
अंगूठी का नक्श
एक मर्तबा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को अपनी अंगूठी मुबारक दी और फरमाया कि इस पर ला इला ह इल्लल्लाह लिखवा लाओ। सिद्दीके अकबर गये और अंगूठी पर ला इला ह इल्लल्लाह लिखवा लाये । जब अंगूठी हुजूर की ख़िदमत में पेश की तो उस पर लिखा था ला इला ह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्ररसूलुल्लाह और उसके साथ ही सिद्दीके अकबर का अपना नाम भी लिखा था। हुजूर ने दर्याप्त फ़रमायाः अबू-बक्र! हमने तो ला इला ह इल्लल्लाह लिखवाने को कहा था मगर तुम हमारा नाम भी और अपना नाम भी लिखवा लाये। अर्ज कियाः हुजूर! मेरा दिल न माना था कि खुदा के नाम के साथ आपका नाम न हो। यह आपका नाम तो मैंने ही लिखवाया। मगर मेरा नाम । यह तो यहां तक आते-आते ही लिखा गया है वरना मैंने हरगिज नहीं लिखवाया। इतने में जिब्रईल अमीन हाज़िर हुए और अर्ज़ कियाः या रसूलल्लाह! ख़ुदा ने फ़रमाया है कि सिद्दीक़ इस काम पर राज़ी न हुए कि आपका नाम हमारे नाम से जुदा करें सिद्दीक ने आपका नाम हमारे नाम के साथ लिखवाया। हमने सिद्दीक का नाम आपके नाम के साथ लिखा दिया।
(तफ़सीरे कबीर जिल्द १, सफा ६१) सबक : सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सच्चे रफ़ीक हैं। हर जगह हुजूर के साथ हैं। अल्लाह तआला खुद इस रिफ़ाक़त का शाहिद है।

