सबक़) भी क़ुरआने करीम देता है

चुनान्चे इरशाद हुआ
” व मंय्युअज़्ज़िम शआइरल्लाहि फ़ इनन्हा मिन तक़वल क़ुलूब “-यानी जिसने अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम की पस बेशक वो दिलो के तक़वा की वजह से है!
सरे दस्त एक आशिक़े रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ईमान अफ़रोज़ वाक़िया भी मुलाहिज़ा फ़रमा ले और ग़ौर करें कि अहले इश्क़ और अहले मुहब्बत की क्या शान होती है !
इमाम अब्दुल रहमान बिन अब्दुल सलाम सफ़ूरी शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फ़रमाते हैं !
किसी आशिक़े रसूले अकरम ﷺ का बयान है किे वो ज़ालिम बादशाह के ख़ौफ़ से जगंल चला गया वहां जाकर उसने एक ख़त खींचा (लकीर खींची) और उसे नबी करीम ﷺ का मज़ार तसव्वुर कर के एक हज़ार बार आपकी खिदमत में सलातो सलाम पेश किया फिर यूं दुआ मांगी इलाही साहिबे मज़ार हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तेरी बारगाह मे वसीला बनाकर अर्ज़ करता हूं मुझे इस ज़ालिम बादशाह से निजात अता फ़रमा हातिफे ग़ैबी ने पुकारा मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कितने अच्छे शिफ़ाअत फ़रमाने वाले हैं अगर चे शफ़ाअत करने वाले बहोत है लेकिन वो अपनी शान व अज़मत करामत व मन्ज़िलत के बाइस बहोत क़रीब हैं जाओ तुम्हारे दुश्मन को हमने ठिकाने लगा दिया
जब वो वापस पलटा तो पता चला बादशाह मर चुका है
(ज़ीनतुल महाफ़िल तरजमा नुज़हतुल मजालिस जिल्द 2 सफ्हा 398)
अहले इन्साफ ग़ौर फ़रमाये एक आशिक़े रसूल ने किस तरह लकीर बना कर उसको कब्र रसूल तसव्वुर कर के उस पे दुरूद ख्वानी की और साहिबे कब्र के वसीले से दुआ मागीं और उसकी दुआ क़ुबूल भी हुई ! जब उजलत मे बनायी हुई एक लकीर का यह हाल है के उसे कब्रे रसूल तसव्वुर करने की वजह से वहाँ उसकी दुआ क़ुबूल हो गयी तो रौज़ए इमाम पाक के तसव्वुराती नक्शा ताज़िया शरीफ जो कि इन्तिहाई एहतेमाम, मेहनत, शौक़ और हुस्ने अक़ीदत से बनाया गया है उसके पास फातिहा ख्वानी करने या साहिबे ताज़िया इमाम आली मक़ाम से मदद मागने या ताज़िया शरीफ के पास उनके वासीले से मदद मागने मे शरअ़न कौन सी कबाहत (ख़राबी) होगी ?
अच्छी तरह याद रखें न तो शरअ़न कोई क़बाहत है और न ही कोई उसपे दलीले शरई पेश कर पायेगा मसाइले शरइय्या किसी मोलवी मुफ्ती की महज़ फिक्र से हल नही होते !
शरीअत मे तसव्वुराती नक़शे की एक और मिसाल भी मुलाहिज़ा फ़रमाले
मक्का मुकर्रमा (मिना) मे तीन पत्थर खड़े हुये हैं जो न तो खुद शैतान हैं और न ही शैतान का जिसमानी नक्शा हैं मगर उनहे शैतान कहा जाता है और उन पर रमिये जिमार किया जाता है -(ककंरिया मारी जाती हैं )
और शैतान को ककंरियां मारना कहा जाता है

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ियल्लाह अन्हो फ़रमाते हैं तुम शैतान को रजम करते और मिल्लते इब्राहीम की इत्तिबा करते हो
→अगर खु़दाऐ पाक ने नज़रे इन्साफ अता फ़रमायी हो तो समझने की कोशिश करें इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने तो शैतान के कंकरियाँ मारी थीं और हम शैतान का तसव्वुर करके पत्थरो को कंकरियाँ मारते हैं इसे हदीस मे शैतान को रजम करना यानी कंकरियां मारना बताया गया है

रोज़ा-ए-इमाम पाक से मुशाबेहत न रखने वाले ताज़ियो पर अंग्रेज़ों के दौर से जो एतराज़ किये जाने लगे हैं कि तरह तरह की तराशें निकाल लीं जो रोज़ा-ए-इमाम पाक का नक्शा नहीं है ! क्या यही एतराज़ उपर मज़कूर हदीस और वाक़िअह पर नहीं होता है किे कहाँ तो शबीहे कब्र और कहा ये लकीर इस लकीर को नक्शे से क्या मुनासिबत ? →और क्या यही एतराज़ रमिये जिमार पर नहीं होता है कि कहाँ तो शैतान को ककंरियाँ मारना और कहाँ उन पत्थरों को ककंरियाँ मारना जो शैतान के जिस्मानी नक्शे से भी मुशाबेह नहीं है ?
देखा आपने शरीयत में तसव्वुर नक्शे को कितनी अहमियत हासिल है अच्छी शये और बुरी शये दोनो तरह के तसव्वुर नक्शों की मिसाल मौजूद है !
और जिस की निस्बत जैसी है उसके साथ वैसा सुलूक करने का सबक़ भी है !

लिहाज़ा ताज़िया शरीफ़ शराअ़ शरीफ़ की रौशनी में जायज़ है बल्के मुस्तहसन है फिर ख्वाह वो रोज़ा ए इमाम पाक का नक्शा हो या न हो दोनों सूरतों में निस्बते हुसैनी की वजह से उसकी ताज़ीम की जाएगी और उसकी ज़ियारत करना बुज़ुरगाने दीन की सुन्नत है उसके क़रीब फ़ातिहा ख्वानी करना भी जायज़ है और दुआयें मांगना मन्नतें मांगना भी जायज़ है!

और नाजायज़ व हराम कहना बिला दलील है शरियत में जिसकी कोई हैसियत नहीं !
बल्के नाजायज़ो हराम कहना ही नाजायज़ व हराम है!
के ये शरियत मुतह्हिरा पर इफ़्तिरा है !
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त सबको दीन की सही समझ अता फ़रमाऐ – आमीन

Qual e Maula Ali Alaihissalam

قال أمير المؤمنين: هذا القرآن كتاب صامِت وأنا الكتاب ناطِق

امیرالمؤمنین ؑ نے فرمایا: یہ قرآن خدا کی صامِت کتاب ہے اور میں کتابِ ناطِق ہوں۔

Amirul Momenin ؑ ne Farmaya :- Ye Quran Kitab Samit Hey,
Mai Kitab E Natiq Hun.!

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और चार परिन्दे


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〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने एक रोज़ समुंद्र के किनारे एक आदमी मरा हुआ देखा। आपने देखा के समुद्र की मछलियाँ उसकी लाश को खा रही हैं और थोड़ी देर के बाद फिर परिन्दे आकर उसकी लाश को खाने लगे फिर आपने देखा के जंगल के कुछ दरिन्दे आए और वो भी उसकी लाश को खाने लगे।

आपने ये मंजर देखा तो आपको शौक़ हुआ की आप मुलाहेज़ा फ़रमाएँ की मुर्दे किस तरह ज़िन्दा किए जाएँगे।

चुनाँचे आपने ख़ुदा से अर्ज़ किया- इलाही! मुझे यकीन है की तू मुर्दों को जिन्दा फरमाएगा और उनके अज्ज़ाऐ दरयाई जानवरों, परिन्दों और दरिन्दों के पेटों से जमा फरमाएगा। लेकिन मैं ये अजीब मंज़र देखने की आरज़ू रखता हूँ।

खुदा ने फ़रमाया- अच्छा ऐ खलील! तुम चार परिन्दे लेकर उन्हें अपने साथ हिला लो ताकी अच्छी तरह उनकी शनाख़्त हो जाए। फिर उन्हें ज़िबह करके उनके अज्ज़ाऐ बाहम मिला जुला कर उनका एक-एक हिस्सा, एक-एक पहाड़ पर रख दो और फिर उनको बुलाओ और देखो वो किस तरह ज़िन्दा होकर तुम्हारे पास दौड़ते हुए आते हैं।

चुनाँचे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मोर, कबूतर, मुर्ग़ और कव्वा, ये चार परिन्दे लिए और उन्हें ज़िबह किया और उनके पर उखाड़े, और उन सब का कीमा करके और आपस में मिला जुला कर उस मजमूऐ के कई हिस्से किए और एक-एक हिस्सा एक-एक पहाड़ पर रख दिया और सर सब के अपने पास महफूज़ रखे और फिर आपने उनसे फ़रमाया- “चले आओ” आपके फ़रमाते ही वो अज्ज़ा उड़े और हर-हर जानवर के अज्ज़ा अलेहदा-अलेहदा होकर अपनी तरतीब से जमा हुए और परिन्दों की शक्लें बनकर अपने पाँऊ से दौड़ते हुए हाज़िर हुए और अपने-अपने सरों से मिलकर बईनही पहले की तरह मुकम्मल होकर उड़ गए।

(कुरआन करीम, पारा-3, रूकू-3, ख़ज़ायन-उल-इऱफान, सफा-66)

🌹सबक़ ~

ख़ुदा तआला बड़ी क़ुदरत व ताक़त का मालिक है। कोई डूब कर मर जाए और उसे मछलियाँ खा जाएं या जल
कर मरे और राख हो जाए या किसी को दरिन्दे-परिन्दे और दरयाई जानवर थोड़ा-थोड़ा खा जाएं और उसके अज्ज़ा मुनतशिर हो जाएँ, ख़ुदाऐ बरतर व तवाना फिर भी उसे जमा फ़रमा कर ज़रूर जिन्दा फ़रमाएगा और बारगाह ऐज़्दी की हाज़री से उसे मुफ़िर नहीं और ये भी मालूम हुआ के मुर्दे सुनते हैं। वरना खुदा अपने खलील से ये ना फ़रमाता के उन मुर्दा और क़ीमा शुदा मुर्दा परिन्दों को बुला। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने बहुक्म इलाही उन मुर्दा परिन्दों को बुलाया और वो मुर्दा परिन्दे आपकी आवाज़ को सुन कर दौड़ पड़े, ये परिन्दों की समाअत है और जो अल्लाह वाले हैं, उनकी समाअत का आलम क्या हुआ? और ये भी मालूम हुआ है, उन परिन्दों को जिन्दा तो खुदा ने किया लेकिन ये ज़िन्दगी उन्हें मिली इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बुलाने और उनके लब हिलने से, गोया किसी अल्लाह वाले के लब हिल जाएँ तो ख़ुदा काम कर देता है। इसी लिए मुसलमान अल्लाह वालों के पास जाते हैं ताकी उनकी मुबारक और मुसतजाब दुआओं से अल्लाह हमारा काम कर दे।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 75-76, हिकायत नंबर- 61

Bad az Shahdat Imam e Hussain Alaihissalam ki karamat

हज़रत जैद इब्ने अरकम रजियल्लाहु तआला अन्हु जो एक सहाबी हैं फ़रमाते हैं कि जब कूफ़ी हज़रत इमाम के सर मुबारक को गली कूचे में फिरा ऱहे थे ! तो में अपने घर की खिडकी में बैठा था ! जब सरे अनवर मेरे करीब आया तो मैंने सरे अनवर को यह आयत पढ़ते हुए सुना :

तर्जमा: क्या तुम्हें मालूम हुआ ! कि पहाड की खोह और जंगल के किनारे वाले ! हमारी एक अजीब निशानी थे ?

मेरे बदन के रौंगटे खडे हो गये ! और मैंने अर्ज किया: ऐ इब्ने रसूलुल्लाह ! बखुदा आपका किस्सा इससे ज्यादा तअज्जुब खेज है !

फिर जब इब्ने ज्याद के पास लाकर नेजों से सर उतारे गये तो हज़रत इमाम के लबे मुबारक हिल रहे थे ! लोगों ने कान लगाकर सुना तो यह आयत तिलावत फरमा रहे थे: ‘

तर्जमा : तुम अल्लाह को उससे गाफिल न समझो ! जो जुल्म करते हैं !

(तजकिरा सफा 68 )