
आपकी कुटियाँ– कई मक़ामों पर आपकी कुटियाँ बनी हुई है जिनमें आप अक्सर क़याम करते थे! ये कुटियाँ आपकी यादगार हैं!
मौज़ा करीमनपुर ज़िला प्रतापगढ़ मौज़ा छटई के पुरवा ज़िला सुल्तानपुर, माहे मऊ ज़िला सुल्तानपुर और मुसाफ़िर ख़ाना ज़िला सुल्तानपुर में ख़ास तौर पर आपके इसरार पर कुटियाँ बनाई गयीं जिनसे आज तक हज़रत का फैज़ जारी और सारी है!
सैरो सैयाहत- आप अच्छी खासी जायदाद ज़मीन के मालिक थे लेकिन आपने अपनी जायदाद से एक पैसा भी नहीं लिया! |घर बार जायदाद अज़ीज़ों अक़ारिब में छोड़कर ज़िन्दगी के ज़्यादा तर अय्याम ग़रीबुल वतनी और सैरो सैयाहत में बसर कर दिया मखलूके खुदा की ख़िदमत और हिदायत में सर्फ कर दिया! आप के उम्र के ज़्यादा तर अय्याम छटई का पुरवा, माहे मऊ, नियावां, मीरा मऊ, लौहर वगैरा में गुज़रे!
छटई का पुरवा– ये वो बस्ती है जहाँ की पूरी आबादी आपके वालिद के हल्का.ए.इरादत में शामिल थी! यहाँ आप मुहम्मद इब्राहीम और मुहम्मद क़ासिम मौकेरी भाइयों के यहाँ रुकते थे जिनका पूरा घर आपकी ताज़ीम करता था! यहीं आपकी पहली कुटी आपके हुक्म से बन कर तैयार हुई जिसमे आप मुहम्मद क़ासिम के हमराह रहते थे!
लौहर– लौहर ज़िला सुल्तानपुर का एक बड़ा गाँव है! यहाँ के तक़रीबन सभी लोग हज़रत के हल्का.ए.इरादत में दाखिल थें! यहाँ हज़रत के आबाओ अजदात भी तशरीफ़ लाते थे इसी लिए यहाँ का बच्चाबच्चा हज़रत के घर के बच्चे बच्चे का एहतेराम बजा लाता रहा है! इसी बस्ती के हौसलामंद लोगों ने हज़रत के दादा हज़रत सैय्यद मुहम्मद अशरफ़ के ज़माने में पंद्रह बीघा जमीन लंगरखाने में दे दी थी! हज़रत यहाँ अब्दुल लतीफ़ मरहूम के घर में क़याम फ़रमाते थें। अब्दुल लतीफ़ हज़रत की ख़िदमत का बड़ा हक़ अदा करते थे! शेर मुहम्मद साहब भी हज़रत से बहुत अक़ीदत रखते थे और यही वजह थी कि अब्दुल लतीफ़ मरहूम के बाद हज़रत अगर किसी से मानूस
तो वो शेर मुहम्मद साहब थे! लौहर में हज़रत ने दो तीन साल क़याम फ़रमाया और फैज़ का दरिया बहा दिया जिससे खल्के ख़ुदा खूब सैराब
नियावां-मौज़ा नियावां ज़िला सुल्तानपुर वो बस्ती है जहाँ के लोग आपके बाप दादा के ज़माने से आपके सिलसिला से जुड़े थे। हज़रत अक्सर यहाँ तशरीफ़ लाते थे! मुहम्मद ख़लील हज़रत के ख़िदमत गुज़ारों में थे जिनके घर हज़रत का क़याम होता था!
एक बार की बात है कि मुहम्मद ख़लील हज़रत को अपने घर लाएं उस वक़्त मुहम्मद खलील की बीवी हालत ए हमल में थी! मुहम्मद ख़लील के कोई बेटा ना था इसलिए हज़रत से दुआ के ख्वास्तगार हुए और इरशाद फ़रमाया की उसका नाम भी तजवीज़ फरमाएँ! हज़रत ने फ़रमाया कुलसूम या फ़ातिमा रख देनाएअब तो मुहम्मद ख़लील के हाथ पैर फूलने लगें कि मैं क्या चाहता था और क्या हो गया! चंद दिनों बाद उनके घर बेटी पैदा हुई जिसका नाम कुलसूम रखा गया! इसके बाद इनके घर एक और बेटी पैदा हुई जिसका नाम फ़ातिमा रखा गया! दो बेटियों के बाद मुहम्मद ख़लील के घर में फिर विलादत के आसार ज़ाहिर हुएं! मुहम्मद ख़लील हज़रत के ख़िदमत में हाज़िर हुए और हज़रत से बेटे के लिए दुआ करवाया और उसका नाम तजवीज़ करने की इल्तेजा की! हज़रत ने इस बार लड़के का नाम रखा और ऐसा लम्बा नाम रखा की जिसके तीन जुज़ होते थे! उसके बाद मुहम्मद खलील के घर तीन बेटे यके बाद दीगरे पैदा हुएं!
माहे मऊ में आपका क़याम– हज़रत जहाँ भी तशरीफ़ ले जाते लोग पता लगा कर दूर दराज़ से पहुंच जातें और अपने हक़ में दुआ करवाते और आपकी दुआ से अपना मक़सद पा लेते! एक बार आप छटई के पुरवा में क़याम फरमा थें कि अब्दुल शकूर माहे मऊ से तशरीफ़ लाएं! हज़रत से मुलाक़ात का शर्फ हासिल हुआ और आपके मुरीदो मोतकिद हो गयें और ऐसे हज़रत के दीवाने हुए कि रोज़ छटई का पुरवा तशरीफ़ लातें हज़रत की ख़िदमत करते और चले जातें कभी अर्जे मुद्दे की जसारत भी ना होती! एक बार मुहम्मद इब्राहीम के लड़के भगोले ने कहा हज़रत इनको अपने घर जाने की इजाज़त दे दीजिये और इनको दुआ दे दीजे कि इनके घर एक बेटा हो जाये क्यूंकि इनके घर छे बेटियां हैं! हज़रत ने फ़रमाया अल्लाह ने तुझको लड़का अता ने किया है और तेरा खानदान क़यामत तक रहेगा! फिर फ़रमाया की हज़रत मख़दूम साहब और ग़ौस पाक का हुक्म हो गया है अब्दुल शकूर को लड़का मिल गया है! चंद दिनों बाद अब्दुल शकूर के यहाँ एक लड़का पैदा हुआ जिससे हज़रत के साथ उनकी मुहब्बत और बढ़ गयी और वोह हज़रत को माहे मऊ अपने मकान ले आएं।
सन १९६८ ईस्वीं में हज़रत पहली बार माहे मऊ तशरीफ़ लाएं और यहाँ अब्दुल शकूर और मुहम्मद याकूब के घर क़याम फ़रमाया! चंद दिनों में पूरा गाँव हज़रत के अक़ीदतमंदों में हो गया! हज़रत को ये जगह भी पसंद आई और कुछ अर्से यहाँ भी क़याम फ़रमाया! हज़रत आबादी से दूर नहर उस पार एक बाग़ में तशरीफ़ ले जातें और वहां दौड़ लगाते! उसु बाग़ के शुमाल मशरिक़ में एक ख़ित्ता ज़मीन खाली पड़ी थी और वहीं एक पुख़्ता कुआँ भी था! हज़रत को ये जगह बहुत पसंद थी! हज़रत ने यहाँ अब्दुल शकूर और मुहम्मद याकूब को एक कुटी बनाने का हुक्म दिया! सं १९७१ ईस्वीं में आपके मुरीदों के मदद से एक कुटिया तैयार की गयी! यहाँ हज़रत चार.चार छे.छे महीना आराम फरमा होतें थे!