لَوْ اَنَّ عَبْدًا عَبْدَاللّٰهِ مِثْلَ مَا قَامَ نُوْحٌ فِيْ قَوْمِه وَكَانَ لَهُ مِثْلُ اُحُدٍ ذَهَبً فَاَنْفَقَهُ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَمُدًّا فِيْ عُمُرِه حَتّٰى يَحُجَّ اَلْفَ عَامٍ عَلٰى قَدَمَيْه ثُمَّ بَيْنَ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ قُتِلَ مظْلُوْمًا ثُمَّ لَمْ يُوَالِيْكَ يَا عَلِيُّ لَمْ يَشُمَّ رَائِحَةَ الْجَنَّةِ وَلَمْ يَدْخُلُهَا
📕اسرار خطابت، جلد سوم ص 387،
بحوالہ ۔ كوكب درى، ص 205
तर्जमा-
अगर कोई बंदा नूह علیہ السلام की तबलीग के बराबर
(साढ़े नौ सौ साल) इबादत करे, और उहुद पहाड़ के बराबर
सोना अल्लाह की राह में खर्च करे, और एक हज़ार साल
अपने क़दमों पर पैदल चल कर हज्ज करे, फिर वो सफा व
मरवा के दर्मियान ज़ुलमन शहीद कर दिया जाये,
ऐ अली ! (ऐसा शख्स) अगर तुम्हारी मुहब्बत नहीं रखता,
तो वो जन्नत की बू तक सूंघ न सकेगा,
और जन्नत में दाखिल न हो सकेगा,