
हज़रत इमाम अबु हनीफा अफराद आले नबुव्वत के एहतराम
में एक सैयद जादे की ताज़ीम के लिए आपना बार-बार खड़ा होना खड़ा बाईस सआदत समझते। (1) एक दिन हुज़ूर ने हज़रते अब्बास से फ़रमाया ऐ आना चुनान्चे वह चचा! कल सुबह अपने बच्चों के साथ मेरे पास सब आए और हुजूर ने इन सब को अपनी चादर मुबारक में ढाँप लिया और फरमाया यह मेरे चचा हैं जो बमंजिला बाप हैं और यह मेरी एहल है और खुदा इनको आग से इस तरह छुपाए रख जिस तरह मैंने इनको अपनी चादर में छुपा लिया है इस पर घर के दर व दीवार ने आमीन आमीन कहा। (शिफा शरीफ़र जुज् सानी स. 31 इलमिया बैरूत )
( 2 ) हुजुर हज़रते उसामा बिन जैद, और हज़रते हसन के हाथ पकड़ते और दुआ मांगते ऐ खुदा मैं इन दोनों को महबूब रखता हूँ तू भी इन्हें महबूब रख । (शिफ़ा शरीफ) की ताज़ीम व तौकीर में से
( 3 ) शिफ़ा शरीफ में है कि हुजूर यह भी हैं कि आपकी आल व औलाद और अज़वाज पाक उम्महातुल मोमिनीन की ताज़ीम व तोकीर की जाए, क्योंकि नबी करीमने इसकी तरगीब व तलकीन फ़रमाई है, और इसी पर सल्फ़ सालेहीन का अमल है।
सैयदना सिद्दीक अकबर ने फ़रमाया कि हुज़ूर की मुहब्बत व तकरीम आपकी एहले बैत में करो। ( 4 ) हज़रते जैद इब्ने अरकम से मरवी है कि रसूलुल्लाह ने फरमाया मैं तुम को अपने एहले बैत के बारे में अल्लाह की कसम देता हूँ। यह तीन मर्तबा फ़रमाया (यानी एहले बैत की ताज़ीम व तौकीर करो) (शिफ़ा शरीफ़ जुज सानी स. 30 इलमिया बैरूत )
5)हुज़ूरने फ़रमाया: “आले नबी की मारफत दोज़ख़ से निजात और आले नबी से मुहब्बत पुल-सिरात पर गुज़रने में आसानी और आले नबी की विलायत का इकरार अज़ाबे इलाही से हिफाजत है। ” (शिफा शरीफ)
और फ़रमाया कुरैश को आगे बढ़ाओ तुम उनसे आगे न बढ़ो। 6)”हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास नबी अकरम ने हज़रत फातिमा से रिवायत है कि हुज़ूर से फ़रमाया: अल्लाह
तआला तुम्हें और तुम्हारी औलाद को आग का अज़ाब नहीं देगा।” इस हदीस को इमाम तिबरानी ने बयान किया।
( 7 ) “हज़रत अली बिन अबी तालीब बयान करते हैं कि हुज़ूर नबी अकरम ने फ़रमाया: ऐ अली! बेशक अल्लाह तआला ने तुझे
और तेरी औलाद को और तेरे घर वालों को
और तेरे मददगारों को और तेरे मददगारों के चाहने वाले को बख़्श दिया है पस तुझे यह खुशखबरी मुबारक हो।” इस हदीस को इमाम देलमी ने रिवायत किया है।
( 8 ) हुज़ूर ने फ़रमाया जिसने कुरैश की बेइज्जती की अल्लाह तआला उसकी बेइज्जती करे। (शिफा शरीफ)
(9) मुस्लिम शरीफ़ अब्दुल मुत्तलिब इब्ने रबीआ से रिवायत की: यह सदके लोगों के मेल हैं यह सदके न मुहम्मद को की औलाद के लिए। हलाल हैं न हुज़ूर
(10) हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खान नईमी फरमाते हैं, यह बरकतें सैयद हज़रात को सिर्फ इसलिए हासिल हैं कि वह नबी करीम की नसल शरीफ़ से हैं गैर सैयद ख़्वाह कितना ही परहेज़गार हो, उसे यह खूबियाँ हासिल नहीं हो सकतीं, मालूम हुआ कि खानदान मुस्तुफ़ा अशरफ है।” (अल्कलामुल मक्बूल स. 8)