134 wa URS RAJSHAHI

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 Huzur Qutbe Alam Fardwakt Miya Rajsha Sahab Sundhvi (رحمتہ اللہ علیہ)

🌹Bismillahirrahmanirrahim🌹
🌹 134 wa URS RAJSHAHI 🌹
(Huzur Qutub ul Akhtab,Ghous ul Agwas,Ghous ul Samad,Fard ul Ahad,Shaykh-e-Kabeer,Huzur Fardwakt Qutbe Alam Miya Rajsha Sahab Qadri Sundhvi (Raziallahu Ta’ala Anhu) Ka 134 wa Urs Mukaddas Bari Shano Shokat wa Akidato Ahtaram Ke Sath Hasab Program Munakkid Kiya Ja Raha Hai, Jumla Mashaike Izzam,Sufi e Ikram,Ulma e Ziahtaram,Muhibbane Tariqat Pur Sadaqat wa Akidatmand Buzurggane deen Se Iltamas Hai Ki Hasab Program Me Tashreef La Kar Faizan e Rajshahi Se Malamal Ho)
🌹 Program 🌹
Batareek:-
14 June 2019,Mutabik 10 Shawwal 1440 Hijri Baroz Juma-
Bad Namaz e Asr:-
Chadar Poshi Aur Gul Poshi
Bad Namaz e Maghrib:-
Langgar Shareef
Bad Namaz e Isha:-
Hamd Shareef,Naat Shareef Mankabat Shareef,Taqreer Ulma e Ikram,Bad Salat o Salam Dua…
15 June 2019,Mutabik:-11 Shawwal 1440 Baroz Hafta:- Bad Namaz e Fajar:-Quran Khawani
8:30 Baje Subha:-
Hamd Shareef,Naat Shareef,Manqabat Shareef,Salat o Salam
11:00 Baje Subha:-
Qul Shareef,Dua e Khair,Bad Langgar Shareef
Bamakam:- Muza Sundh Shareef,Tehseel Tawurh,Zila Mewat Nuh,Haryana India
Zaire Sarparasti:-
Sajjada Nasheen Darbare Rajshahi (Sundh Shareef) Aulade Rajshahi Peer e Tariqat,Rehbare Shariyat,Hadiye Barhaq,Shezadaye Ustad ul Shora Hazrat Qibla Miya Taskheer Hussain Qadri Razzaqi Rajshahi Sahab
(Damatbarakatuhum Aaliya)

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अल्लाह पर तवक्कुल (भरोसा करना) अंबियाए किराम का ख़ुसूसी शिआर

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, वस्सलातु वस्सलामु अला नबिय्यिल करीम व अला अलिहि व अस्हाबिहि अजमईन

अल्लाह पर तवक्कुल (भरोसा करनाअंबियाए किराम का ख़ुसूसी शिआर

अल्लाह तआला पर तवक्कुल यानि भरोसा करना अंबियाए किराम के तरीक़े के साथ अल्लाह तआला का हुक्म भी है। क़ुरआन व हदीस में तवक्कुल अललल्लाह का बार-बार हुक्म दिया गया है। सिर्फ़ क़ुरआने करीम में सात मर्तबा “वअलल्लाहि फल्यतवक्कल्लि मुतवक्किलून’’ फ़रमाकर मोमिनों को सिर्फ़ अल्लाह पर तवक्कुल करने की ताकीद की गयी है, यानि हुक्मे ख़ुदावन्दी है कि अल्लाह पर ईमान लाने वालों को सिर्फ़ अल्लाह ही की ज़ात पर भरोसा करना चाहिए…..आईये सबसे क़ब्ल तवक्कुल के माअना समझें। तवक्कुल के लफ़ज़ी माअना किसी मामले में किसी ज़ात पर एतमाद करने के हैं, यानि अपनी आज़जी का इज़हार और दूसरे पर एतमाद और भरोसा करना तवक्कुल कहलाता है। शरई इस्तलाह में तवक्कुल का मतलबइस यक़ीन के साथ असबाब इख़्तियार करना कि दुनियावी व उखरवी तमाम मामलात में नफ़ा व नुक़सान का मालिक सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह तआला की ज़ात है। उसके हुक्म के बग़ैर कोई पत्ता दरख़्त से नहीं गिर सकता। हर छोटी बड़ी चीज़ अपने वुजूद और बक़ा के लिए अल्लाह की मोहताज है। ग़र्ज़ कि ख़ालिक़े कायनात की ज़ात बारी पर मुकम्मल एतमाद करके दुनियावी असबाब इख़्तियार करना तवक्कुल अललल्लाह है। अगर कोई शख़्स बीमार हो जाये तो उसे मर्ज़ से शिफ़ायाबी के लिए दवा का इस्तेमाल तो करना है लेकिन इस यक़ीन के साथ कि जब तक अल्लाह तआला शिफ़ा नहीं देगा दवा असर नहीं कर सकती। यानि दुनियावी असबाब को इख़्तियार करना तवक्कुल के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि अल्लाह तआला का निज़ाम यही है कि बंदा दुनियावी असबाब इख़्तियार करके काम की अन्ज़ामदही के लिए अल्लाह तआला की ज़ात पर पूरा भरोसा करे, यानि यह यक़ीन रखे कि जब तक हुक्मे खुदावंदी नहीं होगा असबाब इख़्तियार करने के बावजूद शिफ़ा नहीं मिल सकती।

हज़रत अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि एक शख़्स ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा: क्या ऊंटनी को बांध कर तवक्कुल करूं या बग़ैर बांधे? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: बांधों और अल्लाह पर भरोसा करो। (तिर्मिज़ी) हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हुमा फ़रमाते हैं कि अहले यमन बग़ैर साज़ व सामान के हज करने के लिए आते और कहते कि हम अल्लाह पर तवक्कुल करते हैं। लेकिन जब मक्का मुकर्रमा पहुंचते तो लोगों से सवाल करना शुरू कर देते। चुनांचे अल्लाह तआला ने क़ुरआन की आयत (सूरह अलबक़रा 197) नाज़िल फ़रमायी: हज के सफ़र में ज़ादे राह साथ ले जाया करो। (सही बुख़ारी)

जो भी असबाब मुहय्या हों उन्हें इस यक़ीन के साथ इख़्तियार करना चाहिए कि करने वाली ज़ात सिर्फ़ अल्लाह तआला की है। हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम ने जब अपनी तवील बीमारी के बाद अल्लाह तआला से शिफ़ायाबी के लिए दुआ फ़रमायी तो अल्लाह तआला ने हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि वह अपने पैर को ज़मीन पर मारें। अब ग़ौर करने की बात है कि क्या एक शख़्स का ज़मीन पर पैर मारना उसकी बीसियों साल की बीमारी की शिफ़ायाबी का इलाज है? नहीं। लेकिन उन्होंने ने अल्लाह के हुक्म से यह कमज़ोर सबब इख़्तियार कियाजिसके ज़रिए अल्लाह तआला ने अपनी क़ुदरत से उनके ज़मीन पर पैर मारने से पानी का ऐसा चश्मा जारी कर दिया जिससे गुस्ल करने पर हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की बीसियों साल की बदन की मुतअद्दद बीमारियाँ ख़त्म हो गयीं। हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम के इस वाक़ये की तफ़सीलात के लिए सूरह अलअंबिया आयत 83व 84 और सूरह साद आयत 41 से 44 की तफ़सीर का मुतालआ करें। हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम के इस वाक़ये से हमें मुतअद्दद सबक़ मिले, दो अहम सबक़ यह हैं। पहला सबक़ यह है कि अल्लाह तआला अपने इरादे से भी हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम को शिफ़ा दे सकते थे मगर दुनिया के दारुल असबाब होने की वजह से हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि वह कुछ हरकत करें यानि कम अज़ कम अपने पैर को ज़मीन पर मारें। दूसरा सबक़ यह है कि जो भी असबाब मुहय्या हों उनको इस यक़ीन के साथ इख़्तियार करना चाहिए कि अल्लाह तआला की क़ुदरत और हुक्म से कमज़ोर असबाब के बावजूद किसी बड़ी से बड़ी चीज़ का भी वजूद हो सकता है।

हज़रत मरियम अलैहस्सलाम ने जब अल्लाह के हुक्म से बग़ैर बाप के हज़रत ईसा को जना तो उनके लिए हुक्मे खुदावंदी हुआ कि खजूर के तने को हिलायें यानि हरकत दें, उससे जब पकी हुई ताज़ा ख़जूरें झड़ें तो उनको खायें। अल्लाह तआला अपनी क़ुदरत से हज़रत मरियम अलैहस्सलाम को बग़ैर किसी सबब के भी खजूर खिला सकते थे लेकिन दुनिया के दारुल असबाब होने की वजह से हुक्म हुआ कि खजूर के तने को अपनी तरफ़ हिलाओ। चुनांचे हज़रत मरियम अलैहस्सलाम ने हुक्मे खुदावंदी की तामील में खजूर के तने को हरकत दी। खजूर का तना इतना मज़बूत होता है कि चंद ताक़तवर मर्द हज़रात भी उसे आसानी से नहीं हिला सकते हैं,लेकिन सिन्फे नाज़ुक ने इस कमज़ोर सबब को इख़्तियार किया तो अल्लाह तआला ने अपने हुक्म से सूखे हुए खजूर के दरख्त से हज़रत मरियम अलैहस्सलाम के लिए ताज़ा ख़जूरें यानि गिज़ा का इन्तेज़ाम कर दिया। इस वाक़ये से मालूम हुआ कि जो भी असबाब मुहय्या हों अल्लाह पर तवक्कुल करके उन्हें इख़्तियार करना चाहिए।

असबाब तो हमें इख़्तियार करने चाहिएं लेकिन हमारा भरोसा अल्लाह की ज़ात पर होना चाहिए कि वह असबाब के बग़ैर भी चीज़ को वजूद में ला सकता है और असबाब की मौजूदगी के बावजूद उसके हुक्म के बग़ैर कोई भी चीज़ वजूद में नहीं आ सकती। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को जलती हुई आग में डाला गया, जलाने के सारे असबाब मौजूद थे, मगर हुक्मे खुदावंदी हुआ कि आग हज़रत इब्राहिम के लिए सलामती बन जाये तो आग ने उन्हें कुछ भी नुक़सान नहीं पहुंचायाबल्कि वह आग जो दूसरों को जला देती हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिए ठंडी और सलामती बन गयी। इसी तरह हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की गर्दन पर ताक़त के साथ तेज़ छुरी चलायी गई, मगर छुरी भी काटने में अल्लाह के हुक्म की मोहताज होती है, अल्लाह ने उस छुरी को हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की गर्दन को ना काटने का हुक्म दे दिया था, लिहाज़ा काटने के असबाब की मौजूदगी के बावजूद छुरी हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की गर्दन नहीं काट सकी।

असबाब व जराये व वसाइल का इस्तेमाल करना मनशये शरीअत और हुक्मे इलाही है। हुजू़रे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने असबाब व वसाइल को इख़्तियार भी फ़रमाया और उसका हुक्म भी दिया ख़्वाह लड़ाई हो या कारोबार। हर काम में हस्बे इस्तताअत असबाब का इख़्तियार करना ज़रूरी है, लिहाज़ा जायज़ व हलाल तरीक़े पर असबाब व वसाइल इख्तियार करनाफिर अल्लाह की ज़ात पर कामिल यक़ीन करना तवक्कुल अललल्लाह की रूह है। अगर तवक्कुल अललल्लाह का मतलब यह होता कि सिर्फ़ अल्लाह की मदद व नुसरत पर यक़ीन करके बैठ जायें तो सबसे पहले क़यामत तक आने वाले इन्सानों व जिनों के नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस पर अमल करते, हालांकि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसा नहीं किया और ना क़ुरआने करीम में अल्लाह तआला ने ऐसा कोई हुक्म दिया बल्कि दुश्मनों के मुक़ाबले के लिए पहले पूरी तैयारी करने की ताकीद फ़रमायी।

जैसा कि अर्ज़ किया गया कि क़ुरआने करीम में अल्लाह पर तवक्कुल यानि भरोसा करने की बार-बार ताकीद की गयी है। इख़्तिसार के मद्देनज़र यहां सिर्फ़ चंद आयात का तर्जुमा पेश कर रहा हूँ। “तुम उस ज़ात पर भरोसा करो जो ज़िन्दा है, जिसे कभी मौत नहीं आयेगी’’ (सूरह अलफ़ुरक़ान 58) “जब तुम किसी काम के करने का अज़्म कर लो तो अल्लाह पर भरोसा करो’’ (सूरह आले इमरान 159) “जो अल्लाह पर भरोसा करता है अल्लाह उसके लिए काफ़ी हो जाता है’’ (सूरह अत्तलाक़ 3) “बेशक ईमान वाले वहीं हैं जब उनके सामने अल्लाह का ज़िक्र किया जाये तो उनके दिल नर्म पड़ जाते हैं और जब उन पर उसकी आयात की तिलावत की जाती है तो वह आयात उनके ईमान मे इज़ाफा कर देती हैं और वह अपने रब ही पर भरोसा करते हैं’’ (सूरह अन्फ़ाल3)

हमारे नबी ने भी मुताअद्दद मर्तबा अल्लाह पर तवक्कुल करने की तालीम दी है, फ़िलहाल सिर्फ़ एक हदीस पेश है: हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: अगर तुम अल्लाह पर तवक्कुल करते जैसे तवक्कुल का हक़ होता है तो अल्लाह तआला तुम को इस तरह रिज़्क़ इनायत फ़रमाते जैसा कि परिन्दों को देता है कि सुबह सवेरे खाली पेट निकलते और शाम को पेट भर कर वापस लौटते हैं। (तिर्मिज़ी) मुशाहिदा है कि परिंदों को भी रिज़्क़ हासिल करने के लिए अपने घोंसलों से निकलना पड़ता है, लेकिन रिज़्क़ देने वाली ज़ात सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह ही की है।

जब कुफ़्फ़ारे मक्का उहद की जंग से वापस चले गये तो रास्ते में उन्हें पछतावा हुआ कि हम जंग में ग़ालिब आ जाने के बावजूद ख़्वाह मख़्वाह वापस आ गये, अगर कुछ और ज़ोर लगाते तो तमाम मुसलमानों का ख़ात्मा हो सकता था। इस ख़्याल की वजह से उन्होंने मदीना मुनव्वरा की तरफ़ लौटने का इरादा किया। दूसरी तरफ़ हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके इरादा से बाख़बर होकर उहद के नुक़सानात की तलाफ़ी के लिए जंगे उहद के अगले दिन सुबह सवेरे सहाबा में यह एलाना फ़रमाया कि हम दुश्मन के तआकु़बमें जायेंगेऔर जो लोग जंगे उहद में शरीक थे सिर्फ़ वह हमारे साथ चलें। सहाबए किराम जंग की वजह से जख़्मी और बहुत ज़्यादा थके हुए थे, लेकिन उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दावत पर लब्बैक कहा। हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सहाबा के साथ मदीना मुनव्वरा से हमराउल असद के मक़ाम पर पहुंचे तो क़बीला ख़ुज़ाआ के एक शख़्स ने मुसलमानों के हौंसले का ख़ुद मुशाहिदा किया। बाद में उस शख़्स की मुलाक़ात कुफ़्फ़ारे मक्का के सरदार अबू सुफियान से हुई तो उसने मुसलमानों के हौसले के मुताअल्लिक़ बताया और मक्का मुकर्रमा वापस जाने का मशवरा दिया। उससे कुफ़्फ़ारे पर रोबतारी हुआ और वह वापस मक्का मुकर्रमा चले गये, मगर अबू सुफ़ियान ने एक शख़्स के ज़रिये मुसलमानों के लश्कर में यह ख़बर (झूठी)पहुंचा दी कि अबू सूफियान बहुत बड़ा लश्कर जमा कर चुका है और वह मुसलमानों का ख़ात्मा करने के लिए उन पर हमला करने वाला है। इस पर सहाबए किराम डरने के बज़ाये बोल उठेहस्बुनल्लाहु व नेमल वकील हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वह बेहतरीन कारसाज़ है। (सूरह आले इमरान 173) यही तवक्कुल है।

हज़रत जाबिर रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि हम एक ग़ज़वे में हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थे। जब हम एक घने सायेदार दरख़्त के पास आये तो उस दरख़्त को हमने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए छोड़ दिया। मुशरिकीन में से एक शख़्स आया और हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दरख़्त से लटकी हुई तलवार उसने ले ली और सूत कर कहने लगा: क्या तुम मुझसे डरते हो? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: नहीं। उसने कहा कि तुम्हें मुझसे कौन बचायेगा? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा: अल्लाह। इस पर तलवार उसके हाथ से गिर पड़ी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वह तलवार पकड़कर फ़रमाया: तुम्हें मुझसे कौन बचायेगा? उसने कहा तुम बेहतर तलवार पकड़ने वाले बन जाओ। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: क्या तू ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्ररसूलुल्लाह की गवाही देता है? उसने कहा नहीं, लेकिन मैं आपसे यह अहद करता हूँ कि ना मैं आपसे लडूँगा और ना मैं उन लोगों का साथ दूंगा जो आपसे लड़ते हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसका रास्ता छोड़ दिया। वह शख़्स अपने साथियो के पास गया और कहने लगा मैं ऐसे शख़्स के पास से आया हूँ जो लोगों में सबसे बेहतर है। (मुसनद अहमद, यह वाक़या अलफाज़ के फ़र्क़ के साथ बुख़ारी व मुस्लिम में भी मौजूद है) ख़लीफ़ए अव्वल हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि मैंने मुशरिकीन के क़दम देखे जब कि हम ग़ार(सौर) में थे। वह हमारे सरों के ऊपर खड़े थे। मैंने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! अगर इनमें से कोई अपने क़दमों की निचली जानिब देखे तो वह हमें देख ले। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: ऐ अबू बक्र! तेराउन दो के मुताअल्लिक़ क्या गुमान है कि अल्लाह जिनका तीसरा है। (बुख़ारी व मुस्लिम)

तवक्कुल अललल्लाह के हुसूल के लिए एक दुआ: हज़रत अनस रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजू़रे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: जो शख़्स घर से निकलते वक़्त यह दुआ पढ़े:“बिस्मिल्लाहि तवक्कलतु अलल्लाहि वला हउला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह, मैं अल्लाह का नाम लेकर घर से निकलता हूँ और अल्लाह पर भरोसा करता हूँऔर ना किसी भी काम की क़ुदरत मयस्सर आ सकती है ना क़ुव्वत मगर अल्लाह तआला की मदद से’’ तो उसके कह दिया जाता है तूने हिदायत पाई, तेरी किफ़ालत कर दी गयी, तुझे हर शर से बचा दिया गया और शैतान उससे दूर हट जाता है। (अबू दाऊद, तिर्मिज़ी)

Wo Mu’aziz They Zamane Me Musalman Hokar

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Wo Mu’aziz They Zamane Me
Musalman Ho kar,

Aur Tum Khwar Ho chuke hai
Tareek-e-QURAN Ho kar.

– Dr. Allama Iqbal

# Wajahat: Sahaba ko Allah ne uruj ata kiya Kyunki Nabi  (صلى الله عليه و آله وسلم) ki Mohabbat ki aur
unohne Qurano Ahele Bait aur Sunnat ko thaam liya.
.
aur aaj hum dardar ki thokre mehaz is liye kha rahe,
kyunki humne issWo-Muaziz-They-Zamane-Me-Musalman-Hokar Hidayat ko Nazar’andaz kar diya ,..

Allah Se Kare Door To Taalim Bhi Fitna: Dr. Allama Iqbal

Allah se Kare Door wo Talim bhi Fitna,
Imlaq bhi, Aulad bhi Jagir bhi Fitna.

Nahaq ke liye Uthey to Shamsheer bhi Fitna,
Shamsheer hi kya Nara-e-Taqbeer bhi Fitna.

– Dr. Allama Iqbal

✦ Wajahat:

Allah Se Door Karne Wali Tamam Cheeze Insan ke liye Fitna Hai, Chahe wo Gairjaruri Talim hi Kyu Na ho, Imlaq yani Khandani Rusuk hi kyu na ho ,. aur Chahe wo Aulaad hi ya jaydad hi kyu Na ho,

*Thik Usi Tarah Nahaq yaani Gairjaruri baat par Uthne Wali Shmsheer Yani Talwar bhi Fitna hai ,. aur Sirf Talwar hi Nahi balki Masoom Gairmuslimo ko Daraane ke liye Lagaya hua “Allhu Akbar” ka Nara bhi Fitna hai,..

♥ Allah Rabbul Izzat hum Sabhi ko Deen ki Sahi Samajh ata farmaye ! Ameen ,..Allah-se-Kare-Door-wo-Taalim-bhi-Fitna