लड़के की मां

लड़के की मां

हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के ज़माने में दो औरतों ने बच्चे जने। रात अंधेरी थी। एक के यहां लड़का पैदा हुआ और एक के यहां लड़की। दोनों में झगड़ा इस बात का पैदा हुआ कि हर एक कहती है कि मैंने लड़का जना है। आख़िरकार दोनों हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास लायी गयीं। हर एक उनमें से यह कहती थी कि लड़के की मां मैं हूं। हज़रत अली ने फ्रमाया कि तुम दोनों थोड़ा थोड़ा दूध छातियों से निकालकर दो बर्तनों में रखो। चुनांचे ऐसा ही किया गया। आपने दोनों दूधों को तौला तो एक वज़नी उतरा । फ्रमायाः जिसका दूध भारी है, लड़का उसी का है। यह फैसला सुनकर लोगों ने पूछा कि आपने यह मसअला कहां से निकाला । फ्रमायाः खुदा ने मर्द को हर चीज़ में फजीलत दी है। हत्ता कि गिज़ा में भी। बस मैंने इसी हक़ीक़त के पेशे नज़र सोचा था कि लड़के की मां का दूध वजनी होगा। ( नुज़हतुल मजालिस जिल्द २, सफा ३५५)

सबक : इस किस्म के मसअले को हल करना इल्मे दीन ही की बदौलत हो सकता है। कुरआन पाक का सही इल्म रखने वाला कुरआन पाक से. हर मुश्किल का हल पा लेता है।


मज़ारे अनवर पर

मज़ारे अनवर पर

यज़ीद को जब इस बात का पता चला कि इमाम हुसैन ने मेरी बैअत नहीं की तो वह भड़क उठा और उसने आमिले मदीना को हुक्म भेजा कि इमाम हुसैन को मेरी बैअत पर मजबूर करो वरना उसका सर काटकर मेरे पास भेज दो। हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को जब इस यज़ीदी हुक्म का पता चला तो आपने मदीना मुनव्वरा की सुकूनत तर्क फरमाकर मक्का मुअज्ज़मा चले जाने का इरादा कर लिया। मदीना मुनव्वरा से रवानगी से पहले रात को नाना जान हुजूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मज़ारे अनवर पर हाज़िर हुए और रो रोकर अर्जे हाल करने लगे। फिर रौज़ा-ए-अनवर से लिपटकर वहीं सो गये । ख़्वाब में देखा कि नाना जान तशरीफ़ लाये हैं। आपने हुसैन को चूमा और सीने अकदस से लगा लिया और फ़रमाया: बेटा हुसैन अनकरीब जालिम तुझे करबला में भूखा प्यासा शहीद कर देंगे | तेरे मां-बाप और भाई तेरे इंतज़ार में हैं और बहिश्त तेरे लिये सजाई जा रही है। उसमें ऐसे दर्जाते आलिया हैं जो शहीद हुए बगैर तुझे नहीं मिल सकते। जाओ बेटा सब्र व शुक्र से जामे शहादत पीकर मेरे पास आ जाओ। हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु यह ख़्वाब देखकर घर आये । अहले बैत को जमा करके यह ख़्वाब सुनाया और मदीने से मक्का जाने का पक्का इरादा कर लिया और फिर अपने बिरादरे बुजुर्ग हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के मज़ार पर हाज़िर हुए और कलिमाते रुख़सत ज़बान पर लाये और फिर मां की क़ब्रे अनवर पर हाज़िर हुए और अर्ज़ किया ऐ अम्मा जान यह नाजों का पाला तुम्हारा हुसैन आज तुमसे जुदा होने आया है और आख़री सलाम अर्ज करता है। कब्रे अनवर से आवाज़ आयीः वअलैकुम अस्सलाम ऐ मज़लूम (जिस पर जुल्म हो) आप वहां कुछ देर रोते रहे और फिर वापस तशरीफ़ लाये और मक्का मुअज्ज़मा को रवाना हो गये।
(तज़किरा – ए – हुसैन सफा २७)

सबक़ : हज़रत इमाम की शहादत का खुद हज़रत इमाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को इल्म था । यह आप ही की शान है कि इल्म के बावजूद ज़र्रा बराबर भी आपके कदम नहीं डगमगाते और शौके शहादत में कमी नहीं आती। जज़्बए जां निसारी और भी ज़्यादा ही होता है। हज़रत इमाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपनी सीरत पाक से बता दिया कि तालिबे रज़ाए हक़ मौला की मर्जी पर फ़िदा होता है। इसी में उसके दिल का चैन और उसकी हक़ीक़ी तसल्ली है। कभी वहशत व परेशानी उसके पास नहीं फटकती बल्कि वह इंतज़ार की घड़ियां शौक के साथ गुज़ारता है और वक्त मुक़र्ररा का बेचैनी से इंतज़ार करता है। O

Short intro of Hazrat Shaikh Shahabuddin Umar Suhrawardi Rehmatullah alaih.

*Hazrat Shaikh Shahabuddin Umar Suhrawardi RA* was born in Suhraward, Iran (1145CE). His father name was Hazrat Muhammad Bin Abdullah al-Bakari. The lineage of his ancestry traces its origin from the first caliph of Islam named Hazrat Abu Bakr Siddique. Hazrat Shaikh Shahabuddin Suhrawardi was the earliest preacher of Suhrawardi order in the middle east and Central Asia. He learned the teachings of spirituality and mysticism under the guidance of his uncle Hazrat Abul Najib Abdul Qaahir Suhrawardi who later on appointed him as his main disciple. Hazrat Shaikh Shahabuddin Suhrawardi also had learned the teachings of Sufism from the great Hazrat Shaikh Abdul Qadir Jilani popularly known as Gaus-e Azam.

Hazrat Shaikh Shahabuddin Suhrawardi is credited for erecting three hostels (Ribat) during his life time named Ribat-e-Nasri, Ribat-e-Bistami, Ribat-e-Mamoonia. One of the finest work of the saint named “Awaarif-ul-Maarif” is still present in the modern day.

Hazrat Shaikh Shahabuddin Suhrawardi appointed numerous disciples. Few of the famous disciples of the saint are: Hazrat Bahauddin Zakariya Multani (Multan, Pakistan), Hazrat Nooruddin Mubarak Ghaznavi (Mehrauli, Delhi), Hazrat Kamaluddin Ahmad Yahya Maneri (Maner, Bihar), Shamsul Arifeen Hazrat Shah Turkman Bayabani (Shahjahanabad, Delhi) and many more.

Hazrat Shaikh Shahabuddin Suhrawardi left this temporary abode on 1 Muharram 632Hijri (1234CE). He lies buried in Baghdad, the capital city of Iraq.