*Chehlum Imaam e Aalimaqaam Hazrat Syedna Mola Imaam Hussain Alaihis Salam wa Shohada e Karbala Alaihimus Salam*
*Allama Abu Ishaq Isfarayini Apni Kitaab Noor un Aeen Fi Mashadul Hussain Me Naqal Farmate Hai Ki Jab Qafila Damishq Se Madina Munavvara Ke Liye Rawana Hua To Raste Me Ahle Baith e Rasool Ne Hazrat Noman Se Kha Ki Hamari Ye Aarzu Hai Ki Hame Ba Rasta Karbala Le Chale Take Ham Dekh Sake Ki Hamare Azeezo Ki Lashe Usi Tarha Be Gor o Kafan Padi Hai Ya Kisi Ne Dafan Kar Di Unhone Baat Man Li “Chunache Ye Qafila Mahe Safar Ki 20 Tarkeeh Ko Karbala Poucha Us Din Hazrat Imaam Ki Shahadat Ko 40 Roz Guzar Chuke The” Jab Un Bibiyo Ne Fir Usi Maqaam Ko Dekha Jaha Unko Pani Ki Ak Ak Boondh Ke Liye Tarsaya Gaya Tha, Jaha Chamane Zehra Ko Ujara Gaya Tha, Jaha Gulshan e Risalat Ke Lehlahate Hue Phoolo Ko Teero Se Chalni Kiya Gaya Tha, Jaha Rakib e Doshe Rasool ﷺ Ko Zakhmo Se Choor Choor Karke Ghode Se Gira Kar Khak o Khoon Me Tarpaya Gaya Tha, Farzande Rasool Ko Barhana Karke Unke Mukaddas Jism Ko Ghode Ki Tapo Se Pamaal Kiya Gaya Tha Ahle Baith e Rasool Ke Khaime Jalaye Gaye The Un Paak Bibiyo Ka Saaz o Saman Luta Gaya Tha Unhe Qaidi Banaya Gaya Tha Ak Ak Kar Ke Wo Ja Gusal Aur Rukh Farsa Munazir Aankho Ke Samne Aa Gaye Aur Be Ikhtiyar Sab Ki Hijkiya Bandh Gayi, Syyeda Zainab Farma Rahi Thi Yaha Hamare Khaime The Yaha Hamare Janwar Bandhe Gaye The Yaha Hamare Janwar Ke Kajawe Rakhe Gaye The Phir Bar’aayi Hui Aawaz Me Farmaya Yaha Bhai Abbas Kate Fate Lete The Yaha Mera Ali Akbar Khak o Khoon Me Aaluda So Gaya Tha, Yaha Mera Masoom Asghar Mera Jawan Qasim Mera Aun o Muhammad Ke Be Sar Jism Pade The Aur Phir Apne Piyare Bhai Syedna Imaam Hussain Ka Naam Lete Hi Unki Cheekhe Nikal Gayi Imaam Ki Qabr e Anwar Par Apna Muh Rakh Ke Syyeda Ne Salam Kaha Aur Is Dard Se Rooi Ke Rote Rote Behaal Ho Gayi Sab Qafile Walo Ke Rone Ki Sadae Buland Hui Ak Qayamat Qayam Ho Gayi Bibiyo Ne Apne Azeezo Aur Syyedush Shohada Ki Qabro Par Jin Alfaaz Me Apne Qalbi Jazbaat Ka Izhar Kiya Hoga Wo Kon Bayan Kar Sakta Hain, “Ak Raat Un Sabne Waha Fateha Khuwani Aur Zikr o Tilawat Me Guzari” Bawakt e Ruksat Syyeda Zainab Salam un Aleha Apne Bhai Ko Ak Baar Phir Alwida Kehne Unki Qabr Par Aayi Rote Hue Jo Kuch Farmaya Shayar Ne Tarjumani Ki, “Tazkiro Me Hai Ki Karbala Ke Qurb o Jawaar Se Bhut Se Log Us Din Markad e Imaam Par Jama The Kyuki Ye Chehlum Ki Fateha Ka Moqa Tha Un Logo Ne Waha Masl Haleem Khana Taiyyar Karke Sab Ko Khilaya” Aur Ahle Baith Rasool Se Apni Aaqidat Ka Izhar Kiya…*
*Boli Zainab Ye Turbat Pe Aakar* *Karbala Se Me Jati Hu Bhai*
*Hijr Me Tere Hu Sakht Muztar* *Karbala Se Me Jati Hu Bhai*
*Khoon Aaluda Tera Badan Tha* *Aur Muyassar Na Goor o Kafan Tha* *Haye Kesa Ye Ranj o Mahan Tha* *Karbala Se Me Jati Hu Bhai*
*Koi Sar Par Hamare Nahi Hain* *Hain Jo Aabid Wo Zaar o Hazi Hain* *Haye Kis Kis Ko Taskeen Dungi* *Jake Sughra Se Me Kya Kahungi* *Hijr Me Kese Zinda Rahungi* *Karbala Se Me Jati Hu Bhai*
📚 *Reference:-* 📚
*Qutub e Ahle Sunnat:- Shame Karbala, Safa :- 235 – 236, Hazrat Allama Molana Muhammad Shafee Okarvi Sahab Rehmatullah Alaih*
अब्दुल रहमान बीन अब्दे रब्बे काबा ने अब्दुल्लाह बीन उमरो बीन आस से कहा
“तुम्हारे चाचा का बेटा मुआविया हमें ना हक़ माल लुटने और ना हक़ क़त्ल करने का हुक्म देता है जब की अल्लाह ने तो ये फ़रमाया है की ऐ इमान वालो एक दूसरे का माल ना हक़ तरीके से ना खाओ”
सही मुस्लिम जिल्द 3, हदीस नं 4776, सफा नं 713 से 715 क़ुरान ऐ करीम में अल्लाह ने ना हक़ क़त्ल करने वालो की सजा जहन्नम फरमायी हैं।
जिसे अल्लाह जहन्नमी केहता हैं, मुल्ला उसे सहाबी और जन्नती केहता हैं।
आप फैसला करे की अल्लाह का कलाम सही है, या मुल्ला का फ़तवा।
अकरमा बयान करते है की
“मैं अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हु के साथ मुआविया के पास था, मुआविया ने एक रकात नमाज़ पढ़ी तो इब्ने अब्बास ने फ़रमाया की इस गधे से पुछो ये तरीका इसने कहा से सीखा।”
मुआविया ने साद इब्ने अबी वकास को हुक्म दिया की वो मौला अली अलैहिस्सलाम को गालिया दे। नऊज़ुबिल्लाह मीन ज़ालिक।
सही मुस्लिम – जिल्द 4, हदीस No 6220, सफा No 559
अगर एहलेबैत से मुहब्बत करते हो तो उनको गालिया दिलवाने वालो का साथ छोड़ना होगा।
“मुआविया के दौर ऐ हुकूमत में आल ऐ मारवान में से एक शख्श ने हज़रत सहल बीन साद रदियल्लाहो अन्हु से कहा की वो मौला अली अलैहिसालाम को गाली दे।
जब उन्हों ने इंकार कर दिया तो कहा की ये कह दो की अबू तुराब पर अल्लाह की लानत”
नउज़ोबिल्लाह मीन ज़ालिक ! ! ! ! !
सही मुस्लिम जिल्द 4 , हदीस नं 6229, सफा नं 565
खुदा जाने उन लोगो की अक़्लो पर कौन से पत्थऱ पड़े थे की मौला से इस कदर दुश्मनी थी, लोगो को मज़बूर किया जाता था की वो मौला पर लानत करे और जब अकीदतमंद इंकार करते थे तो उन्हें क़त्ल कर दिया जाता था जैसा हाजर बीन आदी और साथिओ के साथ किया गया।
रसूलल्लाह सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “अल्लाह, मुआविया का कभी पेट ना भरे”
सही मुस्लिम हदीस न. 6628 और रसूलल्लाह सल्ललाहो अलैहि वसल्लम का ये फरमान हमेशा की तरह सच साबित हुवा और मुआविया का कभी पेट न भरा।
तारीख इबने कसीर हिस्सा 8, सफा न. 455 मुआविया को रसूलल्लाह सल्ललाहो अलैहि वसल्लम की हदीस सुन कर अच्छा ना लगा।
इस पर हज़रत अबादा बिन सामित रदियल्लो अन्हु ने कहा “हम तो रसूलल्लाह सल्ललाहो अलैहि वसल्लम की हदीस ज़रुर बयान करेंगे चाहे मुआविया ना पसंद करे या मुआविया की नाक खाक आलूद हो। “
सही मुस्लिम – जिल्द 3, हदीस No 4061, सफा No ३२३
रसूलअल्लाह सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “अम्मार इब्ने यासिर रदियल्लाहो अन्हु को एक बागी जमात क़त्ल करेगी, अम्मार उन्हें जन्नत की तरफ बुलाएंगे और वो अम्मार को जहन्नम की तरफ बुलाएंगे”
सही बुखारी जिल्द न. 3, हदीस न 2812 सफ़ा न. 227 सिर्फ इसी एक हदीस को बंदा अपना जहन साफ कर के पढ़ ले तो पता चल जायेगा की मुआविया जहन्नमी था।
जंग ऐ सिफ़्फ़ीन में मुआविया ने हुकूमत की लालच में जंग कर के अम्मार बिन यासीर को क़त्ल किया, और ये साबित कर दिया की अम्मार बिन यासिर को क़त्ल करने वाला ये मुआविया का गिरोह जहन्नम की तरफ बुलाने वाला था।
ये मेरा या किसी मुल्ला का फरमान नहीं पर हुज़ूर सल्ललाहो अलैहि वसल्लम का फरमान है।
हम सब ने ये तो सुना और जाना है की यज़ीद लानती शराबी था पर शराब पीना कहा से सिखा ये मैं आज बताता हूँ।
इमाम अहमद इब्ने हम्बल लिखते है की अपने दौर ऐ हुकूमत में मुआविया शराब पीता था।
जब हम कहते है तो हम को राफ़जी, गुमराह, क़ाफ़िर, सहाबा का गुस्ताख़, ख़ारजी जैसे लफ़्ज़ों से नवाजा जाता है, वही मोलवी अब इब्ने हम्बल के बारे में क्या कहेगा???!!
सहाबी वो हैं जो ईमान की हालत मैं मौत पाये, ये कैसा सहाबी जो शराब पीता था और इमान में मरा???!!!
अगर अब भी मुआविया को इमान में माना तो मतलब शराब को हराम नहीं समझा।
हवाला
मुसनद अहमद बीन हम्बल, जिल्द 10, हदीस न. 23329, सफ़ा न. 661 सईद बीन ज़ुबैर रिवायत करते है की
“मैं अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास के साथ अराफात में था
और उन्हों ने कहा “मैं लोगो को तलबिया पढ़ते क्यों नहीं सुन रहा हु?”
मैंने कहा “ये लोग मुआविया से डरे हुवे है”
तो इब्ने अब्बास अपने खेमे से बहार आये और कहा “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक! और कहा मुआविया ने सिर्फ अली से नफरत में सुन्नत को छोड़ दिया है”
Sunan Nisai Jild No. 4, Hadis No 3009, Safa No 628 मुआविया खुद को हज़रत उमर से भी ज्यादा खिलाफत का हक़दार समझता था, मुआविया ने अब्दुल्लाह इब्ने उमर की तरफ इशारा कर के कहा “मैं उसके बाप से भी ज्यादा खिलाफत का हक़दार हूँ”।
सही बुखारी जिल्द न. 4, हदीस न. 4108, सफा न. 259 मैं लिख के देता हूँ की तुम्हे आज तक किसी भी अत्तारी बरेलवी ने ये रिवायत नहीं बताई होगी। इस लिए की अब तक तो आप ने सुना था की मुआविया मौला अली अलैहिसलाम का गुस्ताख़ था, पर इस हदीस से साबित होता है की उसने हज़रत उमर को भी नहीं छोड़ा।
उन्ही के बेटे की तरफ इशारा कर के कहता है “वो अपना सर उठाये, मैं उसके बाप से भी ज्यादा खिलाफत का हक़दार हूँ।”
अगर शिया हज़रात हज़रत उमर को कुछ कहे तो वो काफिर हो जाते है और मुआविया कुछ भी कहे, रहेगा वो रदिअल्लह ही। वाह मुसलमान वाह।
इमाम अब्दुल रज़्ज़ाक के सामने जब मुआविया का जिक्र हुवा तो आप ने फ़रमाया
“हमारी मेहफ़िलों को अबू सुफियान के बेटे के जिक्र से गन्दा ना करो”
मीज़ान अल एतदाल जिल्द 4, सफा 343 सायरे आलम अल नुबाला जिल्द 9, सफा 580 किताब अल जुआफा जिल्द 1, सफा 859 जो बन्दे सोच रहे है की इमाम अब्दुल रज़्ज़ाक कौन है तो ये कोई चंदा खोर मौलवी नहीं बता पायेगा, उस शक्श को चाहिए की मुसन्नफ़ अब्दुल रज़्ज़ाक पढ़े जो की हदीस का मजमुआ है तब पता चलेगा की कितने बड़े एहले सुन्नत के मुहद्दिस थे।
मुआविया ने अपने दौर ए हुकूमत में खुद भी मौला अली अलैहिसलाम को गालिया दी है और अपने हुक्मरानो से भी मौला अली अलैहिसलाम को गालिया दिलवाई है। तारीख इ तबरी जिल्द 4, हिस्सा 1, सफा 82 खिलाफत व मुलुकियत सफा 174 फ़तहुल बारी जिल्द 7, सफा 88 अल मफ़हीम जिल्द 1, सफा 231 ये एक हकीकत है और इसका एक नहीं सुन्नी मोतबर किताब और सियासित्ता के अनेक हवाले मौजूद है फिर भी इस हकीकत से मुँह फेर लेना आलीमो की हाथ धर्मी मक्कारी और अपनी दुकान चलाने के लिए आदत बन चुकी है।
अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास ने फ़रमाया की
“मौला अली अलैहिसलाम को गाली देना अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को गाली देना है।”
तारीख ऐ मसूदी जिल्द 1, हिस्सा 2, सफा न. 359 जाबिर बिन अब्दुल हमीद जो की सियासित्ता की हदीस के रिजाल लिखने वालो में से है मुआविया को ऐलानिया तौर पर गालिया देते थे।
तहज़ीब अल तहज़ीब जिल्द 1, सफा 297-298 जब हम कुछ कहते है तो फ़ौरन राफ्ज़ी और काफिर के फतवे ठोक देते है, अब इन मोलविओ से पूछना चाहता हु, जाबिर बिन अब्दुल हामिद साहब के बारे में क्या कहेंगे???
उम्मुल मोमिनीन बीबी उम्मे सल्मा सलामुल्ला अलैहा से रिवायत है, फरमाती है की “मौला अली अलैहिसलाम को गाली देना दर असल रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को गाली देना है।”
कंज़ुल उम्माल जिल्द 7, हदीस न 36460, सफा न. 74
याद रहे की ये वाक़िया मुआविया लानतुल्लाह की दौर ए हुकूमत का है और उस दौर में लोग मुआविया की तक़लीद में इतने अंधे हो चुके थे की उन्हें ये भी नहीं पता था की वो मौला को गाली दे कर कितना बड़ा गुनाह कर रहे थे।
मुआविया और बनु उमैया के हुक्मरानो को कब तक बचाते रहोगे, खुद उम्मुल मोमिनीन गवाही दे रही है की मौला अली पर शब्बो सितम हुवे है।
मुआविया की नमाज़ ऐ जनाज़ा पढ़ाने वाला यज़ीद मलऊन था।
तारीख इब्न इ कसीर जिल्द 8, सफा न. 188 इस पर इमाम शाफ़ई का कॉल है की “यज़ीद अपने बाप की वफ़ात से क़ब्ल (पहले) दमिश्क में दाखिल हुवा और आप ने (मुआविया) ने उसे (यज़ीद को) वसी मुक़र्रर किया”
और यही कॉल इब्ने इश्हाक और दीगर मुअर्रिख़ीन का है।
मौला अली अलैहिस्सलाम का क़ौल बनु उमैया के लिए।
मौला अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया की दो सबसे बड़े फासिक और फ़ाजिर कबीले बनु उमैया और बनु मुग़ीरा है।
और बनु उमैया के मान ने वाले भी फासिक होंगे चाहे वो बड़े से बड़ा मौलवी हो या मुफ़्ती हो।
अल मुस्तदरक लील हाकिम जिल्द 3, सफा न 273, हदीस न. 3343 मुआविया के नाम का मतलब !
एहले सुन्नत के मशहूर आलिम अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती अलैहि रेहमा ने अपनी किताब में लिखा की
“मुआविया नाम के माने उस कुत्ते के है जो दुसरो पर भोंकता है”
Tareekh ul Khulafa by al Hafidh Jalaluddin Suyuti (Urdu translation by Maulana Hakeem Nasree) page 253 Rabi’ ul Abrar by Allamah Zamakhshari page 700 Tahzeeb ul Kamaal fi Asma’ al-Rijal by Jamaluddin Mizzi page 371
“अबु अब्दुल रहमान अल मुख़री ने फ़रमाया जब भी बनु उमय्या ये सुनते थे की किसी बच्चे का नाम जो पैदा हुआ है उसका नाम अली होता तो वो(बनु उमय्या) उस बच्चे को क़त्ल कर देते”
मदैनी फ़रमाते हैं के वो मामून के यहाँ तशरीफ़ ले गया और उनके सामने इमाम अली के मुताल्लिक़ रिवायत फ़रमाई तो मामून ने बनु उमय्या पर लानत की फिर मैंने फ़रमाया के मुसन्ना बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने कहा कि “मैं शाम में था और मैंने वहाँ किसी का भी नाम अली या हसन नही सुना लेकिन जो भी मैंने नाम सुने वो मुआविया, यज़ीद अल-वलीद ही थे”….और इसके आख़िर में जो बात है उसे नक़्ल फ़रमान मेरे मुम्किनात में से नही….अल्लाहु-अकबर 😭
👍 हवाला- 📙📘📚👇👇👇 “सियर अलम अन-नुबला जिल्द10, सफ़ह 400,401,402 अल्लामा हाफ़िज़ ज़हबी 748 हिजरी” (नोट:-इसी तरह के नाम इस दौर में भी रखने की कोशिश एक तंज़ीम करवा रही है यानी दुश्मने अहलेबैत की ये आदत थी और इस दौर के दुश्मने अहलेबैत भी अपने बाप दादाओ के इस अमल को अपनाए हुए हैं)
“इमाम इब्ने हजर अस्क़लानी رضی اللہ تعالی عنه ने अपनी किताब अल-मतालिब उल-आलिया बिज़वाइद इल मसानिद समानिया जिल्द 18 में एक बाब बांधा है जिसका नाम ही है باب لعن رسول اللہ صلی اللہ تعالی علیه وآله وسلم الحکم بن أبي العاص وبنیه وبني أمیة
“रसूलल्लाह صلی اللہ تعالی علیه وآله وسلم का अल-हकम इब्ने अबी अल-आस और उसके बच्चों पर और बनु उमय्या पर लानत भेजने पर बाब”……………जिसकी पहली रिवायत मुलाहिज़ा फरमाएं 👇👇👇👇👇 मैं इमाम हसन और इमाम हुसैन علیهما السلام के साथ था और मरवान ने इमाम आली मक़ाम इमाम हुसैन علیه السلام पर माज़अल्लाह लानत भेजी…मरवान ने कहा अहलेबैत लानती हैं(माज़अल्लाह) इस पर इमाम हुसैन علیه السلام ग़ुस्सा हो गए और फ़रमाया क्या तू ये कह रहा है के अहलेबैत علیهم السلام लानती हैं???(माज़अल्लाह)……फिर इमाम हुसैन علیه السلام ने फ़रमाया के ख़ुदा की क़सम रसूलल्लाह صلی اللہ تعالی علیه وآله وسلم ने तुझ पर उस वक़्त लानत की थी जब तू अपने बाप के सुल्ब में थे.
☝”ये हदीस इस सनद के साथ सहीह है और इसका रिजाल भी सिक़ाह(Trustworthy) है और तवील फ़ेहरिस्त बयान फ़रमाई है कि ये बात किन किन किताबों में सहीह अस्नाद के साथ मौजूद है”