



ज़हरा बाग़े नबूवत की कली हैं
हसनैन हैं फूल तो गुलदान अली हैं
ज़हरा का नही सानी दुनिया मे कोई भी
बेशक ये क़ौल है रब का, यही क़ौले नबी है
पाकी का बयाँ उनके दुनिया क्या करेगी
दुनिया को पाकी उनके सदक़े मे मिली है
मरियम तो ईसा की निसबत से हैं अफ़ज़ल
कुबरा तो इस्लाम के ख़ातिर हैं मुकम्मल
ज़हरा से अफ़ज़ल न कोई और हुईं हैं
ख़ातूने जन्नत तो ज़हरा ही बनी हैं
अमीर सैय्यद क़ुतुबउद्दीन क़ुत्बी
(आक़िब)
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