एक जमात है जो हमारे नौजवानों के दिल में भर रही है की ये तफ्जी़ली हैं, राफजी़ हैं, सहाबा को नहीं मानते, उम्मत के गुमराह हो रहे बच्चों से कह रहा हूँ –
मेरे बेटे, सहाबा की इज्जत तो मैं भी करता हूँ लेकिन सहाबा हैं कौन?
सिफ्फी़न में, जमल में, नहरवान में जंग चल रही है, इस तरफ़ भी वो हैं जिन्होंने रसूलुल्लाह के दौर में कलमा पढा़, उस तरफ़ भी वो हैं जिन्होंने रसूलुल्लाह के दौर में कलमा पढा़ और दोनों एक दूसरे से ना सिर्फ़ लड़ रहे हैं बल्कि एक-दूसरे को जान से मार रहे हैं।
कभी इस जमात का आदमी, उस जमात के आदमी को कत्ल कर रहा है, कभी उस जमात का आदमी, इस जमात के आदमी को कत्ल कर रहा है।
और तुम्हारे मेयार के मुताबिक, कातिल भी सहाबा है और मक़्तूल भी सहाबा है और दोनों जमात के लोग अल्लाह की राह में शहीद हो रहे हैं।
क्या तुम्हें खुद अपना अकी़दा, अजीब सा नहीं लगता?
सुलह ए हसन हो रही है, वो लोग यहाँ भी मौजूद हैं जिन्होंने रसूलुल्लाह के दौर में कलमा पढा़, कुछ हजा़र लोगों का कहना है, हम हसन अलैहिस्सलाम की तरफ़ हैं, कुछ सामने वाले की बैयत कर रहे हैं और आपके मेयार के मुताबिक सारे सहाबा हैं।
हज़रत हसन अलैहिस्सलाम की सुलह तोड़ दी गई, कमाल की बात ये की आपकी फिक़्र में, हसन अलैहिस्सलाम भी सहाबा हैं और सुलह तोड़ने वाला भी सहाबा है।
हज़रत हुसैन अलैहिस्सलाम का हक़ खा लिया, लेकिन ताज्जुब ये की आपके मुताबिक, हक़ खाने वाला भी सहाबा है।
हज़रत हुसैन से बैत माँगी, आपने इंकार कर दिया लेकिन फिर ताज्जुब ये की हुसैन अलैहिस्सलाम के पीछे खडे़ होने वाले भी सहाबा और औलाद ए सहाबा हैं और हुसैन अलैहिस्सलाम को कत्ल करने वाले, शहीद करने वाले भी, सहाबा और औलाद ए सहाबा हैं।
क्या आपको खुद अजीब नहीं लगता?
कातिल भी रजि़अल्लाह, मक़्तूल भी रजि़अल्लाह?
अम्मार भी रजि़अल्लाह, बागी जमात का सरदार भी रजि़अल्लाह?
अगर तुमने पहले ही हक़ कहा होता, तो आज तुम्हारी औलादें हक़ और बातिल में फर्क़ कर पातीं।
तुमने हक़ को भी हक़ कहा और बातिल को भी हक़ साबित करने की कोशिश की, अब हालात ये हो गए हैं की तुम्हें हक़, बातिल और बातिल, हक़ नज़र आने लगा है।
हो सके तो सँभल जाओ, की अभी मौका है, वापिस लौटने का
आओ, लौटो, कुरआन और अहलेबैत अलैहिस्सलाम की तरफ़ …..

