मिश्कत ए हक़्क़ानिया जीवनी वारिस पाक-41

नूर करीम साहब का फकीरी वस्त्र धारण करना

नूर करीम साहब की घटना शिष्य होने से सम्बन्धित नहीं है। हाँ, इस समस्या पर प्रकाश डालती है कि यदि कोई पूज्य हाजी वारिस पाक से चेला होने के पश्चात् दुर्भाग्यवश यदि शिष्यता से इनकार कर जाय और आत्म ज्ञान प्राप्त करने हेतु किसी अन्य संतों से सम्पर्क स्थापित करता तो उसकी दशा उसके आशा के विपरीत हो जाती थी। काजी नूर करीम साहब किदवई बड़ा गांव, जिला- बाराबंकी में शिक्षार्थियों को शिक्षा देते थे। रोज़े, नमाज़ का नियमित अनुसरण करते थे। एक बार लोगों ने कहा मानिकपुर, जिला- प्रतापगढ़ में जो गद्दीधारी हैं बड़े यश वाले हैं। अतः नूर करीम साहब को उनसे फैज़ लेकर अर्थात् उनकी दानशीलता से लाभ उठाना चाहिए। ऐसा ही हुआ नूर करीम साहब यह कहकर कि आठ दस वर्ष हुए हाजी साहब का शिष्य हुए किन्तु अभी तक कुछ प्राप्त नहीं हुआ। मानिकपुर जाकर शिष्य हो गये और ईश्वर स्मरण तथा आराधना में संलग्न हो गये । हुजूर के बड़े गांव पधारने पर लोगों ने कहा कि मौलवी नूर करीम साहब अविश्वास के कारण मानिकपुर जाकर फकीरी सीख रहे हैं। यह सुनकर हाजी बाबा का आत्म सम्मान उद्वेलित हो उठा। बे धड़क आपके मुख से निकला ‘वह सड़ी सौदाई है (पागल और उनमत्त होना) उसको तमीज़ ही क्या है ?’ इतना कहना था कि मौलवी नूर करीम साहब उनमत्त हो गये और शरीर से वस्त्र उतार कर नंगे हो गये । कुछ दिनों में यह समाचार उनके घर तक भी पहुंचा। सभी लोगों ने यह समझ लिया कि सरकार वारिस पाक की फटकार का फल है। दो तीन माह इसी प्रकार व्यतीत हुए संयोग से हाजी साहब पुनः बड़े गाँव पधारे। नूर करीम साहब के हीत – मित्र व परिवार के लोगों ने हाजी साहब को घेरा मिन्नत समाजत, आग्रह अनुग्रह करके नूर करीम साहब की दशा सुधारने की प्रार्थना किया। हुजूर वारिस पाक ने बुलाने का आदेश दिया। लोग उनको झटपट लाये। उनकी दशा देखकर उनके हीत नात अपने-पराये सभी लोग रोने लगे। नूर करीम जब हुजूर वारिस पाक के सामने लाये गये तो उस समय जन्मजात नंगे थे। जूतों का हार गले में डाले गधे पर सवार थे। करूणा-सागर सरकार वारिस पाक ने घोषित किया इसको स्नान कराओ तत्काल नहलाये गये तथा हुजूर वारिस पाक ने अपना वस्त्र प्रदान किया। वस्त्र पहनते ही नूर करीम साहब की चेतना वापस आ गयी। तत्काल हाजी बाबा के चरणों में गिर पड़े और लज्जित हो रोने लगे। फिर आज से किदवाई साहब ने सरकार वारिस पाक का
साथ कभी नहीं छोड़ा। अपनी अविश्वासिता पर सदैव रोया करते थे। हाजी वारिस बाबा की आत्मशक्ति ने नूर करीम साहब में चार चांद लगा दिया। किदवाई की दशा ईश्वर विलीनता में परिवर्तित हो गई। रूप, रंग, उठना, बैठना प्रत्येक बातों में सरकार का अनुकरण पाया जाता था।

हाफिज अहमद शाह अकबराबादी की शिष्यता की घटना

हाफिज अहमद को इनके माता-पिता ने आठ वर्ष की उम्र में ही हाजी वारिस पाक की सेवा में प्रस्तुत कर दिया था। जिस समय उनको शिष्यता का ज्ञान भी नहीं था। अहमद शाह की सामाजिक शिक्षा बचपन से युवावस्था तक पूरी हुई। धार्मिक नियमों के पालन में अतिदृढ़ थे । ध्यान, परिधान इनके विचार फकीरी के विरोध में थे और इसको बुरा मानते थे। बहुधा कहा करते थे कि नासमझी की अवस्था में शिष्य होना विश्वासनीय नहीं है। इसी दशा में बहुत दिनों तक रहे। एकाएक उनकी । दशा में परिवर्तन हो गया और इनके मन में ईश्वर दर्शन की अभिलाषा उत्पन्न हुई फिर भी आप हुजूर पाक के प्रति अच्छा विचार नहीं रखते थे। पीराने पीर कलियर शरीफ, अजमेर शरीफ सभी पवित्र समाधियों पर ध्यान विभोर होकर बैठे किन्तु यही संकेत प्राप्त हुआ कि जो कुछ प्राप्त होने को होगा जिन्होंने तुम्हे पूर्व शिष्य किया है उन्हीं से होगा। सारांश यह है कि हुजूर वारिस पाक से बेफ्रिक होकर जब तक प्रयत्नशील रहे एक कण के बराबर भी सफलता प्राप्त नहीं हुई। पुनः पूज्य हाजी बाबा की सेवा में उपस्थित होकर क्षमा याचना किया और आज आज़ाद फकीर के नाम से मशहूर हैं। इनकी जो दशा हुई वह सभी लोग जानते हैं। इनकी गिनती हुजूर के फिदाईयों में होती है। सरकारी आस्ताना के निकट इनकी समाधि भवन है।

मोहिउद्दीन हाजी वारिस पाक के प्रेम प्रभाव से कोई भी वंचित नहीं रहता था और न अपने शिष्यता में आये हुए किसी व्यक्ति को आप कभी छोड़ते थे। उपयुक्त बैरिस्टर महोदय की घटना इसी प्रकार की थी। सैय्यद मोहिउद्दीन साहब श्री। मौलाना अब्दुल गनी साहब अनुवादक ‘तबकातुल कुबरा’ के सुपुत्र थे । इनकी शिष्यता की घटना मौलाना स्वयं लिखते हैं। जब इनकी अवस्था छः वर्ष की थी। ये अपनी माता और दादी साहिबा के साथ हाजी बाबा की सेवा में उपस्थित हुए थे। हुजूर ने इनकी पीठ पर हाथ फेरा दिया था जिससे जवान होने पर स्वयं हुजूर वारिस पाक के शिष्य हो गये। जब वह अलीगढ़ में पढ़ते थे तो अपने पिता के साथ आये और ईद के दिन प्रात: शिष्य हो गये। पुन: मैट्रिक पास होने के बाद दर्शनार्थ सरकार
से मिले। पूज्य हाजी बाबा ने हाजी अवघट शाह से पूछा ‘कौन है ?’ उन्होंने अर्ज किया कि सैय्यद अब्दुल गनी के पुत्र सैय्यद मोहिउद्दीन हैं। फिर पूछा गया ‘क्यों आये हैं ?’ लोगों ने कहा परीक्षा देकर आये हैं। यह सुनकर हाजी बाबा ने कहा ‘पास हो गये।’ फिर कहा गया कि अभी परीक्षा देकर आये हैं। आपने कहा ‘तुम क्या जानो ? यह पास हो गये। अतः वह पास हुए। जब सैय्यद मोहिउद्दीन ने तीसरी बार हुजूर का दर्शन किया तो हुजूर ने पुनः कहा ‘अभी तो और पढ़ोगे।’ अतः ये बी० ए० करके इंग्लैण्ड गये और बैरिस्टर की डिग्री लेकर भारत वापस लौटे। पाश्चात्य शिक्षा और सभ्यता के होते हुए भी हुजूर वारिस पाक का प्रेम आपके हृदय में भरा हुआ था। यह चमत्कार पूज्य हाजी वारिस पाक का था कि जिसके ऊपर आपकी दृष्टि पड़ जाती थी वह अपनी कामना अवश्य पूरी करता था और सरकार वारिस पाक को हो जाता था ।

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