
तेरी जब मेरी ही कलाई पर लगी है. आरिफ बिल्लाह इमाम अब्दुल वहाब शोअरानी कुद्दस सिर्रहू फरमाते हैं:
सैयद शरीफ ने हज़रत ख़िताब ७२ की खान्काह में बयान किया कि काशिफुल जीरह ने एक सैयद को मारा तो उसे उसी रात ख़्वाब में रसूले अकरम की इस हाल में ज़ियारत हुई कि आप
इससे ऐराज़ फरमा रहे हैं, उसने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ! मेरा क्या गुनाह है?
फरमाया: तू मुझे मारता है हालांकि मैं क़यामत के दिन तेरा शफीअ हूँ। उसने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह! मुझे याद नहीं कि मैंने आपको मारा हो। आपने फ़रमाया: क्या तूने मेरी औलाद को नहीं मारा? उसने अर्ज़ किया हाँ।
आपने फ़रमाया: तेरी ज़र्ब मेरी ही कलाई पर लगी है, फिर आपने अपनी कलाई निकाल कर दिखाई जिस पर वरम था जैसे कि शहद की मक्खी ने डंक मारा हो । “
हम अल्लाह तआला से आफियत का सवाल करते हैं । (जैनुल बरकात)

हुज़ूरे पाक से इश्क की अलामत
हज़रत शैख अमानुल्लाह अब्दुल मुल्क पानी पती कुद्दस सिर्रहू (997 हि.) ने फ़रमायाः
दुरवैशी मेरे नज़दीक दो चीज़ों में है, एक (1) खुश अखलाकी और (2) मुहब्बत एहले बैत । मुहब्बत का कामिल दर्जा यह है कि महबूब के मुतअल्लिकीन से भी मुहब्बत की जाए, अल्लाह तआला से कमाल मुहब्बत की निशानी यह है कि हुज़ूर से मुहब्बत हो और हुज़ूर से इश्क की अलामत यह है कि आप के एहले बैत से मुहब्बत हो। अगर आप पढ़ते पढ़ाते आपकी गली से सैयद जादे खेलते कूदते निकलते आप (सूफी अमानुल्ला पानीपती) हाथ से किताब रख कर सीधे खड़े हो जाते और जब तक सैयद जादे मौजूद रहते आप बैठते न थे।” (अख़बारुल अख़यार फी इसरारुल अबरार )