
Gham e Hussain Alaihissalam mein Kaynat ki Azaadari

अहलेबैयत ए पाक जब यज़ीद के दरबार मे पोहचे तो यज़ीद पलित ने इमाम ज़ैनुलआबेदीन रदियल्लाहो तआला अन्हो से गुश्ताखि भरे अंदाज़ में कहने लगा के अगर तेरे वालिद ने बैयत कर ली होती तो ये सब न होता ये सुनकर इमाम ज़ैनुल आबेदीन रदियल्लाहो अन्हो ने क़ुरआने पाक की आयत पढ़ी जिसका मफ़हूम ये था के “जो कुछ हमे मुसीबत पोहचती है वो हमारी तकदीर में।लिखी जाती है” सुनकर यज़ीद खामोश हो गया उस वक़्त इमाम ज़ैनुलआबेदीन रदियल्लाहो अन्हो के पीछे शहज़ादी सकीना इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम की लख्ते जिगर खड़ी हुई थी
यज़ीद ने बीबी सकीना से पूछा अय बच्ची तू कौन है अपना तआरुफ़ पेश कर बीबी सकीना ने कोई जवाब न दिया पलितने वापस पूछा बीबी ने जवाब न दिया फिर यज़ीद ने सख्त अंदाज़ में कहा क्या तू गूंगी है (सुम्मामाजल्लाह) जवाब क्यों नही देती जनाबे सकीनाने कुछ कहना चाहा लेकिन कह नही पाई हज़रते ज़ैनुल आबेदीन रदियल्लाहो अन्हो ने तडप कर कहा बदबख्त देख नही रहा सकीना के गले मे रस्सी जकड़के रक्खी गई है इस वजह से वो आवाज़ निकाल नही पा रही सकीनाकी रस्सी को ढीला कर ताके तेरा जवाब दे शके यज़ीदने सिपाहिको हुक्म दिया के बच्ची के गलेकी रस्सी को ढीली करदे सिपाही जैसे करीब पोहचा बीबी सकीना दौड़कर इमाम।ज़ैनुलआबेदीन के करीब चली गई यज़ीद ने कहा भाग क्यों रही है इमामे पाकने कहा के बदबख्त ये मुहम्मद के घराने की शहज़ादी है आजतक कोई गेर मेहरमने छुआ नही है
यज़ीद ने कहा के तू इसकी रस्सी को ढीला कर ये सुनकर इमामे पाकने फ़रमाया के मेरे नाना हुज़ूर ﷺ यहां होते तो हमारे गले मे रस्सियां और जंजीरे कभी बर्दास्त न करते यज़ीद ने ये सुनकर इमामे सज्जाद के हाथों और पैरों की जंजीरों को खुलवा दिया और आपने बीबी सकीनाके गले की रस्सी को छोड़ा उशी वक़्त कुछ मनाज़िर के बाद
यज़ीद बीबी ज़ैनबे कुबरा से मुखातिब होकर कुरआनकी आयत पड़ता है “वतु इज़्ज़ुमन तशा वतु ज़िल्लुमनतशा” कहने लगा देखा अल्लाह जिसको चाहे इज़्ज़त देता है जिसको चाहे रुसवा करता है ये सुनकर बीबी ज़ैनब ने कहा के बदबख्त आयत पूरी तो पढ़ आधी आयत पढ़ता है “बियदिल खैरु” कब पढ़ेगा अल्लाह फरमाता है के खैर उशी के दस्ते कुदरत में है खुदाकि कसम वो खैरका दस्ते कुदरत कौन है वो
हम अहलेबैयत है अल्लाह हमारे ज़रिये इज़्ज़त देता है हमारे ज़रिये ज़िल्लत देता है
यज़ीद ने जब ये सुना तो लरज़ गया कहने लगा वाकई तू अली की बेटी है गुफ़्तगू और कलामी में तुझसे नही जीत सकता तू अली की बेटी है।
यज़ीद तुझपर 👹 और कयामत तक आने वाले तेरे चेलो 👺👺 पर बेशुमार लानत हो।
यज़ीद की मक्कारी इमामे सज्जाद की तीसरी शर्त से साबित हो जाती है जब अहलेबैयत का काफला यज़ीद के दरबारमे आया उसके बाद अहलेबैयत और यज़ीद और यज़ीद के बेटो से काफी तवील बहस हुई इसके बाद जब यज़ीद ने देखा के पल्ला अहलेबैयतकी तरफ भारी हो रहा है तो यज़ीद ने ऐलान कर दिया के शहीदों के सर को 3 दिन तक दमिश्क के बाजार में घुमाया जाए और बाद में महल के दरवाजे पर लटका दिए जाएं ताके लोगोके दिलो में मेरी दहसत बैठ जाये कोई मेरी तरफ आवाज़ उठाने की हिम्मत न करे आखिर 3 दिन तक इस मलऊन के हुक्म से बाज़ारो में शोहदा के सरो को घुमाया गया और फिर महल के दरवाज़ों और छतों पर लटका दिए गए (सुम्मामाज़अल्लाह अस्तगफिरूल्लाह) इसके बाद पलित ने इमामे सज्जाद को बुलाया और कहा के देखो मैं आपके साथ भलाई करना चाहता हु बोलो कुछ ख्वाहिश है इमामे सज्जाद ने फ़रमाया के कल जमुआ है और कल खुतबा देने की इजाज़त मुझे दी जाए यज़ीद ने कुबूल किया वो खुतबा दुनिया भर में मशहूर है इमामे सज्जाद ने ऐसा खुतबा दिया के लोग सर पर मिट्टी डालकर रोने लगे जब यज़ीद ने लोगोका रोना देखा तो मोअज़्ज़िन को अज़ान कहने के लिए कहा मोअज़्ज़िन अज़ान देने लगा इमामे सज्जाद ने उसे खुदा और रसूल के वास्ते दिए लेकिन वो मोअज़्ज़िन नही रुका आखिर अशहदुअन्ना मुहम्मदुर्रसुलुल्लाह पे पोहचा तो इमामे ज़ैनुल आबेदीन रदियल्लाहो अन्हो कहने लगे बताओ अज़ान में नाम मेरे नाना का आता है या तेरे और बाद में यज़ीद ज़बरदस्ती इक़ामत की अज़ान देने लगा इमामे सज्जाद वही मिम्बर पर बैठे रहे उनके पीछे नमाज़ न पढ़ी जब नमाज़ हो गई तो इमामे सज्जाद को वापस दरबार मे बुलाया और यज़ीद कहने लगा मैं आपके साथ भलाई करना चाहता हु बोलो कुछ ख्वाहिश है ? इमामे सज्जाद ने 3 शर्त रखी और कहने लगे मेरी 3 शर्त है इसको पूरी कर 1- मेरे दादी सैयदा के काएनात खातूने जन्नतकी चादर मुबारक जो उनको रसूलल्लाह ﷺ ने जहेज़ में दी थी जिसपे 70 पेवन्द लगे थे (एक रिवायत में 72 है) हम मदीने से लाये थे जब हमारे खेमे सिपाही लूटने लगे तो एक शख्स ने वो चादर ए पाक ले गया था और वो हमारे साथ यहां दमिश्क आया हुवा है वो चादर मुझे चाहिए। 2-शहीदों के सर मेरे हवाले किये जायें ताके इनकी तदफिन कर सकू 3-मेरे बाबा के कातिलों को मेरे हवाले किये जायें ताके मैं अपने हाथों से उनकी गर्दने उड़ा दु जब तीसरी शर्त इस पलित ने सुनी तो मुकर गया और कहने लगा आपकी 2 शर्त मंज़ूर है तीसरी शर्त आपकी पूरी नही हो सकती.. ये वाकिये बता रहे है के यज़ीद कातिले हुसैन है यज़ीद मरदूद 👹 तुझपर और तेरे चेलो 👺👺 पर बेशुमार हज़ारबार लानत हो।
करबला का ज़िक़्र अपने घरों में क्यो? ताके हमारे मरे हुवे ज़मीर जिंदा हो सके ज़रूर पढ़े आपका ही भला होगा?
करबला महज एक जंग का मैदान ही नही था यहां रिश्तों की भी बुनियाद अल्लाह रब्बुल इज्जत अपनी मख़लूक़ को सीखा रहा था ! सोचिये आज हमारे घरों में रिश्ते जिस तरह से खोखले होते जा रहे है इसकी एक वजह ये भी है के हमे मौलवियों ने हमेशा ज़िक्रे अहलेबैत से दूर रखा है और इसका बहोत बढ़ा खामियाजा आज उम्मत को भुगतना पड़ रहा है ! करबला में क्या हुआ था ? इस सवाल के जवाब में हम जंग के हालात बयान कर देते है लेकिन आज के समाज को जो जरूरत है वो बयान नही किया जाता है ! असल मे करबला का बयान सिर्फ मस्जिदों महफ़िलो और मजलिसों की मोहताज हो गई है जबकि इसकी सबसे ज्यादा जरूरत हमारे घरों में है इसका जवाब नीचे देने जा रहा हु
करबला में एक भतीजा अपने चाचा पर कुर्बान हो गया बेटे बाप पर कुरबान हो गए भांजे मामू पर अपनी जाने निछावर कर देते है सौतेले भाईयो ने अपनी गर्दन कटवा दी बहन ने भाई के लिए अपने बच्चे निछावर कर दिए बिना हिचकिचाते हुवे, बाप बेटो के लिए आँसू की बरसात कर देता है छोटे छोटे मासूम अपने बढ़ो के लिए जान दे देते है दोस्त अपने दोस्तों से पहले कुर्बान होने की गुज़रिशे करते है इतनी शिद्दत की प्यास में चाचा अपनी भतीजी के लिए पानी लेने का खतरा उठाते है जबकि उनके खुद के मासूम प्यासे है गुलाम अपने आकाओं के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे और उनके मालिक उनके जनाजे पर जार जार रोते है, मा अपने बच्चो को अपने वक़्त के इमाम पे कुर्बान करने अपना फ़र्ज़ समझते है, करबला हमे दर्स देती है के अगर ज़ालिम हुक़्मरान तुम्हारे सामने आजाए तोह अपना सर ज़ालिम के सामने ना झुकाव भले ही अपनी नस्ले कुर्बान करना पढ़े, मुनाफ़िक़ों को बेनकाब करने का नाम है करबला, रसुल अल्लाह और आले रसूल के कातिलों को बेनकाब करने का नाम है करबला, असली इस्लाम मर चुका था उसको हयात देने का नाम है करबला, झूठो को आइना दिखाने का नाम है करबला, जब भी इस्लाम पे मुसीबत आए खुद को अपने औलादों को कुर्बान करके इस्लाम को बचाने का नाम है करबला, दोस्तो ये है कर्बला जो आज के दौर में हमारे घरों में गूंजना चाहिए! आज इस मतलबी दुनिया मे सगे का सगा नही हो रहा है हर घर मे हिस्से बटवारे की लड़ाई हो रही कोई किसी का नही सुन रहा है सोचिये हमारे इमाम हमे क्या देकर गए है
कर्बला यू तो सालभर हमारे घरों में सुनाई जाना चाहिए कम से कम मुहर्रम में 10 दिनों तक इसका जिक्र हमारे पूरे परिवार ने बैठकर सुनना चाहिए, मुसलमानों अगर आज करबला हमारे ज़हनोस मित गई तोह समझ जाओ मुसलमान तू भी मिट गया
लिखने में कोई गलती हुई तो माफ कर इस पर गौर जरूर करे
हुसैन सिर्फ एक नाम नहीं,
हुसैन ज़िंदगी जीने का तरीका है।
رضی اللہ تعالٰی عنہ
Mai hamesha kehta aaya hun Quran ki Roshani me Sayyeduna Maula Ali Alaihissalam ko Allah Ta’ala ne Waqt, Time pe authority ata farmayi thi. Aap Alaihissalam Waqt me Malik hain! Is baat ka aur ek proof Karbala me bhi milta hai. Jab Maula-e-Kainat Jung-e-Siffin keliyeb tashreef lejarahe they tab raste Karbala ka maidan aaya aur Aapne waha padaw dalne ka Hukm diya aur fir waha ki mitti ko sungha aur Zor se farmaya “Ay Abu Abdullah (Hussain) Sabr karna, Ay Abu Abdullah Sabr karna, Ay Abu Abdullah Sabr karna.” Logo ne pucha Ameerul Momineen kya kya hua, to Maula-e-Kainat ne Aaqa SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ki Peshangoyi bayan farmaye ke kaise yaha Imam Hussain aur Ahle Bayt ko Shaheed kiya jayega fir Aap Alaihissalam ne Ahle Bayt ke Khemon ki jagah, Unki Unto ke baithne ki jagah, sabki nishandahi farma diye.
Ab yaha khaas baat ye us waqt Imam Hussain Alaihissalam waha maujud nahi thi. Aur Maula-e-Kainat ne direct Imam Hussain Alaihissalam se farmaya ke Bete Hussain Sabr karna sabr karna sabr karna, Imam Hussain to waha us waqt hai he nahi aur us waqt jaha bhi they taklif nahi thi.
Is baat se sirf ek he baat pata chalti hai conclusion me aur wo ye ke Maula-e-Kainat 25 saal ke baad jo Karbala me hone wala tha, us waqt Imam-e-Aali Muqaam ka jo imtehan horaha tha, Us waqt keliye farma rahe they aur direct mukhatib hokar farma rahe they, iska matlab hai Karbala me us din Maula Ali Alaihissalam 25 saal pehle jo farma rahe they wo 25 saal baad ke Imam Hussain Alaihissalam ko usi muqaam par sunayi deraha tha. Maula Ali Alaihissalam 25 saal pehle Karbala me Tashreef farma they lekin Aapko waqt pe jo Qudrat hasil thi, Aap wahi se 25 saal ke future ke marqe ko samne dekh rahe they, na sirf dekh rahe they balke past se future me message bhi pahunvha rahe they ke Beta Hussain Sabr Karo!!!
Padhe darud o salam,,,,,,,,,,,,,,,,,,