नमाज़ और अबवाबे जन्नत का खुलना

नमाज़ और अबवाबे जन्नत का खुलना

रसूल ए पाक ने इरशाद फ़रमाया के जन्नत के आठ दरवाज़े हैं जब कोई बन्दा नमाज़ में दाख़िल होता है और उसे पूरे तक़ाज़ों के साथ अदा करता है तो उसपर यह आठों दरवाज़े खोल दिये जाते हैं आहादीसे मुबारका में उसकी जो तफ़सील बयान की गई है यहाँ उसका इजमाली तज़किरा किया जाता है,

बाबुल मआरिफ़ा(पहला दरवाज़ा)

नमाज़ में दाख़िल होते ही जब बन्दा कलिमाते सना अपनी ज़बान से अदा करता है तो उसपर पहला दरवाज़ा…… बाबे मआरिफ़त….. खोल दिया जाता है जिस से उसे मआरिफ़ते इलाही का ख़ज़ाना अता कर दिया जाता है,

बाबुज़ ज़िक्र (दूसरा दरवाज़ा)

जब बन्दा अपनी ज़बान से तसमियह कलिमात (بسم اللّه الرحمن الرحيم )
अदा करता है तो जन्नत का दूसरा दरवाज़ा जो ….. बाबुज़ ज़िक्र….. से मोसूम है खुल जाता है जिसके नतीजे में वो बन्दा ज़िक्रे इलाही की नेअमतों का हक़दार बन जाता है,

बाबुश शुक्र (तीसरा दरवाज़ा)

बन्दा जब अल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन के कलिमात पर पहुँचता है तो उसका दिल अहसास तशक्कुरो इम्तिनान से मग़लूब हो जाता है और वो बारगाहे एज़दी में इस बात का ऐतिराफ़ व इक़रार करता है कि वो ज़ात बे हमताही तमाम तारीफ़ो़ं की सज़ावार है तो उसपर……. बाबुश शुक्र…….खोल दिया जाता है,

बाबुर रिजा (चोथा दरवाज़ा)

जब बन्दा अल्हम्द के बाद अर्रहमानिर्रहीम के कलिमात ज़बान पर लाता है तो बारी तआल़ा अपने फ़रिश्तों को हुक्म देता है कि मेरा बन्दा मेरी बे पायाँ रहमतों का ज़िक्र कर रहा है इसलिए इसपर…..बाबुर रिजा …… खोल दिया जाए,

बाबुल ख़ौफ़ (पाँचवा दरवाज़ा)

जब बन्दा क़ल्बो रूह की गहराइयों में डूब कर मालिकि यौमिद्दीन के अल्फ़ाज़ अपनी ज़बान से अदा करता था तो गोया वो ख़ुद को मुल्ज़िम की तरह सबसे बड़े बादशाह के दरबार में पेश कर देता है ख़ौफ़े ख़ुदा से लर्ज़ा बर अन्दाम होकर जब वो अहसासे जुर्म से मग़लूब हो जाता है तो रहमते परवरदिगार फ़रिश्तों को निदा देती है कि मेरे इस बन्दे पर….बाबुल ख़ौफ़…. खोल दिया जाए ताकि ख़श्यते इलाही की वजह से वो मेरी रहमतों से नवाज़ा जा सके,

बाबुल इख़्लास (छटा दरवाज़ा)

इय्या क नअबुदु व इय्या क नस्तईन कह कर जब बन्दा ख़ुदा की बन्दगी का इक़रार करता हुआ उस से इस्तिआनत का तलबगार होता है तो उसपर…. बाबुल इख़्लास….. खोल दिया जाता है जिस से उसे ख़ालिक़े हक़ीक़ी की मअरिफ़त में इख़्लास नसीब होता है,

बाबुद दुआ (सातवां दरवाज़ा)

जब बन्दा इहदि नस्सिरातल मुस्तक़ीम पर पहुँच कर ख़ुदा की बारगाह में सीधी राह पर चलने की हिदायत का ख़्वास्तगार होता है तो फ़रिश्तों को जन्नत का सातवां दरवाज़ा… बाबुद दुआ…. खोल देने का हुक्म दे दिया जाता है,

बाबुल इक़्तदा (आठवां दरवाज़ा)

आख़िर में जब बन्दा वलद दाल्लीन तक पहुँचता है और मुनइमे हक़ीक़ी से उसके इनआम याफ़ता बन्दों के ज़मरे में शरीक होने का तलबगार होता है और उन लोगों से बर्रियत का इज़हार करता है जो ज़लालते गुमराही की वजह से उसके ग़ैज़ो ग़ज़ब का निशाना बने तो फ़रिश्तों को जन्नत के आख़िरी दरवाज़े…. बाबुल इक़्तदा…. को खोलने का हुक्म दे दिया जाता है और इस तरह उसकी नमाज़ मेअराज के दर्जे को पहुँच जाती है۔۔۔۔۔۔۔۔۔

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