
अंधेरा किसी को नूर कह दे तो आम बात है लेकिन सूरज किसी को नूर कह दे तो क्या बात हैं . हम किसी को आबिद कहे तो आम बात है लेकिन ताबेईन और सहाबा में से कोई किसी को जैनउल आबेदीन कह दे तो क्या बात है . इमाम जैनुल आबेदीन ने टाइटल यह नही के अपने शागिरदो से लिया हो बल्कि उस दौर के सच्चे लोगो ने आप को सज्जाद का टाइटल अता फरमाया . हजरते ताऊस फरमाते है एक रात जैनउल आबेदीन अलैह सलाम को देखा नवाफिल अदा किये जारहे है फिर आप सजदे में चले गए मैं देखता रहा इन लोगो की जियारत करना इनकी नमाज को देखना भी इबादत है . हजरत ताऊस फरमाते है मै आले रसूल को देखता रहा आप सजदे में चले गए , और आप सजदे में क्या पढ़ते -
” या अल्लाह अब्दुका बी फिनाइका – मिस्कीनुका बी फिनाइका – फ़कीरुका बी फिनाइका – साईलुका बी फिनाइका ” यानी तेरा गुलाम तेरे दरबार मे हाजिर है मिस्कीन तेरे दरबार मे हाजिर है तेरे दर का साइल तेरे दर पर हाजिर है तेरे दर का फिकीर तेरे दर पर हाजिर है . हजरते ताऊस फरमाते है ये जुमले जब मैंने इमाम से सुने , जब भी मुझे मेरी जिंदगी में मुश्किलात आते तो मैं सर सजदे में रख कर इन्ही को पढ़ा करता और अल्लाह तआला मेरी मुश्किलों को दूर फरमाता . दूसरा जो नाम था टाइटल मगर नाम बन गया . #जैन_उल_आबेदीन . जैन जीनत को कहते है और जेवर के माना में भी होता है . #तो_लफ़जी_तर्जुमा_इबादत_करने_वाले_की_जीनत_इबादत_करने_वालो_का_जेवर . ये लक़ब आप को खुशु ओ खुजु की बदौलत मिला , आप की इबादत ऐसी होती थी कि उस दौर के इबादत गुजार हैरान रह जाते थे . जब उस दौर के इबादत गुजार बंदों ने आप को जैन उल आबिदीन कहा तो इमाम की नमाज का आलम क्या होगा . जब आप नमाज के लिए वजू करते तो आप का रंग जार्ड हो जाता कपकपी तारी हो जाती तो किसी ने पूछ लिया इमाम ऐसा क्यो होता है
तो आप ने फरमाया – " नमाज में आदमी किस की बारगाह में खड़ा होता है तुम जानते हो जो सारी कायनात का मालिक है , जो लोग एक बादशाह के सामने जाते हो तो कांप जाते है #मैं_तो_उसकी_बारगाह_में_जा_रहा_हु_जो_सारी_कायनात_का_मालिक_है_और_सारे_बादशाहों_का_खालिक_है . " इमाम के नमाज में खुशु ओ खुजु क्यो ना हो जिसने इमाम हसन हुसेन अलैह सलाम के पीछे नमाज अदा की तो उनकी नामाजो में खुशु ओ खुजु क्यो नही होगा ..
अल्लाहू अकबर .

