26 Rajab Wisal e Hazrat Maula Imran Abu Talib AlaihisSalaam

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26th Rajjabul Murajjab Shabe Wisaale Mohsine Islam, Jadde Kareem, Sarkar Aaqa o Maula Imran Abu Talib AlaihisSalaam

Maula Imran Abu Talib AlaihisSalaam Wo Azeem Hasti Hai Jinhone Kul Ambiyan ke Imam Sayyeduna Mohammedur RasoolAllah SallAllahuAlaihiwaAalaAalehiWasallam aur Kul Waliyo ke Sardar Sayyeduna Maula Ali e Murtaza AlaihisSalaam ko Sambhaala Sahara Diya!

Maula Imran Abu Talib AlaihisSalaam ne hi Huzoor SallAllahuAlaihiWaAalaAalehiWasallam aur Maa Khadija ka Nikah Padhaaya SubhanAllah
Maula Imran Abu Talib AlaihisSalaam k Namaze Janaza Khud Huzoor SallAllahuAlaihiWaAalaAalehiWasallam ne Padhaya

Al Fatiha!

Sayyeduna Abu Talib Alaihissalam ki Qabr-e-Aqdas Dargah pe Pehle Gumbad Bhi Tha, Magar Najdiyon ne 1923 me sab Mismaar kar Diya.

Allahumma Salle Alaa Sayyedina wa Maulana Mohammed wa Alaa Aale Mohammed SallAllahuAlaihiWaAalaAalehiWasallam

एलान हुआ था मक्का में की तमाम कबीले अपने बुतो को लेकर एक मैदान में आयें और अपने अपने खुदा से अकाल खत्म होने और बारिश होने की दुआ करे। हर कबीले का सरदार अपना बुत लेकर वंहा पंहुचा।

वंहा बनु हाशिम के सरदार काफिर!!(कहने वालो पर लानत) अपने दुधमुए भतीजे को लेकर आयें और अपने ख़ुदा के सामने आसमान में उस दुधमुए भतीजे को पेश कर कर दुआ की ” अय मोहम्मद के ख़ुदा तेरे इस मासुम नबी के वसीले से बारिश भेज ” और रहेमते ख़ुदावंदी जौश में आयीं और मुसलाधार बारिश शुरु हो गयीं।यहां तक कि बारिश बंद करवाने के लिए फिरसे उसी तरह से दुआ करनी पडीं।

उस बनु हाशिम के सरदारे अरब और काबे के मुतवल्लि जिसे कुछ लोग काफिर कहते हैं वह सैयदना अबुतालिब अलहीस्सलाम थे, जिन्की गोद में वह मासुम नबी थे वह हमारे आका मोहम्मद मुस्तफा (स.अ.व.) थे, जिन्हे नबी के बचपन से उन्का नबी होने का इल्म था, जिन्होने नबी का पहला निकाह और खुत्बा सैयदा खदिजा सलामुल्लाह अलयहा से पढाया, ये वही काफिर!!(कहने वालो पर लानत) थे जिन्हें खुद ख़ुदा ने अपनी गोद कहा है,और ता उम्र उसी काफिर के घर में नबी अलहीस्सलाम पले बडे और नुबूव्वत का एलान भी उसी घर से हुआ।

आज के रोज 26 रज्जब उसी सरदारे मक्का,मोहसिने इस्लाम हजरत सैयदना अबुतालिब अलहीस्सलाम (जल्ले जलालहु) का विसाल हुआ था।और बाद में हमारे आका को हिजरत करने पर वंहा के काफिरो ने मजबूर कर दिया।

हम तमाम मुहिब्बाने अहले बयत अलहीस्सलाम आपके विसाल पर आपकी बारगाह में खिराजे अकीदत पेश करतें हैं।

याद रखिए अगर सैयदना अबुतालिब अलहीस्सलाम अगर काफिर थे तो फीर इस्लाम में कोई मुसलमान नहीं, कुछ टुच्चो की हठधर्मीता पर मत जाओ,सिर्फ कुरान और नबी और आले नबी की बातों को मानो, ना कीसी मस्लकी टट्टुओ की।

या सैयदना अबुतालिब अलहीस्सलाम आपकी गोद को खुदा अपनी गोद कुरान में बता रहा है लेकिन जो आपको काफिर समझे उन पर बर लानत बेशुमार।

हुज़ूर का निकाह हज़रत अबु तालिब अलैहि सलाम ने पढ़ाया और महेर भी ख़ुद ही अदा किया

इमाम जौज़ी ने रिवायत किया
इमाम बदरुद्दीन हल्बी ने रिवायत किया
शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी ने रिवायत किया
इमाम सुहैली ने रिवायत किया
अल्लामा ज़हनी दहलान ने रिवायत किया
अल्लामा इब्ने ख़ल्दून ने रिवायत किया
और भी दीगर मुहद्दिसीन ने रिवायत किया और इसमें कोई इख़्तिलाफ़ भी नही है के

आक़ा सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम का निकाह हज़रत अबु तालिब ने सय्यदा खदिजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैहा से पढ़ाया

निकाह का ख़ुत्बा हज़रते अबु तालिब ने ख़ुद पढ़ा
और जो महेर मुक़र्रर हुआ 12 औकिया और 20 ऊँटनियों का ये महेर भी हज़रते अबु तालिब ने ख़ुद अपनी जेब से अदा किया

ग़ौर तलब बात ये भी है कि
जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का निकाह हज़रते हव्वा से हुआ तो महेर की अदायगी के लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया की मेरे हबीब पर दुरूद पढ़ो यही तुम्हारा महेर है

लोगों ज़रा दयानत से सोचो
ठंडी तबियत से सोचो

हज़रते आदम का निकाह हो तो महेर मुस्तफ़ा पे दुरूद का रखा जाये अल्लाह को इसके सिवा कोई महेर गवारा नही क्योकि इसी सल्ब से नबियों को आना है
और जब मुस्तफ़ा का निकाह हो तो महेर माज़अल्लाह किसी काफ़िर की जेब से क़ुबूल कर लिया जाये ?????

शर्म नही आती तुम्हे ऐसा अक़ीदा रखते हुए

हज़रते अबु तालिब अलैहिस्सलाम ने सिर्फ़ निकाह का ख़ुत्बा ही नही पढ़ा
बल्कि मुस्तफ़ा की तरफ़ से महेर भी ख़ुद अदा किया

हज़रते सय्यदा ख़दिजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैह मेरे आक़ा की पहली रफ़ीक़े हयात
ताजदारे कायनात सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम की सारी औलाद की माँ है
अरे ये सय्यदा फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा की माँ है
हसनैन करीमैन की नानी हैं

हुज़ूर हमेशा सय्यदा ख़दिजतुल कुबरा को याद किया करते थे

अल्लाह को कैसे गवारा होगा की किसी काफ़िर से अपने हबीब सय्यदुल अम्बिया के निकाह का ख़ुत्बा पढ़ाये और महेर भी अदा कराए

फिर सोचो
आदम अलैहिस्सलाम का महेर मुस्तफ़ा पर दुरूद पढ़ना
और मुस्तफ़ा का महेर कोई काफ़िर अदा करे ??? ताज्जुब की बात है
नही हरगिज़ ऐसा नही ये अक़ीदा दुरुस्त नही
ये अज़्मते मुस्तफ़ा का मामला है ज़रा सोच सम्भल कर बात करो होश के नाख़ून लो

हम वो जमाअत हैं जो हुज़ूर की नालैन शरीफ़ का भी अदब ओ एहतेराम करते हैं उसे कभी हम सिर्फ़ जूता नही कहते

क्या हो गया उन लोगों को जो कलमा नबी का पढ़ते है और ऐसे ऐतराज़ भी करते है

दावत ए तौहीद हज़रते अबु तालिब के घर से दी गयी
इश्आत ए इस्लाम हज़रते अबु तालिब के घर से हुई
इस्लाम की इब्तेदा पहली दावत पहली मजलिस हज़रते अबु तालिब के घर से हुई

और जब इस्लाम के तहफ़्फ़ुज़ के लिए ख़ून बहाना हुआ तो इसी घर ने कुर्बानियां पेश की
जिसमे 6 माह का मासूम भी शामिल है और
56 साल का ताजदार भी

अल्लाहुम्मा सल्लेअला मुहम्मद वा आले मुहम्मद वाज्जिल फराजहूम

मै हू इमरान लकब मेरा अबूतालिब है
और नसब मेरा आला गालिब ऐ अल गालिब है

जिसमे ढलती है विलायत वो मेरा कालीब है
जो है मतलूबे ज़माना वो मेरा तालिब है

क्या है मक्सद मेरा मकसूद समज सक्ता है
मैं वोह हामिद हू जिसे मेहमूद समज सक्ता है

मुंनकशिफ देखे है तोहीद के मन्जर मेने
जिस्म मे ढल्ते हूऐ देखे पैयम्बर मेने

खुदको पोशिदा रखा काबे के अन्दर मेने
गौद ऐ पाले है अंबार के पाले मेने

अपनी ही जात में आलम ऐ अनवर हू मै
जो है अलम का खुदा उसका मददगार हू मै

मेने हर काम किया जाते अहद की खातिर
वक्फ सासे रब्बे समद की खातिर

सुरे फिल बनी है मेरे जद की खातिर
बात काफी है ये रुतबे की सनद की खातिर

कब समज पाया ये ज़माना मेरे इल्मो को
अपना कहता है खुद अल्लाह मेरे कामो को

वाकीफ अज़मते तोहिदो ओ रिसालत में हू
उतरी कुरान से पेहले वो आयत में हू

हादीये वक्त हू खालीक की हिदायत में हू
कसरतें कुफ्र में बस मरकजे वेहदत में हू

मेरी हर हद वोह सरहद से मिला देता है
मेरी बातो को वो आयत बना देता है

मसराफे खालीक बरी का मे जुजदान भी हू
खाने रब्बे जली का मे निगाहबान भी हू

कुल्ले इमान के लिये हासिले इमान भी हू
एक पैकर में अली भी हू मै इमरान भी हू

थी विला मेरी ज़माने में विला से पेहेले
मैं ही था नादे अली नादे ए
अली से पेहेले

मेने अज़मत की हिजाबो में नबुवत पाली
गौद में अपनी कभी मेने विलायत पाली

पेकरे हैदर ऐ सफ़दर में इमामत पाली
सूरते अहमद ऐ मुरसल में रिसालत पाली

मुशकिले दीन पे जो आइ उन्हें टाला है
मेने इस्लाम को बच्चो की तरह ​​पाला है

मेने मेहफूज़ रसूलो की विरासत रखी है
जारी मेने तो नाबीयो की शरियत रखी
I
मुजमे अल्लाह ने खुद दीन की नुसरत रखी
मेने आयत जहांपर वही आयत रखी

शेर अल्लाह को यू शेर बनया मेने
मौत की गौद मे हैदर को सुलाया मेने

बात ये नूर अली शेरे ज़माने को बता
अब भी आती है सारे देहर ये इमरान की सदा

लोग जा केहने लगे हैदर ऐ सफ़दर को खुदा

अबू तालिब ने ये कमज़र्फ नुसेरी से कहा

सोच अगर है अली जी जा तो फिर मे क्या हू
गर मेरा बेटा है अल्लाह तो फिर मैं क्या हु

सलाम या मोला अबू तालिब अलैहिस्सालम

Kafeel e Rasool ﷺ
Mushkil kushai e Rasool ﷺ
Chacha manind e Walid e Rasool ﷺ
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Walid e girami(father) HAI KULL E IMAAN k MAULA ALI ALEYHISSALAM
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sasur Hai (father in law) JANNATI AURTOH KI SARDAR MKHDOOMA E KAINAT SALAMULLAH ALAIHA KE.
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Dada kinke (grand father) JANNATI JAWANO K SARDAR IMAM HUSSNAIN KAREEMAIN ALEYHISSALAM KE.
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AALE IBRAHIM ALEYHISSALAM HAI.
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QURAN ME MASHOOR JINKA KHANDAAN HAI.
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Pehli dawat ISLAM ki Ghar hazrat HAZRAT ABU TALIB KA HAI..
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Are SYEDO ke JADH E KAREEM bhi
PEHLE NAATKHWAN bhi Hai.
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ustad Hai Alam e Islam k badas
ADAM ALEYHISSALAM K WASEELA KINKA AUR KAISE MANGA CHAHIYE..
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MIYA HUM KHUD MUSALMAN HAZRAT SYEDNA ABU TALIB ALEYHISSALAM K GHARANE K HAI..
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AUR EK HAAN ZARURI BAAT
HAZRAT ABU TALIB ALEYHISSALAM AINAA HAI.
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YAUM E WISAL
AL FATIHA.

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