
सरापा दीन सरापा वफ़ा अबू तालिब
रसूले पाक के मिदहत सरा अबू तालिब
खुदा की पाक अमानत संभालने वाले
हिसारे साहे रिसालत बने अबू तालिब
खुदा के नूर के जलवों को लेके दामन मे
खुदा का दीन बचाते रहे अबू तालिब
खुदा ने उनको फिरासत भी दी बसीरत भी
अमल की शान बड़ाते रहे अबू तालिब
वो शैख वादीए बतहा अरब का मर्दे ग्यूर
रईसे मक्का बड़ो से बड़े अबू तालिब
अज़ल से शाने रिसालत के वो मुसददिक़ थे
दलील बनके रिसालत.के थे अबू तालिब
गुलामी शाहे रिसालत की रात दिन ऐसी
मिली किसी को ना तेरे सिवा अबू तालिब
तवाफ़े खाना ए महबूब रात भर कर करना
अजी़म तर है ये पहरा तेरा अबू तालिब
तुम्हारे सुल्ब मे नूरे अली फ़िरोज़ा था
तुम्हीं हो महवते नूरे ख़ुदा अबू तालिब
तुम्हीं शजर हो समरदार बागे हासिम के
तुम्हीं से सजराए इतरत चला अबू तालिब
तुम्हारे अज़्म ने ज़ुलमत को सर निगूँ रख्खा
तुम्हारे ज़ोर से बातिल मिटा अबू तालिब
तुम्हारी गोद मे ईंमा की जान पलती रही
तुम्हारे घर से ही ईंमा मिला अबू तालिब
मिसाल इसकी यक़ीनन मुहाल है साइम
हुऐ हुज़ूर पे जैसे फ़िदा अबू तालिब
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इस्लाम की बातें तो सभी करते हैं लेकिन
ये सच है के हक का इन्हे इरफ़ान नही है
इस दौर के बू जहल हैं वो
ए अबू तालिब
जिसका तेरे ईमान पे ईमान नही है
नात कहना शायरों को आपने सिखला दिया
ऐ अबू तालिब ये हम पर आपका अहसान है
ए अबू तालिब तेरा इस्लाम पर अहसान है
तुझ पे जो तोहमत लगाऐ वक्त का शैतान है
कुफ़्र का धब्बा तेरे दामन मे आ सकता नही
तेरे घर मे एक दर्जन बोलता कुरआन है
ख्वाजा ए अजमेर ने जिसे कहा दीन अस्त हुसैन
वो हुसैन इब्ने अली वो पोता अबू तालिब का है

