
भारत को आज़ादी यूहीं नहीं मिल गई. इसके लिए न जाने कितने हिंदोस्तानियों ने जाति व धर्म से ऊपर उठकर देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया. तब जाकर हमारा देश ब्रिटिश साम्राज्य की 200 साल गुलामी के बाद आज़ादी की साँस ले सका. ऐसे में हमारा फर्ज बनता है कि हम उन आज़ादी के सिपाहियों को याद करें.
ऐसे में कुछ ऐसे भी स्वतंत्रता सेनानी हैं, जो गुमनामी के अँधेरे में कहीं गुम हो गए. जिनकी वजह से हम आज स्वतंत्र रूप से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
ऐसे ही एक आज़ादी के सिपाही मौलाना मजहरुल हक का नाम भी शामिल है. जिन्होंने आज़ादी के साथ-साथ हिन्दू-मुस्लिम एकता व शिक्षा व्यवस्था पर प्रबल जोर दिया था. यही नहीं मौलाना मजहरुल के घर पर महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस जैसे कई क्रांतिकारी आया करते थे.
उन्होंने आज़ादी के साथ शिक्षा की बेहतरी के लिए कई बड़े दान भी किए. ऐसे में हमारे लिए महान स्वतंत्रता सेनानी व समाजिक कार्यकर्ता मौलाना मजहरुल हक से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में जानना दिलचस्प रहेगा.
तो आइये आज़ादी के इस गुमनाम वीर सिपाही की जिंदगी से रूबरू होते हैं…
पढ़ाई के दौरान ही सामाजिक कार्यों में रही दिलचस्पी
मौलाना मजहरुल हक 22 दिसंबर 1866 को बिहार के पटना जिले में पैदा हुए. इनके पिता शेख़ अहमदुल्लाह एक अमीर इंसान थे. पिता ज़मींदारी की वजह से कई जमीन व जायदाद के मालिक थे. धनी परिवार में जन्मे मजहरुल को बचपन में हर वो ख़ुशी अता हुई जो उनकी ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त हुआ करती थी.
मौलवी सज्जाद हुसैन ने उनके घर पर ही उन्हें प्राथमिक शिक्षा दी. आगे उन्होंने 1886 में पटना कॉलेज से मैट्रिक की तालीम पूरी की. इस दौरान वो सामाजिक कार्यों में रूचि लेने लगे थे.
मजहरुल ने आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया. परन्तु वकालत की पढ़ाई के लिए उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ इंग्लैंड चले गए.
उसी दौरान महात्मा गाँधी भी इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई कर रहे थे. यहीं इनकी मुलाकात गाँधी जी से हुई थी. वे दोनों आपस में कई सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर बातचीत किया करते थे.
साल 1891 में इंग्लैंड से वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद वापस पटना चले आये. यहां उन्होंने कानूनी अभ्यास शुरू कर दिया. उस दौरान वो अपने मालिकाना हक से कई सामाजिक कार्यों को अंजाम देने लगे.
साल 1897 में जब बिहार अकाल की त्रासदी से कराह रहा था. वहां के लोग गरीबी के कारण भुखमरी का शिकार होने लगे थे. ऐसी स्थिति में मौलाना मजहरुल हक ने राहत कार्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया.

कई स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलनों का हिस्सा बने
सामाजिक कार्यों के साथ ही मौलाना राजनीतिक व क्रांतिकारी गतिविधियों में भी रूचि लेने लगे. बिहार में जब प्रथम राजनैतिक सम्मेलन हुआ तो ये उसके प्रमुख नेता रहे. उन्होंने इस सम्मेलन के द्वारा बिहार को एक अलग प्रांत बनाने की मांग की. इसी के साथ बिहार की तालीम व्यवस्था की बेहतरी के लिए प्रबल जोर दिया.
आगे मौलाना कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्यों में एक रहे. उन्होंने बिहार में कांग्रेस पार्टी के लिए तन मन धन से काम किया. इसके लिए उन्हें 1906 में बिहार कांग्रेस कमेटी का उपाध्यक्ष चुना गया.
मौलाना मजहरुल हक ने बिहार में होमरुल आंदोलन में अहम किरदार निभाया. 1916 में इनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए मौलाना को सदर (अध्यक्ष) नियुक्त कर दिया गया. यह वही दौर था जब स्वतंत्रता संग्राम के कई आंदोलन गर्म जोशी के साथ देश के कोने कोने में ब्रिटिशों के दांत खट्टे कर रहे थे.
इसी दौरान चंपारण सत्याग्रह भी अपने परवान पर था. इस आंदोलन में डा0 राजेन्द्र प्रसाद के साथ मौलाना ने भी जोश व खरोश के साथ हिस्सा लिया. इसके लिए उन्हें 3 महीने कारावास की सजा भी सुनाई गई थी.
देशहित के लिए दान दी कई बीघा जमीन
मौलाना मजहरुल हक आज़ादी की क्रान्ति में लगातार सक्रिय भूमिका निभा रहे थे. उस दौरान देश के कई महान स्वतंत्रता सेनानियों से इनकी लगातार मुलाकात होती रही. इसकी वजह से मौलाना देश को आज़ाद कराने के लिए अपना सब कुछ त्याग करने को तैयार थे.
आगे जब महात्मा गाँधी के द्वारा खिलाफत व असहयोग आंदोलन शुरू किया गया. तो मौलाना मजहरुल हक ने अपनी वकालत व मेम्बर ऑफ इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल का पद त्याग कर पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए.
आंदोलन को सुचारू रूप से चलाने के लिए 1920 में उन्होंने अपनी 16 बीघा जमीन दान कर दी. जहां स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई क्रांतिकारी सिपाहियों द्वारा देश की आज़ादी के लिए रणनीतियां तैयार की जाती थीं. जिनमें महात्मा गाँधी, डा0 राजेंद्र प्रसाद, सुभाष चंद्र बोस, खुदीराम, सरोजनी व नरीमन जैसे महान सेनानियों का नाम शामिल है.
इसी स्थान पर सदाकत आश्रम व शिक्षा के लिए विद्यापीठ कॉलेज की स्थापना हुई. उसी आश्रम से मौलाना ने 1921 में ‘द मदरलैंड’ नामक साप्ताहिक पत्रिका की भी शुरुआत की.
इस पत्रिका के माध्यम से मौलाना ने अपनी लेखनी के द्वारा आज़ादी का बिगुल फूंका. उन्होंने असहयोग आंदोलन के विचारों को लोगों तक पहुँचाया. आज यह स्थान बिहार कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय बना हुआ है.

शिक्षा के साथ हिन्दू-मुस्लिम एकता पर भी दिया जोर
मौलाना मजहरुल हक कई आन्दोलनों के साथ-साथ शिक्षा स्तर को बेहतर बनाने, हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देने व महिलाओं के अधिकार के लिए कई सामाजिक कार्यों से लोगों में चेतना जगाई.
जब महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ मुहिम को सशक्त बनाने के लिए महिलाओं को मुख्य धारा में लाने की मांग की तो मौलाना ने उनका समर्थन किया.
उन्होंने पारंपरिक मुस्लिम महिला पोशाक को स्वतंत्र रूप से अपनाने का पैगाम दिया. सामाजिक कार्यों में महिलाओं की भागीदारी के लिए लोगों में चेतना जगाई. इसके लिए उन्हें ‘देश भूषण फ़क़ीर’ के ख़िताब से नवाजा गया.
इसी के साथ ही मौलाना हमेशा से ही गंगा जमुनी तहजीब का समर्थन किया करते थे. उनका कहना था कि “हम हिन्दू हो या मुसलमान, हम एक ही नाव पर सवार हैं. हम उठेगे तो साथ और डूबेंगे भी साथ”.
उन्होंने लंदन में अंजुमन इस्लामिया नामक संगठन की भी स्थापना की थी. इसके माध्यम से उन्होंने विभिन्न धर्म, संप्रदाय व जाति के लोगों को देश हित के लिए एक साथ खड़ा किया.
साल 1926 में मौलाना ने एक ऐसे मदरसे व स्कूल की स्थापना की, जिसमें हिन्दू व मुसलमान के बच्चे एक साथ तालीम हासिल कर सकें. उन्होंने हमेशा से सांप्रदायिक सद्भाव का प्रचार प्रसार किया.
मौलाना मजहरुल अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में मोती लाल नेहरु व मदन मोहन मालवीय जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ अपने घर ‘आशियाना’ में देश की आज़ादी के लिए विचार विमर्श करते रहे.
साल 1930 में सामाजिक व आज़ादी का यह सिपाही इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. इनकी मौत के बाद इनको न जाने कितनी नम आँखों के बीच सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया. आज इनके नाम से भारत सरकार द्वारा सड़कों के नाम व विश्वविद्यालय की स्थापना की गई.

तो ये थी भारत के महान आज़ादी के नायक व सामाजिक कार्यकर्ता मौलाना मजहरुल हक से जुड़ी कुछ रोचक व दिलचस्प किस्से, जिन्होंने देश हित के लिए तन मन व धन से अपना जीवन कुर्बान कर दिया.
आज भी इनके द्वारा किया गया कार्य व इनका व्यक्तित्व हमारे लिए प्रेरणास्रोत है

