
*بِسْمِ اللٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ*
सय्यिदुना मौला अ़लिय्युल मुर्तुज़ा کرم اللہ وجہہ الکریم फ़रमाते हैं:
“बिला शुब्ह़ा अल्लाह तआ़ला ने दौलत मन्दों के माल में इस क़द्र ह़क़ फ़र्ज़ कर दिया है जिस क़द्र उन के फ़ुक़रा की किफ़ायत कर सकें पस फ़ुक़रा अगर भूके, नँगे और ख़स्ता ह़ाल हैं तो उस का सबब येही होता है कि अग़्निया उस फ़र्ज़ की अदाएगी में मानेअ़ हैं।”
[सई़द बिन मन्स़ूर, अस्सुनन, रक़म: 931]
ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने उ़मर رضی اللہ تعالیٰ عنہما फ़रमाते हैं:
“तेरे माल में ज़कात के इ़लावा भी (जमाअ़ती) ह़ुक़ूक़ हैं।”
[इब्ने अबी शैबह, अल मुस़न्नफ़, रक़म: 10526]
इमाम क़ुरत़ुबी फ़रमाते हैं:
“और इस बात पर उ़लमाए किराम का इत्तेफ़ाक़ है कि ज़कात की अदाएगी के बा’द जब मुसलमान किसी चीज़ के मोह़ताज हों तो फिर माल को उस ह़ाजत व ज़रूरत के लिये स़र्फ़ करना वाजिब है।”
[क़ुरत़ुबी, अल जामिउ़ लिल अह़कामिल क़ुरआन, 2: 242]