Sawwal aur Jawab about Prophets

*सवाल*- हजरत नूह अलैहिस्सलाम ने कितने साल अपनी कौम को तबलीग फरमाई?

*जवाब*- साढ़े नौ सौ साल।(950)
*(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 5 सफ़्हा 157)*

*सवाल*- शैखुल अंबिया (नबियों के शेख़) किस नबी को कहा जाता है?

*जवाब*- हजरत नूह अलैहिस्सलाम को
*(किसासुल अंबिया)*

*सवाल*- हजरत आदम अलैहिस्सलाम और हजरत नूह अलैहिस्सलाम के बीच कितने साल का फासिला था?

*जवाब*- ग्यारह सौ साल का
*(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 27)*

*सवाल*- हजरत नूह अलैहिस्सलाम को कश्ती बनाना किसने सिखाई?

*जवाब*- अल्लाह तआला ने हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम को भेजा जिन्होंने हजरत नूह अलैहिस्सलाम को कश्ती बनाना सिखाई
*(सावी जिल्द 3 सफ़्हा 96)*

*सवाल*- हजरत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती कितने वक़्त में तैयार हुई?

*जवाब*- दो साल में तैयार हुई उसकी लम्बाई तीन सौ गज़ और चौड़ाई पचास गज़ और ऊँचाई 30 गज़ थी
*(ख़जाइन पेज 326/सावी जिल्द 2 सफ़्हा 72)*

*सवाल*- हजरत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती कितने तख्तों से तैयार हुई?

*जवाब*- एक लाख चौबीस हजार तख़्तों से और हर तख़्ते की पीठ पर एक एक नबी का नाम लिखा था और सबसे आखिरी तख्ते की पीठ पर “मुहम्मदर्रसूलुल्लाह” लिखा था।
*(नुजहतुल मजालिस सफ़्हा 321)*

*सवाल*- इस कश्ती में कितने दरजे बनाऐ गऐ थे?

*जवाब*- तीन दरजे बनाऐ गऐ थे,
(1)सबसे नीचे दरजे में जंगली जानवर और शेर चीते वगैरह और साँप बिच्छु जमीन के कीड़े मकोडे वगैरह थे
(2)बीच में चौपाऐ वगैरह थे
(3)सबसे ऊपर दरजे में खुद हजरत नूह अलैहिस्सलाम और आपके साथी थे और हजरत आदम अलैहिस्सलाम का मुबारक जिस्म भी था खाने-पीने का सामान भी इसी में था और परिन्दे भी ऊपर ही के दरजे में थे
*(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 182/ख़जाइन सफ़्हा 326/अलमलफूज जिल्द 1 सफ़्हा 73)*

*सवाल*- हजरत नूह किस तारीख में कश्ती पर सवार हुऐ और किस तारीख में उतरे?
जवाब- दसवीं रजब को सवार हुऐ दसवीं मुहर्रम को खास जुमे के वक्त जूदी पहाड़ पर उतरे कुल छः6 महीने का वक़्त लगा
*(ख़जाइन सफ़्हा 328)*

*सवाल*- उसमें कितने आदमी सवार थे जो तुफान से महफूज रहे?

*जवाब*- 80अस्सी आदमी सवार थे जिनमें दो नबी थे एक हजरत आदम अलैहिस्सलाम का ताबूत और खुद हजरत नूह अलैहिस्सलाम
*(जज़बुल कुबूल पेज 51/अलमलफूज जिल्द 1 सफ़्हा 73)*

*सवाल*- अबुल अंबिया(नबियों के बाप)किस नबी का लक़ब है?

*जवाब*- हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का वजह यह है कि आठ नबी हजरतआदमअलैहिस्सलाम
हजरतशीशअलैहिस्सलाम
हजरत इदरीस अलैहिस्सलाम,
हजरत नूह अलैहिस्सलाम
हजरत हूद अलैहिस्सलाम
हजरत सालेह अलैहिस्सलाम
हजरत लूत अलैहिस्सलाम
हजरत यूनुस अलैहिस्सलाम

के इलावा बाकी सारे नबी आप ही की नस्ल से हुऐ आपके दो साहिबज़ादे नबी थे
हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम और
हजरत इसहाक अलैहिस्सलाम ज्यादा तर नबी
हजरत इसहाक अलैहिस्सलाम की नस्ल हुऐ और
हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की नस्ल से सिर्फ आखरी नबी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम पैदा हुऐ
इसलिये हजरत ख़लील का लक़ब (पदवी नाम) अबुल अंबिया हुआ
*(मुहाजिरतुल अवाइल सफ़्हा 154/ नुजहतुल कारी जिल्द 6 सफ़्हा 501)*

*सवाल*- अबुज्जैफ(मेहमान नवाज़)किस नबी का लक़ब है?

*जवाब*- हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का
*(तफसीर अज़ीज़ी जिल्द 1 सफ़्हा 373)*

*सवाल*- हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ग़ार में कितने दिन रहे?

*जवाब*- पन्द्रह दिन जिसमें दिन एक महीने के बराबर और महीना साल के बराबर था
*(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 2 सफ़्हा 125)*
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मोबाईल से हदीस/पोस्ट Delete करना कैसा❓

मोबाईल से हदीस/पोस्ट Delete करना कैसा❓

_*जो लोग कहते हैं कुरआन की आयात Mobile से Dalete करना कयामत की निशानी है उनके लिए मुख्तसर सा जवाब*_

_*दोस्तों अमल का दारोमदार नीयत पर है.*_

_*📚 (सही बुखारी हदीस नं• 5070)*_

_*अगर आप कोई आयात या दीनी मैसेज डिलीट करें तो आपकी नीयत गलत नहीं होनी चाहिऐ*_

_*पहली वजह*_

_*दोस्तों कलाम-ए-पाक को ना बदला जा सकता है ना मिटाया जा सकता है, क्योंकि इसकी हिफ़ाजत की जिम्मेदारी खुद अल्लाह ने अपने जिम्मे ली है*_

_*📚 (सूर: हिज्र 9 पारा 14)*_

_*दूसरी वजह*_

_*जब हमको मदरसे मे पढ़ाया जाता है तो ब्लैक बोर्ड पर कुरआन की आयतों को लिख कर समझाया जाता है फिर दूसरी आयत लिखने के लिऐ पहली आयत को मिटाया जाता है*_

_*इस हिसाब से मदरसो मे भी लिखना मिटाना होता है*_
_*तो क्या मदरसे भी बन्द कर देने चाहिए*_

_*तीसरी वजह*_

_*जब किसी मुसलमान के घर मे कलाम-ए-पाक पुराना जईफ़ ख़स्ता हाल मे होतो आप उसको नदी या कुएँ मे बहाते हैं*_
_*तब तो हम इस तरह भी कलाम-ए-पाक को मिटा रहे हैं*_

_*चौथी वजह*_

_*कुछ लोग कहते है कि हर मोबाइल पाक नही होता अच्छी बुरी हर तरह की चीज़ें मोबाइल में रहती हैं इसलिए कुरआन की आयातों को मोबाइल में नहीं रखना चाहिए*_

_*बेशक ये सही बात है मगर यही मसला तो हमारी ज़बान का भी है अपनी ज़बान से हम झूठ ग़ीबत चुगली गाली गलौंच करते है और उसी ज़बान से कुरआन-ए-पाक की तिलावत भी करते हैं*_

_*तो क्या ऐसी हालत मे अपनी गन्दी ज़बान कटवा दें या कुरआन की तिलावत अपनी ज़बान से ना करें दोस्तों ऐसा

वह कलमात जो मिज़ान मे बहोत भारी होंगे…

✨==✨
1. ला इलाहा इल्लल्लाह । [नसाइ: 10670]

2. अशहदू अन ला इलाहा इल्लल्लाहु वा अशहदू अन्ना मूहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहु । [तिर्मिज़ी: 2639]

3. अल्हम्दुलिल्लाह । [मुस्लिम: 233]

4. सूब्हानअल्लाही वबिहम्दिही, सूब्हानअल्लाहील अज़ीम । [बुखारी: 6406]

5. सूब्हानअल्लाह, अल्हम्दुलिल्लाह, ला इलाहा इल्लल्लाह और अल्लाहु अकबर । [इब्न हब्बान: 833]

मिज़ान: उस तराज़ु को कहते हैं जिस मे क़यामत के दिन आमाल तौले जाएँगे ।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं – क़यामत के दिन लोगों का हिसाब लिया जाएगा जिस आदमी के गुनाहों से एक नेकी भी ज़्यादा हो गई वह जन्नत मे दाख़िल होगा और जिस आदमी की नेकीयों से एक गुनाह भी ज़्यादा हो गया वह जहन्नम मे दाख़िल होगा । [इब्न मुबारक]

और हमेशा याद रखो – मिज़ान मे अच्छे अख़लाक़ से ज़्यादा वज़नी कोई चिज़ नही । [अबु दाऊद: 4799]

ऐ अल्लाह! हमें कसरत से इन कलमात को पढ़ने और अपने अख़लाक़ को अच्छे से अच्छा बनाने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा । आमीन