
अगर सैयद के आमाल व अखलाक ख़राब हों तो क्या हुक्म है? आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा क़ादरी फरमाते हैं कि “सैयद सुन्नी मज़हब की ताज़ीम लाज़िम है, अगर्चे उसके आमाल कैसे ही हो इन आमाल के सबब. इससे दूर न रहा जाएगा, नफ्स आमाल से दूर न हो बल्कि इस (सैयद) के मज़हब में भी कुलील फर्क हो कि हद कुफ्र तक न पहुंचे जैसे तफ्सील तो इस हालत में भी इसकी ताज़ीम सयादत न जाएगी, हाँ अगर इसकी बद मज़हबी हद कुफ्र तक पहुंचे जैसे राफजी वहाबी कादयानी नैचरी वगैरहुम, तो अब इसकी ताज़ीम हराम है कि जो वजह ताज़ीम थी यानी सयादत वही न रही। (फतावा रिज़विया 423/22, जदीद)

सैयदना अब्दुल्लाह बिन मुबारक और सैयद जादाः. सुल्तान वाईज़ीन अल्लामा अबुल नूर मुहम्मद बशीर साहब तज़किरतुल औलिया के हवाले से फरमाते हैं कि हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक एक बड़े मजमा के साथ मस्जिद से निकले तो एक सैयद जादा ने इनसे कहा “ऐ अब्दुल्लाह यह कैसा मजमा
* है? देख मैं फरजंद रसूल हूँ, तेरा बाप तो ऐसा न था, हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक ॐ ने जवाब दिया, मैं वह काम करता हूँ जो तुम्हारे नाना जान ने किया था और तुम नहीं करते और यह भी कहा कि बेशक तुम सैयद हो और तुम्हारे वालिद रसूलुल्लाह हैं और मेरा वालिद ऐसा न था मगर तुम्हारे वालिद से इल्म की मीरांस बाकी रही, मैंने तुम्हारे वालिद की मीरास ली, मैं अज़ीज़ और बुजुर्ग हो गया, तुमने मेरे वालिद की मीरास ली तुम इज्ज़त न पा सके, उसी रात ख़्वाब में हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने हुज़ूर देखा कि चेहरा मुबारका आपका मुतगय्यर है, अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह यह रंजिश क्यों है? फरमाया तुम ने मेरे एक बेटे पर नुक्ता चीनी की है, अब्दुल्लाह बिन मुबारक जागे और इस सैयद ॐ जादा की तलाश में निकले ताकि इससे माफी तलब करें, उधर इस सैयद जादा ने भी इसी रात को ख़्वाब में हुज़ूरे अकरम और हुज़ूर को को देखा ने इससे यह फरमाया कि बेटा अगर तू अच्छा होता तो वह तुम्हें क्यों ऐसा कलमा कहता, वह सैयद जादा भी जागा और हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक की तलाश में निकला चुनान्वे दोनों की मुलाकात हो गई और दोनों ने अपने अपने ख़्वाब सुना कर * एक दूसरे से मअजरत तलब कर ली।” (सच्ची हिकायात हिस्सा अव्वल स. 93.94, अज़ सुल्तानुल वाईजीन मौलाना मो. बशीर) T # आला हज़रत इमाम अहमद रजा खान कादरी के +