Day: October 26, 2019
28 Safar ul Muzaffar Yome Shahadat – Ameer ul Momineen Syedna Imam e Hasan Mujtuba Ibne Imam Ali (Alaihis Salam)
(28 Safar Yaume Shahdat Imam Hasan ibne Ali Alaihissalam)
Imam HASAN Alaihissalam Se Muhabbat Har Kalmago Pe FARZ Hai
“Hazrat Abdullah Ibne Masood RadiAllahu Anhuma riwayat karte hain ke Huzoor Nabi-e-Akram SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne farmaya: Jisne Mujhse muhabbat ki, us par laazim hai ke wo In Dono se bhi Muhabbat kare.”
“Hazrat Abdullah Ibne Abbas RadiAllahu Anhuma farmate hain ke jab Aayat-e-Mubaraka:
“Farma de’n Mai tumse is (Tableegh-e-Haq aur Khair khwaahi) ka kuch sila nahi
chahta bajuz Ahle Qarabat se Muhabbat ke.” (Surah Ash-Shoorah Aayat: 23)
Naazil hui to Sahaba Ikram RadiAllahu Anhum ne arz kiya: Ya RasoolAllah SallAllahu Alaika wa (Aalika wa) Sallam! Aapke wo kaunse Qarabatdar hain jinki Muhabbat humpar Waajib hai? Aap SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ne
farmaya: Ali, Fatima aur Unke dono Bete (Hasan wa Hussain).”
बड़ी खामोशी से गुज़र जाएगा इस बार भी 28 सफर।
भूले से भी न भुला पाएगी क़ायनात जहर का वो असर।।
उम्मते इस्लाम ने पूछा तक नहीं।
आखिर क्यूँ दिया इमामे हसन को जहर।।
किसी मौल्वी ने बताया तक नहीं ।
नाना के पहलू में क्यों नहीं लिटाया नबी का लख्ते जिगर।।
किसी मस्जिद में आवाज़ तक नहीं उठी।
क्यों बरसाया इमाम के जनाजे पर तीरों का कहर।।
जब जनाजा इमाम का लौटा खूंन से तरबतर।
इससे बड़ा कोई जुल्म नहीं मासूम शहीद पर।।
28 सफर।
यौमे शहादत – इमाम हसनع।
Aye Shaheed e Wafa Aye Imam e HASAN
Fakre Aale Abaa Aye Imam e HASAN
Jaane Sher e Khuda Aye Inam e HASAN
ROOHE KHAIRUNNISA Aye Imam E HASAN
Aapki Azmato ko Salaam ho YA HASAN IBNE ALI IBNE ABU TAALIB ALAIHISSALAAM
नबी के 2 बेटे है
एक का जनाज़ा तीरो पर था
तो दुसरे के जनाज़े पर तीर था
👉 28 सफर शहादत ईमाम हसन ए मुज्तबा अलैहिमुस्सलाम
⚫ यौम ए शहादत हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम 😭
(28 सफ़र, सन 50 हिजरी)
इमाम हसन अलैहिस्सलाम इमाम अली अ.स. और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा अ.स. के बेटे और पैग़म्बर ए अकरम स.अ. के नवासे हैं।
आप 15 रमज़ान सन 3 हिजरी में पैदा हुए और आपके पैदा होने के बाद पैग़म्बर ए अकरम स.अ. ने आपको गोद में लेकर आपके कान में अज़ान और अक़ामत कही और फिर आपका अक़ीक़ा किया, एक भेड़ की क़ुर्बानी की और आपके सर को मूंड कर बालों के वज़न के बराबर चांदी का सदक़ा दिया।
पैग़म्बर ए आज़म स.अ. ने आपका नाम हसन रखा और कुन्नियत अबू मोहम्मद रखी, आपके मशहूर लक़ब सैयद, ज़की, मुज्तबा वग़ैरह हैं।
आप की इमामत
इमाम हसन अ.स. ने अपने वालिद इमाम अली अ.स. की शहादत के बाद ख़ुदा के हुक्म और इमाम अली अ.स. की वसीयत के मुताबिक़ इमामत और ख़िलाफ़त की ज़िम्मेदारी संभाली और लगभग 6 महीने तक मुसलमानों के मामलात को हल करते रहे और इन्हीं महीनों में मुआविया इब्ने अबी सुफ़ियान जो इमाम अली अ.स. और उनके ख़ानदान का खुला दुश्मन था और जिसने कई साल हुकूमत की लालच में जंग में गुज़ारे थे उसने इमाम हसन अ.स. की हुकूमत के मरकज़ यानी इराक़ पर हमला कर दिया और जंग शुरू कर दी।
लोगों का इमाम अ.स. की बैअत करना
जिस समय मस्जिदे कूफ़ा में इमाम अली अ.स. के सर पर नमाज़ में सजदे की हालत में वार किया गया और आप ज़ख़्म की वजह से बिस्तर पर थे उस समय इमाम हसन अ.स. को हुक्म दिया कि अब वह नमाज़ पढ़ाएंगे और ज़िंदगी के आख़िरी लम्हों में आपको अपना जानशीन होने का एलान करते हुए कहा कि मेरे बेटे मेरे बाद तुम हर उस चीज़ के मालिक हो जिसका मैं मालिक था, तुम मेरे बाद लोगों के इमाम हो और आपने इमाम हुसैन अ.स., मोहम्मदे हनफ़िया, ख़ानदान के दूसरे लोगों और बुज़ुर्गों को इस वसीयत पर गवाह बनाया, फिर आपने अपनी किताब और तलवार आपके हवाले की और फ़रमाया: मेरे बेटे पैग़म्बर ए अकरम स.अ. ने हुक्म दिया था कि अपने बाद तुमको अपना जानशीन बनाऊं और अपनी किताब और तलवार तुम्हारे हवाले करूं बिल्कुल उसी तरह जिस तरह पैग़म्बर ए अकरम स.अ. ने मेरे हवाले किया था और मुझे हुक्म दिया था कि मैं तुम्हें हुक्म दूं कि तुम अपने बाद इन्हें अपने भाई हुसैन (अ.स.) के हवाले कर देना।
इमाम हसन अ.स. मुसलमानों के बीच आए और मिंबर पर तशरीफ़ ले गए, मस्जिद मुसलमानों से छलक रही थी, उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास खड़े हुए और लोगों से इमाम हसन अ.स. की बैअत करने को कहा, कूफ़ा, बसरा, मदाएन, इराक़, हेजाज़ और यमन के लोगों ने पूरे जोश और पूरी ख़ुशी से आपकी बैअत की, लेकिन मुआविया अपने उसी रवैये पर चलता रहा जो रवैया उसने इमाम अली अ.स. के लिए अपना रखा था।
मुआविया की चालबाज़ियां
इमाम हसन अ.स. ने इमामत और ख़िलाफ़त की ज़िम्मेदारी संभालते ही शहरों के गवर्नर और हाकिमों की नियुक्ति शुरू कर दी और सारे मामलात पर नज़र रखने लगे, लेकिन अभी कुछ ही समय गुज़रा था कि लोगों ने इमाम हसन अ.स. की हुकूमत का अंदाज़ और तरीक़ा बिल्कुल उनके वालिद की तरह पाया कि जिस तरह इमाम अली अ.स. अदालत और हक़ की बात के अलावा किसी रिश्तेदारी या बड़े ख़ानदान और बड़े बाप की औलाद होने की बिना पर नहीं बल्कि इस्लामी क़ानून और अदालत को ध्यान में रखते हुए फ़ैसला करते थे बिल्कुल यही अंदाज़ इमाम हसन अ.स. का भी था, यही वजह बनी कि कुछ क़बीलों के बुज़ुर्गों ने जो ज़ाहिर में तो इमाम हसन अ.स. के साथ थे लेकिन अपने निजी फ़ायदों तक न पहुंचने की वजह से छिप कर मुआविया को ख़त लिखा और कूफ़ा के हालात का ज़िक्र करते हुए लिखा कि जैसे ही तेरी फ़ौज इमाम हसन अ.स. की छावनी के क़रीब आए हम इमाम हसन अ.स. को क़ैद कर के तुम्हारी फ़ौज के हवाले कर देंगे या धोखे से उन्हें क़त्ल कर देंगे और चूंकि ख़वारिज भी हाश्मी घराने की हुकूमत के दुश्मन थे इसलिए वह भी इस साज़िश का हिस्सा बने।
इन मुनाफ़िक़ों के मुक़ाबले कुछ इमाम अली अ.स. के शिया और कुछ मुहाजिर और अंसार थे जो इमाम हसन अ.स. के साथ कूफ़ा आए थे और वहीं इमाम अ.स. के साथ थे, यह वह असहाब थे जो ज़िंदगी के कई अलग अलग मोड़ पर अपनी वफ़ादारी और ख़ुलूस को साबित कर चुके थे, इमाम हसन अ.स. ने मुआविया की चालबाज़ी और साज़िशों को देखा तो उसे कई ख़त लिख कर उसे इताअत करने और साज़िशों से दूर रहने को कहा और मुसलमानों के ख़ून बहाने से रोका, लेकिन मुआविया इमाम हसन अ.स. के हर ख़त के जवाब में केवल यही बात लिखता कि वह हुकूमत के मामलात में इमाम अ.स. से ज़ियादा समझदार और तजुर्बेकार है और उम्र में भी बड़ा है।
इमाम हसन अ.स. ने कूफ़े की जामा मस्जिद में सिपाहियों को नुख़ैला चलने का हुक्म दिया, अदी इब्ने हातिम सबसे पहले वह शख़्स थे जो इमाम अ.स. की इताअत करते हुए घोड़े पर सवार हुए और भी बहुत से अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की सच्ची मारेफ़त रखने वालों ने भी इमाम अ.स. की इताअत करते हुए नुख़ैला का रुख़ किया।
इमाम हसन अ.स. ने अपने एक सबसे क़रीबी चाहने वाले उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास जो आपके घराने से थे और जिन्होंने लोगों को इमाम अ.स. की बैअत के लिए उभारा भी था उन्हें 12 हज़ार की फ़ौज के साथ इराक़ के उत्तरी क्षेत्र की तरफ़ भेजा, लेकिन वह मुआविया की दौलत के जाल में फंस गया और इमाम अ.स. का सबसे भरोसेमंद शख़्स मुआविया ने उसे 10 लाख दिरहम जिसका आधा उसी समय दे कर उसे छावनी की तरफ़ वापस भेजवा दिया और इन 12 हज़ार में से 8 हज़ार तो उसी समय मुआविया के लश्कर में शामिल हो गए और अपने दीन को दुनिया के हाथों बेच बैठे।
उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास के बाद लश्कर का नेतृत्व क़ैस इब्ने साद को मिला, मुआविया की फ़ौज और मुनाफ़िक़ों ने उनके शहीद होने की अफ़वाह फैला कर लश्कर के मनोबल को कमज़ोर और नीचा कर दिया, मुआविया के कुछ चमचे मदाएन आए और इमाम हसन अ.स. से मुलाक़ात की और इमाम अ.स. द्वारा सुलह करने की अफ़वाह उड़ाई और इसी बीच ख़वारिज में से एक मनहूस और नजिस वुजूद रखने वाले ख़बीस ने इमाम हसन अ.स. के ज़ानू (जांघ) पर नैज़े से ऐसा वार किया कि नैज़ा अंदर हड्डी तक ज़ख़्मी कर गया, इसके अलावा और भी दूसरे कई हालात ऐसे सामने आ गए जिससे इमाम अ.स. के पास मुसलमानों ख़ास कर अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के सच्चे चाहने वालों का ख़ून बहने से रोकने के लिए अब सुलह के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था।
मुआविया ने जैसे ही माहौल को अपने हित में पाया तुरंत इमाम अ.स. के सामने सुलह की पेशकश की, इमाम हसन अ.स. ने इस बारे में अपने सिपाहियों से मशविरा करने के लिए एक ख़ुत्बा दिया और उन लोगों के सामने दो रास्ते रखे, या मुआविया से जंग कर के शहीद हो जाएं या सुलह कर के अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के सच्चे चाहने वालों की जान को बचा लिया जाए…, बहुत से लोगों ने सुलह करने को ही बेहतर बताया लेकिन कुछ ऐसे भी कमज़ोर ईमान और कमज़ोर अक़ीदा लोग थे जो इमाम हसन अ.स. को बुरा भला कह रहे थे (मआज़ अल्लाह), आख़िरकार इमाम अ.स. ने लोगों की सुलह करने वाली बात को क़ुबूल कर लिया, लेकिन इमाम अ.स. ने सुलह इसलिए क़ुबूल की ताकि मुआविया को सुलह की शर्तों का पाबंद बना कर रखा जाए क्योंकि इमाम अ.स. जानते थे मुआविया जैसा इंसान ज़ियादा दिन सुलह की शर्तों पर अमल करने वाला नहीं है और वह बहुत जल्द ही सुलह की शर्तों को पैरों तले रौंद देगा जिसके नतीजे में उसके नापाक इरादे और बे दीनी और वादा ख़िलाफ़ी उन सभी लोगों के सामने आ जाएगी जो अभी तक मुआविया को दीनदार समझ रहे हैं।
इमाम हसन अ.स. ने सुलह की पेशकश को क़ुबूल कर के मुआविया की सबसे बड़ी साज़िश को नाकाम कर दिया, क्योंकि उसका मक़सद था कि जंग कर के इमाम अ.स. और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के चाहने वाले इमाम अ.स. के साथियों को क़त्ल कर के उनका ख़ात्मा कर दे, इमाम अ.स. ने सुलह कर के मुआविया की एक बहुत बड़ी और अहम साज़िश को बे नक़ाब कर के नाकाम कर दिया।
इमाम हसन अ.स. की शहादत
इमाम हसन अ.स. ने दस साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और मुसलमानों की सरपरस्ती की और बहुत ही घुटन के माहौल में आपने ज़िंदगी के आख़िरी कुछ सालों को गुज़ारा जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
आख़िरकार मुआविया की मक्कारी और बहकावे में आकर आपकी बीवी जोअदा बिन्ते अशअस द्वारा आपको ज़हर देकर शहीद कर दिया गया और फिर आपके जनाज़े के साथ जो किया गया उसकी मिसाल इतिहास में कहीं नहीं मिलती और वह यह कि आपके जनाज़े पर तीर बरसाए गए और आपको अपने नाना रसूलल्लाह स. के पहलू में दफ़्न तक होने नहीं दिया गया… 😭😭😭
🌹 अस्सलामु अलैका यब्न रसूलल्लाह स. या इमाम ए हसन ए मुज्तबा व रहमतुल्लाहि व बरकातु
Hazrat Fuzail Bin Ayaz RA ki Shakhsiat aur Talimaat
कुरआन में सूफी Sufi in Quran
कुरआन में सूफी
Sufi in QuranSūphī allāha kē vō makhsūsa bandē haiṁ jinhēṁ allāha nē apanī kitāba qura’āna śarīpha mēṁ alaga alaga nāmōṁ sē yāda pharamāyā. Jaisē –O as’sādēkīna saccēO as’sādēkāta saccī auratēṁO alakānētīna adabavālē, pharamābaradāraO alakānētāta adabavālē, pharamābaradāra auratēṁO alakhāśē’īna ājīzī karanē vālēO alamōqēnīna yaqīna karanē vālēO alamukhlēsīna akhlāsa kē sātha allāha kī bandagī karanē vālēO alamōhasēnīna nēkī va ēhasāna karanē vālēO alakhā’ēphīna allāha kā khaupha rakhanē vālēO arrājīna um’mīda rakhanē vālēO alavājalīna allāha sē ḍaranē vālēO ala’ābēdīna ibādata karanē vālēO as’sā’ēmīna rōzē rakhanē vālēO as’sābērīna sabra karanē vālēO arrāzīna rāzī ba razā rahanē vālēO ala’auliyā allāha kē valīO alamuttaqīna taqavā karanē vālēO alamustaphīna muntakhaba, cunē hu’ēO alamujatabīna muntakhaba kiyē hu’ēO ala’abarāra nēkī karanē vālēO alamuqarabīna qurbavālēO muśāhēdina śahādata dēnē vālāO alamutama’īna mutama’īna rahanē vālāO alamuqatasēdina
गोदड़ी ओड़ने वाले मुख्लिस बंदे

सुन लो, अल्लाह के मित्रों को न तो कोई डर है और न वे शोकाकुल ही होंगे
हज़रत अबुबक्र सिद्दीक़ (रजि.अ.) इस्लाम के पहले खलिफा है। आप मक्का के सबसे मालदार (धनवान) लोगों में से थे। एक मौके पर आपने अपना सारा माल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के कदमों पर रख दिया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा क्या कुछ अपने परिवारवालों के लिए भी छोड़ा? तो आपने फरमाया – ”(उनके लिए) अल्लाह और उसका रसूल है।”
ये जुमला (वक्तव्य) एक सूफ़ी की ज़बान से ही निकल सकता है।
इसी पर डॉक्टर अल्लामा ईक़बाल ने कहा है-
परवाने को चिराग तो बुलबुल को फूल बस।
सिद्दीक के लिए खुदा और रसूल बस।।