
🙏 *अज्र ए रिसालत (तब्लीगे रिसालत का सिला/बदला)*🙏
ذَٰلِكَ الَّذِي يُبَشِّرُ اللَّهُ عِبَادَهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ۗ *قُل لَّا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْبَىٰ* ۗ وَمَن يَقْتَرِفْ حَسَنَةً نَّزِدْ لَهُ فِيهَا حُسْنًا ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ شَكُورٌ
[ अश-शूरा – २३ ]
यही (ईनाम) है जिसकी ख़ुदा अपने उन बन्दों को ख़ुशख़बरी देता है जो ईमान लाए और नेक काम करते रहे *(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं इस (तबलीग़े रिसालत) का अपने क़रातबदारों (अहले बैत) की मोहब्बत के सिवा तुमसे कोई सिला नहीं मांगता* और जो शख़्श नेकी हासिल करेगा हम उसके लिए उसकी ख़ूबी में इज़ाफा कर देंगे बेशक वह बड़ा बख्शने वाला क़दरदान है
👉 अल्लाह ने क़ुरआन में सूरा ए शूरा में आयात नम्बर 23 में अपने पैग़म्बर, अपने हबीब रहमतुललिल आलमीन हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स्वल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से फ़रमाया की-
*”ए रसूल तुम अपनी उम्मत के लोगों से कहदो की में अपनी इस तबलीग़ ए रिसालत (जो भी मेने मेहनत की है इस दीन ए ख़ुदा को उम्मत तक पहुंचाने में उसका अज्र/क़ीमत) का तुमसे कुछ भी मेहनताना नही माँगता सिवाए इसके के तुम मेरे अहलेबैत से मोहब्बत करना”*
सिर्फ़ मेरे अकरबा मेरे अहलेबैत अलैहिस्सलाम से मोहब्बत, उनसे अच्छा सुलूक,उनका कहना मानना!लेकिन इस ही उम्मत ने उस ही रसूल जिसके नाम का ये लोग कलमा पढ़ते थे उसके अहलेबैत के साथ रसूल अल्लाह saws की वफ़ात के फौरन बाद ही क्या सिला दिया??कैसा अज्र ए रिसालत अदा किया ??
Mishkat ul Masabeeh Hadees # 6182
وَعَنْهُ
قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: «أَحِبُّوا اللَّهَ لِمَا يَغْذُوكُمْ مِنْ نِعَمِهِ فَأَحِبُّونِي لِحُبِّ اللَّهِ وَأَحِبُّوا أَهْلَ بَيْتِي لحبِّي» . رَوَاهُ التِّرْمِذِيّ
ابن عباس ؓ بیان کرتے ہیں ، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے فرمایا :’’ اللہ سے محبت کرو کہ اس نے تمہیں نعمتوں سے نوازا ہے ، اور اللہ کی محبت کی خاطر مجھ سے محبت کرو اور میری محبت کی خاطر میرے اہل بیت سے محبت کرو ۔‘‘ اسنادہ حسن ، رواہ الترمذی ۔
Sahih Hadees
( *हुज़ूर पाक saws की मिश्कात उल मसाबिह में ये रिवायत मौजूद है कि “अल्लाह से मोहब्बत करो के उसने तुम्हे नेमतों से नवाज़ा है, और अल्लाह की मोहब्बत की ख़ातिर मुझसे मोहब्बत करो और मेरी मोहब्बत की ख़ातिर मेरे अहलेबैत से मोहब्बत करो”!*)
*अब उम्मत ने अहलेबैत में से किस किस को क्या क्या अज्र दिया ,देखते हैं तारीख़ पर नज़र डाल कर-*
*1-मोहम्मद मुस्तुफा (saws)- हुज़ूर पाक स्वल्लल्लाहो अलयहे व आलेही व सल्लम को ये अज्र मिला की जब हुज़ूर ने अपने आखरी वक़्त में उम्मत को गुमराही और फ़ितनों से बचाने के लिए कागज़ और क़लम माँगा तो उनको देने से मना कर दिया गया काश दे देते तो आज उम्मत में इतने फ़िरके ही नही होते और उसके बाद जो लोग इनसे सबसे ज़्यादा मुहब्बत का दावा करते थे वो ही लोग हुज़ूर पाक की वफ़ात के बाद इनके जिस्म मुबारक को बिना तदफ़ीन के छोड़ कर हुकूमत की लालच में चले गए।*
*2-हज़रत अली (as)- ये अहलेबैत की दूसरी शख्सियत हैं जिनके साथ बाद ए वफ़ात ए रसूल ऐसे अज्र दिया गया कि क़ौल ए नबी (मनकुंतो मौला फ़ हाज़ा अलियुन मौला) को भुला कर इनका हक़ किसी और को दे दिया गया। और फिर जब इन्होंने ख़िलाफ़त की मुख़ालिफत की तो हज़रत अली ने देखा कि उम्मत मेरी तरफ से फिर गई है।*
*3-हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (sa)-ये अहलेबैत की बहुत ही मज़लूम तरीन हस्ती हैं, ये वो हैं के जब ये तशरीफ़ लाती थीं तो हुज़ूर खुद खड़े होकर इनका इस्तक़बाल किया करते थे और हुज़ूर इनके बारे में फ़रमाते थे कि ये फ़ातिमा मेरे जिगर का टुकड़ा है जिससे ये राज़ी उससे में राज़ी और जिसने इसका दिल दुखाया और नाराज़ किया उसने मेरा दिल दुखाया और मुझे और अल्लाह को नाराज़ किया और उसका ठिकाना जहन्नुम बताया।उम्मत ने बाद ए वफ़ाते रसूल इनके हक़ को ग़स्ब कर लिया और इनकी विरासत को छीन लिया और दरबार से इनको झूठा बोल कर हाकिम ने इनका हक़ इनको अदा करने से मना कर दिया और फिर इनके दरवाज़े पर आग लगाई और फिर इन पर जलता हुआ दरवाज़ा गिराया गया और इन पर जुल्म किया जिसके नतीजे में इनके पेट मे मौजूद जनाबे मोहसिन की शहादत हुई।और उस ही ज़ख्म जो इनके पहलू में लगा था उसकी वजह से हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत भी हुई।*
*4-हज़रत इमाम हसन (as)-ये अहलेबैत की वो हस्ती हैं जो अपने नाना मोहम्मद मुस्तुफा saww से सबसे ज़्यादा मुशाबेहत रखते थे मतलब ये हूबहू रसूल अल्लाह जैसे दिखाई देते थे, उम्मत ने इनके साथ ये सुलूक किया कि इनको मजबूर किया गया ख़िलाफ़त को छोड़ने के लिए,और फिर जब इन्होंने मजबूरन ख़िलाफ़त भी छोड़ दी उसके बाद इनको ज़हर दिलवा कर शहीद कर दिया गया और ज़ालिमों की हसद की आग यहीं ठंडी नही हुई बल्कि जब इनको दफ़न करने के लिए इनके नाना के पास ले जाया गया तो एक बार फिर उम्मत ने इनके जन्हाज़े पर तीरों की बारिश करवा कर अज्र ए रिसालत अदा किया।और फिर इनको मजबूरन दूसरी जगह जन्नतुल बक़ी में दफ़न किया गया।*
*5-हज़रत इमाम हुसैन (as)-इनको कैसा अज्र ए रिसालत अदा किया गया ये तो किसी से भी छुपा नही है, इमाम हुसैन और इनके बच्चों को जो आले रसूल थे सबको करबला में तीन दिन का भूखा प्यासा तड़पा तड़पा कर शहीद कर दिया गया और फिर रसूल ज़ादीयों को जो रसूल की नवासियाँ थी उनको बेपर्दा बाज़ारों में घुमाया गया और दरबारों में शराबियों के सामने रुसवा किया गया।*
ये👆सब तारीख़ की वो कड़वी हक़ीक़तें हैं जो सब किताबों में दर्ज हैं और इनका कोई इनकार नही कर सकता।ये वो अज्र ए रिसालत है जो उम्मत ने अहलेबैत अलैहिस्सलाम को दिया है।