हदीस :मेहमान नवाज़ी

*بِسْمِ اللٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ*

इरशादे बारी तआ़ला है:
“और तुम अल्लाह की इ़बादत करो और उस के साथ किसी को शरीक न ठॅहराओ और माँ बाप के साथ भलाई करो और रिश्तेदारों और यतीमों और मोह़ताजों (से) और नज़्दीकी हमसाए और अजनबी पड़ोसी और हम मजलिस और मुसाफ़िरों (से), और जिन के तुम मालिक हो चुके हो, (उन से नेकी किया करो), बेशक अल्लाह उस शख़्स़ को पसन्द नहीं करता जो तकब्बुर करने वाला (मग़रूर) फ़ख़्र करने वाला (ख़ुदबीन) हो।”
[अन्निसा, 4: 36]

ह़ुज़ूर नबिय्ये अकरम ﷺ ने फ़रमाया:
“जो शख़्स़ अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता है उस पर मेहमान नवाज़ी करना वाजिब है और एक दिन और एक रात के लिये मेहमान नवाज़ी करना ह़क़ है और तीन दिन तक मेहमान नवाज़ी है और तीन दिन से ज़ाइद दिनों पर मुश्तमिल मेहमान नवाज़ी स़दक़ा है और मेहमान के लिये जाइज़ नहीं कि स़ाह़िबे ख़ाना के हाँ मुस्तक़िल क़ियाम करे कि उन्हें तँगी में डाल दे।”
[बुख़ारी, अस़्स़ह़ीह़, रक़म: 5784]