
अल्लाह की पनाह मौज़ूदा मुश्किल वक़्त में कई मय्यतों की नमाज़े जनाज़ा से मुतालिक दुश्वारी आ रही हैँ लिहाज़ा नमाज़े जनाज़ा के ये तहक़ीक़ी मसाइल आसानी के लिये सबको फारवर्ड कर दीजिए
*नमाज़े जनाज़ा फर्ज़ किफ़ाया*
नमाज़े जनाज़ा “फ़र्ज किफ़ाया” है यानी कोई एक भी अदा कर ले तो सब जिम्मेदारी से बरी हो गए वरना जिन जिन को ख़बर पहुंची थी और नहीं आए वो सब गुनहगार होंगे।
*इस की फ़र्ज़ियत का इन्कार कुफ़्र है।*
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🍃 *नमाज़े जनाज़ा का आसान तरीका* 🍂
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📚 *2 फर्ज़ व 3 सुन्नत*
नमाज़े जनाज़ा में दो रुक्न (फर्ज़) और तीन सुन्नतें हैं
*दो रुक्न /फर्ज़ यह हैं* :
1️⃣ चार बार “अल्लाह अकबर” कहना
2️⃣ कि़याम यानि खड़ा होना
*तीन सुन्नते मुअक्कदा यह हैं* :
1️⃣ सना
2️⃣ दुरूद शरीफ़
3️⃣ मय्यित के लिये दुआ।
📚 *नमाज़े जनाज़ा बेहद आसान हैँ* 👇
इस त़रह़ निय्यत करे :
“ निय्यत की मैंने इस जनाज़े की नमाज़ की वास्ते अल्लाह के, दुआ इस मय्यित के लिये, पीछे इस इमाम के मुँह मेरा तरफ काबा शरीफ़ के ”
🕋 पहली तकबीर
अल्लाहु अकबर कहते हुए अब इमाम व मुक़्तदी कानों तक हाथ उठाएं और फिर नाफ़ के नीचे बांध लें और सना पढ़ें।
سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ وَ تَبَاْرَكَ اسْمُكَ وَتَعَالَئ جَدُّكَ وَجَلَّ ثَناءٌكَ وَلَااِلَه غَيْرُكَ
सना में ध्यान रखें कि “व तआला जद्दोका ” के बाद “वजल्ला सनाओका वलाइलाहा ग़ैरोका” पढ़ें
या न आती हो तो *नमाज़ वाली ही सना पढ़ ले*
🕋 दूसरी तकबीर
फिर बिग़ैर हाथ उठाए “अल्लाहु अकबर” कहें,
फिर दुरूदे इब्राहीम पढ़ें,
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
🕋 तीसरी तकबीर
फिर बिग़ैर हाथ उठाए “अल्लाहु अकबर” कहें और दुआ पढ़ें
*अगर किसी को मय्यत की दुआ नहीं आती तो दुआ की नियत से सूरे फ़ातिहा यानि अल्हम्दु शरीफ़ ही पढ़ ले*
🕋 चौथी तकबीर
दुआ के बाद फिर “अल्लाहु अकबर” कहें और हाथ लटका दें फिर दोनों त़रफ़ सलाम फैर दें।
🎋 सलाम में मय्यित और फि़रिश्तों और ह़ाजि़रीने नमाज़ की निय्यत करे, उसी त़रह़ जैसे और नमाज़ों के सलाम में निय्यत की जाती है यहां इतनी बात ज़्यादा है कि मय्यित की भी निय्यत करे।
📚 *मौज़ूदा मुश्किल वक़्त में बेहद ज़रूरी मसअला* 👇👇
🍁 *नमाज़े जनाज़ा के लिये जमाअ़त शर्त नहीं एक शख़्स भी पढ़ ले तो फ़र्ज़े किफ़ाया अदा हो गया।*
🍁 नमाज़े जनाज़ा तन्हा पढ़ने से जमाअत करना बेहतर हैँ
🍁 अगर कोई इमामत के क़ाबिल बाशरह शख्स न हो तो ऐसी सख़्त मज़बूरी में मौज़ूद लोगों में कोई भी सुन्नी सहीहुल अक़ीदा बाक़ी की इमामत कर ले भले ही उसकी दाढ़ी न हो
📚 *जनाज़े में कितनी सफ़ें बेहतर ?*
*बेहतर यह है कि* जनाज़े में तीन सफ़ें हों कि ह़दीसे पाक में है : “जिस की नमाज़ (जनाज़ा) तीन सफ़ों ने पढ़ी उस की मगि़्फ़रत हो जाएगी।” अगर कुल सात ही आदमी हों तो एक इमाम बन जाए अब पहली सफ़ में तीन खड़े हो जाएं दूसरी में दो और तीसरी में एक।
🍁 अगर मौज़ूद लोग तन्हा तन्हा नमाज़े जनाज़ा पढ़ें तो भी नमाज़े जनाज़ा हो जायेगी लेकिन *ये एहतियात रखें कि इस हालात में मय्यत का वली जो मौज़ूद हैँ पहले नमाज़े जनाज़ा न पढ़ें* क्यूँकि मय्यत के वली के तन्हा या जमाअत से नमाज़े जनाज़ा पढ़ लेने के बाद *कोई दुसरा नमाज़े जनाज़ा पढ़ ही नहीं सकता*
🎋 *जनाज़े की दुआ* 🌾
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नमाज़े जनाज़ा की तीसरी तकबीर के बाद नमाज़ में मय्यत के लिये दुआ की जाती हैँ जो नीचे लिखी हैँ लेकिन अगर किसी को मख़सूस दुआ नहीं आती तो *दुआ की नियत से अल्हम्दु शरीफ़ की सूरह भी पढ़ी जा सकती हैँ*
🌿 *नमाज़े जनाज़ा की मख़सूस दुआएँ* 👇
🤲 *बालिग़ मर्द व औरत के जनाज़े की दुआ*
اَللّهُمَّ اغْفِرْ لِحَيِّنَا وَمَيِّتِنَا وَ شَاهِدِنَا وَ غَائِبِنَا وَ صَغِيْرِنَا وَكَبِيْرِنَا وَ ذَكَرِنَا وَاُنْثَانَاؕ اَللّهُمَّ مَنْ اَحْيَيْتَهُ مِنَّا فَاَحْيِهِ عَلَي الاِسْلَامِؕ وَمَنْ تَوَفَّيْتَهُ مِنَّا فَتَوَفَّهُ عَلَي الاِيْمَانِؕ
इलाही! बख़्श दे हमारे हर जि़न्दा को और हमारे हर फ़ौत शुदा को और हमारे हर ह़ाजि़र को और हमारे हर ग़ाइब को और हमारे हर छोटे को और हमारे हर बड़े को और हमारे हर मर्द को और हमारी हर औरत को। इलाही! तू हम में से जिस को जि़न्दा रखे तो उस को इस्लाम पर जि़न्दा रख और हम में से जिस को मौत दे तो उस को ईमान पर मौत दे। (अल मुस्तदरक लिलहाकिम हदीस 1366)
🤲 *ना बालिग़ लड़के की दुआ*
اَللّهُمَّ اجْعَلْهُ لَنَا فَرَطًا وَّاجْعَلْهُ لَنَا اَجْرًا وَّ ذُخْرًا وَّ اجْعَلْهُ لَنَا شَافِعًا وَّ مُشَفَّعًاؕ
इलाही! इस (लड़के) को हमारे लिये आगे पहुंच कर सामान करने वाला बना दे और इस को हमारे लिये अज्र (का मूजिब) और वक़्त पर काम आने वाला बना दे और इस को हमारी सिफ़ारिश करने वाला बना दे और वो जिस की सिफ़ारिश मन्ज़ूर हो जाए।
🤲 *ना बालिग़ लड़की की दुआ*
اَللّهُمَّ اجْعَلْهَا لَنَا فَرَطًا وَّاجْعَلْهَا لَنَا اَجْرًا وَّذُخْرًا وَّاجْعَلْهَا لَنَا شَافِعَةً وَّمُشَفَّعَةًؕ
इलाही! इस (लड़की) को हमारे लिये आगे पहुंच कर सामान करने वाली बना दे और इस को हमारे लिये अज्र (का मूजिब) और वक़्त पर काम आने वाली बना दे और इस को हमारी सिफ़ारिश करने वाली बना दे और वो जिस की सिफ़ारिश मन्ज़ूर हो जाए।
🌴 *नमाज़े जनाज़ा के मसाएल*
📚 इमाम तक्बीरें बुलन्द आवाज़ से कहे और मुक़्तदी आहिस्ता। बाक़ी तमाम अज़्कार इमाम व मुक़्तदी सब आहिस्ता पढ़ें
📚 *तकबीर के वक्त सर उठाना गलत*
नमाज़े जनाज़ा में तकबीर के वक्त सर उठाकर आसमान की तरफ देखना ज़रूरी नहीं है, बल्कि ग़लत है।
📚 *जूते पर खड़े हो कर जनाज़ा पढ़ना*
जूता पहन कर अगर नमाज़े जनाज़ा पढ़ें तो जूते और ज़मीन दोनों का पाक होना ज़रूरी है और जूता उतार कर उस पर खड़े हो कर पढ़ें तो जूते के तले और ज़मीन का पाक होना ज़रूरी नहीं।
📚 एह़तियात़ यही है कि जूता उतार कर उस पर पाँव रख कर नमाज़ पढ़ी जाए ताकि ज़मीन या तला अगर नापाक हो तो नमाज़ में ख़लल न आए।” (फ़तावा रज़विय्या मुख़र्रजा, जि. 9, स. 188)
📚 *ग़ाइबाना नमाज़े जनाज़ा नहीं हो सकती*
मय्यित का सामने होना ज़रूरी है, ग़ाइबाना नमाज़े जनाज़ा नहीं हो सकती। मुस्तह़ब यह है कि इमाम मय्यित के सीने के सामने खड़ा हो।
📚 अगर मय्यत को दफ़न किया जा चुका हैँ और मय्यत के वली ने नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी हैँ तो दफ़न करने के बाद भी नमाज़े जनाज़ा पढ़ सकते हैँ बाशर्त दफ़न किये ज़्यादा वक़्त नहीं गुजरा हो
📚 *चन्द जनाज़ों की इकठ्ठी नमाज़ का त़रीक़ा*
चन्द जनाज़े एक साथ भी पढ़े जा सकते हैं, इस में इखि़्तयार है कि सब को आगे पीछे रखें यानी सब का सीना इमाम के सामने हो या कि़त़ार बन्द। यानी एक के पाउं की सीध में दूसरे का सिरहाना और दूसरे के पाउं की सीध में तीसरे का सिरहाना (यानी इसी पर कि़यास कीजिये)। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 839,)
📚 *जनाज़े की पूरी जमाअ़त न मिले तो?*
मस्बूक़ (यानी जिस की बाज़ तक्बीरें फ़ौत हो गइंर् वोह) अपनी बाक़ी तक्बीरें इमाम के सलाम फेरने के बाद कहे और अगर यह अन्देशा हो कि दुआ वग़ैरा पढ़ेगा तो पूरी करने से क़ब्ल लोग जनाज़े को कन्धे तक उठा लेंगे तो सिर्फ़ तक्बीरें कह ले दुआ वग़ैरा छोड़ दे।
चौथी तक्बीर के बाद जो शख़्स आया तो जब तक इमाम ने सलाम नहीं फेरा शामिल हो जाए और इमाम के सलाम के बाद तीन बार “अल्लाहु अकबर” कहे। फिर सलाम फेर दे।
📚 *पागल या ख़ुदकुशी वाले का जनाज़ा*
जो पैदाइशी पागल हो या बालिग़ होने से पहले पागल हो गया हो और इसी पागल पन में मौत वाक़ेअ़ हुई तो उस की नमाज़े जनाज़ा में नाबालिग़ की दुआ पढ़ेंगे। जिस ने ख़ुदकुशी की उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जाएगी।
📚 *क्या शोहर बीवी के जनाज़े को कन्धा दे सकता है?*
शोहर अपनी बीवी के जनाज़े को कन्धा भी दे सकता है, क़ब्र में भी उतार सकता है और मुंह भी देख सकता है। सिर्फ़ ग़ुस्ल देने और बिला ह़ाइल बदन को छूने की मुमानअ़त है। औरत अपने शोहर को ग़ुस्ल दे सकती है। (बहारे शरीअ़त, जि. 1, स. 812, 813)
*जनाज़ा देख कर पढ़ने का विर्द*
”सुब्हानल हय्यिल्लज़ी ला यमुतो” (वो ज़ात पाक है जो जि़न्दा है उसे कभी मौत नहीं आएगी)।
🍂 *मय्यत को दफनाना*
मय्यत को दफ़न करते वक़्त बिस्मिल्लहि व अला मिल्लती रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहे या कम से कम बुलंद आवाज़ में बिस्मिल्लाह शरीफ़ ज़रूर पढ़ ले कि इससे शैतान कब्र में दाखिल नहीं होगा
*नोट* : मुरत्तिब आलिमे दीन नहीं हैँ लेकिन सुन्नी मुफ़्ती ए इकराम से तहक़ीक़ कर व सुन्नी किताबों से पढ़कर व समझकर उम्मत की आसानी के लिये मेसेज तरतीब दिया हैँ शक़ ओ शुबहा होने पर मुफ़्ती ए इकराम से राब्ता करे
🤲 *रब्बुल आलमीन, आका रहमतुल्लिल आलमीन के सदके में इस बीमारी व वबा को दूर फरमाये व हम सबको महफ़ूज़ रखें
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♥बैहकी में अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर फारूक रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक रोज़ हम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के हमराह तिहामा की एक पहाड़ी पर बैठे थे कि अचानक एक बूढ़ा हाथ में असा (लाठी) लिए हुए हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम )के सामने हाज़िर हुआ और सलाम अर्ज़। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया और फरमाया इसकी आवाज़ जिन्नो की-सी है, फिर आपने उससे दरयाफ्त किया तू कौन है उसने अर्ज़ किया मैं जिन्न हूं मेरा नाम हामा है बेटा हीम और हीम बेटा लाकीस का और लाकीस बेटा इब्लीस का है। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया तो गोया तेरे और इब्लीस के दरमियान सिर्फ दो पुश्ते हैं। फिर फरमाया अच्छा यह बताओ तुम्हारी उम्र कितनी है उसने कहा या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जितनी उम्र दुनिया की है उतनी ही मेरी है कुछ थोड़ी सी कम है। हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जिन दिनों काबील ने हाबील को कत्ल किया था उस वक्त मैं कई बरस का बच्चा ही था मगर बात समझता था। पहाड़ों में दौड़ता फिरता था। लोगों का खाना वा गल्ला चोरी कर लिया करता था। लोगों के दिलों में वसवसे भी डाल देता था कि वह अपने ख्वेश व अकरबा से बदसलूकी करें।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया तब तो तुम बहुत बुरे हो। उसने अर्ज़ की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मुझे मलामत ना फरमाइए इसलिए कि अब मैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में तौबा करने हाज़िर हुआ हूं। या रसूलल्लाह ! सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मैंने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम से मुलाकात की है। एक साल तक उनके साथ उनकी मस्जिद में रहा हूं। इससे पहले मैं उनकी बारगाह में भी तौबा कर चुका हूं। हज़रत हुद, हजरत याकूब और हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम की सोहबतो में भी रह चुका हूं । उनसे तौरात सीखी है । उनका सलाम हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को पहुंचाया था। ऐ नबियों के सरदार! हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने फरमाया था कि अगर तू मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से मुलाकात करें तो मेरा सलाम उन को पहुंचाना। सो हुज़ूर ! (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अब मैं इस अमानत से सुबुकदोश होने को हाज़िर हुआ हूं और यह भी आरज़ू है कि आप अपनी ज़ुबाने हक़ तर्जमान से मुझे कुछ कलामुल्लाह तालीम फरमाइए । हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने उसे सूरह मुरसलात, सूरह अम्मा य तसाअलून इखलास और मुअव्वि ज़ तैन और इज़श्शम्स तालीम फरमाई। यह भी फरमाया कि ऐ हामा ! जिस वक्त तुम्हें कोई एहतियाज हो फिर मेरे पास आ जाना और हमसे मुलाकात ना छोड़ना।
हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने तो विसाल फरमाया है लेकिन हामा की बाबत फिर कुछ ना फरमाया । खुदा जाने हामा अब भी जिंदा है या मर गया है।